सल्तनत कालीन स्थापत्य कला-Sultanate architecture

सल्तनत कालीन स्थापत्य कला, भारतीय और इस्लामी प्रभावों के सम्मिश्रण से उत्पन्न एक नवीन स्थापत्य कला थी। इसे हिन्द-इस्लामी स्थापत्य कला भी कहा जाता है। भारत में इसका विकास क्रमिक रूप से हुआ। इसका प्रथम चरण 1206 ई. से 1290 ई. तक था।

सल्तनत कालीन स्थापत्य कला की विशेषताएं

1-सल्तनत कालीन स्थापत्य कला के अंतर्गत हुए निर्माण कार्यों में भारतीय एवं ईरानी शैलियों का मिश्रण देखने को मिलता है।

 

2-सल्तनत कालीन निर्माण कार्य जैसे-किला, मकबरा, मस्जिद, महल व मीनारों में नुकीले महराबों-गुम्बदों तथा सँकरी एवं ऊँची मीनारों का प्रयोग किया गया है।

3-सल्तनत काल में सुल्तानों, अमीरों व सूफी संतों के स्मरण में मकबरों के निर्माण की परम्परा शुरू हुई।

4-सल्तनत कालीन इमारतों की मजबूती हेतु पत्थर, कंकरीट एवं अच्छे किस्म के चूने का प्रयोग किया जाता था।

5-इस काल में इमारतों में पहली बार वैज्ञानिक ढंग से मेहराब एवं गुम्बद का प्रयोग किया गया। तुर्क सुल्तानों ने गुम्बद एवं मेहराब के निर्माण में शिला और शहतौर दोनों प्रणालियों का उपयोग किया।

सल्तनत काल की कर व्यवस्था

6-सल्तनत काल में इमारतों की साज-सज्जा में जीवित वस्तुओं का चित्रण निषिद्ध होने के कारण इमारतों को सजाने के लिए अनेक प्रकार की फूल-पत्तियां, ज्यामितीय आकृतियां व कुरान की आयतें खुदवायी जाती थीं। कालान्तर में तुर्क सुल्तानों द्वारा हिन्दू साज-सज्जा की वस्तुओं जैसे-कमलबेल के नमूने, स्वास्तिक, घंटियों के नमूने, कलश आदि का प्रयोग किया जाने लगा। अलंकरण की इस संयुक्त विधि को सल्तनत काल में “अरबस्क विधि” कहा गया।

सल्तनत कालीन स्थापत्य कला शैली

सल्तनत कालीन स्थापत्य कला की शैली को “इण्डो-इस्लामिक” शैली कहा गया। कुछ विद्वानों ने इसे “इण्डो-सारसेनिक” शैली कहा। फर्ग्यूसन ने इसे पठान शैली कहा। किन्तु यह शैली वास्तव में भारतीय एवं इस्लामी शैलियों का मिश्रण थी।

सर जॉन मार्शल, ईश्वरी प्रसाद जैसे विद्वानों ने स्थापत्य कला की इस शैली को इण्डो-इस्लामिक शैली अथवा हिन्द-इस्लामी शैली कहना उचित समझा।

चूंकि भारत में इसका विकास गुलाम वंश काल अथवा मामलूक वंश काल में हुआ था। अतः यह ‘मामलूक शैली’ के नाम से भी प्रसिद्ध है। इसे प्रयोगात्मक एवं कामचलाऊ शैली भी कहा जाता है।

इस शैली में मेहराब और गुम्बदों का सुन्दर प्रयोग किया गया है। जिसे अरबों ने मुख्यतः रोम से ग्रहण किया था।

इस शैली में भारतीय क्षैतिज शैली व इस्लामी मेराब धरनी का सुन्दर व सन्तुलित समिश्रण देखने को मिलता है।

भारतीय स्थापत्य शैली तथा इस्लामिक स्थापत्य शैली में अन्तर

1-भारतीय शैली में स्तम्भों व बल्लियों का प्रयोग किया जाता था। जबकि इस्लामी शैली में मेहराबों का अधिक प्रयोग किया जाता था।

2-भारतीय शैली में भवन निर्माण सामग्री में बड़े-बड़े भारी पत्थरों का प्रयोग किया जाता था। जबकि इस्लामी शैली में छोटी व हल्की ईंटों का प्रयोग होता था। गारे के रूप में “चूने एवं सुरखी” का प्रयोग इस्लामी शैली की प्रमुख विशेषता थी।

