Bhayanak Ras (भयानक रस)
इसका स्थायी भाव भय होता है जब किसी भयानक या अनिष्टकारी व्यक्ति या वस्तु को देखने या उससे सम्बंधित वर्णन करने या किसी अनिष्टकारी घटना का स्मरण करने से मन में जो व्याकुलता उत्पन्न होती है उसे भय कहते हैं उस भय के उत्पन्न होने से जिस रस कि उत्पत्ति होती है उसे भयानक रस कहते हैं। इसके अंतर्गत कम्पन, पसीना छूटना, मुँह सूखना, चिन्ता आदि के भाव उत्पन्न होते हैं।
उदाहरण:
Bhayanak Ras ke Udaharan
1.अखिल यौवन के रंग उभार, हड्डियों के हिलाते कंकाल
कचो के चिकने काले, व्याल, केंचुली, काँस, सिबार
2.
एक ओर अजगर हिं लखि, एक ओर मृगराय
विकल बटोही बीच ही, पद्यो मूर्च्छा खाय
3.
उधर गरजती सिंधु लहरियाँ
कुटिल काल के जालों सी।
चली आ रहीं फेन उगलती
फन फैलाये व्यालों सी।
4.
आज बचपन का कोमल गात
जरा का पीला पात !
चार दिन सुखद चाँदनी रात
और फिर अन्धकार , अज्ञात !
भयानक रस के बारे में और अधिक जाने
वीरगाथात्मक रसों ग्रन्थों में रण, युद्ध,विजय,प्रयाण, आदि अवसरों पर भयानक रस का सुन्दर वर्णन मिलता है।रीति कालीन वीर काव्यों में भय का संचार करने वाले अनेक प्रसंग हैं जिसे भूषण की रचनाएँ इस सम्बन्ध में विशेष महत्त्वपूर्ण हैं।
वर्तमान काल में श्यामनारायण पांडेय,मैथिलीशरण गुप्त, ‘दिनकर’ इत्यादि की विविध रचनाओं में भी भयानक रस का उल्लेख्य किया गया है।
रामचरितमानस’ में लंकाकाण्ड में भयानक के प्रभावशील चित्रण है। हनुमान द्वारा लंकादहन का प्रसंग भयानक रस की प्रतीति के लिए पठनीय है।
भारतेन्दु द्वारा प्रणीत ‘सत्य हरिश्चन्द्र’ नाटक में श्मशान वर्णन के प्रसंग में भयानक रस का सजीव प्रतिफलन हुआ है। इस सम्बन्ध में -"रुरुआ चहुँ दिसि ररत डरत सुनिकै नर-नारी" से प्रारम्भ होने वाला पद्य-खण्ड द्रष्टव्य है।
छायावादी काव्य की प्रकृति के यह रस प्रतिकूल है, परन्तु नवीन काव्य में वैचित्र्य के साथ यत्र-तत्र इसकी भी झलक मिलती है।
रस के प्रकार/भेद
क्रम | रस का प्रकार | स्थायी भाव |
---|---|---|
1 | श्रृंगार रस | रति |
2 | हास्य रस | हास |
3 | करुण रस | शोक |
4 | रौद्र रस | क्रोध |
5 | वीर रस | उत्साह |
6 | भयानक रस | भय |
7 | वीभत्स रस | जुगुप्सा |
8 | अद्भुत रस | विस्मय |
9 | शांत रस | निर्वेद |
10 | वात्सल्य रस | वत्सलता |
11 | भक्ति रस | अनुराग |
Sanskrit Mein Ginti
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