विश्व के प्रमुख ज्वालामुखी और उनके प्रकार-major volcanoes of the world

ज्वालामुखी से तात्पर्य उस छिद्र या विवर अथवा दरार से है जिसका सम्बन्ध पृथ्वी के आन्तरिक भाग से होता है, और जिसके माध्यम से लावा, तप्त गैसें, राख व जलवाष्प का उदगार होता है

ज्वालामुखी क्रिया

ज्वालामुखी क्रिया के अन्तर्गत पृथ्वी के आन्तरिक भागों में मैग्मा व गैस के उत्पन्न होने से लेकर भू-पटल के नीचे व ऊपर लावा के प्रकट होने तथा शीतल व ठोस होने की समस्त प्रक्रियाएँ शामिल होती हैं।

विश्व के प्रमुख ज्वालामुखी

ज्वालामुखी                                 देश

माउंट किनाबालु                        मलेशिया

अल-बुर्ज                                  ईरान

दामवंद                                     ईरान

कोह सुल्तान                             ईरान

कोलिमा                                   मेक्सिको

पोपो कैटपिटल                          मेक्सिको

पैरिकुटिन                                 मेक्सिको

माउंट रैनियर                            अमेरिका

माउंट शस्ता                             अमेरिका

सेंट हेलेंस                                अमेरिका

माउंट ताल                               फिलीपींस

माउंट पिनाटुबो                         फिलीपींस

मेयाना                                    फिलीपींस

विसुवियस                               इटली

माउंट एटना                             इटली

कोटोपैक्सी                              इक्वाडोर

चिम्बोराजो                              इक्वाडोर

माउंट सिनाबुंग                         इंडोनेशिया

माउंट मेरापी                            इंडोनेशिया

क्राकाटाओ                             इंडोनेशिया

माउंट कैमरुन                          कैमरुन अफ्रीका

सबनकाया                             पेरु

माउंट येरिबस                         अंटार्कटिका

बिल्लारिका                            चिली

फ्यूजीयामा                            जापान

माउंट पीली                            मार्टिनिक द्वीप

हेक्ला                                   आइसलैंड

लाकी                                   आइसलैंड

इजाफ जालाजोकुल                आइसलैंड

स्ट्रॉम्बोली                              लिपारी द्वीप

आजोसडेल सेलेडो                  अर्जेंटीना-चिली

मौनालोआ                             हवाई द्वीप

किलायू                                 हवाई द्वीप

कटमई                                 अलास्का

माउंट पोपा                            म्यामार

किलिमंजारो                          तंजानिया

महाद्वीपों की सर्वोच्च ज्वालामुखी चोटियां

1-आजोस डेल सेलेडो

 यह दक्षिण अमेरिका महाद्वीप की सर्वोच्च ज्वालामुखी चोटी है। यह चोटी एंडीज पर्वतमाला पर चिली व अर्जेंटीना देशों के मध्य स्थित है।

2-किलिमंजारो

 यह दक्षिण अफ्रीका महाद्वीप के किलिमंजारो पर्वत श्रेणी पर तंजानिया देश में अवस्थित है।

3-एल्ब्रस

 एल्ब्रस चोटी यूरोप महाद्वीप की सर्वोच्च ज्वालामुखी चोटी है। यह काकेशस पर्वतमाला पर रूस देश में स्थित है।

4-पिको डे ओरिजाबा

 उत्तरी अमेरिका महाद्वीप, पर्वत श्रेणी-ट्रांस मेक्सिकन ज्वालामुखी बेल्ट, देश-मेक्सिको

5-देवबंद

 एशिया महाद्वीप, एल्बोर्ज पर्वत श्रेणी, देश-ईरान

6-माउंट गिलुवे

आस्ट्रेलिया महाद्वीप, पर्वत श्रेणी-सदर्न उच्च भूमि, देश-पापुआ न्यूगिनी

7-माउंट सिडले

अंटार्कटिका महाद्वीप-एक्जीक्यूटिव कमेटी पर्वत श्रेणी

ज्वालामुखी उद्गार से निकलने वाले पदार्थ

a-गैस तथा जलवाष्प

 ज्वालामुखी उद्भेदन के समय सर्वप्रथम गैसें व जलवाष्प बाहर आते हैं। इसमें जलवाष्प की मात्रा सर्वाधिक (60-90%) होती है।

