एन्जाइम:- परिभाषा, विशेषताएं, वर्गीकरण तथा क्रियाविधि-Enzyme

प्रत्येक कोशिका में उपापचयी प्रतिक्रियाओं का उत्प्रेरण करने के लिए विशेष प्रकार के कार्बनिक पदार्थ होते हैं, जिन्हें एन्जाइम या जैव-उत्प्रेरक कहते हैं। ये उपापचयी प्रतिक्रियाओं की दर को कई करोड़ गुणा तक बढ़ा सकते हैं। वास्तव में, एन्जाइम के कारण जीवों में सुचारु उपापचय और जैव-क्रियाएँ होती रहती हैं। इनके अध्ययन को एन्जाइमोलोजी कहते हैं।

एन्जाइम की परिभाषा

एन्जाइम एक ऐसा कार्बनिक पदार्थ होता है जो कोशिकाओं में किसी उपापचयी प्रतिक्रिया में भाग लेकर प्रतिक्रिया की दर बढ़ाता है, अर्थात् प्रतिक्रिया का रासायनिक उत्प्रेरण करता है, परन्तु प्रतिक्रिया के अन्तिम फल को प्रभावित नहीं करता और प्रतिक्रिया के समाप्त होने पर स्वयं ज्यों का त्यों बचा रह जाता है।

एन्जाइम का इतिहास

जीवों में कार्बनिक उत्प्रेरकों की उपस्थिति का आभास वैज्ञानिकों को सन् 1815 में हुआ जब किरचॉफ द्वारा तैयार किये गये गेहूँ के सत्त (extract) ने मण्ड को शर्करा में बदल दिया। तत्पश्चात् लूई पाश्चर (1860) ने पता लगाया कि खाद्य पदार्थों के खमीर उठाने अर्थात् किण्वन में यीस्ट कोशिकाओं की आवश्यकता होती है। फिर कुहने (1878) ने पता लगाया कि किण्वन का काम वास्तव में यीस्ट कोशिकाओं में उपस्थित एक खमीर करता है। इस खमीर को उन्होंने एन्जाइम कहा।

एक सामान्य जीव-कोशिका को ‘जीवित दशा’ में बनाये रखने के लिए इसकी उपापचयी प्रतिक्रियाओं के उत्प्रेरण हेतु लगभग तीन हजार प्रकार के एन्जाइमों की आवश्यकता होती है। ये सब स्वयं कोशिका में ही जीनी नियंत्रण द्वारा संश्लेषित होते हैं। वैज्ञानिक अभी तक लगभग दो हजार एन्जाइमों का पता लगा चुके हैं।

यह भी ज्ञात हो चुका है कि सजीव तंत्र के एन्जाइम कोशिका के बाहर भी उत्प्रेरण कर सकते हैं। कई सौ एन्जाइमों को वैज्ञानिक शुद्ध रूप में पृथक् करने में सफल हो चुके हैं और इनमें से अनेक के विशुद्ध रवे भी बनाये जा चुके हैं।

बुकनर (1897) ने सबसे पहले यीस्ट से जाइमेज नामक एन्जाइम निकाला। समनर (1926) ने पहले-पहल यूरियेज नामक एन्जाइम को लोबिया  के बीजों से निकालकर इसके रवे बनाये और बताया कि सभी एन्जाइम प्रोटीन्स होते हैं। नोरथ्रॉप (1930) ने जठर रस और अग्न्याशयी रस से क्रमश : पेप्सिन एवं ट्रिप्सिन निकालकर इनके रवे बनाये।

एन्जाइमों की विशेषताएं

एन्जाइम विशेष प्रकार के गोलाकार प्रोटीन्स होते हैं। इनके अणु बड़े और त्रिविम होते हैं। हाल ही में वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि सम्भवतः कुछ RNA अणु भी एन्जाइमों का काम करते हैं। इन्हें राइबोजाइम्स कहा गया है।

