पर्यावरण प्रदूषण और उसके प्रकार-Environmental pollution and its types

पर्यावरण प्रदूषण एक अवांछनीय स्थिति है। जब मनुष्य के क्रिया-कलापों द्वारा जल, वायु तथा भूमि की नैसर्गिक गुणवत्ता में ह्रास होने लगता है। जिसका मनुष्य तथा अन्य जीवधारियों के जीवन तथा स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पर्यावरण प्रदूषण कहलाता है।

 Pollution शब्द लेटिन भाषा के शब्द Pollutionem से बना है। जिसका अर्थ होता है-अपवित्र करना या गन्दा करना। पर्यावरण प्रदूषण मानव जनित समस्या है। जिसके गम्भीर परिणाम देखने को मिल रहे हैं।


पर्यावरण अवनयन या अवक्रमण

सामान्य रूप में पर्यावरण अवनयन तथा पर्यावरण प्रदूषण समानार्थी समझे जाते हैं। क्योंकि दोनों का सम्बन्ध पर्यावरण की गुणवत्ता में ह्रास से होता। किन्तु कारकों और प्रभाव क्षेत्र के आधार पर इनमें अन्तर होता है।

पर्यावरण प्रदूषण का सम्बन्ध मात्र मनुष्य के कार्यों द्वारा स्थानीय स्तर पर पर्यावरण की गुणवत्ता में ह्रास से है। जबकि पर्यावरण अवनयन का सम्बन्ध मानव कार्यों तथा प्राकृतिक प्रक्रमों द्वारा स्थानीय, प्रादेशिक एवं विश्व स्तरों पर पर्यावरण की गुणवत्ता में ह्रास से है।

 ज्वालामुखी उद्भेदन, भूकम्प, वायुमण्डलीय तूफान, बाढ़, सूखा, प्राकृतिक कारणों से वनों में अग्नि का प्रकोप (दावानल), उपलवृष्टि, अति हिमपात, भौतिकीय अपरदन, भूमि स्खलन आदि प्राकृतिक कारक। इन कारकों के कारण स्थानीय, प्रादेशिक अथवा विश्व स्तर पर पारिस्थितिक तन्त्रों में अव्यवस्था उत्पन्न हो जाती है। जो जीवन के लिए अनुकूल नहीं होती।

पर्यावरण क्या है?

 अतः मानव तथा प्रकृति जनित कारणों से पर्यावरण ह्रास की प्रक्रिया को पर्यावरण अवनयन कहते हैं।


प्रदूषक-Pollutants

प्रदूषण उत्पन्न करने वाले पदार्थों को प्रदूषक कहते हैं। ये मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं।

1-Biodegradable pollutants

 वे पदार्थ जो सूक्ष्म जीवों द्वारा अपघटित होकर अपने विषाक्त प्रभाव को खो देते हैं। अपघटनीय प्रदूषक (Biodegradable Pollutants) कहलाते हैं। जैसे-वाहितमल (Sewage), जैवीय अवशिष्ट पदार्थ एवं कूड़ा-करकट आदि।

 

इन पदार्थों की सीमित मात्रा ही अपघटकों द्वारा अपघटित हो पाती है। जब इनका आधिक्य हो जाता है। तो ये पदार्थ पर्यावरण में प्रदूषण फैलाने लगते हैं।

2-Non-Biodegradable Pollutants

 वे पदार्थ जो सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटित नहीं हो पाते हैं। अनअपघटनीय प्रदूषक (Non-Biodegradable Pollutants) कहलाते हैं। जैसे-सीसा, पारा, आर्सेनिक, कैडमियम, निकेल, मैंगनीज, लोहा, तांबा, जस्ता, B.H.C, D.D.T व फीनोल आदि।

 प्रकृति में ऐसी कोई विधि नहीं पायी जाती जिससे मनुष्य द्वारा निर्मित ये पदार्थ अपघटित हो सकें। ये पदार्थ तब तक पर्यावरण को हानि पहुँचते रहे हैं जब तक कि इनका तनुकरण (dilution) नहीं हो जाता।


पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार

पर्यावरण प्रदूषण का वर्गीकरण अध्ययन की सुविधा के लिए स्वेच्छा से किया जाता है। अतः प्रभावित क्षेत्रों के आधार पर प्रदूषण निम्नलिखित प्रकार के होते हैं।

1-वायु प्रदूषण

 वायुमण्डल की संरचना मूलतः विभिन्न प्रकार की गैसों से हुई है। वायुमण्डल में ये गैसें एक निश्चित मात्रा एवं अनुपात में पायी जाती हैं। जब मानवीय अथवा प्राकृतिक कारणों से गैसों की निश्चित मात्रा एवं अनुपात में अवांछनीय परिवर्तन हो जाता है अथवा वायुमण्डल में कुछ ऐसे विषाक्त पदार्थ मिल जाते हैं। जिससे वायु जीवधारियों के हानिकारक हो जाती है, वायु प्रदूषण कहलाता है।

वायु प्रदूषण के स्रोत

 विभिन्न प्रकार के वाहनों से निकलने वाला धुँआ वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोतों में से एक है। इस धुएँ में विभिन्न प्रकार की जहरीली गैसें जैसे-कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड, सल्फ्यूरिक एसिड आदि होती हैं। जो वायुमण्डल को दूषित करती हैं।

 बड़े-बड़े शहरों में लगे विभिन्न औद्योगिक कारखाने भी वायु प्रदूषण को बढ़ाते हैं। कृषि क्षेत्र में कीटनाशक दवाओं के प्रयोग से वायु, मृदा व जल तीनों प्रदूषित हो रहे हैं। यह प्रदूषित वायु मनुष्य एवं अन्य प्राणियों के लिए हानिकारक सिद्ध हो रही हैं।

वायु प्रदूषण के प्रभाव

 प्रदूषित वायु का मनुष्य के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। जैसे-यदि वायु में कार्बन मोनोऑक्साइड की थोड़ी सी अधिकता हो जाये तो श्वसन अवरोध हो जाता है। और दम घुटने लगता है। जबकि सल्फर डाई ऑक्साइड की अधिकता से आँख, गले एवं फेफड़ों के रोग हो जाते हैं।

 अम्ल वर्षा का कारण वायुमण्डल में सल्फर डाई ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड गैसों की अधिकता है।

वायु प्रदूषण रोकने के उपाय

 वायु प्रदूषण को रोकने का सबसे प्रभावशाली तरीका है कि लोगों को वायु प्रदूषण के घातक परिणामों के प्रति जागरूक किया जाये। वायु को शीघ्रता से प्रदूषित करने वाली सामग्रियों के निर्माण पर तुरन्त प्रतिबन्ध लगा दिया जाना चाहिए एवं कम हानिकारक उत्पादों की खोज की जानी चाहिए। इसके साथ ही वायुमण्डल में सकल प्रदूषण भार को घटाने के लिए सक्रिय उपाय करने चाहिए।

2-जल प्रदूषण

 जल की भौतिक, रासायनिक एवं जैवीय विशेषताओं में हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करने वाले परिवर्तनों की उस सीमा को जल प्रदूषण कहते हैं। जिस पर जल जीव समुदाय के लिए हानिकारक हो जाता है।

 जल पर्यावरण का जीवनदायी तत्व है। वनस्पति से लेकर जीव जन्तु अपने पोषक तत्वों की प्राप्ति जल के माध्यम से करते हैं। मनुष्य तथा अन्य प्राणियों के लिए पीने के पानी के स्रोत नदियां, सरिताएं, झीलें एवं नलकूप हैं। मनुष्य ने स्वयं ही अपनी क्रियाओं द्वारा अपने ही जल स्रोतों को प्रदूषित किया है।

