सूफी आंदोलन चौदहवीं से सोलहवीं शताब्दी का सामाजिक-धार्मिक आंदोलन था। सूफी आंदोलन के प्रतिपादक अपरंपरागत मुस्लिम संत थे जिन्होंने भारत के वेदांत दर्शन और बौद्ध धर्म का गहरा अध्ययन किया था। वे भारत के विभिन्न धार्मिक पाठों से गुजरे थे और भारत के महान संतों और द्रष्टाओं के संपर्क में आए थे। वे भारतीय धर्म को बहुत पास से देख सकते थे और इसके आंतरिक मूल्यों को महसूस कर सकते थे। तदनुसार उन्होंने इस्लामिक दर्शन का विकास किया जिसने अंतिम बार सूफी आंदोलन को जन्म दिया।
- सूफी रहस्यवादी थे। उन्होंने सार्वजनिक जीवन में धन के अभद्र प्रदश्रन व धर्म भ्रष्ट शासकों की उलेमा द्वारा सेवा करने की तत्परता का विरोध किया।
- पहले मत के अनुसार, सूफी शब्द ‘सूफ’ से बना है जिसका तात्पर्य है— ऊन या ऊनी कपड़ा।
- दूसरे मत के अनुसार, सूफी शब्द की उत्पत्ति ‘सफा’ से हुई जिसका अर्थ है— पवित्रता या शुद्धि की अवस्था।
सूफी आन्दोलन की उत्पत्ति/उदय
सूफी शब्द को अलग-अलग विद्वानों ने भिन्न भिन्न अर्थों में परिभाषित किया है जैसे – ‘सफ’ शब्द का अर्थ है ऊनी वस्त्र धारण करने वाला। ‘सफा’ शब्द का अर्थ आचार-विचार से पवित्र व्यक्ति से है। एक मत यह भी है कि – मदीना में मुहम्मद साहब द्वारा बनवायी मस्जिद के बाहर ‘सफा’ नामक पहाड़ी पर जिन व्यक्तियों ने शरण ली तथा खुदा की आराधना में लीन रहे वे सुफी कहलाए। सूफीवाद का उद्भव ईरान में हुआ।
प्रारंभिक सूफियों में राबिया प्रसिद्ध है। सूफीवाद इस्लाम के भीतर सुधारवादी आन्दोलन था राबिया एवं मंसूर बिन हल्लाज ने क्रमशः 8वीं एवं 10वीं शताब्दी में ईश्वर एवं व्यक्ति के बीच प्रेम संबंध पर बल दिया। अल गज्जाली ने एवं इस्लामी परंपरावाद को मिलाने का प्रयत्न किया। इब्न उल अरबी ने सूफी जगत में वहदत-उल-वजूद का सिद्धांत प्रतिपादित किया जो एकेश्वरवाद से संबंधित था।
भारत में सूफीवाद का उदय
भारत में सूफियों का आगमन महमूद गजनवी के आगमन के साथ हुआ था। भारत आने वाले प्रथम संत शेख इस्माइल थे जो लाहौर आए। इनके उत्तराधिकारी शेख अली बिन उस्मान अल हुजवीरी थे जो दातागंज बख्श नाम से विख्यात थे।
शेख अली बिन उस्मान अल हुजवीरी ने सूफी मत से संबंधित प्रसिद्ध रचना कश्फुल महजुव का लेखन किया। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती , 1192 ई. में शिहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी के साथ भारत आए थे इन्होंने भारत में चिश्ती सम्प्रदाय की नींव रखी थी।
सूफीवाद के समूह
मोटे तौर पर सूफीवाद को 2 समूहों में विभाजित किया जाता है –
- बासरा समूह – ये इस्लामिक कानूनों में विश्वास रखते थे।
- बेसरा समूह – ये इस्लामिक कानूनों में विश्वास नहीं रखते। ये घुमक्कड़ संत थे।