विश्व के प्रमुख पर्वत

b-ज्वालामुखी बम

 ज्वालामुखी उद्गार में निकले बड़े-बड़े टुकड़ों को ज्वालामुखी बम कहते हैं। जिनका व्यास कुछ सेमी. से लेकर कुछ फीट तक होता है।

c-लैपिली

 ज्वालामुखी के वे टुकड़े जो मटर के दाने या अखरोट के बराबर होते हैं, उन्हें लैपिली कहते हैं।

d-प्यूमिस

 इन चट्टानी टुकड़ो का घनत्व जल से भी कम होता है। इसलिए ये जल में तैरते है।

e-राख

 अति महीन चट्टानी कणों को धूल या राख कहते हैं।

f-लावा

 ज्वालामुखी उद्गार के समय भूगर्भ में स्थित चिपचिपा तरल पदार्थ मैग्मा कहलाता है, जब यह मैग्मा भू-पटल पर आता है तब उसे लावा की संज्ञा दी जाती है। धरातल पर ठण्डा होने के बाद इसे आग्नेय चट्टान के नाम से जाना जाता है। लावा दो प्रकार के होते हैं।

एसिडिक लावा

 यह अत्यन्त गाढ़ा तथा चिपचिपा होता है, जिसमें सिलिका की मात्रा अधिक होती है। यह गुम्बदाकार शंकु का निर्माण करता है। जैसे-स्ट्राम्बोली (इटली)

बेसिक लावा

 यह हल्का, पतला व धरातल पर शीघ्र फैलने वाला होता है। इससे शील्ड शंकु का निर्माण होता है। जैसे-मोनालोआ शंकु (हवाई द्वीप)

पृथ्वी का इतिहास

g-पाइरोक्लास्ट

 ज्वालामुखी क्रिया के अन्तर्गत भू-पटल पर आये चट्टानों के बड़े टुकड़ों को पाइरोक्लास्ट कहते हैं, जो सबसे पहले निकलते हैं।

ज्वालामुखी के अंग

 लावा जब ज्वालामुखी छिद्र के चारों ओर क्रमशः जमा होने लगता है। तो ज्वालामुखी शंकु का निर्माण होता है। जब जमाव अधिक हो जाता है तो शंकु काफी बड़ा हो जाता है। और पर्वत का रूप धारण कर लेता है। इस प्रकार के शंकु को “ज्वालामुखी पर्वत” कहते हैं। इस पर्वत के ऊपर लगभग बीच में एक छिद्र होता है जिसे “ज्वालामुखी छिद्र (Volcanic Vent)” कहते हैं। इस छिद्र का एक पतली नली द्वारा भूगर्भ से सम्बन्ध होता है। इस नली को “ज्वालामुखी नली” कहते हैं।



 जब ज्वालामुखी से निकलने वाला लावा अत्यधिक अम्लीय तथा सिलिका युक्त होता है तो लावा की एक कठोर पट्टी ज्वालामुखी नलिका तथा ज्वालामुखी छिद्र में जमा हो जाती है। ज्वालामुखी नलिका में जमा लावा की पट्टी को “ज्वालामुखी ग्रीवा” तथा ज्वालामुखी छिद्र में जमा लावा की पट्टी को “ज्वालामुखी प्लग” कहते हैं।

 ज्वालामुखी प्लग तथा ज्वालामुखी ग्रीवा के समेकित रूप को “डायट्रेम” कहा जाता है। जैसे-अमेरिका के न्यू मेक्सिको में स्थित “शिप रॉक डायट्रेम का तथा ब्लैक हिल्स व डेविल टावर ज्वालामुखी ग्रीवा के उदाहरण है।

 जब ज्वालामुखी का छिद्र विस्तृत हो जाता है तो उसे ज्वालामुखी मुख या ज्वालामुखी क्रेटर कहते हैं। और यदि इसमें जल का भराव हो जाये तो यह क्रेटर झील बन जाती है। जैसे-लोनार झील (महाराष्ट्र)।

 कभी-कभी एक मुख्य क्रेटर में कई छोटे-छोटे क्रेटरों का निर्माण हो जाता है। इस तरह के क्रेटर को घोंसलादार क्रेटर कहते हैं। जैसे-फिलीपीन्स स्थित माउन्ट ताल में तीन छोटे क्रेटर मिलते हैं।

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 अत्यधिक धँसाव या विस्फोट के कारण जब क्रेटर अधिक विस्तृत हो जाता है। तो उसे काल्डेरा (Caldera) कहा जाता है। जैसे-आसो क्रेटर (जापान), क्रेटर लेक (अमेरिका)।

