भारतीय मानसून और उसकी प्रकृति-Indian monsoon and its nature

भारतीय मानसून उष्ण कटिबंधीय प्रकार का मानसून है। जो भारत की जलवायु में मानसूनी विशेषताओं का निर्धारण करता है। भारतीय कृषि का अधिकतर क्षेत्र मानसूनी वर्षा पर निर्भर करता है। अतः भारतीय मानसून वह धुरी है जिसके चारों ओर भारतीय अर्थ व्यवस्था घूमती है।

 

मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के मौसिम शब्द से हुई है, जिसका तात्पर्य मौसम से है। किसी स्थान की अल्पकालीन वायुमण्डलीय दशाओं जैसे-तापमान, वर्षा, पवन, आद्रता आदि के सम्मिलित रूप को मौसम कहते हैं।

मानसून क्या है?

मानसून, हवाओं का मौसमी परिवर्तन है। क्योंकि जाड़े के 6 महीने हवाएं स्थल से समुद्र की ओर तथा गर्मी के 6 महीने हवाएं समुद्र से स्थल की ओर चलती हैं। इन मानसूनी हवाओं की उत्पत्ति स्थल तथा समुद्र के तापक्रम में भिन्नता के कारण होती है। मानसून, मौसम तथा जलवायु के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

भारतीय मानसून की प्रकृति

भारतीय मानसून की प्रकृति या क्रियाविधि को निम्नलिखित चरणों के माध्यम से समझा जा सकता है।

मानसून का आरम्भ

भारत में मानसून के आरम्भ की व्याख्या परम्परागत सिद्धान्त, फ्लोन के प्रति विषुवतीय पछुआ पवन सिद्धान्त व कोटेश्वरम के जेट-स्ट्रीम सिद्धान्त को समेकित करके की जा सकती है। इन सिद्धांतों के समेकित रूप के अनुसार

मृदाजनन क्या है?

भारत में मानसून के प्रारम्भ का मुख्य कारण जलीय तथा स्थलीय भाग का भिन्न-भिन्न मात्रा में गर्म होना है। ग्रीष्म ऋतु में भारत के उत्तरी-पश्चिमी भाग में तापमान बहुत ऊंचा हो जाता है। जिस कारण इस भाग में निम्न वायुदाब क्षेत्र विकसित हो जाता है। इसके विपरीत हिन्द महासागर अपेक्षाकृत ठंडा रहता है जिसके कारण वहां उच्च वायुदाब बना रहता है।

वायुदाब के इस अन्तर के कारण अंतः उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र उत्तर की ओर स्थानांतरित हो जाता है। इसके उत्तर की ओर स्थानांतरित होने से दक्षिण पूर्वी व्यापारिक पवनें 40° से 60° पूर्वी देशान्तर के बीच विषुवत रेखा पार करती हैं और दक्षिण-पश्चिम मानसून के रूप में भारत में प्रवेश करती हैं।

अंतः उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र क्या है?

अंतः उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ-Inter Tropical Convergence Zone) विषुवत रेखा पर स्थित निम्न वायुदाब वाला क्षेत्र है। इस क्षेत्र में उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध से व्यापारिक पवनें आकर मिलती हैं। इस क्षेत्र में वायु ऊपर की ओर उठती है।

ITCZ, पश्चिमी जेट-प्रवाह तथा पूर्वी जेट प्रवाह में सम्बन्ध

कोटेश्वर के अनुसार, अंतः उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र के उत्तर की ओर खिसकाव से हिमालय के दक्षिणी भाग में उत्तरी मैदान के ऊपर सक्रिय पश्चिमी जेट-प्रवाह का भी उत्तर की ओर खिसकाव हो जाता है। पश्चिमी जेट प्रवाह के इस क्षेत्र से खिसकते ही दक्षिणी भारत में 15° उत्तरी अक्षांश पर पूर्वी जेट प्रवाह विकसित हो जाता है। इसी पूर्वी जेट प्रवाह को भारत में मानसून प्रस्फोट के लिए जिम्मेदार माना जाता है।