सूफीवाद का दर्शन
- सूफीवाद ने इस्लामिक कट्टरपन को त्याग धार्मिक रहस्यवाद अपनाया।
- सूफीवाद में इस्लाम धर्म एवं कुरान के महत्व को स्वीकारा है परन्तु इस्लाम धर्म के कर्मकाण्डों व कट्टरपंथी विचारों का विरोध किया।
- सूफी संतों ने ऐकेश्वरवाद में विश्वास किया है। इसके अनुसार, ईश्वर एक है, सब कुछ ईश्वर में है। त्याग एवं प्रेम के द्वारा ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।
- सूफी संतों ने ईश्वर को प्रेमी माना है एवं इसी प्रेम में भक्ति, त्याग, प्रेम, अहिंसा, उपासना एवं संगीत को साधन बनाया है।
सूफी उपासना पद्वति
सूफी संतों की उपासना को जियारत कहा गया है। जियारत में सूफी संत दरगाहों पर नाच एवं संगीत के माध्यम से अपनी प्रेम व भक्ति को प्रस्तुत करते थे। विशेष रूप से कव्वाली , जिक्र एवं समा के द्वारा उपासना करते थे। कौल (कव्वाली से पहले व अंत की कहावत) की शुरूआत अमीर खुसरो ने की।
सूफी सिलसिले/सम्प्रदाय
चिश्ती सिलसिला
भारत में चिश्ती सम्प्रदाय की स्थापना ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने की। चिश्ती सम्प्रदाय भारत में ही चला अफगानिस्तान की शाखा समाप्त हो गयी थी।
प्रमुख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती
- ये 1192 ई. में शिहाबुद्दीन गोरी की सेना के साथ भारत आए। कुछ दिन लाहौर में ठहरे बाद में अजमेर जाकर बस गए।
- यात्रा क्रम : लाहौर – दिल्ली – अजमेर।
- जन्म : अफगानिस्तान के सिस्तान में
- मृत्यु : अजमेर (राजस्थान)
- खानकाह (दरगाह): अजमेर (राजस्थान)
- शिष्य : योगी रामदेव, जयपाल, शेख हमीदउद्दीन नागौरी एवं कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी।
- इनके समय अजमेर पर पृथ्वीराज चौहान का शासन था।
- मुगल सम्राट अकबर ने इनकी दरगाह की 2 बार पैदल यात्रा की।
- इन्होंने धर्मांतरण को गलत माना था। ये धर्म की स्वतंत्रता में विश्वास रखते थे।
ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी
- ये ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य थे।
- इल्तुतमिश के समय भारत आए थे।
- जन्म : फरगना।
- मृत्यु : दिल्ली।
- उपाधि : कुतुब-उल-अकताव, रईस-उल-सालिकी, सिराज-उल-औलिया।
- शिष्य : बाबा फरीद/शेख फरीद।
- कुव्वल-उल-इस्लाम मस्जिद एवं कुतुबमीनार बख्तियार काकी को समर्पित है।
बाबा फरीद
- बाबा फरीद बलवन के दामाद थे। इनका नाम शेख फरीदुद्दीन गंज-ए-शकर था। ये बख्तियार काकी के शिष्य एवं उत्तराधिकारी थे।
- जन्म : मुल्तान
- मृत्यु : पाटन
- शिष्य : शेख निजामुद्दीन औलिया
- बाबा फरीद के कुछ रचनाओं को गुरू ग्रंथ साहिब में संकलित किया गया था।
शेख निजामुद्दीन औलिया
