चौहान राजवंश, जिसे चहमन राजवंश के रूप में भी जाना जाता है, एक मध्यकालीन भारतीय राजवंश था जिसने 8वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी तक उत्तरी और पश्चिमी भारत के कुछ हिस्सों पर शासन किया था। वे एक राजपूत राजवंश थे और उन्होंने उस समय के राजनीतिक और सैन्य परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
चौहान वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक पृथ्वीराज चौहान थे, जिन्होंने 12वीं शताब्दी के अंत से शासन किया। उन्हें अक्सर भारतीय इतिहास में एक वीर व्यक्ति के रूप में मनाया जाता है और मुहम्मद गोरी के नेतृत्व में मुस्लिम आक्रमणों के खिलाफ उनकी वीरता और प्रतिरोध के लिए जाना जाता है। 1191 और 1192 में पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गोरी के बीच तराइन की प्रसिद्ध लड़ाई ने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया।
हालाँकि, पृथ्वीराज चौहान के आक्रमणों को विफल करने की प्रारंभिक सफलता के बावजूद, अंततः 1192 में मुहम्मद गोरी द्वारा उन्हें पराजित किया गया और कब्जा कर लिया गया। इस घटना ने चौहान राजवंश की शक्ति में गिरावट को चिह्नित किया, हालांकि उनके कुछ वंशज कई शताब्दियों तक राजस्थान में छोटे क्षेत्रों पर शासन करते रहे।
चौहान राजवंश ने अपने शासन वाले क्षेत्रों की संस्कृति, वास्तुकला और परंपराओं पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ा। उनके शासनकाल के दौरान बनाए गए कई किले, महल और मंदिर आज भी राजस्थान में पाए जा सकते हैं।
चौहान वंश की उत्पत्ति संबंधी मत
अग्निवंश संबंधी मत
- भाटों और चारणों ने चौहानों को अग्निवंशीय बताया है। जिसका मूल आधार चन्दवरदाई का पृथ्वीराज रासो है, इसमें राजपूतों की उत्पत्ति अग्निकुण्ड से बताई है।
- आबू पर्वत पर निवास करने वाले विश्वामित्र, गौतम, अगस्त्य ऋषियों ने धार्मिक अनुष्ठान किया जिसके यज्ञ कुण्ड से परमार, प्रतिहार, चालुक्य और चौहान योद्धाओं की उत्पत्ति हुई।
सूर्यवंश संबंधी मत
- पृथ्वीराज विजय, हम्मीर महाकाव्य, हम्मीर रासो आदि ग्रन्थों में उन्हें सूर्यवंशीय माना है और डॉ. हीराचंद ओझा ने इस मत की पुष्टि की है।
- सीकर जिले के हर्षनाथ मन्दिर से प्राप्त शिलालेख में चौहानों को सूर्यवंशी कहा गया है।
- 1545 ई. में रचित ‘कान्हड़दे प्रबंन्ध’ नामक पुस्तक में चौहानों को सूर्यवंशी माना गया है।
चन्द्रवंशी संबंधी मत
- अचलेश्वर मंदिर (माउंट आबू) का लेख और बंशी शिलालेख (1177 ई.) में चौहानों को चंद्रवंशी माना है।
ब्राह्मण संबंधी मत
- बिजोलिया शिलालेख में चौहानों को वत्सगोत्रीय ब्राह्मण बताया गया है।
- डॉ. दशरथ शर्मा ने चौहानों को ब्राह्मणों की संतान बताया है और डॉ. गोपीनाथ शर्मा भी इस मत की पुष्टि करते हैं।
विदेशी मत
- कर्नल टॉड, डॉ. स्मिथ और विलियम क्रुक उन्हें विदेशी मानते हैं।
पुरातात्विक स्रोत
- हर्ष का शिलालेख, बिजोलिया का लेख
साहित्यिक स्रोत
- पृथ्वीराज विजय, पृथ्वीराज रासो, हम्मीर महाकाव्य, प्रबंध कोष, वंश भास्कर, सिरोही राज्य का इतिहास
इन मतों से प्रश्न पूछे गए हैं
- चौहानों को अग्निवंशीय किसने बताया?
- निम्न में से कौन से विद्वान विदेशी मत के समर्थक नहीं है?
- बिजोलिया शिलालेख में चौहानों को किस जाति का बताया गया है?
- आबू पर्वत पर किए गए यज्ञ के अग्निकुण्ड से कौन से चार राजपूत वंशों की उत्पत्ति हुई?
