सती प्रथा का अन्त

सती प्रथा का अन्त लार्ड विलियम बैंटिक ने 4 दिसम्बर 1829 ई. में नियम-17 के अंतर्गत किया।

भारतीय समाज में सती प्रथा का उदभव प्राचीन काल से माना जाता है। किन्तु इसका भीषण रूप मध्यकाल और आधुनिक काल में देखने को मिलता।

भारत में सती प्रथा का प्रथम अभिलेखीय साक्ष्य 510 ई. के गुप्त शासक भानुगुप्त के “ऐरण अभिलेख” से प्राप्त होता है। जिसमें ‘मित्र गोपराज’ की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी के सती होने का उल्लेख किया गया है।

 

इस प्रथा में पत्नी को पति की मृत्यु के बाद उसके शव के साथ जिन्दा जला दिया जाता था। सती का शाब्दिक अर्थ “एक पवित्र साध्वी स्त्री” होता है। यह शब्द उस पत्नी के लिए प्रयोग किया जाता था जो अपने पति के साथ शाश्वत और निर्विघ्न रूप से जन्म-जन्मांतर तक रहना चाहती है। और उसके प्रमाण के रूप में उसकी चिता में अपने आप को जला लेती थी।

सती प्रथा को रोकने के प्रयास

भारत में इस क्रूर प्रथा को रोकने के लिए अकबर और पेशवाओं द्वारा प्रयास किया गया। इसके बाद पुर्तगाली गवर्नर “अल्फांसो डी अल्बुकर्क” ने अपने कार्यकाल में इस पर रोक लगाई।

ये लेख भी पढ़ें- शिशु वध निषेध अधिनियम

फ्रांसीसियों ने चन्द्रनगर के इस कुप्रथा को रोकने का प्रयास किया। आधुनिक काल में कम्पनी प्रायः भारतीय धर्म प्रथाओं के प्रति तटस्थता की नीति अपनाती थी फिर भी कार्नवालिस, मिन्टो और लार्ड हेस्टिंग्स जैसे गवर्नर जनरलों ने इस प्रथा को सीमित करने का प्रयास किया।

इन प्रयासों के अंतर्गत सती बनाने के लिए विवश करने, विधवाओं को मादक पदार्थ देने, गर्ववती स्त्रियों और 16 वर्ष की आयु से कम में सती बनने से रोकना आदि शामिल थे। इसमें सबसे महत्वपूर्ण यह था कि इस क्रुरबलि के समय पुलिस अधिकारियों का उपस्थित होना आवश्यक बना दिया गया ताकि लोग स्त्री को सती होने के लिए विवश न कर सकें। किन्तु ये प्रयास अपर्याप्त और असफल रहे।

सती प्रथा निषेध अधिनियम

19वीं सदी के प्रबुद्ध भारतीय समाज सुधारकों ने इस प्रथा पर कठोर प्रहार करना प्रारम्भ किया। इनमें महान समाज सुधारक राजा राममोहन राय का नाम प्रमुख है।

राजा राममोहन राय  ने अपनी पत्रिका “संवाद कौमुदी” के माध्यम से सती प्रथा का घोर विरोध किया और सरकार पर दबाव बनाया कि इस कुरीति को समाप्त किया जाये।

8 नवम्बर 1829 ई. में लार्ड विलियम बैंटिक ने इसे समाप्त करने के लिए अपना प्रस्ताव परिषद में रखा। 4 दिसम्बर 1829 ई. में परिषद ने प्रस्ताव पारित कर नियम-17 के अन्तर्गत सती प्रथा को प्रतिबन्धित कर दिया।

विधवा पुनर्विवाह अधिनियम

नियम-17 के अनुसार विधवाओं को जीवित जलाना बन्द किया जाये और न्यायालयों को आज्ञा दी गई कि वे ऐसे मामलों में सदोष मानव हत्या के अनुसार मुकद्दमा चलाये और दोषियों को दण्ड दें। पहले ये नियम केवल बंगाल के लिए लागू किया गया किन्तु 1830 ई. में बम्बई तथा मद्रास में भी लागू कर दिया गया। जिसके कारण यह प्रथा धीरे धीरे समाप्त हो गयी।

You May Also Like

Kavya Me Ras

काव्य में रस – परिभाषा, अर्थ, अवधारणा, महत्व, नवरस, रस सिद्धांत

काव्य सौन्दर्य – Kavya Saundarya ke tatva

काव्य सौन्दर्य – Kavya Saundarya ke tatva

भारत के वायसराय-Viceroy of India

भारत के वायसराय-Viceroy of India