जल प्रदूषण के स्रोत

 जल की गुणवत्ता को कम करने वाले तत्वों को जल प्रदूषक कहते हैं। वर्तमान समय में जल कई स्रोतों से प्रदूषित हो रहा है। जैसे-औद्योगिक इकाइयों द्वारा प्रयोग में लिए गये जल में कई प्रकार के रासायनिक प्रदूषक जैसे- क्लोराइड, सल्फाइड, कार्बोनेट, रेडियोऐक्टिव अपशिष्ट, हानिकारक धातुएं मिल जाती हैं। यह जल सीधे प्राकृतिक जलाशयों में प्रवाहित कर दिया जाता है। इसके अलावा कृषि रसायन, अपमार्जक, खनिज तेल, शवों का जल में प्रवाह भी जल प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं।

जल प्रदूषण के प्रभाव

 प्रदूषित जल का सेवन करने से मनुष्य तथा अन्य जीवधारियों को असाध्य रोगों का सामना करना पड़ता है। प्रदूषित जल के सेवन से मनुष्य कई प्रकार की संक्रामक बीमारियों जैसे-हैजा, तपेदिक, पीलिया, अतिसार, मियादी ज्वर, पेचिस आदि से पीड़ित हो जाता है।

पारा युक्त जल पीने से मिनीमाता रोग हो जाता है।

पेयजल में नाइट्रेट की अधिकता से ब्लू बेबी सिण्ड्रोम

कैडमियम की अधिकता से इटाई-इटाई रोग

आर्सेनिक की अधिकता से ब्लैक फुट नामक बीमारी हो जाती है।

असबेस्टस के रेशों से युक्त जल के सेवन से असबेस्टोसिस नामक जानलेवा रोग हो जाता है।

जल प्रदूषण रोकने के उपाय

 जल प्रदूषण नियन्त्रण के लिए लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए। घरेलू कार्यों से प्रदूषित हुए जल का निकास वैज्ञानिक परिष्कृत साधनों द्वारा किया जाना चाहिए। कृषि, खेतों व बगीचों में कीटनाशक, जीवनाशक एवं अन्य रासायनिक पदार्थों, उर्वरकों को कम से कम उपयोग करने के लिए उत्साहित करना चाहिए, जिससे कि ये पदार्थ जल स्रोतों में न मिल सके।

3-मृदा प्रदूषण

 प्राकृतिक स्रोतों या मानव जनित स्रोतों अथवा दोनों स्रोतों से मृदा की गुणवत्ता में ह्रास को “मृदा प्रदूषण” कहते हैं। मृदा की गुणवत्ता कई कारणों से ह्रास हो रही है। जिससे मृदा प्रदूषण प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

इन कारणों में कुछ मुख्य कारण जैसे-तीव्र गति से मृदा अपरदन, मृदा में रहने वाले सूक्ष्म जीवों की कमी, तापमान में अत्यधिक उतार-चढ़ाव, मृदा में ह्यूमस की मात्रा में कमी एवं विभिन्न प्रकार के मृदा प्रदूषकों का अत्यधिक सांद्रण आदि हैं।

मृदा प्रदूषण के प्रभाव

 मृदा प्रदूषण प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से मानव, जीव-जन्तु एवं वनस्पतियों को प्रभावित करता है। मृदा अपरदन का प्रभाव स्थलाकृतियों पर पड़ता है। मृदा प्रदूषण से मिट्टी के मौलिक गुणों में ह्रास होता है। इसकी उत्पादन क्षमता कम हो जाती है। जिससे फसलों एवं वनस्पतियों का विकास कम होता है।

 रासायनिक प्रदूषक मिट्टी में मिलकर फसलों को प्रभावित करते हैं। इसका प्रभाव जन्तुओं की आहार श्रृंखला पर भी पड़ता है।

मृदा प्रदूषण को रोकने के उपाय

 मृदा प्रदूषण पर नियंत्रण करना नितान्त आवश्यक है। इसके लिए कीटनाशक, जीवनाशक, विषैली दवाओं आदि के प्रयोग पर प्रतिबन्ध,कृत्रिम उर्वरकों के प्रयोग को कम, वनों के विनाश पर प्रतिबन्ध, भू-क्षरण रोकने के उपाय, प्रदूषित जल को वृहद भूमि पर विस्तारित होने से रोकने के उपाय करने चाहिए।