- ये बाबा फरीद के शिष्य थे।
- जन्म : बदायुं (उत्तर प्रदेश)
- मृत्यु : दिल्ली
- शिष्य : अमीर खुसरो , शिराजुद्दीन अस्मानी, शेख बुरहानुद्दीन गरीब, नासिरूद्दीन-चिराग-ए-देहलवी।
- निजामुद्दीन औलिया एक मात्र चिश्ती संत थे जो अविवाहित थे।
- निजामुद्दीन औलिया ने 7 सुल्तानों का शासन देखा था परन्तु किसी सुल्तान के दरबार में नहीं गये।
- गयासुद्दीन तुगलक के औलिया से कटु संबंध थे।
- निजामुद्दीन औलिया को महबूब ए इलाही एवं सुल्तान-उल-औलिया कहा जाता है।
- निजामुद्दीन औलिया ने सुलह-ए-कुल का सिद्धांत दिया था।
- निजामुद्दीन औलिया ने योग एवं प्रणायाम को अपनाया एवं योगी सिद्ध कहलाए।
1. शेख सिराजुद्दीन उस्मानी
निजामुद्दीन औलिया ने इन्हें आइना-ए-हिन्द की उपाधि प्रदान की। इन्होंने बंगाल में निजामुद्दीन औलिया के उपदेशों को पहुंचाया।
2. शेख बुरहानुद्दीन गरीब
मुहम्मद बिन तुगलक ने इन्हें दक्षिण जाने के लिए बाध्य किया। इन्होंने दक्षिण भारत में चिश्ती सम्प्रदाय की नींव रखी।
3. शेख नासिरूद्दीन चिराग देहलवी
निजामुद्दीन औलिया ने इन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। इन्होंने फिरोजशाह तुगलक को गद्दी पर बैठाने में सहायता की थी।
ख्वाजा सैय्यद मुहम्मद गेसूदराज
- ये नासिरूद्दीन चिराग देहलवी के शिष्य थे।
- इन्होंने दक्षिण भारत में गुलबर्गा को अपनी शिक्षा का केन्द्र बनाया।
- इन्हें बंदा नवाज की उपाधि प्राप्त की थी।
- गेसूदराज के बाद चिश्ती संप्रदाय 3 शाखाओं में विभाजित हो गया –
- -साबिरी शाखा : संस्थापक – मखदूम अलाउद्दीन अली महमूद साबरी।
- -हुसैनी शाखा : संस्थापक – हिसामुद्दीन।
- -हमजाशाही शाखा : संस्थापक – शेख हम्जा।
शेख सलीम चिश्ती
- शेख सलीम चिश्ती, चिश्ती शाखा के अंतिम उल्लेखनीय संत थे।
- शेख सलीम चिश्ती अरब में रहे उन्हें शेख-उल-हिंद की पदवी दी।
- सलीम चिश्ती ने 24 बार मक्का की यात्रा की।
- ये मुगल सम्राट अकबर के समकालीन थी।
- इनके आशीर्वाद से अकबर के पुत्र सलीम का जन्म हुआ था। इन्हीं के नाम पर अकबर ने अपने पुत्र का नाम सलीम रखा।
- इनका मकबरा फतेहपुर सीकरी में स्थित है।
सुहरावर्दी सम्प्रदाय
- संस्थापक : शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी
- भारत में संस्थापक : बहाउद्दीन जकारिया
- बहाउद्दीन जकारिया इल्तुतमिश, कुवाचा एवं बाबा फरीद के समकालीन थे।
- इन्होंने सुल्तान को अपनी शिक्षा का केन्द्र बनाया।
- इल्तुतमिश ने जकारिया को शेख-उल-इस्लाम का पद दिया।
सैय्यद जलालुद्दीन जहांनियां जहांगस्त
इन्होंने 36 बार मक्का की यात्रा की। फिरोजशाह तुगलक ने इन्हें शेख-उल-इस्लाम (प्रधान काजी) का पद दिया था।