दिल्ली सल्तनत का प्रशासन

3-दोनों शैलियां सजावट व अलंकरण में भी भिन्न थीं। भारतीय शैली में मूर्तिकला का प्रयोग अधिक होता था। जबकि इस्लामी शैली में सुलेख, विभिन्न ज्यामितीय आकृतियों व चमकीले टाइलों का प्रयोग होता था।

गुलाम वंश कालीन स्थापत्य कला

यह सल्तनत कालीन स्थापत्य कला का आरम्भिक काल था। इस काल के आरंभिक भवनों में स्थापत्य कला शैली का झुकाव भारतीय शैली की ओर अधिक था। इस काल में बने स्तम्भ मन्दिरों के प्रतीत होते हैं। इसी काल में पहली बार हिन्दू कारीगरों द्वारा बरामदों में मेहराबदार दरवाजे बनाये गये। इस काल में निर्मित मुख्य भवनें निम्नलिखित हैं।

1-कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद

कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद का निर्माण कुतबुद्दीन ऐबक ने 1192 ई. में दिल्ली में कराया था। यह मस्जिद इण्डो-इस्लामिक शैली अथवा हिन्द-इस्लामी शैली में निर्मित प्रथम भवन है।

कुतबुद्दीन ऐबक ने इसका निर्माण 1192 ई. में तराइन के द्वितीय युद्ध में मुहम्मद गोरी की पृथ्वीराज चौहान पर विजय के उपलक्ष्य में तथा इस्लाम धर्म को प्रतिष्ठित करने के उद्देश्य से कराया था।

1230 ई. में इल्तुतमिश ने मस्जिद के सहन (आंगन) को विस्तृत कराया। अमीर खुसरो के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी ने इस मस्जिद के इबादतखाना को और विस्तृत करवाया था।

कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद की सबसे बड़ी विशेषता उसका उत्कृष्ट मकसूरा तथा उससे जुड़ा किबला-बिलान है। यह मस्जिद 212 फुट लम्बे तथा 150 फुट चौड़े समकोणनुमा चबूतरे पर स्थित है।

इण्डो इस्लामिक शैली में निर्मित स्थापत्य कला का यह पहला ऐसा उदाहरण है जिसमें स्पष्ट हिन्दू प्रभाव परिलक्षित होता है।

2-कुतुबमीनार

इसका निर्माण कार्य 1199 ई. में कुतबुद्दीन ऐबक ने प्रारम्भ करवाया था तथा 1231 ई. में इल्तुतमिश ने पूरा करवाया। अधिक पढ़ें

3-अढ़ाई दिन का झोपड़ा

यह अजमेर में स्थित है। इसका निर्माण कुतबुद्दीन ऐबक ने करवाया था। इसके नाम के विषय में मार्शल का कहना है कि “इस मस्जिद का निर्माण मात्र अढ़ाई दिन में किया गया। इसलिए इस मस्जिद को ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ कहते हैं।” जबकि पर्सी ब्राउन का कहना है कि “यहाँ एक झोपड़ी के पास अढ़ाई दिन का मेला लगता था, इसी कारण इसे अढ़ाई दिन का झोपड़ा कहते हैं।

माना जाता है कि विग्रहराज बीसलदेव ने इस स्थान पर एक सरस्वती मन्दिर का निर्माण करवाया था। जिसे तुड़वाकर कुतबुद्दीन ऐबक ने यह मस्जिद बनवायी।

इल्तुतमिश ने इस मस्जिद के प्रांगण एवं अन्य भागों को विस्तृत करवाया। इस मस्जिद में तीन स्तम्भों का प्रयोग किया गया है। जिनके ऊपर छत का निर्माण किया गया है। इसमें पांच मेहराबदार दरवाजे भी बनवाये गये है। मस्जिद के प्रत्येक कोने में चक्राकार एवं बाँसुरी के आकार की मीनारें निर्मित हैं।

4-सुल्तानगढ़ी

पर्सी ब्राउन के अनुसार सुल्तान गढ़ी का शाब्दिक अर्थ है “गुफा का सुल्तान”। यह इल्तुतमिश के ज्येष्ठ पुत्र “नासिरुद्दीन महमूद का मकबरा” का है। इसका निर्माण इल्तुतमिश ने 1231 ई. में दिल्ली के निकट मलकापुर में एक गढ़ की भांति ऊंचे चबूतरे पर करवाया था। इसका बाहरी भाग भूरे ग्रेनाइट पत्थर तथा संगमरमर का बना है।

