अतिशयोक्ति अलंकार
अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा-Definition Of Atishyokti Alankar
काव्य में जहां किसी योग्य व्यक्ति की योग्यता अर्थात सुंदरता, वीरता और उदारता को बढ़ा चढ़ाकर लोक सीमाओं का उल्लंघन करते हुए वर्णन प्रस्तुत किया जाए तो वहां पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है।Or
जहां किसी वस्तु पदार्थ अथवा कथन (उपमेय)का वर्णन लोक सीमा से बढ़कर प्रस्तुत किया जाए, वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
अतिशयोक्ति अलंकार के उदाहरण-
भूप सहस दस एकहि बारा।लगे उठावन टरत न टारा। ।
धनुर्भंग के समय दस हज़ार राजा एक साथ ही उस धनुष (शिव-धनुष) को उठाने लगे, पर वह तनिक भी अपनी जगह से नहीं हिला। यहां लोक सीमा से अधिक बढ़ा चढ़ा कर वर्णन किया गया है, अतएव अतिशयोक्ति अलंकार होगा।
अतिशयोक्ति अलंकार के अन्य उदाहरण-
1.बालों को खोल कर मत चला करो दिन में
रास्ता भूल जाएगा सूरज !
2.
आगे नदियां पड़ी अपार,
घोड़ा कैसे उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार,
तब तक चेतक था उस पार।
3.
हनुमान की पूंछ में, लगन न पाई आग।
लंका सिगरी जल गई गए, गए निशाचर भाग।
4.
वह शर इधर गांडीव गुड़ से
भिन्न जैसे ही हुआ।
धड़ से जयद्रथ का इधर सिर
छिन वैसे ही हुआ।
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