हिमालय की नदियां-Himalayan rivers

हिमालय की नदियों को तीन प्रमुख नदी-तंत्रों में विभाजित किया गया है। सिन्धु नदी-तंत्र, गंगा नदी-तंत्र व ब्रह्मपुत्र नदी-तंत्र। भूगर्भ वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमालय की उत्पत्ति से पूर्व तिब्बत के मानसरोवर झील के पास से निकलने वाली सिन्धु, सतलज एवं ब्रह्मपुत्र नदी टेथिस भू-सन्नति में गिरती थी।

टेथिस भू-सन्नति के मलवे पर भारतीय प्लेट के दबाब के कारण वृहद हिमालय की उत्पत्ति हुई। फलस्वरूप सिन्धु, सतलज तथा ब्रहपुत्र ने मार्ग में उठने वाले वृहद हिमालय को काट कर अपनी दिशा को पूर्ववत बनाये रखा। जिसके कारण इन्हें पूर्ववर्ती नदियां कहा जाता है।

अनुवर्ती नदियां किन्हें कहा जाता है?

वे नदियां जो ढाल बनने के पश्चात ढाल के अनुरूप बहना प्रारम्भ करती हैं। अनुवर्ती नदियां कहलाती हैं।

वृहद हिमालय के हिमरेखा से ऊपर उठने के पश्चात हिमनद बने जिनसे गंगा, यमुना, काली, गण्डक, कोसी, तीस्ता आदि नदियां निकली। इन नदियों ने मध्य तथा शिवालिक हिमालय को काटकर अपनी दिशा को पूर्ववत बनाये रखा। इसीलिए ये नदियां मध्य तथा शिवालिक हिमालय की पूर्ववर्ती नदियां तथा वृहद हिमालय की अनुवर्ती नदियां कहलाती हैं। अतः इन्हें पूर्वानुवर्ती नदियां कहा जाता है।

प्रायद्वीपीय नदियां

हिमालय की नदियां “पूर्ववर्ती नदियों” का उदाहरण हैं। क्योंकि ये हिमालय के उत्थान के क्रम में निरन्तर अपरदन का कार्य करते हुए आगे बढ़ती हैं। जिससे इनके द्वारा गहरे गार्ज (महाखड्ड) का निर्माण किया जाता है। जैसे-

सिन्धु गार्ज जम्मू कश्मीर में सिन्धु नदी द्वारा बनाया गया।

शिपकीला गार्ज हिमाचल प्रदेश में सतलज नदी द्वारा बनाया गया।

कोरबा गार्ज अरुणांचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी द्वारा बनाया गया।

 हिमालयी नदियां अभी युवा अवस्था में हैं और अपेक्षाकृत बड़ी हैं। इनमें वर्ष भर जल रहता हैं क्योंकि वर्षा जल के अतिरिक्त हिम के पिघलने से भी इन्हें जल की आपूर्ति होती हैं। इसीलिए इन नदियों को सतत वाहिनी या सदानीरा कहा जाता है। ये पर्याप्त मात्रा में उपजाऊ जलोढ़ व अवसादों का निक्षेपण करती हैं। मैदानी क्षेत्रों में ढाल की न्यून प्रवणता के कारण ये विसर्पों का निर्माण करती हैं एवं अपना मार्ग बदल लेती हैं। जिससे ये अधिकतम क्षेत्र को सिंचित कर पाती हैं।

हिमालय की नदियों का सिन्धु नदी तंत्र

 सिन्धु नदी तंत्र विश्व के विशालतम नदी तंत्रों में से एक है। इस तंत्र के अंतर्गत सिन्धु तथा उसकी सहायक नदियां सम्मिलित हैं।

सिन्धु नदी तंत्र

 सिन्धु नदी तिब्बत के मानसरोवर झील के निकट “चेमायुंगडुंग” ग्लेशियर से निकलती है। यह नदी ब्रह्मपुत्र नदी के ठीक उल्टी ओर बहती है। यह 2880 km लम्बी है तथा इसका जल संग्रहण क्षेत्र 11.65 लाख वर्ग km है। भारत में इसकी में इसकी लम्बाई 1114 km तथा जल संग्रहण क्षेत्र 3.21 लाख वर्ग किमी. है।

सिन्धु जल समझौता-1960 ई.

