राष्ट्रपति की शक्तियां और अधिकार

संविधान के अनुच्छेद-52 में उपबन्ध किया गया है कि “भारत का एक राष्ट्रपति होगा।” जो (अनुच्छेद-53 के अनुसार) संघीय कार्यपालिका का प्रधान होगा तथा संघ की सभी कार्यपालिकीय शक्तियां उसमें निहित होगी। जिनका प्रयोग वह संविधान के अनुसार स्वयं या अधीनस्थ पदाधिकारियों के माध्यम से करेगा।

भारत के राष्ट्रपति

राष्ट्रपति पद के लिए अब तक 15 बार चुनाव सम्पन्न हुआ है। अतः रामनाथ कोविंद क्रमानुसार भारत के 15वें राष्ट्रपति हैं। किन्तु व्यक्तिगत क्रम के अनुसार वे भारत के 14वें राष्ट्रपति हैं।क्योंकि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद दो बार राष्ट्रपति चुनें गये थे। यदि व्यक्तिगत क्रम में कार्यवाहक राष्ट्रपतियों को गिन लिया जाये तो रामनाथ कोविंद 17वें राष्ट्रपति हैं।

1-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद–भारत के प्रथम राष्ट्रपति

2-डॉ. राधाकृष्णन सर्वपल्ली–प्रथम उपराष्ट्रपति

3-डॉ. जाकिर हुसैन–भारत के प्रथम मुस्लिम राष्ट्रपति एवं कार्यकाल के दौरान मृत्यु

4-वी. वी. गिरि–भारत के प्रथम कार्यवाहक राष्ट्रपति

5-न्यायमूर्ति एम. हिदायतुल्ला–भारत के मुख्य न्यायाधीश जिन्होंने कार्यवाहक राष्ट्रपति का पद ग्रहण किया।

6-वी. वी. गिरि–द्वितीय चक्र की मत गणना के बाद विजयी।

7-फखरुद्दीन अली अहमद–कार्यकाल के दौरान मृत्यु

8-बी. डी. जत्ती–तृतीय कार्यवाहक राष्ट्रपति

9-नीलम संजीव रेड्डी–निर्विरोध निर्वाचित

10-ज्ञानी जैल सिंह–जेबी वीटो का प्रयोग किया

11-आर. वेंकटरमण–सर्वाधिक आयु के राष्ट्रपति

12-डॉ. शंकरदयाल शर्मा–4 प्रधानमंत्रियों के साथ कार्य किया

13-डॉ. के. आर. नारायण–प्रथम दलित राष्ट्रपति

14-डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम–मिसाइल मैन

15-श्रीमती प्रतिभा पाटिल–भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति

16-श्री प्रणव मुखर्जी–वित्तमन्त्री एवं विदेश मंत्री भी रहे। तथा राजनैतिक दल “राष्ट्रीय समाजवादी काँग्रेस” का गठन भी किया था।

17-रामनाथ कोविंद

राष्ट्रपति से सम्बन्धित अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

1-नीलम संजीव रेड्डी ऐसे राष्ट्रपति हैं जो लोकसभा के अध्यक्ष भी रहे थे।

2-“समान नागरिक संहिता” के सम्बन्ध राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद तथा प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बीच मतभेद पैदा हुआ था।

3-सर्वप्रथम ज्ञानी जैल सिंह ने “भारतीय डाक संशोधन विधेयक -1986” के सम्बन्ध में जेबी वीटो का प्रयोग किया था।

4-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने सबसे लम्बी अवधि तक(10 वर्ष) राष्ट्रपति पद धारण किया।

5-भारत के दूसरे राष्ट्रपति  डॉ. राधाकृष्णन सर्वपल्ली को “दार्शनिक राजा” या “दार्शनिक शासक “के रूप में जाना जाता है।

6-डॉ. जाकिर हुसैन ऐसे राष्ट्रपति थे जो विहार के राज्यपाल भी रहे थे।

7-राष्ट्रपति भवन को ब्रिटिश वास्तुकार “एडमिन ल्युटियन्स” डिजाइन किया गया था। वर्ष 1950 तक इसे “वायसरॉय हाउस” कहा जाता था।