निम्न में से कौन से विद्वान विदेशी मत के समर्थक नहीं है?
1. कर्नल टॉड
2. डॉ. स्मिथ
3. डॉ. दशरथ शर्मा
4. विलियम क्रुक
उत्तर— 3
मूल स्थान
- डॉ. दशरथ शर्मा ने चौहानों का मूल स्थान चित्तौड़ को माना है।
- डॉ. गोपीनाथ शर्मा के अनुसार चौहानों का मूल स्थान जांगल देश तथा सपादलक्ष सांभर था।
संस्थापक
- वासुदेव चौहान 551 ई. था। उसने सांभर (सपादलक्ष) में चौहान वंश स्थापना की।
- बिजोलिया शिलालेख के अनुसार वासुदेव ने सांभर झील का निर्माण करवाया था।
चौहान राजवंश का संस्थापक शासक है?
1. वासुदेव
2. अर्णोराज
3. सोमेश्वर
4. पृथ्वीराज तृतीय
उत्तर- 1
दुर्लभराज प्रथम (784-809 ई.)
- वह प्रतिहारों का सामंत था।
- उसने प्रतिहारों के नेतृत्व में गौड़ प्रदेश तक सफल सैनिक अभियान किए थे।
- उसके शासनकाल में अजमेर (अजयमेरु) पर मुसलमानों का सर्वप्रथम आक्रमण हुआ था।
गूवक प्रथम (809-836 ई.)
- दुर्लभराज का पुत्र गूवक प्रथम प्रतिहार शासक नागभट्ट द्वितीय का सामंत था।
- उसने सिंध के सूबेदार सुल्तान बेग को पराजित किया।
- उसने सीकर में हर्षनाथ मंदिर का निर्माण करवाया।
- हर्षनाथ को चौहानों का इष्टदेव माना जाता है।
वाक्पतिराज प्रथम
- चौहानों का प्रथम शक्तिशाली शासक चन्दनराज का पुत्र वाक्पतिराज था।
- उसने प्रतिहारों को पराजित कर ‘महाराज’ की उपाधि धारण की।
- चौहान वंश में ‘महाराज’ की उपाधि धारण करने वाला वाक्पतिराज प्रथम शासक था।
सिंहराज
- उसने दिल्ली के तोमर शासकों व कन्नौज के प्रतिहारों को परास्त कर ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि धारण की। साथ ही ऐसा प्रतीत होता है कि उसने प्रतिहारों के नियंत्रण से मुक्त होकर अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली।
- उसके समय हर्षनाथ मंदिर का निर्माण कार्य पूण हुआ था।
- इसमें चौहानों के प्रारम्भ से लेकर सिंहराज तक की वंशावली प्राप्त होती है।
विग्रहराज द्वितीय (971—998 ई.)
- सिंहराज का पुत्र विग्रहराज द्वितीय चौहानवंश का अत्यन्त प्रभावशाली प्रतापी व योग्य शासक था।
- उसके द्वारा नर्मदा नदी तक विजय प्राप्त करने का उल्लेख मिलता है।
- उसने अन्हिलवाड़ा के चालुक्य शासक मूलराज प्रथम को पराजित कर उसे कर देने हेतु विवश किया।
- उसने भृगुकच्छ (भड़ौच) में ‘आशापुरी देवी’ के मंदिर का निर्माण करवाया।
- विग्रहराज द्वितीय के 973 ई. के हर्षनाथ अभिलेख से हमें उसकी स्थिति की जानकारी प्राप्त होती है।
पृथ्वीराज प्रथम
- विग्रहराज तृतीय का पुत्र था।
- उसने 1105 ई. पुष्कर के ब्राह्मणों को चालुक्यों से लूटने से बचाया था।
- जिसने ‘परम भट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर’ का विरुद धारण किया था।
- ‘प्रबंधकोश’ के लेखक राजशेखर के अनुसार पृथ्वीराज प्रथम तुर्क सेना का विजेता था।
अजयराज (1105—1133 ई.)