सुहरावर्दी संत शेख मूसा सदैव स्त्री के वेश में रहते थे। नृत्य एवं संगीत में अपना समय व्यतीत करते थे।
फिरदौसी सिलसिला
इस सिलसिले की स्थापना शेख बदरूद्दीन ने की थी। इसका कार्यक्षेत्र बिहार में था। यह सिलसिला सोहरावर्दी सिलसिले की ही एक शाखा है।
इस सिलसिले का प्रमुख संत सरफुद्दीन याहिया मनेरी था जो फिरोज शाह तुगलक के समकालीन था।
कादिरी संप्रदाय
- इस संप्रदाय की स्थापना अब्दुल कादिर जिलानी ने की थी।
- कादिरी शाखा के लोग गाने बजाने के विरोधी थे। ये हरे रंग की पगड़ी पहनते थे एवं पगड़ी में लाल गुलाब का फूल लगाते थे।
- मुगल शासक दार शिकोह इस सिलसिले का अनुयायी था।
- लोदी सुल्तान सिकन्दर लोदी इस शाखा के मकदूम जिलानी का शिष्य था।
- इस शाखा के संत शेख मीर/मियां मीर , मुगल शासक शाहजहां एवं जहांगीर का समकालीन था।
- मियां मीर ने ही स्वर्ण मंदिर की नींव रखी थी।
- कादिरी संप्रदाय का विभाजन 2 उप संप्रदायों में हुआ।
- रजकिया – संस्थापक – शहजादा अब्दुल रज्जाक
- वहाबिया – संस्थापक – अब्दुल वहान
नक्शबंदी सिलसिला
- इसकी स्थापना अकबर के काल मे ख्वाजा बाकी विल्लाह ने की।
- शेख अहमद सरहिन्दी इस शाखा के प्रसिद्ध संत थे इन्हें मुजहिद्द आलिफसानी के नाम से जाना गया। जहांगीर , सरहिन्दी का शिष्य था।
- सूफियों में यह सर्वाधिक कट्टरवादी सिलसिला था।
शत्तारि सिलसिला
- इस शाखा की स्थापना लोदी काल में शेख अब्दुल्ला शत्तार ने की थी।
- संगीत सम्राट तानसेन इस सिलसिले के संत मोहम्मद गौस के शिष्य थे
सूफी जगत का प्रसिद्ध सिद्धांत ‘वहदत—उल—वुजूद’ जिसका सार है— ईश्वर सर्वव्यापी हैं और सबमें उसी की झलक है।’ प्रतिपादित किया?
1. मंसूर ने
2. गिजाली ने
3. इब्नुलअरबी ने
4. मोईनुद्दीन चिश्ती ने
उत्तर- 3
- सूफियों ने स्वतंत्र विचारों एवं उदार सोच पर बल दिया।
- वे धम्र में औपचारिक पूजन, कठोरता एवं कट्टरता के विरुद्ध थे।
- सूफियों ने धार्मिक संतुष्टि के लिए ध्यान पर जोर दिया।
- भक्ति संतों की तरह, सूफी भी धर्म को ईश्वर के प्रेम एवं मानवता की सेवा के रूप में परिभाषित करते थे।
- सूफी विभिन्न सिलसिलों श्रेणियों में विभाजित हो गए।
- प्रत्येक सिलसिले में स्वयं का एक पीर यानी मार्गदर्शक था जिसे ख्वाजा या शेख भी कहा जाता था।
- पीर एवं उसके शिष्य खानका(सेवागढ़) में रहते थे।
- पीर अपने कार्य को आगे जारी रखने के लिए वली अहद (उत्तराधिकारी) नामित कर देता था।
- समां — पवित्र गीतों का गायन
- ईराक में बसरा सूफी गतिविधियों का केन्द्र बन गया।
सिलसिले दो प्रकार के थे—
- बेशरा और बाशरा।
- बाशरा के अंतर्गत वे सिलसिले आते थे जो शरा (इस्लामी कानून) को मानते थे और नमाज, रोजा आदि नियमों का पालन करते थे। इनमें प्रमुख थे चिश्ती, सुहरावर्दी, फिरदौसी, कादिरी व नख्शबंदी सिलसिले थे।
