मौर्योत्तर कालीन शासक

मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद भारत दो भागों में बंट गया। एक मध्य एशिया के विदेशी आक्रमणकारियों ने उत्तर-पश्चिमी  प्रान्तों तथा मध्य भारत के एक बड़े क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।

 

दूसरा शेष क्षेत्र पर शुंग, कण्व, सातवाहन तथा वाकाटक आदि राजवंशों का उदय हुआ। मौर्योत्तर काल के शासकों में कुछ प्रमुख शासक निम्नलिखित हैं।

मौर्योत्तर कालीन भारतीय शासक

मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद ब्राह्मण साम्राज्य का उदय हुआ। ब्राह्मण साम्राज्य के अन्तर्गत शुंग, कण्व, आंध्र सातवाहन, वाकाटक आदि वंश प्रमुख थे। इन वंशों के प्रमुख शासक निम्नलिखित हैं।

1-पुष्यमित्र शुंग

यह शुंग वंश का संस्थापक था। पुष्यमित्र शुंग के विषय में जानकारी इसके अयोध्या अभिलेख से प्राप्त होती है, जो इसके राज्यपाल “धनदेव” से सम्बन्धित है।

इस अभिलेख से ज्ञात होता है कि पुष्यमित्र शुंग ने दो अश्वमेध यज्ञ कराये थे। इन यज्ञों के पुरोहित पतंजलि थे। शुंग वंश के अन्य शासक अग्निमित्र, वसुमित्र,ब्रजमित्र तथा भागभद्र हुए।

2-देवभूति

यह शुंग वंश का अन्तिम शासक था। इसके मंत्री वसुदेव ने इसकी हत्या कर एक नए वंश कण्व वंश की स्थापना की।

3- कण्व वंश के प्रमुख शासकों में वसुदेव, भूमिमित्र, नारायण व सुशर्मन हुए। सुशर्मन की हत्या 30 ईसा पूर्व में सिमुक ने कर दी और एक नवीन ब्राह्मण वंश आंध्र-सातवाहन की नींव डाली।

4-सिमुक

इसे आंध्र-सातवाहन वंश का संस्थापक माना जाता है। सिमुक के बारे में अधिकांश जानकारी पुराणों एवं नानाघाट प्रतिमा लेख से प्राप्त होती है। पुराणों में सिमुक को सिंधुक, शिशुक, शिप्रक आदि नामों से सम्बोधित किया गया है।

5-शातकर्णी प्रथम

इसने दो अश्वमेध यज्ञ एवं एक राजसूय यज्ञ किया। नानाघाट अभिलेख से पता चलता है कि इसने ब्राह्मणों एवं बौद्धों को भूमि अनुदान में दी। भूमिदान का यह पहला अभिलेखीय साक्ष्य है।

6-गौतमी पुत्र शातकर्णी

यह सातवाहन वंश का महानतम शासक था। नासिक अभिलेख में इसे “एकमात्र ब्राह्मण” एवं “अद्वितीय ब्राह्मण” कहा गया है। इसने शक शासक नहपान को पराजित कर मार डाला।

7-वशिष्ठी पुत्र पुलुमावी

इसके विषय में अमरावती से प्राप्त एक लेख से जानकारी मिलती है। इसे शक शासक रुद्रदामन ने दो बार पराजित करके छोड़ दिया। क्योंकि इसके भाई शिवश्री शातकर्णी का विवाह रुद्रदामन की पुत्री से हुआ था।

8-खारवेल

कलिंग के चेदिवंश का सबसे प्रतापी राजा खारवेल था। इसके विषय में जानकारी का मुख्य स्रोत इसका हाथी गुम्फा अभिलेख है। खारवेल को ऐरा, महाराज, महामेघवाहन एवं कलिंगाधिपति कहा गया।

मौर्योत्तर कालीन विदेशी भारतीय शासक

    

उत्तरी-पश्चिमी भारत में विदेशियों का आक्रमण मौर्योत्तर काल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना थी। इस काल में डेमेट्रियस वंश, युक्रेटाइड्स वंश, शक, कुषाण वंश आदि विदेशी वंशों के शासकों ने भारत पर शासन किया। इनमें कुछ प्रसिद्ध शासक निम्नलिखित हैं।

1-डेमेट्रियस प्रथम

मौर्योत्तर काल का सबसे पहला यवन आक्रमणकारी डेमेट्रियस प्रथम था। सिकन्दर के बाद यह पहला यूनानी शासक था जिसकी सेना भारतीय सीमा में प्रवेश पा सकी।

डेमेट्रियस प्रथम ने 183 ईसा पूर्व के लगभग पंजाब का एक बड़ा भाग जीत लिया और साकल को अपनी राजधानी बनाया। डेमेट्रियस प्रथम ने भारतीय राजाओं की उपाधि धारण की और यूनानी तथा खरोष्ठी दोनों लिपियों में सिक्के चलाये।

2-मिनांडर

यह डेमेट्रियस वंश का सबसे प्रतापी शासक हुआ। बौद्ध साहित्य में यह मिलिन्द नाम से प्रसिद्ध है।

बौद्ध ग्रंथ मिलिन्दपन्हों में मिनांडर और बौद्ध भिक्षु नागसेन के संवाद तथा मिनांडर के बौद्ध धर्म ग्रहण करने की कथा है। इसकी राजधानी साकल शिक्षा और व्यापार का प्रसिद्ध केन्द्र थी।

3-नहपान

इसके राज्य में काठियावाड़, दक्षिणी गुजरात, पश्चिमी मालवा, उत्तरी कोंकण, पूना आदि शामिल थे। इसने महाराष्ट्र के बड़े भू-भाग को सातवाहन राजाओं से छीना था। इसकी राजधानी मिन्नगर थी। सातवाहन शासक गौतमी पुत्र शातकर्णी ने इसे पराजित कर मार डाला था।

4-रुद्रदामन

यह उज्जयिनी के शकों में सबसे प्रसिद्ध शक शासक था। इसके विषय में जानकारी का मुख्य स्रोत इसका जूनागण अभिलेख है। इसके शासनकाल में सुदर्शन झील बाँध का पुर्ननिर्माण करवाया गया।

5-कनिष्क

यह कुषाण शासकों में सबसे योग्य और महान शासक था। इसके काल में कुषाण शक्ति अपने चरम उत्कर्ष पर थी। कनिष्क के राज्यारोहण की तिथि 78 ई. मानी जाती है। इसके समय में चतुर्थ बौद्ध संगीति कश्मीर के कुण्डलवन में हुई थी।

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