सूर्य और उसकी संरचना-sun and its structure

सूर्य सौरमंडल का जनक तथा ऊर्जा का स्रोत है। यह सौरमंडल के केन्द्र में स्थित है। सूर्य एक मध्यम आयु का तारा है। इसका व्यास 13.84 लाख किमी. है।

इसके केन्द्र का तापमान 15 मिलियन डिग्री सेंटीग्रेट है। सूर्य केन्द्र मे 71% हाइड्रोजन , 26.5% हीलियम तथा 2.5% अन्य तत्व पाये जाते हैं।

सूर्य की ऊर्जा का मुख्य स्रोत नाभिकीय संलयन है। सूर्य प्रतिसेकेंड 40 लाख टन ऊर्जा सूर्य ताप के रूप में प्रदान करता हैं। सूर्य की कुल आयु लगभग 10 अरब वर्ष है। तथा इसकी वर्तमान आयु 4.7 अरब वर्ष है।

 

सूर्य से प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचने मे 8 मिनट 16 सेकेंड लगता है। पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी 16.96 करोड़ किमी. है। सूर्य का आयतन पृथ्वी से 13 लाख गुना है।

सूर्य की संरचना

सूर्य के केन्द्र से धरातल तक तीन स्तरें प्राप्त होती हैं।

1-केन्द्र(core)

सूर्य के केन्द्र का व्यास 3.48 लाख किमी. है। केन्द्र का तापमान 15 मिलियन डिग्री सेंटीग्रेट होता है। जिससे यहाँ पर सभी पदार्थ प्लाज्मा अवस्था में पाए जाते हैं। प्लाज्मा पदार्थ की चौथी अवस्था होती है। यहीं पर नाभिकीय संलयन की अभिक्रिया होती है।जिससे अपार ऊर्जा मुक्त होती है।

2-विकिरण मेखला(Radiative Zone)

इस मेखला की चौड़ाई 3.8 लाख किमी. होती हैं। जो केन्द्र को चारों ओर से ढके हुए है।

3-संवहनीय मेखला(Convective Zone)

विकिरण मेखला को घेरे हुए 1.39 लाख किमी. मोटाई वाली संवहनीय मेखला तीसरे स्तर का निर्माण करती है। यह परत कोशिकाओं का निर्माण करती है। नीचे बड़ी तथा ऊपर छोटी कोशिकायें पायी जाती हैं।

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सूर्य के धरातल से ऊपर का मण्डल

1-प्रकाश मंडल(Photosphere)

सूर्य के धरातल को प्रकाश मण्डल कहते है। इसका तापमान 6000℃ होता है।  इस मंडल में प्रकाश के कुछ रंगो का अवशोषण हो जाता है। जहाँ जहाँ पर प्रकाश के रंगों का अवशोषण होता है। वहाँ काली रेखायें दिखाई पड़ने लगती हैं। इन रेखाओं को फ्रानहॉफर रेखायें कहते हैं। सौर कलंक इसी मंडल मे पाये जाते हैं।

2-वर्ण मण्डल(Chromosphere)

यह प्रकाशमण्डल के ऊपर एक आवरण के रूप मे 2000 से 3000 किमी. मोटाई मे फैला हुआ है। वर्णमंडल का आरम्भ प्रकाशमंडल की उस ऊपरी परत से होता है जहाँ ऋणात्मक हाइड्रोजन कम हो जाते हैं। इसे सूर्य का वायुमंडल भी कहते है।

वर्ण मण्डल में प्रकाशमण्डल की अपेक्षा गैसों का घनत्व कम किन्तु ताप अधिक होता है। वर्णमंडल में उठते गैसों के प्रवाह को स्पिक्युल कहा जाता हैं। कभी कभी इस मंडल में तीव्र गहनता का प्रकाश उत्पन्न होता है, जिसे सौर ज्वाला कहा जाता है। इस ज्वाला से एक्स तथा गामा किरणें निकलती हैं।