- बे-शरा सिलसिलों में शरीयत के नियमों को नहीं मानते थे। जैसे कलन्दर, फिरदौसी सिलसिले।
भारत में सूफीमत
- भारत में सूफी मत का आगमन 11वीं और 12वीं शताब्दी में माना जाता है।
- अल हुजवारी भारत में बसे सूफी, जिनका निधन 1089 ई. में हो गया। उन्हें दाता गंजबख्श (असीमित खजाने के वितरक) के रूप में जाना जाता है।
- प्रारंभ में सूफियों के मुख्य केन्द्र मुल्तान व पंजाब थे।
- भारत में आने से पूर्व ही सूफीवाद ने एक निश्चित रूप ले लिया था।
- अबुल फजल ने ‘आइन-ए-अकबरी’ में 14 सूफी सिलसिलों का उल्लेख किया है।
चिश्ती सिलसिला
- चिश्ती सिलसिले की स्थापना खुरासान में अबू इशाक ने की थी।
- भारत में चिश्ती सिलसिला सबसे अधिक लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध हुआ।
- भारत में चिश्ती परंपरा के प्रथम संत शेख उम्मान के शिष्य ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती (जन्म 1142 ई. और मृत्यु 1236 ई. में अजमेर में हुई) थे। इन्होंने ‘चिश्तिया परंपरा’ की नींव रखी थी।
- उनकी दरगाह अजमेर में स्थित है।
भारत में ‘चिश्ती’ सिलसिले की नींव रखने वाले थे?
1. ख्वाजा बख्तियार काकी
2. मोईनुद्दीन चिश्ती
3. निजामुद्दीन औलिया
4. मंसूर
उत्तर- 3
- मोईनुद्दीन चिश्ती 1192 ई. में मुहम्मद गौरी के साथ भारत आए थे।
- मोईनुद्दीन चिश्ती ने अजमेर को अपना केंद्र (खानकाह) बनाया। उनकी दरगाह अजमेर में स्थित है और ‘ख़्वाजा साहब’ के नाम से प्रसिद्ध है।
- इनके शिष्यों में शेख हमीउद्दीन और कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी काफी लोकप्रिय थे। शेख हमीउद्दीन को ख्वाजा ने ‘सुल्तान तारीकिन’ की उपाधि प्रदान की थी।
मोईनुद्दीन चिश्ती के शिष्य जिन्हें उन्होंने ‘सुल्तान तारिकीन’ की उपाधि प्रदान की?
1. कुतुबुद्दीन बख्तिायार काकी
2. शेख फरीदुद्दीन
3. शेख हमीउद्दीन
4. निजामुद्दीन औलिया
उत्तर- 3
- कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की खानकाह का कई क्षेत्रों के लोगों ने दौरा किया। दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने कुतुबुद्दीन को ‘शेख-उल-इस्लाम’ का पद देने पर अस्वीकार करने वाले सूफी संत थे।
- कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी का जन्म भारत में हुआथा। वे पहले मुल्तान में बसे, फिर इल्तुतमिश के समय दिल्ली आ गये। बाद में माजमुद्दीन सुगरा शेख—उल—इस्लाम से सम्बन्ध बिगड़ जाने पर अजमेर जाने का फैसला किया। शेख कुतुबुद्दीन रहस्यवाद गीतों के बड़े प्रेमी थे।
- इनके शिष्यों में शेख फरीदुद्दीन मसूद गज ए शिकार अधिक प्रसिद्ध है। ये गुरु नानक से काफी प्रभावित थे।