कुछ एन्जाइम तभी सक्रिय होते हैं जब इनमें प्रोटीन अणु के साथ कोई अन्य प्रकार का पदार्थ जुड़ा होता है। इस अन्य पदार्थ को कोफैक्टर कहते हैं। यह किसी धातु तत्त्व का आयन हो सकता है या किसी कार्बनिक पदार्थ का अणु या दोनों। यदि यह कार्बनिक अणु होता है तो इसे सहएन्जाइम (coenzyme) कहते हैं। यदि कोफैक्टर प्रोटीन अणु से स्थायी रूप से जुड़ा हो तो इसे प्रोस्थेटिक ग्रुप भी कहते हैं। कुछ एन्जाइमों में प्रोटीन अणु एवं कोफैक्टर केवल उत्प्रेरण के समय ही अस्थायी रूप से जुड़ते हैं। ऐसे कोफैक्टर युक्त एन्जाइम होलोएन्जाइम कहलाते हैं। इनके प्रोटीन अणु ऐपोएन्जाइम कहलाते हैं।

सहएन्जाइमों में प्राय: कोई न कोई विटामिन अणु होता है। अतः अधिकांशत विटामिनों का शरीर में उपयोग सहएन्जाइमों के अंशों के रूप में ही होता है। आणविक रचना में थोड़ी विभिन्नता, परन्तु प्रभाव में समानता वाले एन्जाइम आइसोएन्जाइम या आइसोजाइम कहलाते हैं।

अधिकांश एन्जाइम जल या नमक के घोल में घुलनशील होते हैं । कोशाद्रव्य में ये कोलाइड विलयन बनाते हैं। कुछ एन्जाइम कोशिकाकला में होते हैं। कुछ कोशिकाओं के विशिष्ट अंगकों माइटोकॉण्ड्रिया, लाइसोसोम्स, राइबोसोम्स आदि में होते हैं।

एन्जाइम प्रायः रंगहीन, लेकिन कुछ पीले, हरे, नीले, लाल या भूरे होते हैं।

एन्जाइम अणु का एक विशेष भाग प्रतिक्रिया में भाग लेने वाले अणुओं में से किसी एक के साथ जुड़कर इसे सक्रिय बनाता, अर्थात् प्रतिक्रिया के लिए प्रेरित कर देता है। इस पदार्थ को एन्जाइम का सब्स्ट्रेट कहते हैं।

उत्प्रेरकों के रूप में अधिकांश एन्जाइमों का क्रिया-क्षेत्र बहुत ही सीमित होता है, अर्थात् एक प्रकार का एन्जाइम किसी एक विशेष प्रकार की प्रतिक्रिया का ही उत्प्रेरक होता है। परन्तु कुछ ऐसे एन्जाइम जैसे- peroxidase भी होते हैं जो कई मिलते-जुलते सब्स्ट्रेट पदार्थों को सक्रिय बनाते हैं। कुछ एन्जाइम कई ऐसे विविध पदार्थों का उत्प्रेरण करते हैं जिनमें कोई एकसमान बॉण्ड होता है। अतः विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं के एन्जाइमों में काफी विभिन्नताएँ होती हैं।

यद्यपि एन्जाइम अपने सब्स्ट्रेट पदार्थों के साथ मिलकर प्रतिक्रियाओं में भाग लेते हैं, लेकिन ये न तो प्रतिक्रिया की दिशा या अन्तिम फल को प्रभावित करते हैं और न स्वयं बदलते हैं। प्रतिक्रिया के बाद में ज्यों के त्यों अलग हो जाते हैं और बार-बार उन्हीं प्रतिक्रियाओं का उत्प्रेरण करते हैं।

ये अत्यधिक उत्प्रेरण की क्षमता वाले बहुत सक्रिय उत्प्रेरक होते हैं। उदाहरणार्थ, पशुओं की जिगर कोशाओं के लौहयुक्त एन्जाइम, कैटैलेज का एक अणु 0°C ताप पर एक मिनट में हाइड्रोजन परऑक्साइड के 50 लाख अणुओं का विघटन कर देता है। इसे एन्जाइम की हस्तान्तरित संख्या कहते हैं। विभिन्न एन्जाइमों की यह संख्या औसतन दस हजार से दस लाख तक होती है। उच्च हस्तांतरित संख्या के कारण, एन्जाइमों की अल्प मात्रा की ही कोशाओं में आवश्यकता होती है।