3- CORONA

यह सूर्य के वायुमंडल का सबसे बाहरी आवरण है, जो वर्णमंडल के ऊपर पाया जाता है। जैसे जैसे सूर्य के केन्द्र से दूरी बढ़ती जाती है। यह आवरण क्षीण होता जाता है। अतः कोरोना का बाहरी भाग क्षीण होकर आयन तथा इलेक्ट्रान की पवनों मे परिवर्तित हो जाता है। इन पवनों को सौर पवनें कहा जाता हैं। इस मंडल से लाल रंग की लपटें उठती हैं जो काफी ऊँचाई  तक जाती हैं। सूर्य के ध्रुवीय भागों के ऊपर इस मंडल मे एक छिद्र होता है, जिसे केरोना होल कहते हैं। केरोना से रेडियो तरंगें निकलती हैं।

सूर्य से सम्बंधित अन्य टर्म

ब्रह्माण्ड वर्ष

सूर्य आकाशगंगा मंदाकिनी की मध्यवर्ती घूर्णन शील भुजा मे अवस्थित है।  तथा मंदाकिनी की परिक्रमा करता है। एक परिक्रमा 25 करोड़ वर्ष मे पूरी करता है इस अवधि को cosmic year कहते हैं।

SOLAR ROTATION

सूर्य अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व दिशा मे घूर्णन करता है,जिसे सौर परिभ्रमण कहते हैं। इसकी परिभ्रमण अवधि में अक्षांशो के साथ भिन्नता मिलती हैं। सूर्य का भूमध्य रेखीय क्षेत्र 25.8 दिन में एक घूर्णन कर लेता है। सूर्य निम्न अक्षांशो पर सर्वाधिक तीव्र गति से घूर्णन करता है। सूर्य के प्रकाशमंडल , संवहनीय मेखला तथा विकिरण मेखला की घूर्णन गति में भी अन्तर होता है। सूर्य अपने अक्ष पर 7 डिग्री का कोण बनाता है।

तारे का जीवन चक्र

SUN SPOTS

सौर कलंक प्रकाश मंडल मे पाये जाते हैं। जिस क्षेत्र में ये बनते हैं उस क्षेत्र का तापमान आसपास के तापमान से 1500℃ कम होता है। सौर कलंक सूर्य के 5° से 40° उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांशों के मध्य उत्पन्न होते हैं। इनके आन्तरिक काले भाग को Umbra तथा चारो तरफ स्थित अपेक्षाकृत कम काले भाग को Penumbra कहा जाता है।

एक  सौर कलंक का जीवन काल कुछ घंटों से एक माह तक होता है। सौर कलंक लगभग 11.1 वर्ष के अन्तराल पर प्रकट होते हैं। इसे सौर चक्र कहा जाता है।

सौर कलंक के समय चुम्बकीय क्षेत्र 100 से 4000 गॉस के बीच होता है। सौर कलंक पृथ्वी की जलवायु तथा संचार माध्यमों को प्रभावित करते हैं विषुवत रेखा के साथ अलनिनों की प्रक्रिया तथा उत्तरी अमेरिकी जेट स्ट्रीम वायु को प्रभावित करते हैं।

SOLAR WINDS

सूर्य से विसर्जित होने वाले विद्युत आवेशित कण जैसे आयन तथा इलेक्ट्रॉन के कारण ही सौर पवनें प्रवाहित होती हैं। इन पवनों के कारण सौर कोरोना का विस्तार हो जाता हैं। पृथ्वी की कक्षा के पास सौर पवनों की गति 400 km/sec होती हैं। तथा एक घनत्व सामान्यतः 2 से 10 आयन प्रति घन सेमी. होता हैं। इन पवनों के प्रभाव से पृथ्वी के वायुमंडल की आयनीकृत गैस परत का ह्रास हो जाता है और ध्रुवों पर अरोरा प्रकट होते हैं।

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त

RADIO FADE OUT

सौर पवनों तथा Cosmic rays के प्रभाव से पृथ्वी के आयन मंडल की आयनीकृत गैस की परत ह्रास, रेडियो फेड आउट कहलाता है

AURORA

Cosmic rays, सौर पवनें तथा पृथ्वी के चुम्बकीय प्रभावों के बीच घर्षण के कारण पृथ्वी के चुम्बकीय ध्रुवों के ऊपर एक चमक उत्पन्न होती हैं, जिसे अरोरा कहते हैं। जब यह चमक उत्तरी भू-चुम्बकीय ध्रुव के ऊपर होती हैं तो अरोरा बोरियालिस कहते हैं और जब दक्षिणी भू-चुम्बकीय ध्रुव के ऊपर होती हैं तो अरोरा आस्ट्रालिस कहते हैं।