 भारत-पाकिस्तान के बीच 1960 ई. में हुए “सिन्धु जल समझौते” के अंतर्गत भारत सिन्धु, झेलम व चिनाब नदियों के केवल 20% जल का उपयोग कर सकता है, जबकि सतलज व रावी के 80% जल का उपयोग कर सकता है।

 भारत की नदियों से सम्बंधित प्रश्न

सिन्धु नदी में बांयी ओर से मिलने वाली सहायक नदियां

 बायीं ओर से मिलने वाली पंजाब की पांच नदियां सतलज, व्यास, रावी, चिनाब और झेलम (पंचनद) सबसे प्रमुख हैं। ये पांचों नदियां संयुक्त रूप से सिन्धु नदी की मुख्य धारा से “मीठनकोट” के पास मिलती हैं। इसके अलावा जास्कर, स्यांग, शिगार व गिलगित बायीं ओर से मिलने वाली अन्य प्रमुख नदियां है।

सिन्धु नदी में दायीं ओर से मिलने वाली सहायक नदियां

 दायीं ओर से मिलने वाली नदियों में श्योक, काबुल, कुर्रम, गोमल आदि प्रमुख हैं। काबुल व उसकी सहायक नदियां सिन्धु में अटक के पास मिलती हैं। सिन्धु नदी अटक के पास मैदानी भाग में प्रवेश करती है और दक्षिण पूर्व में बहते हुए करांची के पूर्व में अरब सागर में गिरती है।

झेलम या वितस्ता-यह पीरपंजाल पर्वत की पदस्थली में स्थित बेरीनाग झरने के समीप शेषनाग झील से निकलकर बूलर झील में मिलती है। यह पुनः आगे बढ़कर मुजफ्फर्राबाद से मंगला तक भारत-पाक सीमा के लगभग समानांतर बहती है। श्रीनगर इसी नदी के किनारे बसा है। कश्मीर की घाटी में अनन्तनाग से बारामूला तक झेलम नदी नौकागम्य है। इससे कश्मीर में आवागमन एवं व्यापार में बड़ी सहायता मिलती है। झेलम और रावी पाकिस्तान में झंग के निकट चिनाब नदी में मिल जाती हैं।  झेलम की सहायक नदी किशनगंगा है, जिसे पाकिस्तान में “नीलम” कहा जाता है।

चिनाब या अस्किनी-यह सिन्धु की विशालतम सहायक नदी है, जो हिमाचल प्रदेश में “चंद्रभागा” नाम से जानी जाती है। यह नदी लाहुल में बड़ालाचा ला दर्रे के दोनों ओर से चन्द्र तथा भागा नामक दो नदियों के रूप में निकलती है। ये दोनों नदियां मिलकर चिनाब कहलाती हैं। भारत में इसकी लम्बाई189 किमी. है।

रावी या परुष्णी-यह पंजाब की पंच नदियों में से सबसे छोटी है। इसका उदगम स्थल कांगड़ा जिले में रोहतांग दर्रे के समीप है। इसकी लम्बाई 725 किमी. है तथा इसके अपवाह तन्त्र का क्षेत्रफल 25957 वर्ग किमी. है। यह पाकिस्तान में सराय सिन्धु के निकट चिनाब नदी से मिलती है।

व्यास या विपाशा-इसका उदगम व्यास कुण्ड से होता है। यह सतलज की सहायक नदी है एवं कपूरथला के निकट हरिके नामक स्थान पर उससे मिल जाती है।