राष्ट्रपति पद के लिए योग्यता

अनुच्छेद-58 में राष्ट्रपति पद के लिए योग्यताओं का वर्णन किया गया है। जो निम्नलिखित हैं।

1-वह भारत का नागरिक हो।

2-वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।

3-लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो।

4-चुनाव के समय कोई लाभ का पद धारण नहीं किये हो।

भारतीय नागरिकों के अधिकार

यहाँ लाभ के पद से तात्पर्य भारत सरकार , राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकरण में पद धारण करने से है। किन्तु राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यों के राज्यपाल एवं संघ या राज्य के मंत्रियों के पद को लाभ का पद नहीं समझा जाता है।

राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी

राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार का नाम कम से कम 50 मतदाताओं द्वारा प्रस्तावित एवं 50 मतदाताओं द्वारा अनुमोदित होना चाहिए। 1998 से पूर्व यह  संख्या 10-10 थी।

राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए जमानत राशि 15000 रुपये है। यदि उम्मीदवार कुल वैध मतों का 1/6 भाग मत प्राप्त नहीं कर पाता है तो उसकी जमानत राशि जब्त हो जाती है।

अनुच्छेद-59 में उपबन्ध किया गया है कि “राष्ट्रपति संसद या राज्य विधान मंडल के किसी भी सदन का सदस्य नहीं होगा। यदि निर्वाचन से पूर्व वह इनका सदस्य है तो निर्वाचन की तिथि से उसका स्थान उस सदन में रिक्त समझा जायेगा। राष्ट्रपति अपने कार्यकाल की अवधि में कोई अन्य पद धारण नहीं कर सकता।”

अनुच्छेद-57 के अनुसार कोई व्यक्ति राष्ट्रपति पद पर पुनर्निर्वाचित हो सकता है। भारतीय संविधान में यह उल्लेख नहीं किया गया है कि कोई व्यक्ति अधिकतम कितनी बार राष्ट्रपति निर्वाचित हो सकता है।

राष्ट्रपति का निर्वाचक मण्डल

अनुच्छेद-54 के अनुसार राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल में संसद के दोनों सदनों (राज्यसभा और लोकसभा) के निर्वाचित सदस्य तथा राज्य विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य होंगे। राज्यों की विधान सभाओं में केन्द्र शासित राज्यों की विधान सभाओं को शामिल नहीं किया गया है। किन्तु 70वें संविधान संशोधन 1992 द्वारा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली तथा पांडिचेरी केन्द्र शासित राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों को राष्ट्रपति के निर्वाचक मण्डल में शामिल कर लिया गया है।

राष्ट्रपति के निर्वाचन की पद्धति

राष्ट्रपति का चुनाव “अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली” द्वारा किया जाता है। अनुच्छेद-55 में राष्ट्रपति की निर्वाचन पद्धति का वर्णन किया गया है। इसके अनुसार राष्ट्रपति का निर्वाचन “आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति” के अनुसार “एकल संक्रमणीय मत प्रणाली” द्वारा होगा।

मत मूल्य की गणना

1-विधान सभा सदस्यों के मत मूल्य की गणना निम्नलिखित सूत्र द्वारा विधान सभा के सदस्य के मत की गणना की जाती है।

 

2-संसद सदस्यों के मत मूल की गणना

संसद के निर्वाचित सदस्यों में से किसी एक सदस्य के मत का मूल्य जानने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है।

 

राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए मतगणना

राष्ट्रपति के निर्वाचन में मत गणना के लिए एक विशेष प्रक्रिया का प्रावधान किया गया है। राष्ट्रपति पद के लिए उसी व्यक्ति को सफल घोषित किया जाता है जो कुल वैध मतों के 50% से एक मत अधिक प्राप्त करता है। इसे न्यूनतम कोटा कहते हैं।