- पृथ्वीराज प्रथम का पुत्र।
- चौहानों की जिस शक्ति का प्रारंभ वासुदेव के काल में हुआ, उसका सुदृढ़ीकरण अजयराज के काल में हुआ, क्योंकि इसके काल में ही चौहान राज्य का सर्वाधिक विस्तार किया गया।
- उसने उज्जैन पर आक्रमण कर मालवा के परमार शासक नरवर्मन को पराजित किया।
- उसने 1113 ई. में स्वयं के नाम से अजयमेरु (अजमेर) की स्थापना की और अजयमेरु किले का निर्माण भी इसी वर्ष करवाया।
- इसे चौहान साम्राज्य की राजधानी बनाया। जिसे ‘पूर्व का दूसरा जिब्राल्टर’ कहा जाता है।
- इस किले का नाम तारागढ़ 15वीं सदी में मेवाड़ के महाराणा रायमल के पुत्र कुंवर पृथ्वीराज ने अपनी पत्नी के नाम पर रखा।
- यह बीठड़ी की पहाड़ी पर स्थित होने के कारण इसे गढ़बीठड़ी भी कहते हैं।
- उसकी राजनीतिक प्रतिभा का प्रमाण उसके द्वारा चलाए गए चांदी व तांबे के सिक्कों से स्पष्ट होता है। चांदी के सिक्कों पर ‘श्री अजयदेव’ नाम अंकित था।
- उसकी कुछ मुद्राओं पर रानी सोमल्ल देवी का नाम अंकित मिलता है।
- वह शैव मतानुयायी था। वह धार्मिक सहिष्णु व्यक्ति था। उसने नगर में जैन मंदिरों के निर्माण हेतु सहमति प्रदान की। पार्श्वनाथ के मंदिर हेतु स्वर्ण कलश प्रदान किया।
- पृथ्वीराज विजय के अनुसार उसने तुर्कों को पराजित किया था।
‘पूर्व का दूसरा जिब्राल्टर’ के नाम से राजस्थान का कौनसा किला जाना जाता है?
1. मेहरानगढ़ किला
2. जूनागढ़ किला
3. अजयमेरू किला
4. रणथम्भौर किला
उत्तर-3
किस चौहान शासक ने अजमेर को सबसे पहले अपनी राजधानी बनाया?
1. पृथ्वीराज प्रथम
2. अजयराज
3. पृथ्वीराज तृतीय
4. विग्रहराज
उत्तर- 2
अर्णोराज (1133-1150 ई.)
- अजयराज का पुत्र।
- चालुक्य शासक ने राजनीतिक लाभ की दृष्टि से अपनी बहन कंचन देवी का विवाह अर्णोराज के साथ किया तथा अर्णोराज की सहायता से मालवा के शासक यशोवर्मन को पराजित किया।
- उसने 1137 ई. में अजमेर में आनासागर झील का निर्माण कराया।
- अर्णोराज आबू के निकट हुए युद्ध में चालुक्य शासक कुमारपाल से पराजित हुआ।
- वह अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णु था। वह शैव मतानुयायी था।
- उसने पुष्कर में वराह मंदिर का निर्माण करवाया।
- अजमेर में खतरगच्छ के अनुयायियों को भूमि दान में दी।
- देव घोष और धर्मघोष विद्वानों का सम्मान किया।
- 1155 ई. में अर्णोराज की हत्या उसके ज्येष्ठ पुत्र जग्गदेव ने कर दी। वह ‘चौहानों में पितृहन्ता’ के नाम से प्रसिद्ध है।
विग्रहराज चतुर्थ (1158-1163 ई.)
- बिजोलिया लेख के अनुसार उसने तोमरों को पराजित कर दिल्ली पर अधिकार कर लिया और तोमरों को अपना सामंत बना लिया।
- चालुक्य शासक कुमारपाल से पाली, नागौर और जालौर जीत लिये।
- विग्रहराज के दिल्ली शिवालिक लेख के अनुसार उसने म्लेच्छों से देश की रक्षा की।
- उसका समकालीन लाहौर का तुर्क शासक खुसरूशाह था।
- बीसलदेव का शासनकाल चौहान वंश का स्वर्णकाल माना जाता है।
- विग्रहराज को विद्वानों को आश्रय देने के कारण ‘कवि बान्धव’ कहलाये।
- विग्रहराज ने केवल विजेता एवं साम्राज्य निर्माता था बल्कि साहित्य प्रेमी व साहित्यकारों का आश्रयदाता था।
- सोमदेव जो कि ‘ललित विग्रह’ नामक नाटक के लेखक थे, उसके दरबार में राजकवि था।
- वह स्वयं भी एक अच्छा कवि और लेखक था। वह संस्कृत का महान विद्वान था उसने संस्कृत में ‘हरिकेली’ नाटक लिखा।
- वह बीसलदेव के नाम से विख्यात था।
- उसने अजमेर में एक संस्कृत पाठशाला बनवायी थी तथा बिसलपुर नामक कस्बा स्थापित कर अनेक दुर्गों व मंदिरों का निर्माण करवाया था।
- जिसे बाद में कुतुबुद्दीन ऐबक ने तोड़कर अढ़ाई दिन के झोपड़े का निर्माण करवाया।
विख्यात स्मारक ‘अढ़ाई दिन का झौपड़ा’ या तत्कालीन संस्कृत महाविद्यालय का निर्माण किसके द्वारा किया गया?