- वस्तुतः बाबा फरीद के कारण चिश्ती सिलसिले को भारत में अत्यधिक प्रसिद्धि मिली।
- सुल्तान इल्तुतमिश ने कुतुबमीनार को अजोधन के शेख फरीदुद्दीन को समर्पित किया। जिन्होंने चिश्ती सिलसिलों को आधुनिक हरियाणा और पंजाब में लोकप्रिय किया।
- बाबा फरीद का हिन्दुओं एवं मुसलमानों के द्वारा सम्मान किया जाता था। इनकी प्रसिद्धि के प्रभाव से सिख गुरु अर्जुन देव ने ‘गुरुग्रंथ साहिब’ में इनके कथनों को संकलित कराया है।
- बाबा फरीद के सबसे प्रसिद्ध शिष्य शेख निजामुद्दीन औलिया (1238-1325 ई.) ने दिल्ली को चिश्ती सिलसिले का महत्वपूर्ण केन्द्र बनाने का उत्तरदायित्व संभाला। वह 1259 ई. में दिल्ली आया और दिल्ली में अपने 60 वर्षों के दौरान उन्होंने 7 सुल्तानों का शासनकाल देखा।
- एक बार अलाउद्दीन खिलजी ने निजामुद्दीन औलिया से मिलने की इच्छा जाहिर की, लेकिन औलिया ने कहा, ‘मेरे घर में दो दरवाजे हैं, यदि सुल्तान एक से अंदर आता है तो मैं दूसरे से बाहर चला जाउंगा।’
- सुल्तान गयासुद्दीन ने बंगाल अभियान के समय शेख को एक पत्र लिखा था जिसके प्रत्युत्तर में औलिया ने कहा कि ‘हनोज दिल्ली दूर अस्त’।
- शेख निजामुद्दीन को ‘महबूबे इलाही’ के नाम से भी जाना जाता है। शेख निजामुद्दीन एकमात्र अविवाहित चिश्ती सूफी संत थे।
- उन्हें राज्य के शासकों और रईसों के साथ और राजकाज से दूर रहना पसंद था।
- वे किसी भी सुल्तान के दरबार में उपस्थित नहीं हुए।
- निजामुद्दीन औलिया के प्रिय शिष्य अमीर खुसरो थे।
- शेख नसीरूद्दीन महमूद, चिराग-ए-दिल्ली के नाम से प्रसिद्ध थे। शेख चिराग को कुतुबुद्दीन मुबारकशाह तथा मुहम्मद बिन तुगलक के कारण कुछ समस्याओं का सामना भी करना पड़ा।
- चिश्ती संतों ने संगीत को बढ़ावा दिया।
- चिश्ती सिलसिले के संत व्यक्तिगत संपत्ति को आत्मिक उन्नति और विकास के मार्ग में बाधा मानते थे। उनका रहन—सहन अत्यंत साधारण था।
- चिश्ती सिलसिले के संत ईश्वर के प्रति प्रेम और मनुष्य मात्र की सेवा में विश्वास रखते थे। वे मनुष्य मात्र की सेवा को भक्ति से भी उंचा समझते थे।
- ये कर्मकाण्डों के विरोधी थे, जनकल्याण पर पूरा ध्यान देते थे।
- राजनीति से दूर रहते थे।
- इस्लाम में पूर्ण आस्था रखते हुए सर्वधर्म समभाव पर समान रूप से बल देते थे।
- निम्न वर्गों के प्रति ज्यादा सक्रिय थे। संगीत समारोह का आयोजन करना तथा उनमें भाग लेते थे।
दक्षिण भारत में चिश्ती सिलसिला
- भारत में चिश्ती संप्रदाय सबसे अधिक लोकप्रिय व प्रसिद्ध हुआ।
- दक्षिण भारत में चिश्ती सिलसिले को प्रारंभ करने का श्रेय निजामुद्दीन औलिया के शिष्य ‘शेख बुरहानुद्दीन गरीब’ को जाता है। इन्होंने दौलताबाद को अपने प्रचार-प्रसार का केंद्र बनाया।