कुल पड़े वैध मत

न्यूनतम कोटा=————– +1

2

राष्ट्रपति की पदावधि

अनुच्छेद-56 के अनुसार राष्ट्रपति पद ग्रहण करने की तिथि से 5 वर्ष की अवधि तक अपना पद धारण करता है। किन्तु वह पदावधि समाप्त होने के पश्चात् भी तब तक अपना पद धारण किये रहता है जब तक की उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण नहीं कर लेता है।

इन्हें भी जानें- भारतीय नागरिकों के मूल कर्तव्य

अनुच्छेद-62 में कहा गया है कि राष्ट्रपति की पदावधि समाप्त होने के छः माह पूर्व ही नए राष्ट्रपति का चुनाव करा लिया जायेगा

राष्ट्रपति पर महाभियोग

राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया अनुच्छेद-61 में दी गई है। राष्ट्रपति द्वारा संविधान का अतिक्रमण किये जाने पर उसके विरुद्ध महाभियोग चलाया जा सकता है।

महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है। परन्तु यह आवश्यक है कि राष्ट्रपति को 14 दिन पूर्व इस प्रस्ताव की लिखत सुचना दी जाये। प्रस्ताव की सुचना पर उस सदन के, जिस सदन में प्रस्ताव लाया गया है एक चौथाई सदस्यों के हस्ताक्षर हो।

यदि संसद के उस सदन (जिसमें महाभियोग प्रस्ताव पेश है ) से प्रस्ताव दो तिहाई सदस्यों द्वारा पारित हो जाता है तो प्रस्ताव दूसरे सदन में जायेगा। और यदि दूसरा सदन भी प्रस्ताव को दो तिहाई बहुमत से पारित कर देता है तो उसी दिन से राष्ट्रपति का पद रिक्त समझा जायेगा। (दूसरे सदन में राष्ट्रपति को स्वयं या अपने किसी प्रतिनिधि के माध्यम से स्पष्टीकरण देने का अधिकार है)

राष्ट्रपति अपना त्यागपत्र देकर भी पद त्याग सकता है। राष्ट्रपति अपना त्याग पत्र उपराष्ट्रपति को देता है। तब उपराष्ट्रपति तत्काल इसकी सूचना लोकसभा अध्यक्ष को देता है।

राष्ट्रपति द्वारा शपथ ग्रहण

पद धारण करने से पूर्व राष्ट्रपति  उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या उनकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश के सम्मुख शपथ ग्रहण करता है। राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण का प्रारूप अनुच्छेद-60 में दिया गया है।

राष्ट्रपति के वेतन और भत्ते

राष्ट्रपति के वेतन और भत्ते भारत की संचित निधि से दिया जाता है। राष्ट्रपति के भत्ते आयकर मुक्त होते हैं। जबकि वेतन पर आयकर लगता है।

राष्ट्रपति के चुनाव सम्बन्धी विवाद

राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव सम्बन्धी विवादों का उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णय किया जाता है। और उसका निर्णय अन्तिम होता है। (अनुच्छेद-71)

राष्ट्रपति की शक्तियां

संविधान द्वारा राष्ट्रपति को व्यापक शक्तियां प्रदान की गई है। राष्ट्रपति के शक्तियों को दो वर्गों में विभाजित किया गया है।

A-शान्ति कालीन शक्तियां

B-आपात कालीन शक्तियां

A-शान्ति कालीन शक्तियां

1-राष्ट्रपति की कार्यपालिकीय शक्तियां

2-राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां

3-राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियां

4-राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियां

5-राष्ट्रपति की सैन्य शक्तियां

6-राष्ट्रपति की राजनयिक शक्तियां

7-शान्ति काल में अन्य प्रमुख शक्तियां

B-राष्ट्रपति की आपात कालीन शक्तियां

आपात के समय राष्ट्रपति को कुछ विशिष्ट शक्तियां प्रदान की गयी है। संविधान में तीन प्रकार के आपात का अनुमान किया गया है। जिसके आधार पर राष्ट्रपति को निम्न शक्तियां प्रदान की गई है।