सतलज या शतुद्री-यह मानसरोवर झील के पास स्थित राकस ताल से निकलती है तथा शिपकीला दर्रे के पास भारत में प्रवेश करती है। स्पीति नदी इसकी मुख्य सहायक नदी है। “यह एक मात्र पूर्ववर्ती नदी है जो हिमालय के तीनों भागों को काटती है।” प्रसिद्ध भाखड़ा-नांगल बांध सतलज नदी पर ही बनाया गया है। भारत तिब्बत मार्ग सतलज घाटी से होकर गुजरता है।

हिमालय की नदियों का गंगा नदी तंत्र

 गंगा तथा उसकी सहायक नदियों को संयुक्त रूप से गंगा नदी-तंत्र कहते हैं। इस तंत्र में गंगा तथा गंगा में संगम करने वाली नदियों का अध्ययन किया जाता है। गंगा नदी तंत्र में उन नदियों का भी अध्ययन किया जाता है। जो गंगा की सहायक नदियों की भी सहायक नदियां हैं। जैसे-युमना गंगा की सहायक नदी तथा केन, चम्बल आदि युमना की सहायक नदियां हैं। अतः केन व चम्बल गंगा की द्वितीयक सहायक नदियां कहलाती हैं।

गंगा नदी-तंत्र

गंगा नदी-गंगा नदी का उदगम उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में गोमुख के निकट “गंगोत्री हिमानी” हैं। यहाँ पर यह “भागीरथी” नाम से जानी जाती है। जब भागीरथी बहती हुई देव प्रयाग पहुँचती तब इससे अलकनन्दा नदी आकर मिलती हैं। यहाँ इसे गंगा नाम से जाना जाता है। वास्तव में, गंगा नदी भागीरथी और अलकनन्दा नदियों का सम्मिलित रूप है।

गंगा नदी का मैदानी भाग में प्रवेश

 गंगा नदी पहाड़ों से निकलकर हरिद्वार के निकट मैदानी भाग में प्रवेश करती है। यह भारत की सबसे लम्बी नदी है। यह भारत में पांच राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड तथा पश्चिम बंगाल में बहती है।

गंगा में दायीं ओर से मिलने वाली नदियां

 इसमें युमना दाहिनी ओर से प्रयागराज में मिलती है। इसके अलावा दक्षिणी पठार से आने वाली टोंस अथवा तमसा नदी तथा सोन अथवा स्वर्ण नदी एवं पुनपुन नदी भी गंगा में दायीं ओर से मिलती हैं।

गंगा में बायीं ओर से मिलने वाली नदियां

 गंगा में बायीं ओर से मिलने वाली प्रमुख नदियां पश्चिम से पूर्व इस प्रकार हैं-रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी, बूढ़ी गंडक, बागमती तथा महानन्दा। गंगा नदी की सबसे अधिक लम्बाई उत्तर प्रदेश में है।

 गंगा झारखंड की सीमा पर स्थित राजमहल की पहाड़ी के उत्तर की ओर से प्रवाहित होती हुई जब पश्चिम बंगाल में पहुँचती है तब इससे एक वितरिका निकलती है जिसे हुगली नदी के नाम से जाना जाता है। इसे विश्व की सबसे “विश्वासघाती नदी” कहते हैं। इसी के तट पर कोलकाता बन्दरगाह है। जिसे “पूर्व का लन्दन” कहते हैं।

वितरिका क्या होती है?

 वितरिका मुख्य नदी से निकलने वाली ऐसी छोटी नदी होती है जो पुनः मुख्य नदी से नहीं मिलती है। जैसे-हुगली नदी जो पुनः गंगा नदी में नहीं मिलती। फरक्का बाँध हुगली नदी पर ही बना है।

बांग्लादेश में गंगा नदी

 बांग्लादेश में गंगा नदी को “पद्मा” नाम से जाना जाता है। पावना से पूर्व गोलुन्डोघाट के पास ब्रह्मपुत्र नदी इससे आकर मिलती है और संयुक्त धारा पद्मा के नाम से आगे बहती है। चांदपुर के पास मेघना इससे आकर मिलती है। तब यह मेघना नाम से बहती हुई अनेक जल वितरिकाओं में बंटकर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।

गंगा की सहायक नदियां

ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र

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