उत्प्रेक्षा अलंकार
उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा-Definition Of Utpreksha Alankar
जहां पर उपमेय में उपमान की संभावना अथवा कल्पना कर ली गई हो, वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसके बोधक शब्द है- मनो,मानो, मनु, मनहु, जानो, जनु, जन्हु, ज्यों आदि।Or
जहां पर काव्य में उपमेय में उपमान की कल्पना की जाए वहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण-
मानौ माई घन घन अंतर दामिनि।घन दामिनि दामिनी घन अंतर,
सोभित हरि-ब्रज भामिनि।।
स्पष्टीकरण -
उपयुक्त काव्य पंक्तियों में रासलीला का सुंदर दृश्य दिखाया गया है। रास के समय पर गोपी को लगता था कि कृष्ण उसके पास नृत्य कर रहे हैं। गोरी गोपियां और श्याम वर्ण कृष्ण मंडला कर नाचते हुए ऐसे लगते हैं मानव बादल और बिजली, बिजली और बादल साथ-साथ शोभा यान हो रहे हो। यहां गोपीकाओं में बिजली की, और कृष्ण में बादल की संभावना की गई है। अतः यहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार होगा।
सोहत ओढ़े पीत पट,
स्याम सलोने गात।
मनहुं नीलमनि सैल पर,
आतप परयौ प्रभात । ।
स्पष्टीकरण -
उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में श्री कृष्ण के सुंदर श्याम शरीर में नीलमणि पर्वत की ओर उनके शरीर पर शोभायमान पीतांबर में प्रभात की धूप की मनोरम संभावना अथवा कल्पना की गई है। अतः यहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार होगा।
उत्प्रेक्षा अलंकार के अन्य महत्वपूर्ण उदाहरण-
चमाचम चंचल नयनविच घूँघट पट छीन।
मानहु सुर सरिता विमल,
जल उछरत जुग मीन।
उस काल मारे क्रोध के
तन कांपने उसका लगा
मानो हवा के जोर से
सोता हुआ सागर जगा।
कहती हुई यो उत्तरा के, नेत्र जल से भर गए।
हिम के कणों से पूर्ण मानो,हो गए पंकज नए। ।
मुख बाल रवि सम लाल होकर, ज्वाला सा वोधित हुआ।
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