1-राष्ट्रीय आपात घोषित करने की शक्ति

2-राष्ट्रपति शासन लागू करने की शक्ति

3-वित्तीय आपात घोषित करने की शक्ति

राष्ट्रपति के विशेषाधिकार

संविधान के अनुच्छेद-361 में भारत के राष्ट्रपति एवं राज्य के राज्यपालों को निम्नलिखित विशेषाधिकार प्रदान किये गए हैं।

राज्य के नीति निदेशक तत्व

राष्ट्रपति या राज्यपाल को पद पर रहते हुए किये गये किसी कार्य के लिए न्यायालय में उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।

राष्ट्रपति या राज्यपाल के विरुद्ध उसकी पदावधि के समय कोई दाण्डिक कार्यवाही न तो संस्थित की जायेगी और न ही चालू रखी जायेगी।

राष्ट्रपति या राज्यपाल की पदावधि के दौरान न्यायालय इनके विरुद्ध गिरफ्तारी या कारावास का कोई आदेश जारी नहीं करेगा।

राष्ट्रपति की कार्यपालिकाय शक्तियां

अनुच्छेद-53 में कहा गया है कि संघ की समस्त कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी। जिसका प्रयोग वह संविधान के अनुसार स्वयं या अधीनस्थ पदाधिकारियों के माध्यम से करता है।

भारत सरकार के समस्त कार्यपालिकीय कृत्य राष्ट्रपति के नाम से किये जाते हैं। राष्ट्रपति को संघ के मामले में सूचना प्राप्त करने का अधिकार है।

अनुच्छेद-78 के तहत राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री से संघ सम्बन्धी सूचनायें देने को कह सकता है। तथा प्रधानमंत्री का यह कर्तव्य होगा कि वह राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद के सभी निर्णयों तथा प्रशासन सम्बन्धी सूचनायें दें।

अनुच्छेद-74 के अनुसार राष्ट्रपति अपनी कार्यपालिका शक्ति के प्रयोग हेतु सलाह देने के लिए” मंत्रिपरिषद “का गठन करता है। तथा प्रधानमंत्री सहित निम्नलखित अन्य प्रमुख अधिकारियों की नियुक्ति करता है।

1-संघ के मंत्रियों

2-राज्यों के राज्यपालों

3-उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों

4-भारत का महान्यायवादी

5-नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक

6-लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य

7-मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य निर्वाचन आयुक्त

8-राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य

9-राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य

10-राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य

11-अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य

12-पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य

13-संघ शासित राज्यों के राज्यपाल या प्रशासक

14-दिल्ली व पांडिचेरी के मुख्यमंत्री

15-राजभाषा आयोग के अध्यक्ष आदि

संघ के मंत्री, राज्यों के राज्यपाल एवं भारत का महान्यायवादी आदि राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त अपना पद धारण करते हैं। अर्थात राष्ट्रपति इन्हें कभी भी पदच्युत कर सकता है।

राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां

भारत का राष्ट्रपति राष्ट्र का संवैधानिक प्रमुख होता है। एवं भारत की संसद का अभिन्न होता है। क्योंकि संसद राष्ट्रपति, लोकसभा एवं राज्यसभा तीनों से मिलकर बनती है। अतः राष्ट्रपति को निम्नलिखित विधायी शक्तियां प्राप्त हैं

संघीय मंत्रिपरिषद

1-राष्ट्रपति को संसद का सत्र आहूत करने या समाप्त करने का अधिकार है।

2-अनुच्छेद-85 के अनुसार राष्ट्रपति लोकसभा को समय से पूर्व भंग कर सकता है। किन्तु इसके लिए प्रधानमंत्री से परामर्श करना आवश्यक है।

3-यदि किसी साधारण विधेयक पर संसद के दोनों सदनों में मतभेद हो तो राष्ट्रपति अनुच्छेद-108 के तहत उस विधेयक को पास कराने के लिए संयुक्त अधिवेशन बुला सकता है।

4-अनुच्छेद-80 के अनुसार राष्ट्रपति राज्यसभा में 12 सदस्यों को मनोनीत कर सकता है। जो साहित्य, विज्ञान, कला और समाजसेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या अनुभव रखते हों।