ज्वालामुखी शंकु (Volcanic Cone)

 ज्वालामुखी विस्फोट से निकले लावा के जमा होने से जिस स्थलाकृति का निर्माण होता है। उसे ज्वालामुखी शंकु कहते हैं।

ज्वालामुखी शंकुओं के प्रकार

 ज्वालामुखी लावा के उद्गार की घटती तीव्रता के आधार पर ज्वालामुखी शंकु निम्नलिखित प्रकार के होते हैं।

1-सिंडर या राख शंकु

 इस प्रकार के शंकु प्रायः कम ऊँचाई के होते हैं। इनके निर्माण में मुख्यतः ज्वालामुखी राख व विखंडित पदार्थों का योगदान होता है। इस तरह के शंकु का ढाल अवतल तथा क्रेटर चौड़ा होता है। जैसे- पैराक्यूटिन पर्वत एवं जोरल्लो पर्वत (मैक्सिको), इजाल्को पर्वत (सान-सल्वाडोर), कैमेग्विन पर्वत (लुजोन द्वीप)।

2-लावा शंकु (Lava Cone)

अम्लीय लावा शंकु

 इस प्रकार के शंकु का निर्माण उस समय होता है जब ज्वालामुखी लावा में सिलिका की मात्रा अधिक होती है। जिससे वह चिपचिपा व लसदार हो जाता है। इसे ज्वालामुखी शंकु अधिक ऊंचाई तथा कम क्षेत्रीय विस्तार वाले होते हैं।

क्षारीय लावा शंकु

 जब जवालामुखी लावा में सिलिका की मात्रा कम होती है। जिससे वह हल्का व पतला हो जाता है तथा दूर तक फैलकर ठण्डा हो जाता है। इसके कारण कम ऊँचाई व अधिक क्षेत्रीय विस्तार वाले ज्वालामुखी शंकु का निर्माण होता है। क्षारीय लावा शंकु को शील्ड शंकु भी कहते हैं।

3-मिश्रित ज्वालामुखी शंकु

 जब ज्वालामुखी उद्गार में अम्लीय व क्षारीय लावा के साथ राख भी शामिल होती है। तब अत्यधिक विस्तृत सुडौल व ऊँचे ज्वालामुखी शंकु का निर्माण होता है। ऐसे शंकु को मिश्रित ज्वालामुखी शंकु कहते हैं। जैसे-जापान का फ्यूजीयामा, फिलीपींस का मेयान, अमेरिका का रेनियर, हुड तथा शस्ता।

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4-परिपोषित शंकु

 जब ज्वालामुखी शंकु के ढाल पर एक अन्य ज्वालामुखी शंकु निर्मित हो जाता है। तो इसे परिपोषित शंकु कहा जाता है। जैसे- माउन्ट शस्तिना माउन्ट शस्ता पर एक परिपोषित शंकु है।

ज्वालामुखी के प्रकार

A-सक्रियता के आधार पर ज्वालामुखी के प्रकार

1-सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcano)

 ऐसे ज्वालामुखी जिनके मुख से सदैव धूल, धुँआ, वाष्प, गैसें, राख, चट्टान खण्ड व लावा आदि पदार्थ बाहर निकलते रहते हैं। सक्रिय ज्वालामुखी कहलाते हैं। वर्तमान में सक्रिय ज्वालामुखियों की संख्या 500 से अधिक है।

सक्रिय ज्वालामुखी               स्थिति

स्ट्राम्बोली                       लेपरी द्वीप पर

(इस ज्वालामुखी को भूमध्य सागर का प्रकाश स्तम्भ भी कहा जाता है।)

एटना                            इटली(सिसली द्वीप)

कोटोपैक्सी                    इक्वाडोर

(कोटोपैक्सी विश्व का सबसे ऊँचा सक्रिय ज्वालामुखी)

माउन्ट इरेबस                 अंटार्कटिका

किलायू                          हवाई द्वीप

लांगिला एवं बागाना।       पापुआ न्यूगिनी

मेरापी                            इण्डोनेशिया

सुमेरु                             जावा

दुकानो                           इण्डोनेशिया

यासुर                            तात्रा द्वीप(वनुआतु)