वर्षावाही तंत्र

भारत में वर्षा लाने वाले तंत्रों में पहला तंत्र उष्ण कटिबंधीय अवदाब है, जो बंगाल की खाड़ी में पैदा होता है तथा उत्तर भारत में वर्षा करता है। दूसरा तंत्र अरब सागर से उठने वाली दक्षिण-पश्चिम मानसून धारा है, जो भारत के पश्चिमी तट पर वर्षा करती है।

भारत के पश्चिमी तट पर वर्षा की तीव्रता दो कारकों पर निर्भर करती है।

  1. समुद्र तट से दूर घटने वाली मौसमी दशाएँ
  2. अफ्रीका के पूर्वी तट के साथ भू-मध्य रेखीय जेट प्रवाह की स्थिति।

तीसरा तंत्र पूर्वी जेट प्रवाह को कह सकते हैं वस्तुतः यह उपर्युक्त दोनों तंत्रों का सहायक तंत्र है। शक्तिशाली पूर्वी जेट प्रवाह दक्षिण-पश्चिमी मानसून को गति प्रदान करता है। दूसरी तरफ यह बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न होने वाले अवदाबों को खींचकर भारतीय भू-भाग संवहनीय वर्षा कराता है।

भारतीय मानसून में विच्छेद

जब मानसूनी पवनें दो सप्ताह या दो सप्ताह से अधिक की अवधि के लिए वर्षा करने में असफल रहती हैं तो वर्षा काल में शुष्क दौर आ जाता है। इस लम्बे शुष्क दौर को ही मानसून विच्छेद कहते हैं। मानसून विच्छेद विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न कारणों से होते हैं।

उत्तरी भारत के मैदानी भागों में मानसून का विच्छेद उष्ण कटिबंधीय अवदाबों (चक्रवातों) की आवृत्ति कम हो जाने से तथा अंतः उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र की स्थिति में बदलाव आने से होता है।

पश्चिमी तट पर मानसून का विच्छेद तब होता है जब आर्द्र पवनें तट के समानान्तर बहने लगती हैं।

राजस्थान में मानसून का विच्छेद तब होता है जब वायुमण्डल के निम्न स्तरों पर तापमान का प्रतिलोमन वर्षा करने वाली आर्द्र पवनों को ऊपर उठने से रोक देता है।

भारतीय मानसून का प्रत्यावर्तन/निवर्तन

मानसून के पीछे हटने या वापस लौट जाने को मानसून का निवर्तन कहते हैं। सितम्बर के आरम्भ से मानसून भारत के उत्तरी-पश्चिमी भाग से लौटना शुरू कर देता है। 15 सितम्बर तक यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान व गुजरात के अधिकांश भागों से चला जाता है। मध्य अक्टूबर तक यह दक्षिणी भारत को छोड़कर शेष समस्त भारत से निवर्तित हो जाता है।

मानसून का निवर्तन भी चापाकार आकृति में होता है। लौटती हुई मानसूनी पवनें बंगाल की खाड़ी से जलवाष्प ग्रहण कर उत्तर पूर्वी मानसून के रूप में अक्टूबर-नवम्बर में उत्तरी सरकार क्षेत्र तथा नवम्बर-दिसम्बर में तमिलनाडु में वर्षा कराती हैं।

मानसून प्रत्यावर्तन/निवर्तन के कारण

  • मानसून का निवर्तन का सम्बन्ध सूर्य के दक्षिणायन होने की स्थिति से है। जिस कारण मानसून के निवर्तन के लिए निम्नलिखित दशाएं बनती हैं।
  • उत्तर पश्चिमी भारत में उच्च दाब का विकास।
  • अंतः उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र का दक्षिण की ओर स्थानांतरण।
  • पश्चिमी जेट प्रवाह का पुनः अपने स्थान पर लौटना।
  • उत्तर पूर्वी व्यापारिक पवनों का अपने स्थान पर कायम होना।

दक्षिण-पश्चिम मानसून

21 मार्च के बाद उत्तरी भारत में गर्मी बढ़ने लगती है। मई के महीने तक यह गर्मी इतनी बढ़ जाती है कि उत्तरी-पश्चिमी मैदानी भागों में निम्न वायुदाब का क्षेत्र बन जाते हैं।

ये निम्न वायुदाब के क्षेत्र इतने शक्तिशाली होते हैं कि दक्षिणी गोलार्द्ध की दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं।