5-संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति के पश्चात् ही कानून बनता है।

6-जब कोई विधेयक दोनों सदनों से पारित होने के पश्चात् राष्ट्रपति के समक्ष अनुमति के लिए रखा जाता है। तो राष्ट्रपति धन विधेयक तथा संविधान संशोधन विधेयक को छोड़कर अनुच्छेद-111 के अनुसार अपनी अनुमति दे सकता है या पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है या अपने पास रख सकता है।

7-निम्नलिखित विधेयकों को संसद में रखें जाने से पूर्व राष्ट्रपति की पूर्व सहमति आवश्यक होती है।

a-धन विधेयक

b-किसी नये राज्य का निर्माण या वर्तमान राज्य के क्षेत्र, सीमा या नाम में परिवर्तन करने वाला विधेयक

c-ऐसा विधेयक जो भारत की संचित निधि से व्यय करने से सम्बन्धित हो। किन्तु धन विधेयक नहीं है।

d-भूमि अधिग्रहण से सम्बन्धित विधेयक

e-व्यापार की स्वतन्त्रता को सीमित करने वाला राज्य का कोई विधेयक

f-कराधान से सम्बन्धित विधेयक जिससे राज्य का हित प्रभावित हो।

अगर इन विधेयकों को राष्ट्रपति की पूर्व सहमति के बिना संसद में रख दिया जाता है। तो उसे न्यायालय द्वारा अवैध घोषित नहीं किया जा सकता है।

8-जब संसद के दोनों सदन अथवा एक सदन सत्र में न हो और राष्ट्रपति को ये विश्वास हो जाये कि अविलम्ब कार्यवाही आवश्यक है। तो राष्ट्रपति अनुच्छेद-123 के तहत अध्यादेश जारी कर सकता है। ऐसा अध्यादेश संसद सत्र आरम्भ होने के 6 सप्ताह तक प्रभावी रह सकता है।

राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियां

संविधान में न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक रखा गया है। अतः राष्ट्रपति का न्यायिक क्षेत्र में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं है। फिर भी उसे न्यायिक क्षेत्र में निम्नलिखित शक्तियां प्राप्त है।

भारत का प्रधानमंत्री

1-संविधान के अनुच्छेद-72 में राष्ट्रपति को क्षमादान की शक्ति प्रदान की गई है। राष्ट्रपति सेना न्यायालय द्वारा दिये गये दण्ड, सभी मृत्यु दण्ड तथा संघीय विषय से सम्बन्धित अपराध के लिये दिये गये दण्ड को क्षमा कर सकता है या प्रविलम्ब, परिहार, विराम अथवा लघुकरण कर सकता है।

[ प्रविलम्ब-मृत्यु दण्ड को अस्थाई रूप से निलम्बित करना।

परिहार-दण्ड की प्रकृति में परिवर्तन किये बिना दण्ड की मात्रा कम करना।

विराम-किसी विशेष कारण से दण्ड की मात्रा को कम करना।

लघुकरण-दण्ड की प्रकृति में परिवर्तन करते हुए दण्ड की मात्रा को कम करना।]

2-राष्ट्रपति को किसी विधि या सार्वजनिक महत्व तथ्य पर अनुच्छेद-143 के तहत उच्चतम न्यायालय से परामर्श लेने का अधिकार है। किन्तु राष्ट्रपति उस परामर्श को मानने के लिये बाध्य नहीं है।

3-राष्ट्रपति अनुच्छेद-224 के अन्तर्गत उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों तथा अनुच्छेद-217 के तहत उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।

राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियां

1-राष्ट्रपति की अनुमति के बिना धन विधेयक अथवा वित्त विधेयक एवं अनुदान माँगें लोकसभा में प्रस्तावित नहीं की जा सकतीं हैं।

2-भारत की आकस्मिकता निधि पर राष्ट्रपति का अधिकार होता है। वह आकस्मिक व्यय के लिए इस निधि से राशि दे सकता है। किन्तु इसके लिए बाद में संसद की स्वीकृति आवश्यक है।

