अर्थ की अवधारणा | शब्द और अर्थ का संबंध

अर्थ की अवधारणा 

भाषा के अर्थ पक्ष के वैज्ञानिक विश्लेषण का नाम ही अर्थ विज्ञान है। डॉ.द्वारिकानाथ सक्सेना जी के अनुसार – भाषा की सफलता उसकी अर्थ वत्ता में ही है। यदि किसी भाषा की ध्वनियाँ निरर्थक एवं अर्थहीन हैं तो वे न तो समाज के लिए उपयोगी है और न ही उनका अध्ययन भाषा विज्ञान में किया जाता है। अतः अर्थ विज्ञान के अंतर्गत केवल उन्ही सार्थक ध्वनियों से निर्मित शब्दार्थों का अध्ययन किया जाता है ,जो मानव समाज के लिए उपयोगी होते हैं। साथ ही शब्दार्थ का अध्ययन करते हुए यह भी न देखने का प्रयास किया जाता है कि अर्थ का स्वरुप क्या है ,शब्दार्थ का सम्बन्ध क्या है ? अर्थ का ज्ञान कैसा होता है ? अर्थ बोध के साधन क्या है ? अनेकार्थी शब्द के अर्थ का निर्माण कैसे किया जाता है ? अर्थ परिवर्तन की कौन कौन सी दिशाएँ होती हैं ,अर्थ परिवर्तन के कौन कौन से कारण होते हैं ? बौद्धिक नियम या शब्दार्थ परिवर्तन सम्बन्धी सिद्धांत कौन कौन से होते हैं ?

अर्थ का स्वरुप 

अर्थ की अवधारणा | शब्द और अर्थ का संबंध

अर्थ शब्द की अन्तरंग शक्ति का नाम है ,क्योंकि शब्द तो शब्द से बहिर्भूत होता है ,जबकि अर्थ अबहिर्भूत या अपृथक होता है। पतंजलि के अनुसार – शब्द अपने अपने अर्थ का बोध कराने के लिए होते हैं। परन्तु जिस जिस अर्थ के बोध के लिए शब्द का प्रयोग होता है। वही उसका अर्थ होता है। 

डॉ.भोलानाथ तिवारी के अनुसार – किसी भी भाषिक इकाई (वाक्य ,वाक्यांश ,रूप ,शब्द ,मुहावरा ,आदि ) . को किसी भी इन्द्रिय से ग्रहण करने में जो मानसिक प्रतीति होती है ,वही अर्थ है। 

अर्थ की प्रतीति 

इसके दो आधार है – 
  • आत्म अनुभव अथवा प्रत्यक्ष ज्ञान – मीठा ,खट्टा ,कड़वा ,सर्दी ,गर्मी ,शूल ,पीड़ा आदि शब्द के अर्थ व्यक्ति के अपने अनुभव पर आधारित है। 
  • पर अनुभव अथवा परोक्ष ज्ञान – जिन लोगों ने कभी मदिरा पान नहीं किया है ,उनके लिए उसकी मादकता पर अनुभव पर आधारित है। 

अर्थ बोध के साधन 

अर्थ बोध के निम्नलिखित साधन है – 
  • समाज में प्रचलित व्यवहार से शब्दों के अर्थ का बोध हो जाता है। व्यक्ति समाज से ही भाषा सीखता है और उस व्यवहार से ही अर्थ ग्रहण सीखता है। 
  • अर्थ बोध में कोष का भी महत्व होता है। 
  • इसके द्वारा मूल प्रकृति और प्रत्यय को जानकारी को जाने के कारण शब्दों का अर्थ ज्ञात हो जाता है। 
  • कुछ क्लिष्ट शब्दों का अर्थ बोध उनकी व्याख्या किये जाने पर भी स्पष्ट होता है। यथा – लक्षणा,व्यंजना का अर्थ व्याख्या करने पर ही स्पष्ट हो सकता है। 
  • एक समान वस्तुओं में से किसी एक को देखकर दूसरी वस्तु के लिए प्रसिद्ध शब्द के अर्थ का बोध होता है। 

शब्द और अर्थ का संबंध

भारत वर्ष में शब्द और अर्थ के सम्बन्ध पर अनेक वैयाकरणों तथा दार्शनिकों ने विस्तार से विचार किया है। वे शब्द और अर्थ में नित्य सम्बन्ध मानते हैं। पाणिनि ,कात्यायन ,पतंजलि आदि वैयाकरण शब्द और अर्थ की नित्यता से यही आशय लेते हैं कि शब्द और अर्थ का कभी सम्बन्ध विच्छेद नहीं होता है। अर्थ शब्द की स्वाभाविक विशेषता है। दोनों का अस्तित्व एक दूसरे पर निर्भर करता है। पतंजलि के सिद्धे शब्दार्थ सम्बन्धे का भी यही आशय है। शब्द और अर्थ का सम्बन्ध स्वभावसिद्ध है। उनके इसी सम्बन्ध के कारण भावों ,वस्तुओं पदार्थों की पृथकता का बोध होता है। कोई शब्द कब से विशेष अथवा सामान्य अर्थ में प्रयुक्त हुआ ,यह बताना कठिन है। कुछ भारतीय वैयाकरणों इसे अनादिकाल से आया हुआ मानते हैं किन्तु यह ठीक नहीं जान पड़ता है। मनुष्य ने आवश्यकतानुसार विभिन्न अर्थों से सम्बंधित नए नए शब्दों का विकास शने शने किया होगा। शब्द और अर्थ का नियमन किसी दैवी सत्ता ने किया और मनुष्य से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है ,यह कहना युक्तिसंगत नहीं है। शब्द अर्थ में वाचक वाच्य ,कारण कार्य का सम्बन्ध है। अतः यह कहा जा सकता है कि शब्द और अर्थ का अविच्छिन्न सम्बन्ध है। 

शब्द को कुछ वैयाकरण नित्य नहीं मानते हैं उनकी दृष्टि में शब्द सदैव एक रूप में वर्तमान नहीं रहता है ,बोलने पर ही प्रकट होता है और फिर तुरंत ही नष्ट हो जाता है। अतः जब शब्द ही नित्य नहीं है तो फिर शब्द और अर्थ की नित्यता कैसे स्थिर रह सकती है। किन्तु ये तर्क शब्द की सार्थकता को नष्ट नहीं कर देते हैं। शब्द शून्य में अथवा मनुष्य के मस्तिष्क में सदैव वर्तमान रहता है और ध्वनियों के द्वारा आवश्यकता वह प्रत्यक्ष हो जाता है। शब्दों के रूप या अर्थ में विकार होने से इसके अस्तित्व में कोई बाधा नहीं होती है। शब्द में ध्वनि सम्बन्धी विकार आता रहता है और तजन्य उस पर जो अस्पष्टता का आरोप लोग कर लेते हैं ,वह अर्थ सम्बन्धी ही है। शब्द का अर्थ ही क्यों न बदल जाए लेकिन शब्द अर्थविहीन कभी नहीं होता है। शब्द और अर्थ एक ही आत्मा के दो रूप अथवा एक सिक्के के दोनों भाग समान कहे जा सकते हैं। जब किसी शब्द का उच्चारण किया जाता है तो श्रोता वक्ता के अभिप्राय से तादात्म्य स्थापित कर कथित भाव को समझता है। इस प्रकार शब्द ,अर्थ और ज्ञान का अटूट सम्बन्ध है। 

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