अकबरनामा का लेखक अबुल फजल है। अकबरनामा में अबुलफजल ने अकबर की बढ़ा-चढ़ाकर प्रशंसा की है। जो अतिशयोक्ति की सीमाओं को भी पार कर गये तत्कालीन आर्थिक घटनाओं के लिये यह प्रामाणिक ग्रन्थ है। अबुल फजल ने सन् 1597-98 ई. में अकबरनामा पुरा किया था। इसकी रचना में 7 वर्ष का समय लगा था। यह तीन जिल्दों में बँटा हुआ है।
इसकी तीसरी जिल्द आइने-ए-अकबरी है। यह अकबरनामा की जान है, उसने अलग ग्रन्थ का नाम ग्रहण कर लिया है। अकबरनामा बादशाह अकबर के काल का अधिकारिक एक राजकीय इतिहास है। जो बादशाह के निर्देश एवं प्रश्रय में लिखा गया था। अबुल फजल ने अकबरनामा में आदम से लेकर अकबर के शासन के 46 वें वर्ष तक का वर्णन किया है।
इस रचना में अबुल फजल ने पुरालेखीय सामग्री का इतने बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया है, जितना अन्य किसी समकालिक मुगल इतिहास लेखक ने नहीं किया है। अबुल फजल ने इसके लेखन में इतिहास की क्रमबद्धता को बनाये रखने का प्रयास किया है। उसके लेखन में एक स्थान पर घटनाओं की अनुक्रमता के टूटने पर उसे दूसरे स्थान पर सरलता से ढूढ़ा जा सकता है। उसके तिथिक्रम में कोई त्रुटि नहीं मिलती।
अबुल फजल की सोच रही है कि वह जब अकबरी इतिहास लिखे तो इतिहास लेखन कला को मौलिकता ही नहीं उसे अभिरूचिपूर्ण बना सके। अबुल फजल की भाषा शैली स्तुतिपरक होकर उद्देश्यपरक है। उसकी प्रशंसावादी एवं अलंकारवादी शैली को हेनरी बेवरीज ने घृणास्पद करार दिया हैं।
खलिक अहमद निजामी कहते है कि वह बौद्धिक और भौतिक दोनों रूपों से अभिजात्य दृष्टिकोण एवं अभिरूचियों वाला व्यक्ति था। वह अपने लेखन को जनसामान्य के पठन हेतु सरल शैली के उपयोग का इच्छुक नहीं था। इसमें संदेह नहीं कि दरबारी प्रश्रय में लिखे गये अकबरनामा में ऐसी त्रुटियों का होना स्वाभाविक है किन्तु उसके ऐतिहासिक तथ्य महत्वपूर्ण हैं।
अकबरनामा के प्रथमखण्ड में अकबर के जन्म से 17वें वर्ष (1573-74 ई.) तक के शासन काल का इतिहास है। द्वितीयखण्ड में 17 वर्ष से लेकर 46 वे वर्ष (1602) ई. तक का इतिहास है।
अकबरनामा के विषय में अतहर अब्बास रिजवी लिखते हैं कि इतिहास के साथ-साथ इसमें समकालीन राजनीति व अर्थव्यवस्था पर भी प्रकाश पड़ता है। अबुल फजल कभी-कभी घटनाओं से संबंधित व्यक्तियों के पूर्वजों एवं उत्तराधिकारियों के संबंध में विस्तृत जानकारी देता है। जिससे वस्तु-विषय का बोध हो सके। वह महत्वपूर्ण जानकारी देने से पहले उसकी पृष्टभूमि को भी बतलाता है।
अबुल फजल की दृष्टि में अकबर एक आदर्श व सफल शासक था।
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