संवृत और विवृत स्वर – Samvrit और Vivrat Swar

Samvrit और Vivrat Swar

संवृत और विवृत स्वर

संवृत स्वर: संवृत स्वर या ऊँचा स्वर ऐसी स्वर ध्वनि होती है जिसमें, बिना व्यंजन की ध्वनि बनाए, जिह्वा को मुँह में जितना सम्भव हो सके उतना ऊँचा और तालू से समीप रखा जाता है। उदाहरण के लिए ‘ई’ ऐसा एक स्वर है। अगर जिह्वा को किसी संवृत स्वर से अधिक ऊपर उठाया जाए तो वायु-प्रवाह बंद हो जाता है और ध्वनि स्वर की नहीं बल्कि व्यंजन (कॉन्सोनेन्ट) की बन जाती है।

विवृत स्वर: विवृत स्वर या निम्न स्वर ऐसी स्वर ध्वनि होती है जिसमें जिह्वा को मुँह में जितना सम्भव हो सके उतना नीचे और तालू से दूर रखा जाता है। उदाहरण के लिए “आ” ऐसा एक स्वर है।

संवृत और विवृत स्वर के भेद या प्रकार

1. संवृत स्वर (samvrit swar)

संवृत स्वर के उच्चारण में मुख द्वार सकरा हो जाता है। ये संख्या में चार होते है – इ , ई , उ , ऊ 

2. अर्द्ध संवृत स्वर (ardhd samvrat swar)

अर्द्ध संवृत स्वर के उच्चारण में मुख द्वार कम सकरा होता है। ये संख्या में 2 होते है – ए , ओ 

3. विवृत स्वर (vivrat swar)

विवृत स्वर के उच्चारण में मुख द्वार पूरा खुला होता है। ये संख्या में 2 है – आ , आँ 

4. अर्द्ध विवृत स्वर (ardhd vivrat swar)

अर्द्ध विवृत स्वर के उच्चारण में मुख द्वार अधखुला होता है। ये संख्या में 4 होते है – अ , ऐ , औ , ऑ

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