विधवा पुनर्विवाह अधिनियम-Widow Remarriage Act

विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 ई. में पारित किया गया। यह अधिनियम लार्ड कैनिंग के कार्यकाल में पारित किया गया था।

 

स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए भारतीय समाज सुधारकों ने विधवाओं के पुनर्विवाह पर बल दिया। इस कार्य में सर्वाधिक योगदान ब्रह्म समाज के सदस्य व कलकत्ता के संस्कृत कॉलेज के आचार्य “ईश्वर चन्द्र विद्यासागर” ने दिया।

इसके अतिरिक्त पश्चिमी भारत में डी के कर्वे, मद्रास में वीरेसलिंगम पुण्टुलू ने इस दिशा में विशेष प्रयत्न किये।

ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के प्रयास

ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने विधवा विवाह को मान्यता दिलाने के लिए पुराने संस्कृत लेखों व वैदिक उल्लेखों का तर्क दिया और यह प्रमाणित करने का प्रयास किया कि वेदों में विधवा विवाह को मान्यता दी गयी है।

सती प्रथा का अंत

 ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने विधवा विवाह के समर्थन में लगभग एक सहस्त्र हस्ताक्षरों वाला एक प्रमाण पत्र तत्कालीन गवर्नर जनरल डलहौजी को दिया। इसके अतिरिक्त बर्दवान के राजा मेहताब चंद तथा नाडिया के राजा श्री चन्द्र ने भी विधवा पुनर्विवाह के लिए अपनी याचनाएँ सरकार को भेजी।

जिसके फलस्वरूप लार्ड कैनिंग द्वारा 26 जुलाई 1856 ई. में “विधवा पुनर्विवाह अधिनियम-1856” पारित किया गया। जिसमें विधवा विवाह को मान्यता दी गयी और उससे उत्पन्न पुत्र को भी वैध घोषित किया गया।

डी. के. कर्वे के प्रयास

पश्चिमी भारत में डी. के. कर्वे ने हिन्दू विधवाओं के उद्धार के लिए विशेष प्रयत्न किये। उन्होंने 1893 ई. में स्वयं एक विधवा से विवाह किया। वह विधवा पुनर्विवाह संघ के सचिव बने।

 डी. के. कर्वे  ने 1893 ई. में “विधवा विवाह मण्डली” तथा 1899 ई. में पूना में “विधवा आश्रम” की स्थापना की। जिसमें विधवाओं को रोजगार देकर उनके जीवन में एक नया उत्साह भरने का प्रयत्न किया जाता था। अन्त में उन्होंने 1906 ई. में बम्बई में “भारतीय स्त्री (महिला) विश्वविद्यालय” की स्थापना की।

 भारत सरकार ने डी. के. कर्वे को उनके कार्यों के लिए 1955 में ‘पदम् विभूषण’ तथा 1958 में “भारत रत्न” जैसे नागरिक सम्मान से सम्मानित किया।

शिशु वध निषेध अधिनियम

  इसी प्रकार विष्णु शास्त्री ने भी विधवा पुनर्विवाह को अधिक से अधिक समर्थन दिया। उन्होंने 1850 ई. में ‘विधवा विवाह समाज’ नामक संस्था की स्थापना की।

 मद्रास में वीरेसलिंगम ने भी इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किये। गुजरात में करसोनदास मलजी ने 1852 ई. में विधवा विवाह को समर्थन देने के लिए गुजराती भाषा में “सत्य प्रकाश” नामक पत्रिका का प्रकाशन किया।

हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम-1856 के बाद 1872 ई. में ‘ब्रह्म मैरेज एक्ट’ या ‘नैटिव मैरेज एक्ट’ गवर्नर जनरल नार्थ ब्रुक के समय पारित किया गया। जिसका उद्देश्य अन्तर्जातीय विवाह तथा विधवा विवाह को विधिक मान्यता प्रदान करना था।

Question. किस सामाजिक कार्यकर्ता को स्त्री शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह तथा अन्यान्य स्त्रियों की दशा सुधारने वाले कार्यों हेतु 1955 में पद्म विभूषण तथा 1958 में भारत रत्न जैसे नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया?

Answer. डी. के. कर्वे

Question. किसने सर्वप्रथम विधवा पुनर्विवाह के लिए संघर्ष किया और उसे कानूनी रूप से वैध बनाया?

Answer. ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने

Question. तरुण स्त्री सभा की स्थापना कलकत्ता में किसने की थी?

Answer. ईसाई मिशनरी ने

धर्म सुधार आंदोलन

Question. अन्तर्जातीय विवाह का समर्थन एवं बहुपत्नी प्रथा की समाप्ति किस एक्ट के तहत की गई?

Answer. सिविल मैरिज एक्ट-1872 के तहत

Question. 1899 ई. में विधवा आश्रम की स्थापना किसने की?

Answer. D. K. कर्वे ने

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