1. विग्रहराज चतुर्थ
2. पृथ्वीराज प्रथम
3. अर्णोराज
4. अजयराज
उत्तर- 1
पृथ्वीराज द्वितीय (1164-1169 ई.)
- जग्गदेव के पुत्र पृथ्वीराज ने अपरगांगेय की हत्या कर शासन सत्ता प्राप्त की।
- उसने बिजोलिया के पार्श्वनाथ मंदिर हेतु मोरझरी गांव अनुदान में दिया।
- पृथ्वीराज द्वितीय की नि:संतान मृत्यु होने के बाद उसका चाचा सोमेश्वर ने अजमेर का सिंहासन प्राप्त किया।
- सोमेश्वर अर्णोराज का सबसे छोटा पुत्र था जो गुजरात की राजकुमारी कांचन देवी से जन्मा था।
- चालुक्य नरेश कुमारपाल ने उसकी देखभाल की।
- सोमेश्वर का विवाह कलचुरी नरेश अचल की राजकुमारी कर्पूरदेवी से हुआ। जिससे पृथ्वीराज तृतीय और हरिराज नामक दो पुत्र हुए।
पृथ्वीराज तृतीय (1177-1192 ई.)
- अजमेर के अंतिम प्रतापी राजा, जिसने दिल्ली तक साम्राज्य का विस्तार किया।
- मात्र 11 वर्ष की आयु 1177 ई. में अजमेर का शासक बना।
- उसका जन्म 1166 ई. में गुजरात के अन्हिलपाटन मं हुआ।
- माता कर्पूरी देवी ने शासन प्रबन्ध संभाला।
- मां कर्पूरदेवी ने सोमेश्वर के मंत्रियो व अधिकारियों को उनके पदों पर बनाए रखा।
- उसका मुख्यमंत्री कदम्बदास अत्यधिक वीर, विद्वान, कुशल प्रशासक और स्वामीभक्त था।
- उसने भुवनैकमल्ल को सेनाध्यक्ष नियुक्त किया।
- कन्नौज के गहड़वाल शासक जयचन्द की पुत्री जिसे पृथ्वीराज चौहान स्वयंवर से उठा लाये व विवाह किया।
- पृथ्वीराज चौहान ने दलपुंगल की उपाधि धारण की।
- उसने दिल्ली में पिथौरागढ़ के किले का निर्माण करवाया था।
- ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती पृथ्वीराज तृतीय के शासनकाल में भारत आया।
महोबा के चन्देलों के विरुद्ध अभियान
- चंदेल शासक परमार्दिदेव पृथ्वीराज तृतीय के समकालीन था।
- 1182 ई. में पृथ्वीराज ने तुमुल के युद्ध में परमार्दिदेव को पराजित किया।
- इस युद्ध में परमार्दिदेव के योग्य व कुशल सेनापति आल्हा व उदल वीरगति को प्राप्त हुए थे।
- पृथ्वीराज ने अपने सामंत पंजुनराय को महोबा का अधिकारी नियुक्त किया।
तराइन का प्रथम युद्ध
- 1191 ई. में पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी के मध्य करनाल के पास तराइन के मैदान में हुआ जिसमें मुहम्मद गौरी पराजित हुआ।
तराइन का द्वितीय युद्ध
- 1192 ई. में पृथ्वीराज व मुहम्मद गौरी के मध्य।
- पृथ्वीराज पराजित।
- मेवाड़ के शासक समरसिंह तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज तृतीय के साथ था।
- चन्द्रबरदाई, जयानक, आदि विद्वान उसके दरबार में थे।
1191-92 के तराइन के युद्ध में किस चौहान शासक को आक्रमणकारी शहाबुद्दीन गौरी से लड़ना पड़ा?
1. पृथ्वीराज प्रथम
2. बीसलदेव
3. पृथ्वीराज द्वितीय
4. पृथ्वीराज तृतीय
उत्तर- 4
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