अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार-The Economic Reforms of Alauddin Khilji

अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार दो प्रकार के थे-बाजार व्यवस्था में सुधार एवं भू-राजस्व व्यवस्था में सुधार। दिल्ली के सुल्तानों में अलाउद्दीन प्रथम सुल्तान था जिसने वित्तीय एवं राजस्व सुधारों में गहरी रुचि ली।

 अलाउद्दीन खिलजी को आर्थिक सुधारों की आवश्यकता इसलिए महसूस हुई। क्योंकि वह साम्राज्य का विस्तार और एक शक्तिशाली शासन प्रबंध स्थापित करना चाहता था। इन दोनों उद्देश्यों की पूर्ति आर्थिक सुधारों के बिना सम्भव नहीं थी।

 

साम्राज्य विस्तार के लिए उसे एक विशाल और संगठित सेना की आवश्यकता थी। सेना की विशालता को बनाये रखने के लिए आर्थिक साधनों की आवश्यकता थी। अतः अलाउद्दीन ने बाजार व्यवस्था तथा भू-राजस्व व्यवस्था में सुधार किये।

भू-राजस्व व्यवस्था में सुधार

दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों में अलाउद्दीन खिलजी पहला शासक था जिसने राजस्व सुधारों की ओर विशेष ध्यान दिया। उसने भूमि की पैमाइश कराकर उसकी वास्तविक उपज पर लगान निश्चित किया।

 उसने राजस्व कर प्रणाली को सुधारने के लिए “दीवान-ए-मुस्तखराज” विभाग की स्थापना की। इस विभाग का कार्य भू-राजस्व का संग्रह करना था।

 राजस्व सुधारों के अन्तर्गत अलाउद्दीन खिलजी ने उन सभी भूमि अनुदानों को वापस लेकर खालसा भूमि में बदल दिया। जो मिल्क, इनाम और वक्फ के रूप दिये गये थे। इस कारण इसके शासनकाल में खालसा भूमि के क्षेत्र में सर्वाधिक वृद्धि हुई। उसने मुकदमों (मुखिया), खूंतो (जमींदार) व बलाहरों से राजस्व वसूली के विशेषाधिकार वापस ले लिये।

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राजस्व वसूली

 राजस्व वसूली के लिए मुतसर्रिफ, कारकुन तथा आमिल अधिकारी होते थे। राजस्व वसूली में इनकी सहायता के लिए चौधरी (ग्राम स्तर पर) खूत (शिक स्तर पर) नियुक्त किये जाते थे। ये मध्यस्थ का कार्य करते थे। ये सभी अधिकारी दीवान-ए-विजारत के अधीन काम करते थे।

अलाउद्दीन खिलजी की कर प्रणाली

अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में भू-राजस्व की दर सर्वाधिक थी। उसने उपज का 1/2 भाग भूमिकर (खराज) के रूप में वसूला। करों की अधिकता के कारण अलाउद्दीन के काल में कृषि कार्य प्रभावित हुआ।

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 अलाउद्दीन ने लगान को अनाज के रूप में लेने को प्रमुखता दी। उसने गढ़ी (घरी) व चरी नामक दो नवीन कर लगाये। घरी कर घरों एवं झोपड़ों पर लगाया तथा चरी अथवा चराई कर दुधारू पशुओं पर लगाया।

 जजिया कर गैर मुस्लिमों से लिया जाता था। जकात केवल अमीर मुसलमानों से लिया जाने वाला धार्मिक कर था। जो सम्पत्ति का 40वां भाग था। खुम्स का 4/5 भाग अलाउद्दीन स्वयं रखता था एवं 1/5 भाग सैनिकों को देता था।

अलाउद्दीन खिलजी की बाजार व्यवस्था

Memorable point

राजस्व वसूली के लिए अलाउद्दीन खिलजी ने एक पृथक विभाग “दीवान-ए-मुस्तखराज” की स्थापना की थी।

गांव स्तर पर राजस्व वसूलने के लिए चौधरी अथवा मुकद्दम नामक अधिकारी होता था।

परगना (शिक) स्तर पर राजस्व वसूलने वाले अधिकारी को खूत कहा जाता था।

इनकी निगरानी के लिए आमिल व गुमाश्ता नामक अधिकारी नियुक्त किये गये थे।

अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में भू-राजस्व की दर सर्वाधिक थी। उसने पैदावार का 50% भूमिकर के रूप में लेना निश्चित किया था।

वह दिल्ली का प्रथम सुल्तान था जिसने भूमि की पैमाइश (मसाहत) कराकर उसकी वास्तविक आय पर लगान लेना निश्चित किया था। उसने एक बिस्वा को भूमि की इकाई माना।

उसकी राजस्व नीति का निर्धारण एवं क्रियान्वयन नाइब वजीर शर्फ कायिनी ने किया था।

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