एन्जाइम जीवों के शरीर-ताप ( 25°C से 45°C ) पर सर्वाधिक क्रियाशील होते हैं। इससे कम या अधिक ताप पर इनकी क्रियाशीलता घट जाती है। 60℃ से अधिक ताप पर ये प्रायः नष्ट हो जाते हैं। 0°C पर ये नष्ट नहीं होते , वरन् निष्क्रिय होकर परिरक्षित हो जाते हैं।

प्रत्येक एन्जाइम एक विशेष pH के माध्यम में ही पूर्ण सक्रिय होता है। कुछ एन्जाइम अम्लीय और कुछ क्षारीय माध्यम में क्रियाशील होते हैं।

एन्जाइमों का कार्य प्राय : सामूहिक होता है। किसी एन्जाइम द्वारा नियंत्रित प्रतिक्रिया के फलस्वरूप बना पदार्थ अगली प्रतिक्रिया के एन्जाइम का सब्स्ट्रेट बनता है। अतः कोशारूपी फैक्ट्री में कई प्रतिक्रिया-शृंखलाएँ साथ-साथ चलती रहती हैं। प्रत्येक श्रृंखला में कई एन्जाइम भाग लेते हैं जो प्राय: परस्पर जुड़े रहते हैं। प्रत्येक एन्जाइम अपना काम करके प्रतिक्रिया को अगले एन्जाइम को सौंप देता है। उदाहरणार्थ, एमाइलेज जब मण्ड को माल्टोज में तोड़ देता है तब माल्टेज माल्टोज को ग्लूकोज में तोड़ता है। प्रतिक्रिया शृंखलाओं में, अन्तिम उत्पादों तक होने वाली रासायनिक प्रतिक्रियाओं को सामूहिक रूप से प्रायः मध्यस्थ उपापचय कहा जाता है।

सब एन्जाइम जीन्स के अनुकूल, इन्हीं के नियंत्रण में संश्लेषित होते हैं। एन्जाइमों का नियंत्रण मेटाबोलिक प्रतिक्रियाएँ आवश्यकतानुसार ही हों, न कम हों और न अधिक, इसके लिए कोशाओं में एन्जाइमों के नियंत्रण की भी व्यवस्था होती है। इस नियंत्रण की दो विधियाँ होती हैं। एक विधि में सम्बन्धित जीन्स को निष्क्रिय या सक्रिय बनाकर एन्जाइमों के संश्लेषण की दर व कोशिका में इनकी कुल मात्रा घटायी या बढ़ायी जा सकती है। दूसरी विधि में एन्जाइमों की मात्रा और संश्लेषण की दरें तो यथावत् रहती हैं, परन्तु कुछ विशेष प्रकार के अणु एन्जाइम अणुओं से जुड़कर इन्हें निष्क्रिय या अधिक सक्रिय बना देते हैं।

आधुनिक परम्परा के अन्तर्गत एन्जाइमों के नाम इनके प्रभावों या प्रभावित पदार्थों या प्रतिक्रियाओं की किस्मों के नाम के आगे ‘ase’ लगाकर रखे जाते हैं, जैसे- सुक्रेज (sucrase), कार्बोहाइड्रेज (carbohydrase), प्रोटीनेज (proteinase), माल्टेज (maltase), लाइपेज (lipase), ऑक्सीडेज (oxidase), हाइड्रोजीनेज (hydrogenase) आदि। इस परम्परा के अनुसरण से पहले कुछ एन्जाइमों के नामों में ‘in’ का उपयोग किया जाता था, जैसेकि ट्रिप्सिन (trypsin), टायलिन (ptyalin) आदि।

एन्जाइमों का वर्गीकरण

अन्तर्राष्ट्रीय जैव-रासायनी संघ (International Union of Biochemistry) ने उत्प्रेरित प्रतिक्रियाओं की प्रकृति के अनुसार एन्जाइमों को छ: प्रमुख श्रेणियों में बाँटा है।

1-ऑक्सीडोरिडक्टेजेज अर्थात् ऑक्सीडेशन-रिडक्शन एन्जाइम

ये हाइड्रोजन के परमाणुओं अथवा आयनों के एक सब्स्ट्रेट अणु से दूसरे में स्थानान्तरण से सम्बन्धित प्रतिक्रियाओं के उत्प्रेरक होते हैं। इनमें डीहाइड्रोजीनेजेज प्रोटॉन्स (H +) का तथा ऑक्सीडेजेज इलेक्ट्रॉन्स (e) का स्थानान्तरण करते हैं। कैटैलेजेज मुख्यत : माइटोकॉण्ड्रिया में , H2O से ऑक्सीजन के परमाणुओं को हटाते हैं।

