त्रिपिटक क्या हैं?

बौद्ध साहित्य को “त्रिपिटक” कहा जाता है। त्रिपिटक सम्भवतः सबसे प्राचीन बौद्ध “धर्मग्रंथ” हैं। ये पालि भाषा में रचित हैं।

 

ये त्रिपिटक- सुत्तपिटक, विनय पिटक एवं अभिधम्म पिटक के नाम से जाने जाते हैं। यहाँ पिटक शब्द का अर्थ होता है-टोकरी।

सुत्तपिटक

 

सुत्त का अर्थ धर्म उपदेश होता है। इस पिटक में बौद्ध धर्म के उपदेश संगृहीत हैं। यह पिटक पाँच निकायों में विभाजित है।

१-दीर्घ निकाय

इसमें बुद्ध के लम्बे उपदेश संग्रहित हैं। यह निकाय गद्य तथा पद्य दोनों में रचित है। इसमें बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों का समर्थन तथा अन्य धर्मों के सिद्धान्तों का खण्डन किया गया है। इस निकाय का सबसे महत्वपूर्ण सूक्त “महापरिनिब्बानसुत्त” है।

दीर्घ निकाय में बुद्ध के जीवन के आखरी क्षणों का वर्णन है। बुद्धघोष ने इस निकाय पर सुमंगलवासिनी एवं सामंतपासादिका नामक टीका लिखे।

२-मज्झिम निकाय

इस निकाय में बुध के छोटे उपदेशों का संग्रह है। इसमें बुद्ध को कहीं साधारण पुरुष के रूप में तो कहीं दैवी पुरुष के रूप में दिखाया गया है।

३-संयुक्त निकाय

इस निकाय में महात्मा बुद्ध की संक्षिप्त घोषणाओं का संग्रह है। इसमें मध्यम प्रतिपदा एवं आष्टांगिक मार्ग का उल्लेख मिलता है। इस निकाय का महत्वपूर्ण सुत्त धर्मचक्र प्रवर्तन सुत्त है।

४-अंगुत्तर निकाय

इसमें बुद्ध द्वारा भिक्षुओं से कहे गये कथनों का संग्रह है। इसी निकाय में 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है।

५-खुद्दक निकाय

इसमें कई ग्रन्थ आते हैं। यह लघु ग्रंथो के संग्रह वाला निकाय है। इसमें खुद्दक पाठ, धम्मपद, उदान, सुत्तनिपात, विमानवत्थु, पत्तवत्थु, थेरीगाथा एवं जातक कथाएं आदि लघुग्रंथ आते हैं।

जातक कथाओं में बुद्ध की पूर्वजन्म की कहानियां संग्रहीत हैं। कुछ जातक ग्रंथों में बुद्ध कालीन राजनैतिक स्थिति का भी वर्णन करते हैं।

विनयपिटक

इस पिटक में मठ में निवास करने वाले भिक्षु एवं भिक्षुणियों के दैनिक जीवन सम्बन्धी आचार विचार एवं अनुशासन सम्बन्धी नियम दिये गये हैं। इसके निम्नलिखित भाग हैं।

१-पातिमोक्ख

इसमें अनुशासन सम्बन्धी नियमों तथा उनका उल्लंघन होने पर किये जाने वाले प्रायश्चितों का वर्णन है।

२-सुत्त विभंग

सुत्त विभंग का शाब्दिक अर्थ होता है- सूत्रों पर टीका। इसमें पातिमोक्ख के नियमों पर टीका लिखे गये हैं। सुत्त विभंग के दो भाग हैं- महाविभंग तथा भिक्खुनी विभंग।

महाविभंग में बौद्ध भिक्षुओं के तथा भिक्खुनी विभंग में बौद्ध भिक्षुणियों के नियमों का उल्लेख किया गया है।

३-खन्धक

इसमें संघीय जीवन सम्बन्धी विधि निषेधों का विस्तार से वर्णन मिलता है।

४-परिवार

इसमें विनय पिटक के दूसरे भागों का सारांश प्रश्नोत्तर के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

अभिधम्म पिटक

इस पिटक में बौद्ध दार्शनिक सिद्धान्तों का वर्णन है। इसके अन्तर्गत सात ग्रन्थ सम्मिलित हैं- धम्मसंगणि, विभंग, धातु कथा, युग्गल पंचति, कथावत्थु, यमक, पट्ठान। इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण कथावत्थु है। इसकी रचना मोग्गलिपुत्त तिस्स ने की थी।

त्रिपिटकों के अतिरिक्त बौद्ध ग्रन्थ

त्रिपिटकों के अतिरिक्त पालिभाषा में लिखे गये कुछ अन्य महत्वपूर्ण बौद्ध ग्रंथ निम्नलिखित हैं।

1-मिलिन्दपन्हों-इस ग्रंथ में यूनानी राजा मिनेण्डर और बौद्ध भिक्षु नागसेन के बीच वार्तालाप का वर्णन है। इसके रचयिता नागसेन हैं।

2-दीपवंश-मुख्य रूप से इसमें सिंहलद्वीप (श्रीलंका) के इतिहास पर प्रकाश डाला गया है।

3-महावंश-इस ग्रंथ में मगध के राजाओं की क्रमबद्ध सूची मिलती है।

4-सान्तिक निदान-इसमें बौद्ध धर्म में सर्वप्रथम दीक्षित होने वालों का वर्णन मिलता है।

संस्कृत बौद्ध ग्रन्थ

संस्कृत भाषा में लिखे गये प्रमुख बौद्ध ग्रंथ निम्नलिखित हैं।

1-बुद्धचरित-इस महाकाव्य की रचना अश्वघोष ने की।

2-सारिपुत्र प्रकरण-यह अश्वघोष द्वारा रचित एक नाटक है, जिसमें सारिपुत्र के बौद्ध मत में दीक्षित होने का विवरण मिलता है।

3-महावस्तु-इसमें महात्मा बुद्ध के जीवन वृत्त से सम्बन्धित है। यह हीनयान सम्प्रदाय का ग्रंथ है।

4-विशुद्धिमग्ग-बुद्धघोष द्वारा रचित यह हीनयान सम्प्रदाय का ग्रंथ है।

5-अभिधम्म घोष-इसके रचयिता वसुबन्धु थे।

6-ललित विस्तार-इस ग्रंथ में बुद्ध के जीवन का विस्तार पूर्वक वर्णन मिलता है। यह महायान सम्प्रदाय का ग्रंथ है। इस ग्रंथ का उपयोग एडविन अर्नाल्ड ने अपनी पुस्तक “The light of Asia” लिखने में किया।

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