3-अनुच्छेद-280 के तहत राष्ट्रपति एक वित्त आयोग का गठन कर सकता है। जो आर्थिक स्थिति के सम्बन्ध में राष्ट्रपति को परामर्श देता है।

4-राष्ट्रपति संसद में अनुच्छेद-112 के तहत वित्तीय वर्ष के प्रारम्भ में आय व्यय का विवरण रखवाता है।

राष्ट्रपति की सैन्य शक्तियां

भारत का राष्ट्रपति तीनों सेनाओं, थल सेना, वायु सेना व नौसेना का प्रधान सेनापति होता है। वह तीनों सेना अध्यक्षों की नियुक्ति करता है। राष्ट्रपति को युद्ध घोषित करने या शान्ति स्थापित करने की शक्ति प्राप्त है। किन्तु संसद द्वारा विधि बनाकर इस शक्ति को सीमित किया जा सकता है।

राष्ट्रपति की राजनयिक शक्तियां

भारत का राष्ट्रपति भारतीय संघ का प्रमुख होता है अतः वह अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भारत का प्रतिनिधित्व करता है। अन्य देशों से संधियाँ एवं समझौते भी राष्ट्रपति के नाम से किये जाते हैं। वह विदेशों में भारतीय राजदूतों एवं कूटनीतिक प्रतिनिधियों की नियुक्ति करता है एवं विदेशी राजदूतों एवं कूटनीतिक प्रतिनिधियों को भारत में दूतावास स्थापित करने की स्वीकृति देता है।

राष्ट्रपति की अन्य शक्तियां

शान्तिकालीन उपरोक्त शक्तियों के अतिरिक्त राष्ट्रपति निम्नलिखित शक्तियां प्राप्त है।

1-राष्ट्रपति वित्त आयोग, नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक, भाषा आयोग, संघ लोकसेवा आयोग की कार्यवाही रिपोर्ट को संसद के सामने प्रस्तुत करता है।

2-राष्ट्रपति संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की संख्या, सेवा एवं शर्तों तथा पदावधि से सम्बन्धित नियम बनाता है।

3-संसद सदस्यों की अहर्ताओं और निर्हताओं से सम्बन्धित प्रश्नों का विनिश्चय निर्वाचन आयोग की राय से करता है। (अनुच्छेद-103)

राष्ट्रपति की आपात कालीन शक्तियां

आपात के समय राष्ट्रपति को कुछ विशिष्ट शक्तियां प्रदान की गयी है। संविधान में तीन प्रकार के आपात का अनुमान किया गया है। जिसके आधार पर राष्ट्रपति को निम्न शक्तियां प्रदान की गई है।

1-राष्ट्रीय आपात घोषित करने की शक्ति

युद्ध, बाह्म आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में राष्ट्रपति अनुच्छेद-352 के तहत “राष्ट्रीय आपात” की उद्घोषणा कर सकता है। आपात की उद्घोषणा करने के लिए मंत्रिमण्डल की लिखित सहमति आवश्यक है।

भारत का महान्यायवादी

आपात लागू होने के एक माह के भीतर संसद द्वारा इसका अनुमोदन किया जाना चाहिए अन्यथा यह स्वतः ही समाप्त हो जायेगा। यदि संसद इसका अनुमोदन कर देती है। तो यह 6 माह तक लागू रहता है।

आपात स्थिति को 6 माह के पश्चात् भी लागू रखने के लिए संसद में इसका अनुमोदन पुनः आवश्यक है।