इस मकबरे के निर्माण के साथ ही इल्तुतमिश ने भारत में मकबरों के निर्माण की प्रथा शुरू की। इसलिए इल्तुतमिश को “मकबरा शैली” का जन्मदाता कहा जाता है।

5-इल्तुतमिश का मकबरा

दिल्ली में स्थित यह एक कक्षीय मकबरा है। इसका निर्माण 1235 ई. किया गया। इस मकबरे का निर्माण लाल पत्थरों से हुआ है। इसके भीतरी भाग को नक्काशी द्वारा सुसज्जित करने का प्रयास किया गया है। इसकी दीवारों पर कुरान की आयतें अंकित हैं।

मकबरे में बने गुम्बदों में घुमावदार पत्थरों के टुकड़ों का प्रयोग किया गया है। गुम्बद के चौकोर कोनों में गोलाई लाने के लिए जिस शैली का प्रयोग किया गया है। उसे “स्क्रीच शैली” के नाम जाना जाता है।

अमीर खुसरो की कृतियाँ

6-हौज-ए-शम्सी तथा शम्सी ईदगाह

यह दोनों इमारतें बदायूं में स्थित हैं। इनका निर्माण इल्तुतमिश ने करवाया था।

7-बदायूं की जामा मस्जिद

बदायूं की जामा मस्जिद का निर्माण इल्तुतमिश ने 1223 ई. में करवाया था। कालान्तर में मुहम्मद तुगलक तथा अकबर ने उसकी मरम्मत करवायी।

8-अतारिकिन या अतरकीन का दरबारा

जोधपुर के नागौर नामक स्थान पर इल्तुतमिश ने 1230 ई. में इस दरवाजे का निर्माण करवाया था। मुहम्मद तुगलक ने इसका जीर्णोद्धार किया। मुगल सम्राट अकबर ने इसी दरबाजे से प्रेरित होकर ‘बुलन्द दरवाजे’ का निर्माण करवाया था।

9-बलबन का मकबरा

यह मकबरा दिल्ली में स्थित है। इसे बलबन ने बनवाया था। यह मकबरा शुद्ध इस्लामी शैली में निर्मित है। शुद्ध इस्लामी शैली द्वारा निर्मित यह भारत का प्रथम मकबरा है।

खिलजी वंश कालीन स्थापत्य कला

खिलजी वंश के शासनकाल में स्थापत्य कला के क्षेत्र में एक नवीन अध्याय का आरम्भ हुआ। इस काल में भवनों की सुन्दरता एवं सुडौलता पर विशेष बल दिया गया। मस्जिदों और मकबरों में सुन्दर गुम्बदों का निर्माण किया गया।

अलाउद्दीन खिलजी एक महान निर्माता था। उसने अनेक निर्माण कार्य शुद्ध इस्लामी शैली के अन्तर्गत करवाये। उसने दिल्ली के पास “सीरी महल” का निर्माण किया जिसे जियाउद्दीन बरनी ने “शहर-ए-नौ” कहा।

सीरी महल का निर्माण मंगोल आक्रमण से राजधानी को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से किया गया था। खिलजी काल में निम्नलिखित भवनों का निर्माण हुआ।

अलाउद्दीन खिलजी की बाजार व्यवस्था

10-अलाई दरवाजा

इसका निर्माण 1311 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने करवाया था। यह दिल्ली में कुतुबमीनार के निकट स्थित है। अलाई दरवाजा इस्लामी स्थापत्य कला का रत्न कहा जाता है। इस दरवाजे के निर्माण में पहली बार विशुद्ध वैज्ञानिक विधि का प्रयोग किया गया।

इसके निर्माण में लाल पत्थरों व संगमरमर का प्रयोग किया गया है। यह एक वर्गाकार कक्ष के ऊपर विशाल गुम्बद है। इसमें गुम्बद को आधार प्रदान करने के लिए भित्ती मेहराबों का प्रयोग किया गया है।

पर्सी ब्राउन ने इसके विषय में लिखा है कि “अलाई दरवाजा इस्लामी स्थापत्य कला के विकास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। मार्शल ने इस दरवाजे के विषय में कहा कि “अलाई दरवाजा इस्लामी स्थापत्य कला के खजाने का सबसे बड़ा हीरा है।”

11-जमातखाना मस्जिद

यह दिल्ली में निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के निकट स्थित है। इसका निर्माण अलाउद्दीन खिलजी ने करवाया था। इसके निर्माण में लाल पत्थरों का प्रयोग हुआ है। पूर्ण रूप से इस्लामी परम्परा में निर्मित यह भारत की पहली मस्जिद है।

