स्वास्थ्य बीमा
स्वास्थ्य बीमा तोह आजकल के समय में बहुत बहुत ज़रूरी है ।आजकल के समय का कुछ पता नहीं की कब क्या हो जाए । कैंसर और हृदय रोग तोह आजकल अपनी चरन सीमा पर है ।
एक अध्ययन के अनुसार, १९९० में १५ % मृत्यु हृदय रोगों के कारन हुई थी, और आज यह संख्या १५ % से बढ़कर २८ % हो गयी है ।
एक और अध्ययन के अनुसार, भारत में हर २० साल बाद कैंसर से पीड़ित लोगों की संख्या दुगुनी होती जाएगी ।
और ऐसा नहीं है की आप अगर स्वस्थ जीवन शैली का पालन करते तोह आपको यह बीमारयां नहीं होगी । आपको यह सब बिमारी होने की सम्भावना कम ज़रूर होगी परन्तु आप पूर्ण रूप से यह नहीं कह सकते यह सब बीमारयां आपको कभी भी नहीं होंगी ।
दिल्ली में २८ वर्षीया महिला को फेफड़ो का कैंसर हुआ है, और पते की बात यह है की वह सिगरेट बिलकुल नहीं पीती थी । डॉक्टरों के अनुसार उनके पास हर महीने ऐसे 2-३ किस्से आते है जिसमे सिगरेट ना पीने वालो में भी लंग कैंसर के लक्षण देखे गए है ।
इन् सब बिमारिओं में कम से कम ₹१० -२० लाख तोह बहुत आराम से खर्च हो जाते है ।
इन् सब के अलावा ज़िन्दगी में कुछ न कुछ छोटी मोटी दिक्कते आती रहती है जैसे पथरी, मधुमेह, डेंगू आदि । आजकल चिकित्सा की लगत हर साल कम से कम १५-२०% के दर से बढ़ रही है । यानी आजकल जोह डेंगू का इलाज ₹१ लाख के अंदर हो जाता है, वही अगले ५ साल बाद ₹२ लाख तक का हो जायगा । इतने दर से शायद ही किसी की आमदनी भी बढ़ती होगी ।
अपने और अपने परिवार के लिए स्वस्थ्य बीमा ज़रूर करवाए । थोड़ा बहुत खर्चा ज़रूर होगा उसकी बिमा-किस्तों में, परन्तु अगर कोई उन्होनी हो जाए तोह बहुत महत्वपूर्ण साबित होता है ।
स्वास्थ्य बीमा (Health Insurance) लेना क्यों आवश्यक है
स्वास्थ्य बीमा लेना एवं सही प्रकार से जान-समझ कर लेना, इन दोनों में वही अन्तर है, जो एक अच्छे ड्राईवर या कम अच्छे ड्राईवर मे होता है, मतलब ये है कि गाड़ी का ड्राईवर कोई भी हो, आप गाड़ी में आराम से बैठे हुये हैं, आपको ड्राईवर की अच्छाई या बुराई तब पता चलेगी, जब चलती गाड़ी में कोई समस्या आयेगी।हममें से अधिकाशं लोग स्वास्थ्य बीमा लेते समय ये समझते हैं कि हमनें 5 या 10 लाख रूपये का कवर ले लिया, अब हम सुरक्षित हैं, लेकिन दिक्कत तब आती है जब आप अस्पताल में भती होते हैं एवं आपका तथाकथित बीमा प्लान कई तरह के बंधनों (को.पे.) में बंधा हुआ होता है, यह बंधन (को.पे.) कई प्रकार के हो सकते हैं।
जैसे एक निश्चित रकम तक रूम का किराया, निश्चित अवधि तक का प्रति बीमारी खर्च, निश्चित खर्च तक जांचे, निश्चित किये हुये शहर (इलाज के लियेद्) आदि। लेकिन उचित यह है कि हम बीमा पाॅलिसी लेने से पूर्व एजेन्ट से यह मालूम कर लें कि इस पाॅलिसी में उपरोक्त में तो कोई शर्त नहीं लगाई हुई है। क्योंकि अगर बीमा पाॅलिसी में आप केवल 3000 रूपये प्रतिदिन रूम किराये के नियम से बंधे हैं तो उससे ऊपर के रूम का किराया आपको स्वयं देना होगा एवं आने वाले 5 या 10 सालों आप निश्चित तौर पर 10000 से 20000 रूपये का रूम ले रहे होंगे और 3000 के अतिरिक्त अपने पास से भर रहे होंगे।