मौनालोवा                      हवाई द्वीप

विल्लारिका                    चिली

विश्व के चार सर्वाधिक सक्रिय ज्वालामुखी क्रमशः किलायू, एटना, पिटन डी ला फोरनेस तथा न्यामुरागिरा हैं।

2-सुषुप्त ज्वालामुखी (Dormant Volcano)

 ऐसे ज्वालामुखी जिनमें निकट अतीत से कोई उद्गार नहीं हुआ हैं परन्तु जिनमें कभी भी उद्गार हो सकता है। सुषुप्त ज्वालामुखी कहलाते हैं।

सुषुप्त ज्वालामुखी                स्थिति

विसूवियस                           इटली

फ्यूजी यामा                         जापान

क्राकाटाओ                          इण्डोनेशिया

नारकोंडम द्वीप                    अंडमान निकोबार

3-शान्त ज्वालामुखी

 ऐसे ज्वालामुखी जिनमें ऐतिहासिक काल से कोई उद्गार नहीं हुआ है। और निकट भविष्य में भी कोई उद्गार होने की सम्भावना नहीं है। शान्त जवालामुखी कहे जाते हैं।

शान्त ज्वालामुखी                 स्थिति

कोह सुल्तान                        ईरान

देवबंद                                 ईरान

किलीमंजारो।                       तंजानिया

चिम्बराजो                            इक्वेडोर

एकांकागुआ                     एण्डीज पर्वत श्रेणी

पोपा                                   म्यामांर

B-उद्गार के आधार पर ज्वालामुखी के प्रकार

1-केन्द्रीय उद्गार के आधार पर प्रकार

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 जब ज्वालामुखी उद्भेदन किसी एक केंद्रीय मुख से भारी धमाके के साथ होता है तो उसे केन्द्रीय उद्भेदन कहते हैं। केन्द्रीय उद्गार विनाशात्मक प्लेटों के किनारों के सहारे होता है। ये कई प्रकार के होते हैं।

पीलियन तुल्य ज्वालामुखी

 ये ज्वालामुखी सबसे अधिक विनाश कारी होते हैं। इसका उद्गार सबसे अधिक विस्फोटक तथा भयंकर होता है। इससे निकलने वाले लावा में सिलिका की मात्रा अधिक होती है। जिसके कारण लावा अत्यधिक अम्लीय और चिपचिपा होता है। इस ज्वालामुखी में अगला उद्गार पिछले उद्गार से निर्मित ज्वालामुखी शंकु को तोड़ते हुए होता है। जैसे-मार्टिनिक द्वीप में पीली ज्वालामुखी, सुण्डा जलडमरू मध्य का क्राकाटाओ ज्वालामुखी और फिलीपींस का माउन्ट ताल ज्वालामुखी।

वल्कैनो तुल्य ज्वालामुखी

 इसमें अम्लीय से लेकर क्षारीय तक प्रत्येक प्रकार के लावा का उद्गार होता है। गैसों के अत्यधिक निष्कासन के कारण प्रायः “फूलगोभी के आकार” में ज्वालामुखी मेघ दूर तक छा जाते हैं।

स्ट्राम्बोली तुल्य ज्वालामुखी

 इस ज्वालामुखी उद्गार में अम्ल की मात्रा कुछ कम रहती है। यदि गैसों के प्रवाह मार्ग में कोई रुकावट न हो तो सामान्तया इसमें विस्फोटक उद्गार नहीं होता।

हवाईयन तुल्य ज्वालामुखी

 इसका उद्गार अत्यन्त शान्त होता है, क्योकि इससे निकलने वाला लावा तरल व क्षारीय होता है। जिससे यह दूर तक फैलकर जमा हो जाता है। इसे निर्मित शंकु कम ऊँचाई वाले किन्तु विस्तृत होते हैं।

2-दरारी उद्गार के आधार पर प्रकार

 भू-गर्भिक हलचलों से भू-पर्पटी की शैलों में दरारें पड़ जाती हैं। ये दरारों से लावा धरातल पर प्रवाहित होने लगता है। जिसे दरारी उद्गार कहते हैं। यह रचनात्मक प्लेटों के सहारे होता है। इस प्रकार के उद्भेदन से लावा पठार (ट्रैप) व लावा मैदान निर्मित होते हैं। जैसे-भारत का दक्कन ट्रैप, अमेरिका का कोलम्बिया-स्नैक पठार, ब्राजील का पराना पठार, दक्षिण अफ्रीका का ड्रैकेन्सबर्ग पठार आदि।

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