- मुगल शासक अकबर फतेहपुर सीकरी के चिश्ती संत शेख सलीम चिश्ती के प्रति आदर भाव रखता था तथा अपने पुत्र जहाँगीर को उनका ही आशीर्वाद समझता था। ‘फतेहपुर सीकरी’ में अकबर ने शेख सलीम चिश्ती के मकबरे का निर्माण कराया।
- चिश्ती सिलसिले के संत प्रवृत्ति से अत्यंत उदार थे। उन्होंने ऊंच-नीच, धर्म-जाति और जन्म के भेदभाव को त्यागकर मानव सेवा व प्रेम को प्रमुखता दी।
- चिश्ती सम्प्रदाय के गेसूदराज ने गुलबर्गा को केन्द्र बनाकर दक्कन में प्रचार किया।
- चिश्ती सिलसिले से संबंधित संत सुल्तान या अमीरों से कोई वास्ता नहीं रखते थे।
सुहरावर्दी सिलसिला
- यह सिलसिला भारत के उत्तर—पश्चिमी क्षेत्र में अधिक प्रचलित था।
- इस सिलसिले के संस्थापक शेख शिहाबुद्दीन सहुरावर्दी थे।
- उनके शिष्यों में शेख हमीदुद्दीन नागौरी और मुल्तान के शेख बहाउद्दीन जकारिया विशेष प्रसिद्ध थे।
- भारत में इस सिलसिले को संगठित करने का श्रेय शिहाबुद्दीन के शिष्य शेख बहाउद्दीन जकारिया (1182—1262) जाता है। उसने मुल्तान में अपने खानकाह की व्यवस्था की।
- उसने खुलकर कुबाचा के विरुद्ध इल्तुतमिश का पक्ष लिया, इस पर इल्तुतमिश ने उसे शेख—उल—इस्लाम (इस्लाम के नेता) की उपाधि प्राप्त की।
- सुहरावर्दियों ने चिश्ती सिलसिले के विपरीत, सुल्तानों के साथ नजदीकी संपर्क बनाए। उन्होंने उपहार, जागीरें एवं सरकारी नौकरियां स्वीकार कीं।
- यह सिलसिला पंजाब और सिंध प्रांत में फैला था।
- इसके प्रमुख संतों में शेख रुक्नुद्दीन, शेख समाउद्दीन जमाली, मखदूमे जहांनियां, सैय्यद जलालुद्दीन बुखारी आदि थे।
- शेख रुक्नुद्दीन ने सुहरावर्दी सिलसिले को काफी प्रसिद्धि दिलाई।
- बहाउद्दीन के पुत्र सहरुद्दीन आरिफ मुल्तान में तथा शिष्य सैयद जलालुद्दीन खुर्श बुखारी सिन्ध में सक्रिय थे।
- शेख हमीदुद्दीन की याद में नागौर में इल्तुतमिश ने अतारकीन का दरवाजा बनाया।
सुहरावर्दी सिलसिले के बारे में सत्य कथन है-
- इन्होंने चिश्ती सिलसिला द्वारा अपनायी गई रीति—रिवाजों का त्याग कर दिया।
- वे राजनीति मसलों में भी भाग लेते थे।
- सुहरावर्दी सिलसिला का सामाजिक आधार उच्च वर्ग था।
- सुहरावर्दी सूफी सम्प्रदाय की एक प्रमुख शाखा फिरदौसिया थी। इनका मुख्य कार्य क्षेत्र बिहार था और शेख शर्फुद्दीन यह्या इसके प्रसिद्ध विद्वान थे। इन्होंने काफी लिखे जिनको ‘मक्तूवात’ के नाम से जाना जाता है।
- उन्होंने मानवता की सेवा पर जोर दिया था।
कादिरी सिलसिला
- स्थापना बगदाद के शेख अब्दुल कादिर जिलानी ने 12वीं सदी में की थी।
- भारत में इस सिलसिले के पहले संत शाह नियामत उल्ला और नासिरुद्दीन महमूद जिलानी थे।