4-ध्वनि प्रदूषण

 मानव के आधुनिक जीवन ने एक नये प्रकार के प्रदूषण को उत्पन्न किया है। जिसे ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। आवश्यकता से अधिक उच्च तीव्रता वाली ध्वनि के कारण मानव वर्ग में उत्पन्न अशान्ति एवं बेचैनी की दशा को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। यह पर्यावरण प्रदूषण का एक सशक्त कारक है। उच्च ध्वनि तीव्रता का विस्तार बढ़ते नगरीकरण एवं औद्योगीकरण के फलस्वरूप निरन्तर बढ़ रहा है।

 ध्वनि प्रदूषण की वृद्धि में प्राकृतिक तथा मानव जनित दोनों कारण सम्मिलित हैं। प्राकृतिक कारणों में बादलों की गड़गड़ाहट, तूफानी हवाओं की आवाज, बिजली की कड़क, ज्वालामुखी फटने की आवाज आदि आते हैं।

 मानव जनित कारणों में उद्योग कारखानों से निकलने वाली ध्वनियाँ, वाहनों से निकलने वाली ध्वनियाँ, हवाई जहाज की ध्वनियां आदि शामिल हैं।

ध्वनि प्रदूषण रोकने के उपाय

 ध्वनि प्रदूषण रोकने का सबसे प्रभावशाली तरीका स्रोत बिन्दु पर ही ध्वनि को नियंत्रित करना है। निम्न युक्तियों द्वारा स्रोत बिन्दु पर ही ध्वनि को नियंत्रित किया जा सकता है। जैसे-

 मशीनों में ध्वनिशामक व्यवस्था, मशीनों के प्रमुख कल-पुर्जों में अच्छी तरह ग्रीस लगाकर उन्हें चिकना बनाये रखना, लाउड स्पीकर तथा रेकार्ड प्लेयरों की आवाज को नियंत्रित रखना आदि।

5-रेडियोएक्टिव प्रदूषण

 रेडियोएक्टिव पदार्थों के विकिरण से जनित प्रदूषण को रेडियोएक्टिव अथवा रेडियोधर्मी प्रदूषण कहते हैं। इन पदार्थों से स्वतः रेडियोधर्मी विकिरण निकलता रहता है। जैसे-थोरियम, प्लूटोनियम, यूरेनियम आदि।

 रेडियोधर्मी प्रदूषण की मापन की इकाई “रोन्टजन” है। इसे रैम भी कहा जाता है। 20 ml रैम (रोन्टजन) तक का विकिरण जीवधारियों को कोई क्षति नहीं पहुँचता है। किन्तु इससे अधिक विकिरण जीवधारियों के लिए घातक होता है।

रेडियोएक्टिव प्रदूषण के स्रोत

 प्राकृतिक तथा मानव जनित दोनों प्रकार से रेडियोएक्टिव प्रदूषण उत्पन्न होता है।

 मानव जनित स्रोतों से रेडियोधर्मी प्रदूषण मुख्यतः परमाणु रिएक्टरों से होने वाले रिसाव, नाभिकीय प्रयोग, औषधि विज्ञान, रेडियोधर्मी पदार्थों के उत्खनन, रेडियोएक्टिव पदार्थों के निस्तारण व परमाणु बमों के विस्फोट आदि से फैलता है। इसके अलावा मानव जनित स्रोतों में विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति हेतु आइसोटोप जैसे-कार्बन-14, कोबाल्ट-60, स्ट्रांशियम-90 ट्राइटियम आदि के प्रयोग भी रेडियोएक्टिव प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हैं।

 प्रकृति जनित रेडियोधर्मी प्रदूषण जीवों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं डालता है क्योंकि इसकी तीव्रता बहुत कम होती है। यह पृथ्वी के गर्भ में दबे रेडियोएक्टिव पदार्थों तथा सूर्य की किरणों से फैलता है।