ये दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनें भू-मध्य रेखा को पार करके भारत की ओर बढ़ती हैं। भू-मध्य रेखा को पार करके इनकी दिशा दक्षिण पश्चिम हो जाती है। इसी कारण इन्हें दक्षिण-पश्चिमी मानसून कहा जाता है।

भारत के प्रायद्वीपीय आकार के कारण ये पवनें महेन्द्रगिरि पर्वत से टकराकर अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी की दो प्रधान शाखाओं में बंट जाती हैं।

भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसूनी वर्षा की शुरुआत केरल राज्य से होती है। भारत में कुल वर्षा का लगभग 92% भाग दक्षिण-पश्चिम मानसून से ही प्राप्त होता है। देश में इसकी सक्रियता जून से सितम्बर माह तक रहती है।

IMPORTANT QUESTIONS

Question. जेट स्ट्रीम क्या है

Answer. जेट स्ट्रीम परिध्रुवीय वायु धाराएं हैं, जो दोनों गोलार्द्धों के चतुर्दिक 20° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों से ध्रुवों की ओर वर्ष भर सतत रूप से चलती हैं। ये वायुधाराएं धरातल से 6 से 12 किमी. की ऊंचाई पर चलती हैं।

Question. जेट स्ट्रीम का मानसून पर क्या प्रभाव पड़ता है?

Answer. जेट स्ट्रीम का मानसून की सक्रियता पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जेट स्ट्रीम, ग्रीष्म काल में मानसूनी हवाओं के आगे बढ़ाने, उसने प्राप्त होने वाली वर्षा की मात्रा को घटाने-बढ़ाने तथा वर्षा के वितरण में असमानता लाने आदि पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है।

Question. जेट स्ट्रीम का सर्वाधिक उच्च वेग कहाँ होता है?

Answer. उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब क्षेत्रों के ऊपर

भारत में काली मिट्टी का विस्तार

Question. भारत के किस राज्य में मानसून का आगमन सबसे पहले होता है?

Answer. केरल राज्य में

Question. भारत में ग्रीष्म कालीन मानसून के प्रवाह की सामान्य दिशा किस ओर होती है?

Answer. दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की ओर जबकि शीत कालीन मानसून के प्रवाह की दिशा उत्तर पूर्व से दक्षिण पश्चिम की ओर होता है।

Question. तमिलनाडु में मानसून के सामान्य महीने कौन से हैं?

Answer. अक्टूबर से दिसम्बर माह के मध्य दक्षिण भारत में उत्तर-पूर्वी मानसून रहता है। जो मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, उत्तरी सरकार क्षेत्र तथा तमिलनाडु में सक्रिय रहता है। यही तमिलनाडु की मुख्य वर्षा वाली अवधि होती है।

Question. उत्तरी भारत व दक्षिणी भारत में से किसमें मानसून की अवधि अधिक होती है?

Answer. उत्तरी भारत की अपेक्षा दक्षिणी भारत में मानसून की अवधि अधिक होती है। दक्षिणी भारत में मानसून जून के प्रथम सप्ताह में प्रवेश करता है जबकि उत्तरी भारत में यह जुलाई माह के लगभग पहुँचता है। दूसरी ओर मानसून की वापसी भी उत्तर भारत से 1 सितम्बर से होने लगती है तथा 15 अक्टूबर तक यह समस्त उत्तर भारत से वापस हो जाता है। जबकि दक्षिण भारत से मानसून की वापसी दिसम्बर के अन्त तक होती है।

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Question. दक्षिण-पश्चिम मानसून की कौन सी शाखा देश में सर्वाधिक वर्षा करती है?

Answer. बंगाल की खाड़ी की शाखा

Question. दक्षिण भारत का सबसे गर्म महीना कौन सा होता है?

Answer. अप्रैल

Question. मानसून की खोज सर्वप्रथम किसने की?

Answer. हिप्पलस ने

Question. भारतीय मानसून का सर्वप्रथम सटीक विवरण किसने प्रस्तुत किया था?

Answer. अलमसूदी ने

Question. दक्षिणी गोलार्द्ध की व्यापारिक हवाएं भू-मध्य रेखा को पार कर किस ओर मुड़ती हैं?

Answer. अपनी दायीं ओर (दक्षिण पश्चिम)

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