इस घटना के अध्ययन के लिये 17 फरवरी 2007 को थीमिस नाम का उपग्रह अन्तरिक्ष मे भेजा गया। इस अध्ययन से स्पष्ट हुआ कि चुम्बकीय पुर्नसंयोजन अरोरा के प्रेरक तत्व हैं और यह घटना पृथ्वी से 120000 किमी. दूर घटित होती हैं।

जब दो रेखायें रबड़ की भांति खिंचने के बाद पुनः तीव्र गति से जुड़कर नया रूप ग्रहण कर भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न करती हैं और इसे पृथ्वी पर संप्रेषित करती हैं।

INOSLATION

सौर्यिक ऊर्जा को ही सूर्यातप कहते हैं। सूर्य की ऊर्जा का मुख्य स्रोत उसका केन्द्र है। जहाँ नाभिकीय संलयन द्वारा अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा उत्पादित होती हैं। यह ऊर्जा परिचालन तथा संवहन द्वारा सूर्य की बाहरी सतह तक पहुँचती है। इस सतह से ऊर्जा का विद्युत चुम्बकीय लघु तरंगों द्वारा विकिरण होता है।

ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति

सूर्यातप की सर्वाधिक मात्रा पृथ्वी पर विषुवत रेखा के पास प्राप्त होती हैं।क्योंकि यहाँ पर दिन रात की लंबाई बराबर होती हैं। ध्रुवीय क्षेत्रों पर निम्नतम सूर्यातप प्राप्त होता है जो विषुवत रेखा का लगभग 40% होता है।

सूर्यातप के वितरण को प्रभावित करने वाले कारक

1-वायुमंडल की मोटी परत

2-सूर्य की किरणों का सापेक्ष्य तिरछापन

3-दिन की अवधि

4-पृथ्वी से सूर्य की दूरी

5-सौर कलंक

6-प्रकीर्णन(Scattering)

जब वायुमंडल में अदृश्य कणों(धूल आदि के कण) का व्यास विकिरण तरंग से छोटा होता है। तो सौर्यिक ऊर्जा बिखर कर चतुर्दिक फैल जाती है, जिसे प्रकाश का प्रकीर्णन कहते हैं। आकाश का नीला रंग, सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य का लाल  प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण ही दिखाई देता है।

7-परावर्तन(Reflection)

जब वायुमंडल में अदृश्य कणों का व्यास विकिरण तरंग से बड़ा होता है तो परावर्तन की क्रिया होती है। जिससे सौर्यिक ऊर्जा का कुछ भाग परावर्तित होकर अन्तरिक्ष मे लौट जाता है।

8-Diffuse daylight

प्रकीर्णन और परावर्तन के कारण वायुमंडल से कुछ सौर्यिक ऊर्जा पृथ्वी की सतह पर पहुँच जाती है, इसे diffuse daylight कहते है।

9-absorption

सौर्यिक ऊर्जा का 14%भाग जलवाष्प आदि गैसों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता हैं।

10-Albedo

किसी भी सतह से विकरित की गयी ऊर्जा के परावर्तित भाग को एल्बिडो कहा जाता है। पृथ्वी के बीच का औसत एल्बिडो 24 से 34% पाया जाता है।

पृथ्वी की उत्पत्ति

Heat budget of the Earth

सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा का 35% भाग मौलिक रूप से परावर्तन एवं प्रकीर्णन द्वारा अन्तरिक्ष मे लौट जाता हैं। 14% सौर्यिक ऊर्जा वायुमंडल द्वारा अवशोषित कर ली जाती हैं। इस प्रकार 49%सौर्यिक ऊर्जा पृथ्वी तक नहीं पहुँच पाती है। शेष 51% सौर्यिक ऊर्जा का 17% diffuse daylight और 34% सूर्य से सीधे पृथ्वी को प्राप्त होता है। सूर्य से प्राप्त 51%ऊष्मा का 23% पार्थिव विकिरण द्वारा , 9%विक्षोभ और संवहन के रूप में, तथा 19%ऊष्मा वाष्पीकरण के रूप मे, रूपान्तरित हो जाता है। जिससे पृथ्वी का ऊष्मा संतुलन बना रहता है।

