1857 की क्रांति के परिणाम-Consequences of the Revolution of 1857

1857 की क्रांति के परिणाम तात्कालिक और दूरगामी दृष्टि से महत्वपूर्ण रहे। यद्यपि विद्रोह का पूर्ण रूप से दमन कर दिया गया। फिर भी इसने भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के मूल को हिला दिया।

1857 की क्रान्ति ने भारत में एक सामन्ती युग का अन्त करके एक नवीन युग को जन्म दिया। जिसका नेतृत्व अब आने वाली प्रगतिशील व शिक्षित भारतीय पीढ़ी करने वाली थी।

 

1857 के विद्रोह ने भारतीय राजनीति, प्रशासन, सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था तथा राष्ट्रीय भावना को प्रभावित किया।

इस क्रान्ति के बाद ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार को कम किया गया। मुगल साम्राज्य के अतित्व को हमेशा के लिये समाप्त कर दिया गया।

इस विद्रोह के समाप्त होने के बाद 1858 ई. में ब्रिटिश संसद ने एक कानून पारित कर भारतीय प्रशासन को ईस्ट इंडिया कम्पनी के नियन्त्रण से छीनकर ब्रिटिश क्राउन अर्थात महारानी के हाथों में सौंप दिया।

महारानी विक्टोरिया ने भारतीय प्रशासन के सम्बन्ध में एक घोषणा पत्र जारी किया जिसे 1 नवम्बर 1858 ई. में इलाहाबाद के मिंटो पार्क में लार्ड कैनिंग ने पढ़ा।

इस घोषणा पत्र को “भारत सरकार अधिनियम-1858” की संज्ञा से अभिहित किया गया। इस घोषणा पत्र को भारतीय जनता का मैग्नाकार्टा (महाधिकार पत्र) कहा गया।

इस अधिनियम द्वारा भारत के गवर्नर जनरल के पद में परिवर्तन कर उसे “वाइसराय” का पद बना दिया।

भारत सरकार अधिनियम-1858 के तहत इंग्लैंड में एक “भारतीय राज्य सचिव” की नियुक्ति की गई तथा इसकी सहायता के लिए एक 15 सदस्यीय “मंत्रणा परिषद (Advisory Council)” का गठन किया गया। इन 15 सदस्यों में 8 सदस्य ब्रिटश सरकार द्वारा नियुक्त किये जाने तथा शेष 7 सदस्य कम्पनी के भूतपूर्व संचालकों (कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर्स) द्वारा चुने जाने की व्यवस्था की गयी।

1858 के अधिनियम में देशी राज्यों की अखण्डता एवं उनकी सुरक्षा की व्यवस्था की गई। कम्पनी के साथ देशी राज्यों द्वारा किये गये समझौतों और सन्धियों को मान्यता प्रदान की गई।

देशी राज्यों को उत्तराधिकारी गोद लेने का अधिकार वापस मिल गया। सभी भारतीय राज्यों को ब्रिटिश अधिसत्ता के अंतर्गत ले लिया गया।

सन सत्तावन के विद्रोह के कारण

1857 ई. के विद्रोही सामन्तों और ताल्लुकेदारों को भी समस्त सुविधाएं वापस कर दी गयीं। जिसके फलस्वरूप सामन्ती वर्ग अंग्रेजों का हिमायती बन गया। इस प्रकार अंग्रेजों की “फूट डालो राज करो” की नीति सफल रही।

महारानी ने भारत के सामाजिक तथा धार्मिक मामलों में तटस्थ रहने तथा सेवाओं में बिना भेदभाव के नियुक्ति करने का वचन दिया।

सेना के पुनर्गठन हेतु “पील आयोग” का गठन किया गया। यूरोपीय सैनिकों की संख्या को बढ़ाया गया। अब भारतीय तथा यूरोपीय सैनिकों का अनुपात 2:1 कर दिया गया। विद्रोह से पूर्व यह अनुपात 5:1 था।

उच्च सैनिक पदों पर भारतीयों की नियुक्ति को बन्द कर दिया गया।

तोपखाने को पूर्ण रूप से अंग्रेज सैनिकों के अधिकार में दे दिया गया। सैनिक भर्ती एवं प्रशिक्षण हेतु “रायल कमीशन” का गठन किया गया।

विद्रोह के फलस्वरूप भारतीयों में राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास हुआ। हिन्दू-मुस्लिम एकता ने जोर पकड़ना शुरू किया, जिसका कालान्तर में राष्ट्रीय आंदोलन में अच्छा योगदान रहा।

1857 ई. के विद्रोह के बाद साम्राज्य विस्तार की नीति तो खत्म हो गई किन्तु उसके स्थान पर आर्थिक शोषण का युग प्रारम्भ हो गया।

1861 ई. में “भारतीय लोक सेवा अधिनियम” पारित किया गया। जिसके अंतर्गत लन्दन में प्रत्येक वर्ष एक प्रतियोगी परीक्षा आयोजित करने की व्यवस्था की गई।

1861 में ही भारतीयों को प्रशासन में अल्प प्रतिनिधित्व देने के लिए “भारत परिषद अधिनियम-1861” पारित किया गया।

विद्रोह के फलस्वरूप सामन्ती ढांचा चरमरा गया। आम भारतीयों में सामन्तवादियों की छवि गद्दारों की हो गई। क्योंकि इस वर्ग ने विद्रोह को दबाने में अंग्रेजों का साथ दिया था।

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