रेडियोएक्टिव पदार्थों का खाद्य श्रृंखला में प्रवेश

 उपर्युक्त स्रोतों से उत्पन्न हुए रेडियोएक्टिव पदार्थ वायुमण्डल की बाह्म परतों में प्रवेश कर जाते हैं। वहाँ संघनन द्वारा ठोस रूप में परिवर्तित होकर धूल के कणों के साथ मिल जाते हैं। वर्षा जल के साथ ये पुनः भूमि पर आते हैं तथा मृदा में मिल जाते हैं। मृदा से ये पदार्थ पौधों में जाते हैं। पौधों से शाकाहारी जन्तुओं और में मनुष्य में पहुँच जाते हैं।

रेडियोएक्टिव पदार्थों का जीवों पर प्रभाव

 रेडियोधर्मी पदार्थों के परमाणु केन्द्रकों से अल्फा, बीटा और गामा कण किरणों के रूप में निकलते हैं। ये किरणें जीवित ऊतकों के जटिल अणुओं को विघटित कर कोशिकाओं को नष्ट कर देती हैं। इन मृत कोशिकाओं के कारण चर्म रोग व कैन्सर जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।

 रेडियोधर्मी प्रदूषण के कारण जीन्स और गुणसूत्रों में हानिकारक उत्परिवर्तन हो जाता है। जिससे बच्चों की गर्भाशय में ही मृत्यु हो जाती है। कभी कभी बच्चों के अंग असाधारण प्रकार के हो जाते हैं।

 Radioactive Pollution के कारण मनुष्यों में असाध्य रोग हो जाते हैं। जैसे-रक्त कैंसर, अस्थि कैंसर और अस्थि टी. बी.। Radioactive radiation का प्रभाव कई हजार वर्षों तक रहता है।

 रेडियोधर्मी प्रदूषण सबसे अधिक घातक होता है। क्योंकि इसके प्रभाव से जल, वायु एवं मृदा तीनों प्रदूषित होते हैं।

रेडियोधर्मी प्रदूषण रोकने के उपाय



नाभिकीय रियक्टरों से विकिरण के विसरण को रोका जाना चाहिए।

रेडियोएक्टिव अपशिष्ट को तर्कसंगत व सही ढंग से निवृत किया जाना चाहिए।

मानव प्रयोग के उपकरणों को रेडियोधर्मिता से मुक्त किया जाना चाहिए।

परमाणु अस्त्रों का उत्पादन एवं प्रयोग प्रतिबन्धित होना चाहिए।

IMPORTANT QUESTIONS

Question. रेडियोएक्टिव प्रदूषण के मापन की इकाई क्या है।

Answer. रोन्टजन

Question. नाभिकीय बमों के वायुमण्डलीय विस्फोटों के उपरान्त जो रेडियोएक्टिव पदार्थों के चूर्ण धरती पर गिरते हैं, उन्हें क्या कहा जाता है?

Answer. नाभिकीय पतन (Nuclear Fallout)

Question. भारत में सर्वाधिक रेडियोएक्टिव प्रदूषण कहाँ पाया जाता है।

Answer. केरल में

Question. किस प्रकार का Pollution स्वयं में पॉल्यूशन कारक एवं पॉल्यूशन दोनों होता है।

Answer. Radioactive pollution

Question. ग्लोबल वार्मिंग के फलस्वरूप जलवायु में होने वाले परिवर्तन का मापन कैसे किया जाता है?

Answer. रेडियो सक्रिय फोर्सिंग द्वारा

Question. जीरोडर्मा पीगमैनटोमस नामक बीमारी किस विकिरण से होती है?

