निगंठ नातपुत्त शब्द संस्कृत में है और इसका हिंदी अर्थ होता है “जैन गुरु महावीर का शिष्य”। निगंठ नातपुत्त जैन धर्म के प्रमुख अनुयायी थे और उन्होंने जैन धर्म के उद्घोषक महावीर को अनुसरण किया था। वे जैन धर्म के सिद्धांतों और तत्त्वों को अध्ययन करने के लिए विख्यात थे। निगंठ नातपुत्त को जैन धर्म के आठवें ग्रंथ “निगंठानुत्तर” के रचयिता माना जाता है।
निगंठ नातपुत्त ने अपने शिष्यों को जैन धर्म के सिद्धांतों को समझाने के लिए प्रचार-प्रसार किया और उन्होंने जीवन में अहिंसा, अपरिग्रह, सत्य और ब्रह्मचर्य की महत्वपूर्णता को स्थापित किया। निगंठ नातपुत्त और उनके शिष्यों द्वारा बनाए गए जैन धर्म के नियमों का पालन करने वाले लोगों को “निगंठ” कहा जाता है।
नास्तिक सम्प्रदायों का उद्भव तथा विकास
- ईसा पूर्व छठी शताब्दी का काल धार्मिक दृष्टि से क्रांति अथवा महान परिवर्तन का काल माना जाता है।
- इस समय परम्परागत वैदिक धर्म एवं समाज में व्याप्त कुरीतियों, पाखण्डों, कुप्रथाओं, छुआछूत, ऊंच—नीच आदि के विरुद्ध आन्दोलन हुए।
- यह आन्दोलन कोई आकस्मिक घटना नहीं थी बल्कि यह चिरकाल से संचित हो रहे असंतोषों की ही परिणति थी।
- वैदिक धर्म के कर्मकाण्डों तथा यज्ञीय विधि-विधानों के विरुद्ध प्रतिक्रिया वस्तुत: उत्तरवैदिक काल में ही प्रारंभ हो चुकी थी।
- वैदिक धर्म की व्याख्या एक नये सिरे से की गयी तथा यज्ञ एवं कर्मकाण्डों की निन्दा करते हुए धर्म के नैतिक पक्ष पर बल दिया गया।
- संसार को मिथ्या बताकर आत्मा की अमरता के सिद्धांत का प्रतिपादन हुआ शरीर को आत्मा के लिए बन्धन बताया गया।
बौद्ध साहित्य से ज्ञात होता है कि महात्मा बुद्ध के जन्म से पूर्व समाज में 6 बौद्धेतर आचार्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण थे-
निगंठनातपुत्त:
- यह जैन आन्दोलन के प्रवर्तक महावीर का नाम था।
पूरन कस्सप:
- ये अक्रियावाद अथवा अकर्म के प्रचारक थे जिन्होंने यह मत रखा कि मनुष्य के अच्छे या बुरे कर्मों का कोई फल नहीं होता है।
मक्खलि गोशाल:
- पहले ये महावीर के शिष्य थे किन्तु बाद में मतभेद हो जाने पर इन्होंने महावीर का साथ छोड़कर ‘आजीवक’ नामक स्वतंत्र सम्प्रदाय की स्थापना की। इनका मत नियतिवाद (भागयवाद) कहा जाता है जिसके अनुसार संसार की प्रत्येक वस्तु भाग्य द्वारा पूर्व नियंत्रित एवं संचालित होती है।
- मनुष्य के जीवन पर उसके कर्मों का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता।
- स्वामी महावीर के समान ही गोशाल भी ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं करते थे तथा जीव और पदार्थ को अलग-अलग तत्व मानते थे।
- आजीवक सम्प्रदाय लगभग 1002 ई. तक बना रहा।
अजितकेसकम्बलिन्:
ये उच्छेदवादी (निहिलिस्ट) थे। इनका मत था कि मृत्यु के बाद सब कुछ नष्ट हो जाता है।
पकुधकच्चायन:
इन्हें नित्यवादी कहा जाता है। इन्होंने सात तत्वों को नित्य बताया है जो हैं – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, सुख, दु:ख और आत्मा।
संजय वेलट्ठपुत्त:
ये सन्देहवादी थे। इन्होंने न तो किसी मत को स्वीकार किया और न किसी का खण्डन ही किया।
अन्य सम्प्रदाय
महोबोधि जातक में पांच प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदायों का उल्लेख मिलता है-
- अहेतुवाद: यह मत सांसारिक वस्तुओं की उत्पत्ति का कोई भी कारण (हेतु) स्वीकार
नहीं करता है। - पुब्बेकतवाद: इसके अनुसार मनुष्य के वर्तमान जीवन के सुख-दु:ख उसके पूर्व जन्म के
कर्मों के परिणाम होते हैं। - उच्छेदवाद
- इस्सरकर्णवाद : इस मत ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास करता है तथा उसे ही
सृष्टि कर्ता, धर्ता एवं संहकर्ता मानता है। - खत्तविज्जवाद: इस मत में मनुष्य को जीवन में घोर स्वार्थी बनने का उपदेश दिया
गया है।
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