12-हजार सितून

इसे हजार स्तम्भों वाला महल भी कहते हैं। यह दिल्ली में सीरी नामक नगर के पास स्थित है। इसका निर्माण अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ई. में करवाया था।

13-हौज-ए-अलाई

यह हौज-ए-खास के नाम से भी प्रसिद्ध है। इसका निर्माण अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली के निकट करवाया था।

14-ऊखा मस्जिद

राजस्थान में स्थित इस मस्जिद का निर्माण मुबारक शाह खिलजी ने करवाया था।

तुगलक वंश कालीन स्थापत्य कला

तुगलक कालीन स्थापत्य निर्माण में राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक समस्याओं की झलक मिलती है। फिर भी सल्तनत काल में सर्वाधिक भवन निर्माण कार्य तुगलक काल में ही हुए।

सल्तनत काल के न्यायालय

तुगलक वंशी शासकों ने अपनी इमारतों में खिलजी कालीन इमारतों की भव्यता और सुन्दरता के स्थान पर सादगी और विशालता पर अधिक जोर दिया।

तुगलक कालीन स्थापत्य की प्रमुख विशेषता ढलवा दीवारें थी। दूसरी विशेषता मेहराब, सरदल एवं धरन के सिद्धान्तों का समन्वय था।

तुगलक कालीन भवनों में अलंकरण बहुत कम दिखाई पड़ता है। तुगलक शासकों में फिरोज तुगलक ने भवन निर्माण में विशेष रुचि ली। इसके लिए उसने एक पृथक विभाग “दीवान-ए-इमारत” की स्थापना की थी। इस काल की प्रमुख इमारतें निम्नलिखित हैं।

15-तुगलकाबाद का किला

तुगलक वंश की स्थापना के बाद गयासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली के समीप पहाड़ियों पर एक तृतीय नगर की स्थापना की जिसका नाम तुगलकाबाद रखा। रोमन शैली में निर्मित इस नगर की सुरक्षा के लिए उसने एक दुर्ग का निर्माण विशाल पत्थर खण्डों से करवाया। इस दुर्ग को “छप्पन कोट” के नाम से भी जाना जाता है। दुर्ग की दीवारें मिश्र के पिरामिड की भांति अन्दर की ओर झुकी हुई हैं।

16-गयासुद्दीन तुगलक का मकबरा

कृत्रिम झील के अन्दर निर्मित इस मकबरे की दीवारें चौड़ी एवं भीतर की ओर झुकी हुई हैं। यह पंचभुजीय मकबरा है। इसके निर्माण में लाल पत्थर तथा संगमरमर का प्रयोग किया गया है। इसकी ऊंचाई 81 फीट है।

मकबरे के ऊपर संगमरमर का सुन्दर गुम्बद बना है। इसका शिखर ध्यान देने योग्य है, जो हिन्दू वास्तुकला के प्रतीक ‘कलश या आमला’ के अनुकरण पर निर्मित है।

इस मकबरे की मुख्य विशेषता इसकी ढलवा दीवारें हैं। मार्शल ने इस मकबरे के विषय में लिखा है कि “इस मकबरे की दृढ़ता और सादगी के आधार पर हम कह सकते हैं कि उस महान योद्धा की समाधि के लिए इससे उपयुक्त स्थान कोई और नहीं हो सकता था।”

17-आदिलाबाद का किला

मुहम्मद तुगलक ने तुगलकाबाद के समीप आदिलाबाद नामक किले का निर्माण करवाया था।

18-जहाँपनाह

जहाँपनाह नामक नवीन नगर की स्थापना मुहम्मद तुगलक ने रायपिथौरा तथा सीरी के मध्य करवायी थी। नगर के चारों ओर 12 गज मोटी दीवार सुरक्षा के दृष्टिकोण से बनवायी गयी थी।

सल्तनत काल के प्रश्न उत्तर

19-सतपुतला

यह जहाँपनाह में स्थित दो मंजिला पुल था। इसका निर्माण मुहम्मद तुगलक ने करवाया था। इस पुल में सात मेहराब थे।

20-बारह खम्भा

धर्मनिरपेक्ष इमारतों में सामन्तों के निवास के लिए बनी इस इमारत का विशिष्ट स्थान है। इस इमारत की महत्वपूर्ण विशेषता सुरक्षा तथा गुप्त निवास है।

21-कोटला फिरोजशाह

सुल्तान फिरोज तुगलक ने पांचमी दिल्ली बसायी तथा उसमें एक महल का निर्माण करवाया। जिसका नाम कोटला फिरोजशाह रखा।