- शेख अब्दुल जाकिर फतेहपुर सीकरी के दीवान—ए—आम में नमाज पढ़ते थे जिस पर अकबर ने विरोध किया तो शेख ने उत्तर दिया— ‘मेरे बादशाह, यह आपका साम्राज्य नहीं है कि आप आदेश दें।’
- शाहजहां के ज्येष्ठ पुत्र दाराशिकोह कादिरी सूफी सिलसिले क अनुयायी थे।
- उनकी मुलाकात मियां मीर से लाहौर में मुलाकात की थी।
- बाद में दाराशिकोह मुल्लाशाह बदख्शी का शिष्य बन गया।
- कादिरी सिलसिले का दृष्टिकोण रूढ़िवादी और कट्टर था। वे शासक वर्ग से संबंध रखते थे और राज्याश्रय प्राप्त करते थे।
- कादिरी सिलसिले के अनुयायी गाना—बजाना पसंद नहीं करते थे। ये हरे रंग की पगड़ी बांधते थे।
नख्शबंदी सिलसिला
- इस सिलसिला की स्थापना 14वीं सदी में ख्वाजा वहाउद्दीन नक्शबंद ने की थी।
- भारत में इसका प्रचार ख्वाजा वकी बिल्लाह (1563—1603 ई.) ने किया था।
- ये लोग सनातन इस्लाम में आस्था रखते थे और पैगम्बर द्वारा प्रतिपादित नियमों का ही पालन करते थे।
- यह सिलसिला धर्म में परिवर्तनों का पूर्ण रूप से विरोधी था।
- ख्वाजा वकी बिल्लाह के शिष्यों में शेख अहमद सरहिन्दी प्रमुख थे जिनको मुजद्दिद के नाम से जाना जाता था। उन्होंने बहादतुल वुजूद के सिद्धांत की जगह पर बहादतुल शुहूद (प्रत्यक्षवाद) का सिद्धांत प्रतिपादित किया।
- शेख सरहिन्दी के कहना था कि ‘मनुष्य और ईश्वर में सम्बन्ध स्वामी और सेवक का है, प्रेमी और प्रेमिका का नहीं।’
- शेख सरहिन्दी के पत्रों का संकलन मक्तूवाद—ए—रब्बानी के नाम से प्रसिद्ध है।
- उन्होंने शिया सम्प्रदाय तथा दीन—ए—इलाही की आलोचना की।
- मुगल शासक जहांगीर इनके शिष्य थे।
- औरंगजेब के पुत्र ‘शेख मासूम’ का शिष्य बन गया।
- नक्शबंदी सिलसिले के दूसरे महासंत दिल्ली के वहीदुल्ला (1707—62 ई.) थे। इन्होंने बहादतुल वुजूद और बहादतुल शुहूद के सिद्धांतों को एक—दूसरे में समन्वित कर दिया।
- अंतिम विख्यात संत ‘ख्वाजा मीर दर्द’ थे। मीर दर्द ने अपना मत चलाया जिसे ‘इल्मे इलाही मुहम्मद’ कहते थे।
- मीर दर्द उर्दू और फारसी के अच्छे कवि भी थे।
शत्तारिया सिलसिला
- शत्तारिया सिलसिले के प्रवर्तक शेख अब्दुल्ला शत्तार थे।
- इस सिलसिले के दूसरे संत शाह मुहम्मद गौस थे। इनके दो प्रसिद्ध ग्रंथ थे— जवाहिर—ए—खस्मा और अबरार—ए—गौसिया।
- अंतिम प्रसिद्ध संत शाह वजीउद्दीन थे।
कलन्दरिया सिलसिला
- सर्वप्रथम संत अब्दुल अजीज मक्की को माना जाता है। इनके शिष्य खिज्ररूमी कलंदर खपरादरी थे।
- इनकी वजह से चिश्तिया-कलंदरिया उपशाखा का जन्म हुआ। सैय्यद नजमुद्दीन कलंदर ने इसका खूब प्रचार कियां
- कुतुबुद्दीन कलंदर अंतिम संत जिन्हें सरंदाज की संज्ञा दी।
- मदारिया सिलसिले के प्रवर्तक शेख बदीउद्दीनशाह मदार थे।
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