अगर पाॅलिसी में पहले से शर्त होगी कि फलां बीमारी का इतना ही रूपया मिलेगा तो उससे अधिक आप अपने पास से खर्च करेंगे। अगर जांच पर शर्त लगी होगी तो आपको कई जांचे अपने पास से करानी पड़ेंगी। अगर पाॅलिसी में दिल्ली, दिल्ली एन.सी.आर., मुम्बई, सूरत, अहमदाबाद या अच्छे शहरों में भर्ती पर 20 प्रतिशत अपने पास से देने की शर्त लगी होगी तो आपको अपने पास से पैसा देना पड़ जायेगा, या किसी किसी पाॅलिसी में तो निश्चित तौर पर हर बार भर्ती होने पर आपको 10 या 20 प्रतिशत अपने पास से देना ही पडता है, किसी किसी पाॅलिसी में 60 वर्ष की आयु के बाद 10 या 20 प्रतिशत अपने पास से खर्च करने की शर्त होती है। कहने का मतलब यह है कि अगर आप इन सब को जांच कर पाॅलिसी लेंगे तो आप अपना इलाज आराम से करा सकेंगे एवं परिवार पर कोई बोझ नहीं पड़ेगा।
वर्तमान समय में अधिकांश स्वास्थ्य बीमा पाॅलिसियां कैशलेस हो चुकी हैं, मतलब भर्ती होने से लेकर छुट्टी होने तक का सारा खर्च बीमा कम्पनी ही देती है, अगर आप कम्पनी के द्वारा निर्धारित अस्पतालों में इलाज कराते हैं, अन्यथा की स्थिति में आप अपने पास से पैसा खर्च करके बाद में भी उस क्लेम को ले सकते हैं। कैशलेस इलाज में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका टी.पी.ए. ;थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटरद्ध निभाता है। कई बीमा कम्पनियां टी.पी.ए. के माध्यम से क्लेम सैटिल करती हैं, कुछ कम्पनियों का अपना टी.पी.ए. होता है, जिन कम्पनी का अपना खुद का टी.पी.ए. होता है, उन्हें स्टैण्ड एलोन हैल्थ इंश्योरेन्स कम्पनी कहा जाता है।
जैसे कि मैक्स बूपा, स्टार हैल्थ, रेलीगेयर, अपोलो म्यूनिख, एच.डी.एफ.सी. एर्गो, सिगना टी.टी.के. इन कम्पनियों के अतिरिक्त सभी कम्पनियां किसी न किसी टी.पी.ए. से अनुबन्धित होती हैं, अगर आप इन 6 कम्पनियों से बीमा लेंगे तो आपको क्लेम लेते समय कम से कम दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा, उपरोक्त 6 कम्पनियां 30 मिनट से लेकर 12 घण्टे के अन्दर क्लेम इश्यू करा देती हैं।
1. ये कम्पनियां हमें टेंशन फ्री सुविधायें प्रदान करती हैं, परन्तु रेलीगेयर, सिगना टी.टी.के. में रूम रैन्ट एवं जोन वाईस अर्थात भिन्न शहरों में को-पे ;अपने पास से खर्च का कुछ प्रतिशत देनाद्ध लगा हुआ है। इसलिये आमतौर पर इनमें इलाज का पूर्ण खर्च बीमाधारक को नहीं मिल पाता। इसलिये इनके प्लान लेते समय को.पे. के क्लाॅज अवश्य समझ लें।
2. स्टार हैल्थ, मैक्स बूपा, अपोलो, एच.डी.एफ.सी. एर्गो कम्पनी देश की नामी कम्पनी हैं एवं इसमें किसी भी अस्पताल में सिंगल प्राईवेट रूम बिना किसी को.पे. के लिया जा सकता है।
3. ये 6 कम्पनियां क्लेम न होने की स्थिति में अपने ग्राहकों को उसका लाभ बीमा धन बढ़ा कर देती हैं जो कि 10 से 50 प्रतिशत तक हो सकता है, लेकिन उसी अनुपात में क्लेम लेने पर ये बढ़ा हुआ बीमा धन अगले वर्ष कम भी हो जात है, वहीं मैक्स बूपा में विशेष फीचर ये है कि वह प्रतिवर्ष 20 प्रतिशत बीमाधन बढ़ाती है, लेकिन क्लेम होने की स्थिति में भी बढ़ा हुआ बीमा धन कम नहीं होता, मतलब ये है कि मैक्स बूपा में अगर आपने 10 लाख की पाॅलिसी ली है तो वह उसी प्रीमियम में अगले 5 साल में 20 लाख की हो जायेगी।