2-ट्रान्सफरेजेज

ये किसी सब्स्ट्रेट यौगिक के अणु से H+ या e के बजाय एक पूरा मूल क्रियात्मक अंश अर्थात् ग्रुप हटाकर इसे किसी अन्य यौगिक अणु में स्थानान्तरित करते हैं। अतः ये नये पदार्थ के संश्लेषण या ऊर्जा-स्थानान्तरण के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं। उदाहरणार्थ, फॉस्फोराइलेज ATP से एक फॉस्फेट ग्रुप को ग्लूकोज अणु में स्थानान्तरित करता है।

3-हाइड्रोलेजेज

ये जल द्वारा जटिल अणुओं के C – C, C– O, C – N, C— H आदि बन्धों को तोड़कर सरल अणुओं में इनके जल अपघटन को प्रेरित करते हैं। पाचक एन्जाइम इसी श्रेणी के होते हैं। इनमें प्रोटीन -पाचक प्रोटीनेजेज, कार्बोहाइड्रेट- पाचक, कार्बोहाइड्रेजेज तथा वसा- पाचक, ईस्टरेजेज या लाइपेजेज प्रमुख होते हैं। ऐसे ही एन्जाइम अन्त:कोशीय पाचन के लिए लाइसोसोम्स में होते हैं।

4-लाइएजेज

ये अपने सब्स्ट्रेट अणु से, जल-अपघटन के बिना ही, किसी ग्रुप को अलग करके मूल अणु में एक दोहरा बॉण्ड छोड़ देते हैं।

5-आइसोमरेजेज

ये किसी अणु की संरचना में विभिन्न समूहों के विन्यास को बदलकर इसका आइसोमर बना देते हैं।

6-लाइगेजेज

ये ATP की ऊर्जा की सहायता से दो यौगिकों को परस्पर जोड़ने की प्रतिक्रियाओं के उत्प्रेरक होते हैं।

एन्जाइमों की क्रियाविधि

विविध प्रकार के एन्जाइमों का उत्प्रेरण प्रभाव इनके अणुओं की विशिष्ट संरचना पर निर्भर करता है। प्रत्येक एन्जाइम अणु में एक ऐसा विशिष्ट भाग होता है जहाँ यह सब्स्ट्रेट अणु से जुड़ता है। इस भाग को एन्जाइम अणु का सक्रिय भाग या स्थान कहते हैं। इस भाग की सहायता से एन्जाइमों की क्रिया-विधि की दो प्रमुख प्रमुख परिकल्पनाएँ उल्लेखनीय हैं-

1- ताला-कुन्जी या साँचा परिकल्पना

यह परिकल्पना एमिल फिशर (1894) ने प्रस्तुत की। इसके अनुसार, प्रत्येक एन्जाइम के अणु की एक विशेष प्रकार की त्रिविम संरचना होती है। इससे कोई ऐसा ही सब्स्ट्रेट पदार्थ जुड़ सकता है जिसका अणु एन्जाइम अणु के सक्रिय भाग में ज्यामितीय रूप से फिट हो सकता हो। सब्स्ट्रेट एवं एन्जाइम अणुओं के इस प्रकार जुड़ने से एन्जाइम-सब्स्ट्रेट समूह बन जाता है। अत: अब यह सब्स्ट्रेट अणु दूसरे सब्स्ट्रेट अणु से प्रतिक्रिया करने के लिए प्रेरित हो जाता है।

2- अभिप्रेरित अनुरूपता परिकल्पना (Induced fit Model)

कोशलैण्ड (1971) ने बताया कि एन्जाइम अणु के सक्रिय भाग की संरचना परिवर्तनशील होती है। प्रतिक्रिया के समय जब सब्स्ट्रेट अणु इससे जुड़ता है तो एन्जाइम अणु की संरचना में कुछ परिवर्तन हो जाते हैं। अतः एन्जाइम और सब्स्ट्रेट अणुओं का बन्ध पूर्णत: फिट हो जाता है और तभी सब्स्ट्रेट अणु का उत्प्रेरण होता है।

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