Shant Ras (शांत रस) – Hindi Grammar

Shant Ras (शांत रस)

इसका स्थायी भाव निर्वेद (उदासीनता) होता है इस रस में तत्व ज्ञान कि प्राप्ति अथवा संसार से वैराग्य होने पर, परमात्मा के वास्तविक रूप का ज्ञान होने पर मन को जो शान्ति मिलती है वहाँ शान्त रस कि उत्पत्ति होती है जहाँ न दुःख होता है, न द्वेष होता है मन सांसारिक कार्यों से मुक्त हो जाता है मनुष्य वैराग्य प्राप्त कर लेता है शान्त रस कहा जाता है।

Shant Ras

उदाहरण:

Shant Ras ke Udaharan

1.
जब मै था तब हरि नाहिं अब हरि है मै नाहिं
सब अँधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहिं
2.
देखी मैंने आज जरा
हो जावेगी क्या ऐसी मेरी ही यशोधरा
हाय! मिलेगा मिट्टी में वह वर्ण सुवर्ण खरा
सुख जावेगा मेरा उपवन जो है आज हरा।
3.
लम्बा मारग दूरि घर विकट पंथ बहुमार,
कहौ संतो क्युँ पाइए दुर्लभ हरि दीदार।
4.
मन रे तन कागद का पुतला
लागै बूँद विनसि जाय छिन में गरब करै क्यों इतना।
5.
‘तपस्वी! क्यों इतने हो क्लांत,
वेदना का यह कैसा वेग ?
आह! तुम कितने अधिक हताश
बताओ यह कैसा उद्वेग ?
6.
भरा था मन में नव उत्साह सीख लूँ ललित कला का ज्ञान
इधर रह गंधर्वों के देश, पिता की हूँ प्यारी संतान।

रस के प्रकार/भेद

क्रमरस का प्रकारस्थायी भाव
1श्रृंगार रसरति
2हास्य रसहास
3करुण रसशोक
4रौद्र रसक्रोध
5वीर रसउत्साह
6भयानक रसभय
7वीभत्स रसजुगुप्सा
8अद्भुत रसविस्मय
9शांत रसनिर्वेद
10वात्सल्य रसवत्सलता
11भक्ति रसअनुराग

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