22-कुश्क-ए-शिकार

फिरोज तुगलक द्वारा “शाहनुमा” कहकर पुकारा जाने वाला यह भवन मुख्यतः शिकार के लिए प्रयोग किया जाता था। यह दिल्ली से कुछ दूरी पर स्थित है।

23-खान-ए-जहाँ तेलंगानी का मकबरा

यह मकबरा शेख निजामुद्दीन औलिया के दरगाह के दक्षिण में स्थित है। इसका निर्माण खाने जूनाशाह ने करवाया था। यह भारत का प्रथम मुस्लिम स्मारक है जो “अष्टभुजीय” है। इस मकबरे में लाल पत्थर एवं सफेद संगमरमर का सुन्दर प्रयोग किया गया है। इस मकबरे की तुलना जेरुसलम में निर्मित उमर की मस्जिद से की जाती है।

24-खिड़की मस्जिद

इसका निर्माण 1375 ई. में जहाँपनाह नगर में हुआ था। तहखाने के ऊपर बनी यह वर्गाकार मस्जिद दुर्ग के समान दिखाई देती है। इसकी तुलना इल्तुतमिश की सुल्तानगढ़ी से की जाती है।

25-काली मस्जिद

इसका निर्माण फिरोज तुगलक के शासनकाल में हुआ। इसमें अर्द्धवृत्तीय मेहराबों का सुन्दर प्रयोग हुआ है। इस मस्जिद का निर्माण जूनाशाह ने करवाया था।

26-बेगमपुरी मस्जिद

जहांपनाह नगर में स्थित यह मस्जिद अपने गुम्बदों एवं मेहराबों के कारण काफी प्रभावशाली दिखती है। इसके निर्माण में संगमरमर का प्रयोग किया गया है।

27-कबीरुद्दीन औलिया का मकबरा

यह मकबरा लाल गुम्बद के नाम से प्रसिद्ध है। इसका निर्माण कार्य गयासुद्दीन द्वितीय के समय में प्रारम्भ हुआ तथा नासिरुद्दीन मुहम्मद के समय में पूर्ण हुआ। इस मस्जिद में लाल पत्थर तथा सफेद संगमरमर का प्रयोग किया गया है।

सैय्यद तथा लोदी वंश कालीन स्थापत्य कला

इस समय तक सल्तनत कालीन स्थापत्य कला का पतन हो चुका था। सैय्यद तथा लोदी वंश के शासक सुन्दर भवनों का निर्माण नहीं करा पाये। फिर भी इन वंश के शासकों ने कई मकबरों और मस्जिदों का निर्माण करवाया। मुख्य रूप से इनका काल मकबरों के लिए प्रसिद्ध है। इसीलिए पर्सी ब्राउन ने इस काल को मकबरों का काल कहा।

सल्तनत काल

लोदी काल के शासकों की स्थापत्य विशेषता स्थानीय शिल्प तथा तुर्की शिल्प का मिश्रण था। लोदियों के मकबरों को दो भागों में बांटा जा सकता है।

1-सुल्तानों द्वारा निर्मित अष्टभुजी मकबरे,

2-अमीरों द्वारा निर्मित चतुर्भुजी मकबरे।

इस काल में बनी प्रमुख इमारतें निम्नलिखित हैं।

28-मुबारक शाह सैय्यद का मकबरा

यह मकबरा मुबारकपुर नामक गाँव में स्थित है। इस मकबरे का निर्माण अष्टभुजीय शैली में हुआ है।

29-बहलोल लोदी का मकबरा

यह मकबरा 1418 ई. में सिकन्दर लोदी द्वारा बनवाया गया। इसके निर्माण में लाल पत्थर का प्रयोग हुआ है।

30-सिकन्दर लोदी का मकबरा

इस मकबरे का निर्माण इब्राहिम लोदी द्वारा 1517 ई. में करवाया गया था। सिकन्दर लोदी का मकबरा भारत में निर्मित पहली इमारत है जिसमें दोहरी गुम्बद का प्रयोग किया गया है।

31-मोठ की मस्जिद

इस मस्जिद का निर्माण सिकन्दर लोदी के वजीर द्वारा करवाया गया था। इस मस्जिद के लिए सैय्यद अहमद ने कहा है कि “यह लोदी स्थापत्य आकार में सुन्दर उपहार कृति है।” मार्शल के अनुसार “लोदियों की स्थापत्य कला में जो भी सबसे सुन्दर है उसका संक्षिप्त रूप मोठ की मस्जिद है।”

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