प्रवाह, मौलिकता, लचीलापन, विविधा-चिंतन, आत्म-विश्वास, संवेदनशीलता और संबंधों को बनाने तथा संभालने की योग्यता आदि कुछ ऐसी योग्यताएँ हैं जिनका विकास सृजनात्मकता के विकास में सहायक सिद्ध हो सकता है। इन योग्यताओं को विकसित करने के लिए निम्नलिखित विधियां सहायक सिद्ध हो सकती हैं।
1-मस्तिष्क उद्वेलन– मस्तिष्क उद्वेलन एक ऐसी तकनीक एवं विद्या है जिसके द्वारा किसी समूह विशेष से बिना किसी रोक-टोक आलोचना मूल्यांकन या निर्णय की परवाह किए बिना किसी समस्या विशेष के हल के लिए विभिन्न प्रकार के विचारों एवं समाधानों को जल्दी-जल्दी प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता है और फिर विचार विमर्श के बाद उचित हल एवं समाधान तलाशने का प्रयत्न किया जाता है।
2-शिक्षण प्रतिमानों का प्रयोग– शिक्षा शास्त्रियों द्वारा प्रतिपादित कुछ विशेष शिक्षण प्रतिमानों का प्रयोग भी बालकों की सृजनशीलता के विकास में पर्याप्त योगदान दे सकता है। उदाहरण के लिए ब्रूनर का संप्रत्यय उपलब्धि-प्रतिमान संप्रत्ययों को ग्रहण करने के अलावा बालकों को सृजनशील बनाने में भी सहयोग देता है। और इसी तरह सचमैन का पूछताछ प्रशिक्षण प्रतिमान वैज्ञानिक ढंग से पूछताछ करने के कौशल को विकसित करने के अतिरिक्त सृजन में सहायक विशेष गुणों को विकसित करने में पर्याप्त सहायता करता है।
3-क्रीड़न तकनीकों का प्रयोग– खेल-खेल में ही सृजनात्मकता का विकास करने की दृष्टि से क्रीड़न तकनीकों का अपना एक विशेष स्थान है। इस कार्य हेतु इन तकनीकों में जो प्रयोग सामग्री काम में लाई जाती है वह शाब्दिक और अशाब्दिक दोनों ही रूपों में होती है। विभिन्न प्रकार की क्रीड़न सामग्री द्वारा बालकों को खेल-खेल में ही निर्माण एवं सृजन के लिए जो बहुमूल्य अवसर प्राप्त होते हैं उन सभी का उनकी सृजनशीलता के विकास एवं पोषण हेतु पूरा-पूरा लाभ उठाया जा सकता है।
बालकों में सृजनात्मकता विकसित करने के सुझाव
बालकों को उत्तर देने की स्वतंत्रता देनी चाहिए।
बालकों को अभिव्यक्ति के लिए अवसर देने चाहिए।
मौलिकता तथा लचीलेपन को प्रोत्साहित करना चाहिए।
उचित अवसर एवं वातावरण प्रदान करना चाहिए।
समुदाय के सृजनात्मक साधनों का प्रयोग करना चाहिए।
सृजनात्मक चिन्तन के अवरोधों से बचना चाहिए।
मूल्याकंन प्रणाली में सुधार करना चाहिए।
सृजनात्मकता के विकास के लिए विशेष तकनीकों का प्रयोग करना चाहिए।