4. रेलीगेयर, मैक्स बूपा, एच.डी.एफ.सी. प्रतिवर्ष फ्री हैल्थ चैकअप देती हैं, वहीं सिगना टी.टी.के., स्टाॅर हैल्थ, अपोलो में 3 से चार वर्ष में एक बार फ्री हैल्थ चैकअप किया जाता है।
5. ओ.पी.डी. वेनिफिट के तौर पर भर्ती होने से पूर्व के 1 से 3 माह के तथा डिस्चार्ज के 2 से 6 माह तक की डाॅक्टर की फीस, सारी दवाईयों व जांचों का खर्च बीमाधारक को इन 6 कम्पनी में मिलता है।
6. मैक्स बूपा, अपोलोे म्यूनिख एवं एच.डी.एफ.सी. एर्गो में 3 वर्ष में एवं स्टाॅर, रेलीगेयर व सिग्ना टी.टी.के. में 4 वर्ष मेें पाॅलिसी लेने से पूर्व की सभी बीमारियां कवर हो जाती हैं।
7. बीमा धन खत्म होने की स्थिति में मैक्स बूपा, स्टाॅर हैल्थ, अपोलो म्यूनिख बीमा धन के बराबर बीमा राशि को दुबारा क्लेम होने पर भी दे देती हैं, अर्थात 10 लाख का बीमा धन होने पर भी आप वर्ष में 20 लाख तक का क्लेम ले सकते हैं, बड़े क्लेम होने पर ये फीचर बहुत उपयोगी है।
7. क्लेम के मामले में मैक्स बूपा केवल 30 मिनट में क्लेम इश्यू कर देती है एवं अन्य 5 कम्पनियां भी 2 से 12 घण्टे के अन्दर क्लेम एपू्रव्ड कर देती हैं।
8. प्रीमियम के हिसाब से घटते से बढ़ते क्रम में क्रमशः मैक्स बूपा, स्टाॅर हैल्थ, सिग्ना टी.टी.के., अपोलो म्यूनिख, एच.डी.एफ.सी., रेलीगेयर को रखा जा सकता है।
अन्त में ये सभी कम्पनियां अच्छी हैं पर मेरे हिसाब से मैक्स बूपा प्रीमियम, सुविधायें, त्वरित क्लेम एवं बिना किसी शर्त के पाॅलिसी धारक को सुरक्षा प्रदान करता है, इसके बाद स्टाॅर हैल्थ और अन्य कम्पनियां भी बहुत अच्छी हैं। पर बीमा लेते समय ये ध्यान रखें कि आप जिस शहर से हैं, उस शहर के कौन-कौन से अस्पताल किस-किस बीमा कम्पनी के अन्तर्गत कैशलैस हैं।
स्वयं को महत्व देना भी है जरूरी
यह हैरानी की बात नहीं है कि हम खुद को सुरक्षित करने की बजाए चीजें इकट्ठा करने पर ज्यादा धन व्यय करते हैं। हम खुद को आखिर में रखने का फैसला करते हैं, जबकि आवश्यकता खुद को पहले रखने की है। हमें निश्चित रूप से पता है कि घर और कार की मरम्मत बेहद महंगी हो सकती है, लेकिन क्या आपने कभी विचार किया है कि किसी अशुभ दुर्घटना होने की दशा में आप खुद की मरम्मत कैसे कराएंगे?क्या आपने कभी सोचा है कि अस्पताल के अप्रत्याशित खर्च के बीच कई बीमारियों के लिए बीमा कवर वरदान साबित हो सकता है और आपके सारे तनाव को दूर कर सकता है।
जरा इस परिदृश्य पर विचार करें, जिसमें भगवान ना करे कि आपको हृदय रोग के इलाज लिए पांच लाख रुपये की काफी बड़ी राशि देनी पड़े। क्या, आप नहीं चाहेंगे कि वही राशि 300 रुपये के मामूली मासिक प्रीमियम पर कवर हो जाए। इलाज का बिल अपनी जेब से देने के बजाए यह ज्यादा बेहतर सौदा नहीं है? अगर कुछ बातों पर गौर करें तो आप जानेंगे कि स्वास्थ्य बीमा को अनदेखा क्यों नहीं करना चाहिए-
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