Heat budget of Atmosphere

वायुमंडल कुल 48% ऊष्मा प्राप्त करता है। जिसमें 14% सौर्यिक विकिरण द्वारा तथा 34% पृथ्वी के परावर्तित विकिरण से प्राप्त करता है।

Some Important

1-आकाशगंगा मंदाकिनी की परिक्रमा करते हुए सूर्य की औसत चाल 220km/sec होती है।

2-सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी 14.96 करोड़ किमी. है।

3-सूर्य का व्यास लगभग 13.84 लाख किमी. है।

4-सूर्य से प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचने मे 8 मिनट 16 सेकेंड लगते हैं।

5-मंदाकिनी के केन्द्र से सूर्य 32000 प्रकाश वर्ष दूर है।

6-Plasma state of matter

प्लाज्मा शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम  इरविन लैंगमूर(1923) ने किया था। “अधिक तापमान पर कोई भी पदार्थ  अपनी तीन सामान्य अवस्थाओं ठोस ,द्रव, गैस मे न रहकर प्लाज्मा अवस्था में रहता है।जिसे पदार्थ की चौथी अवस्था कहते हैं।” तारों (star)मे पाये जानें वाले पदार्थ इसी अवस्था मे पाये जाते है।  ध्रुवीय प्रकाश तथा बादलों से उत्पन्न विजली आदि मे प्लाज्मा अवस्था पायी जाती है। नियॉन एवं फ्लोरोसेंट ट्यूब द्वारा उत्पन्न प्रकाश तथा बोल्डिंग आर्क कृतिम रूप से उत्पन्न प्लाज्मा के उदाहरण है।

7-सूर्य के प्रकाश से निकलने वाली  पराबैंगनी तथा अवरक्त किरणें अदृश्य होती हैं।

8- हब्बल नियम डॉप्लर प्रभाव पर आधारित है।

9-सूर्य का तापमान प्राप्त करने के लिए स्टीफन नियम का उपयोग किया जाता है।

10-सर्वप्रथम कैपलर ने बताया कि पृथ्वी व अन्य ग्रह सूर्य के चारों तरफ घूमते हैं।

11-कौन सा चक्र सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा मे बदलता है।-कार्बन चक्र

12-विटामिन डी का स्रोत-सूर्य की किरण

13-हीलिओ थिरैपी-सूर्य के प्रकाश द्वारा रोगों की चिकित्सा (धूप स्नान)

14-सूर्यताप स्थलमंडल को जलाशयों की अपेक्षा शीघ्रता से गर्म करता है क्योंकि जल को गर्म करने के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है

15-यदि सूर्य का ताप दो गुना हो जाये तो पृथ्वी पर प्राप्त होने वाली ऊर्जा 16 गुना बढ़ जायेगी।

16-कितने ताप पर प्रकाश का रंग नारंगी होता है-4000℃

17-अंतरिक्ष मे उठने वाले तूफानों को किस उपकरण से मापा जाता है-कारोनोग्राफ से

18-अंतरिक्ष में उठने वाले तूफानों को कोरोनल मॉस इंजेक्शन कहा जाता हैं।

19-सूर्य की परिक्रमा के दौरान पृथ्वी सूर्य से निम्नतम दूरी पर किस जनवरी माह में होती है।

20-सूर्य के रासायनिक संघटन मे गैसों का % क्या होता हैं?-H(हाइड्रोजन) 71%, He(हीलियम)26.5%, अन्य तत्व 2.5%

21-सूर्य की ऊर्जा का स्रोत-नाभिकीय संलयन

22-डायमण्ड रिंग से क्या तात्पर्य है- पूर्ण सूर्य ग्रहण के पहले या बाद में चन्द्रमा के चतुर्दिक दिखने वाला प्रकाश

23-सूर्य की परिक्रमा करते हुए पृथ्वी सूर्य से अधिकतम दूरी पर कब होती है-4 जुलाई को

24-सूर्य की बाह्म सतह से ऊर्जा किस रूप मे विकरित होती हैं-फोटॉन के वण्डलो के रूप में

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