भारत में अब तक तीन बार “राष्ट्रीय आपात” घोषित किया गया है।

★ 1962 में भारत पर चीन के आक्रमण के कारण

★1971 में भारत पर पाकिस्तान के आक्रमण के कारण

★1975 में आन्तरिक अशान्ति के आधार पर

2-राष्ट्रपति शासन लागू करने की शक्ति

यदि किसी राज्य के राज्यपाल से राष्ट्रपति को प्रतिवेदन मिले या राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाये कि उस राज्य का शासन संविधान के उपबन्धों के अनुसार नहीं चल रहा है। तो राष्ट्रपति अनुच्छेद-356 के तहत आपातकाल की घोषणा कर उस राज्य का शासन अपने हाथों में ले सकता है। इस घोषणा का अनुमोदन संसद द्वारा 2 माह के भीतर होना चाहिए अन्यथा यह स्वतः ही समाप्त हो जायेगी। ऐसी उद्घोषणा प्रत्येक 6 माह में संसद द्वारा अनुमोदित होनी चाहिए। किन्तु यह 3 वर्ष से अधिक समय तक जारी नहीं रह सकती है।

3-वित्तीय आपात घोषित करने की शक्ति

यदि राष्ट्रपति को यह समाधान हो जाये कि भारत अथवा उसके किसी भाग में वित्तीय संकट उत्पन्न हो गया है तो वह अनुच्छेद-360 के तहत “वित्तीय आपात” की घोषणा कर सकता है। इस घोषणा की स्वीकृति संसद द्वारा 2 माह के अन्दर दी जानी आवश्यक है।

राष्ट्रपति की वैवेकीय शक्तियां

भारत का संविधान राष्ट्रपति को कोई वैवेकीय शक्तियां प्रदान नहीं करता है। किन्तु व्यवहारिक रूप में राष्ट्रपति कुछ वैवेकीय शक्तियों का प्रयोग करता है।

1-यदि लोकसभा चुनाव में किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हुआ है। तो राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति में अपने विवेक का प्रयोग करता है और ऐसे दल या गठबंधन के नेता को प्रधानमंत्री पद के लिए आमन्त्रित करता है। जो सदन में विश्वास मत प्राप्त कर सके।

2-यदि सरकार लोकसभा में अपना बहुमत खो देती है और मंत्रिपरिषद लोकसभा के विघटन की सिफारिश करती है। तो ऐसी सिफारिस को राष्ट्रपति मानने के लिए बाध्य नहीं है। यहाँ वह स्वविवेकानुसार कार्य करता है। अथवा विश्वास मत खोने के बाद भी यदि मंत्रिपरिषद त्यागपत्र देने को तैयार नहीं है। तो राष्ट्रपति अपने स्वविवेक से सरकार बर्खाश्त कर सकता है।

3-जेबी वीटो का प्रयोग राष्ट्रपति की स्वविवेकीय शक्ति है।

राष्ट्रपति की वीटो शक्तियां

1-अत्यान्तिक वीटो

जब किसी विधेयक पर राष्ट्रपति अपनी अनुमति नहीं देता है। तो विधेयक का अस्तित्व स्वतः समाप्त हो जाता है। इसे अत्यान्तिक या पूर्ण वीटो कहा जाता है। इस शक्ति का प्रयोग गैर सरकारी विधेयकों के सम्बन्ध में किया जाता है।

2-निलम्बनकारी वीटो

जब राष्ट्रपति किसी विधेयक को पुर्नविचार के लिए लौटता है तो वह निलम्बनकारी वीटो शक्ति का प्रयोग करता है। इस शक्ति का प्रयोग राष्ट्रपति वेंकटरमन ने “संसद सदस्यों के पेंशन सम्बन्धी विधेयक” के सम्बन्ध में तथा ए. पी. जी. अब्दुल कलाम ने सांसद अयोग्यता निवारण संशोधन विधेयक 2005 के सम्बन्ध में किया था।

3-जेबी वीटो

जब राष्ट्रपति किसी विधेयक पर अपनी अनुमति नहीं देता है और पुनर्विचार के लिए संसद को वापस भी नहीं भेजता है। तो वह जेबी वीटो शक्ति का प्रयोग करता है। इसे पॉकेट वीटो भी कहते हैं। क्योंकि राष्ट्रपति विधेयक को अपने पास अर्थात अपनी पॉकेट में रख लेता है। क्योंकि संविधान में किसी विधेयक पर राष्ट्रपति द्वारा अनुमति देने या न देने की समय सीमा का निर्धारण नहीं किया गया है।

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