Answer. पराबैंगनी विकिरण से

पराबैंगनी किरणें गैर-आयनीकृत विकिरण स्रोत हैं।

Radioactive तत्व आयनीकृत विकिरण स्रोत हैं।

पोटैशियम आयोडाइड को नाभिकीय विकिरण का रक्षक कहा जाता है। Nuclear Radioactive Fallout से बचने के लिए पोटैशियम आयोडाइड की गोलियों के सेवन की सलाह दी जाती है।

6-ठोस अपशिष्ट प्रदूषण

 उपयोग के बाद बेकार तथा निरर्थक पदार्थों को ठोस अपशिष्ट कहा जाता है। दिन पर दिन हो रही जनसंख्या वृद्धि के कारण ठोस अपशिष्ट की मात्रा में निरन्तर वृद्धि हो रही है। फलस्वरूप इससे उत्पन्न प्रदूषण की समस्या निरन्तर जटिल होती जा रही है।

 आर्थिक रूप से सम्पन्न एवं औद्योगिक स्तर पर  विकसित पश्चिमी देशों की ‘प्रयोग करो और फेंको’ की नीति ने अपशिष्ट प्रदूषण की विकट समस्या उत्पन्न कर दी है।

ठोस अपशिष्ट के स्रोत

 ठोस अपशिष्ट के कई स्रोत हैं। इनको निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है।

धात्विक ठोस अपशिष्ट-डिब्बे, बोतल, क्राकरी, कुर्सी, लोहा आदि।

अधात्विक ठोस अपशिष्ट-पैकिंग का अपशिष्ट, कपड़ा, रबर, काष्ठ, चर्म, भोज्य पदार्थ आदि।

भारी ठोस अपशिष्ट-मशीनों के पार्ट, फर्नीचर के टुकड़े, टायर आदि।

मकानों के अवशेष-मिट्टी, पत्थर, काष्ठ एवं धातु आदि के सामान।

उद्योग जन्य अपशिष्ट-नाभिकीय कचरा, कोयला राख, रासायनिक एवं इलेक्ट्रिक कचरा।

ठोस अपशिष्ट प्रदूषण के प्रभाव

 शहरों में ठोस अपशिष्ट की मात्रा में निरन्तर वृद्धि हो रही है। जिसके कारण भयंकर पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। जैसे-भूमिगत जल में रिसाव, आहार श्रृंखला में हानिकारक तत्वों का प्रवेश, दम घोटने वाली वाष्पों में वृद्धि, लाभदायक सूक्ष्म जीवों का विनास, मच्छरों, कीटों एवं चूहों की वृद्धि, डायरिया, डिसेंट्री, हैजा, प्लेग हैपेटाइटिस जैसे रोगों की वृद्धि।

 सागरीय तटीय भागों में ठोस कचरा के कारण कई प्रकार की पारिस्थितिकीय समस्याएं उत्पन्न हो गयी हैं। सागरों में जमा हो रहे ठोस अपशिष्ट के कारण मछलियों सहित अन्य जीवों की मृत्यु हो रही है। कोरल द्वीपों की जैव विविधता नष्ट हो रही है।

ठोस अपशिष्ट प्रदूषण रोकने के उपाय

 ठोस अपशिष्ट पदार्थों को नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं।

पुनर्चक्रण-इस विधि द्वारा अपशिष्टों को पुनः प्रयोग में लाया जाता है। जैसे-प्लास्टिक व धातुओं को गलाकर पुनः प्रयोग में लाना, अखबार व पुराने कागजों को गलाकर पुनः निर्माण करना आदि।

अपशिष्टों को नष्ट करना-जो ठोस अपशिष्ट विभाजित या पुनर्चक्रित नहीं हो सकते उन्हें नष्ट कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया में निम्नलिखित विधियों का उपयोग किया जाता है।

★कम्पोस्टिंग-इस विधि में जैविक कचरे को खाद में बदल दिया जाता है।

★दबाना-इस प्रक्रिया के तहत जमीन में गहरा गड्ढा खोदकर उसमें ठोस अवशेष को दबा देते हैं।

★दहन-इस विधि में ज्वलनशील ठोस अपशिष्टों को दहन यन्त्र डालकर जला देते हैं। भारत में दहन संयंत्र नागपुर में स्थित है।

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