बक्सर युद्ध और उसके कारण

बक्सर का युद्ध 22 अक्टूबर 1764 में हुआ था। दरअसल नवाब मीरकासिम तथा अंग्रेजों के बीच झड़पें तो 1763 में ही शुरू हो गयीं थीं। जिनमें मीरकासिम ने मात खाई। फलस्वरूप भागकर उसने अवध में शरण ली।

अवध में मीरकासिम ने मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय तथा अवध के नवाब शुजाउद्दौला के साथ मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध एक संघ बनाया। जिसमें अंग्रेजों को बंगाल से बाहर निकालने की योजना बनाई गई। तत्पश्चात तीनों की संयुक्त सेनाओं ने पटना की ओर प्रस्थान किया।

बक्सर युद्ध का प्रारम्भ

संयुक्त सेना में लगभग 40 से 50 हजार के बीच सैनिक थे। इस सेना का सामना करने के लिए अंग्रेज सेना भी मेजर हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में निकली। अंग्रेज सेना में 7027 सैनिक थे।

दोनों सेनायें बिहार में बक्सर नामक स्थान पर आमने सामने हुई। 22 अक्टूबर 1764 को दोनों पक्षों में युद्ध शुरू हुआ। युद्ध घमासान हुआ लगभग 3 घण्टे में युद्ध का निर्णय हो गया। बाजी अंग्रेजों के हाथ लगी।

मीरकासिम वीरता पूर्वक लड़ा किन्तु परास्त हो गया। उसके 20 हजार सैनिक मारे गये। लगभग 847 अंग्रेज सैनिक भी मारे गये।

मुगल सम्राट शाहआलम तथा नवाब शुजाउद्दौला ने अंग्रेजों की शरण स्वीकार कर ली। मीरकासिम दिल्ली की ओर भाग गया। जहाँ उसकी 1777 में अज्ञात अवस्था में मृत्यु ही गयी।

बक्सर के युद्ध के कारण

प्लासी के युद्ध के बाद मीर जाफर बंगाल का नवाब बना। वह अंग्रेजों की जरूरतों की पूर्ति करने में असमर्थ रहा। अतः अंग्रेजों ने 1760 में मीर जाफर के स्थान पर मीरकासिम को बंगाल का नवाब बनाया।

भारतीय इतिहास में वर्ष 1760 को “शांतिपूर्ण क्रान्ति” का वर्ष कहा जाता है।

नवाब बनने के बाद 27 सितम्बर 1760 को मीर कासिम तथा अंग्रेजों बीच एक सन्धि हुई। जिसके आधार पर नवाब ने कम्पनी को बर्दवान, मिदनापुर तथा चटगांव जिले देने की बात मान ली। इसके अतिरिक्त दक्षिण में सैन्य अभियानों में कम्पनी को 5 लाख रुपये देना स्वीकार किया।

बदले में कम्पनी ने मीरकासिम को सैनिक सहायता देने और आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का वचन दिया। लेकिन मीरकासिम और अंग्रेजों के बीच सम्बन्ध कभी सामान्य नहीं रहे।

मीरकासिम अपनी इच्छा से राज्य करना चाहता था जबकि अंग्रेज उसे अपने हित के लिए इस्तेमाल कर रहे थे।

मीरकासिम ने देखा कि मुर्शिदाबाद में अंग्रेजों का प्रभाव बहुत बढ़ गया था। अतः उसने राजधानी मुंगेर स्थानान्तरित कर ली। अंग्रेजों को यह अच्छा नहीं लगा।

अंग्रेजों से मीरकासिम का झगड़ा आन्तरिक व्यापार पर लगे करों को लेकर प्रारम्भ हुआ। मीरकासिम ने देखा कि अंग्रेज व्यापारी निःशुल्क व्यापार के अधिकार का दुरुपयोग कर रहे हैं। वे भारतीय व्यापारियों से रिश्वत लेकर उन्हें इसी सुविधा के आधार पर व्यापार करवाते हैं। जिससे राज्य की आय बहुत कम हो रही हैं।

मीरकासिम ने कलकत्ता की कौंसिल में इसकी अपील की। किन्तु कौंसिल के सदस्यों ने इसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया।

अन्ततः मीरकासिम ने कठोर कार्यवाही की और मार्च 1763 में दो वर्ष के लिए समस्त व्यापारिक करों एवं चुंगियों को समाप्त कर दिया। जिससे भारतीय व्यापारियों की स्थिति अंग्रेज व्यापारियों के समान हो गई।

मीरकासिम के इस निर्णय का अंग्रेजों ने विरोध किया। उन्होंने जुलाई 1763 में मीरकासिम के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।

मेजर एडम्स के नेतृत्व में अंग्रेज सेना तथा मीरकासिम के बीच में कई युद्ध हुए जैसे- कटवा का युद्ध-9 जुलाई 1763, मुर्शिदाबाद का युद्ध, गिरिया का युद्ध-5 सितम्बर 1763, उदयनाला का युद्ध, मुंगेर का युद्ध।

इन सभी युद्धों में मीरकासिम पराजित हुआ। अतः उसने भागकर अवध में शरण ली। यहीं पर बक्सर के युद्ध की योजना बनी।

बक्सर के युद्ध का महत्व

बक्सर के युद्ध का महत्व सैनिक और राजनैतिक दृष्टि से प्लासी के युद्ध से अधिक था। प्लासी के युद्ध में अंग्रेजों की सफलता षड्यंत्र और कूटनीति पर आधारित थी जबकि बक्सर का युद्ध पूर्णतया सैनिक कुशलता पर आधारित था। वास्तव में भारत में ब्रिटिश शक्ति का प्रारम्भ बक्सर के युद्ध से ही होता है।

प्लासी के युद्ध से अंग्रेजों की बंगाल में स्थिति सुदृढ़ हुई जबकि बक्सर से युद्ध पूरे उत्तर भारत में। अब बंगाल का नवाब, अवध का नवाब तथा मुगल सम्राट अंग्रेजों के हाथ की कठपुतली थे। निःसन्देह इस युद्ध ने भारतीयों की हथेली पर दासता शब्द लिख दिया जिसे 15 अगस्त 1947 को ही मिटाया जा सका। इस प्रकार बक्सर का युद्ध भारतीय इतिहास में निर्णायक सिद्ध हुआ।

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