आलो आँधारि – बेबी हालदार

आलो आँधारि बेबी हालदार

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आलो आंधारि पाठ का सारांश 

आलो आँधारि पाठ में लेखिका बेबी हालदार अपने बारे में बताते हुए कहती हैं कि वे किराए के घर में रहती थी। उनके पास उस वक़्त कोई काम ना था। तो वो दिनभर अपने बच्चों के बारे में सोचती रहती थीं कि वे कैसे उन्हें खिलाएंगी, कैसे पालेंगी- पोसेंगी । वो काम ढूंढने के लिए एक घर से दूसरे घर जाती। वो हमेशा इस चिंता में रहती कि कैसे महीने खत्म होने के बाद घर का किराया देंगी। काम के साथ वो अपने लिए सस्ता घर भी ढूंढ़ रही थी। पर काफी समय होने के बाद भी उन्हें काम नहीं मिल पा रहा था। चूंकि लेखक अपने बच्चों के साथ अकेली रहती थीं, इस कारण सभी उनसे उनके पति के बारे में अनेक सवाल किया करते थे, जिस कारण उन्हें उन लोगों के पास खड़े होने की बिल्कुल भी इच्छा नहीं होती तो वो उसी समय अपने बच्चों को लेकर काम की तलाश में निकल पड़ती। जब वो काम से लौटती तो पड़ोस की औरतें आकर पूछने लगती – काम मिला? और उनके मुंह का हावभाव देखकर वो समझ जाती और दिलासा देती की थोड़ा इधर उधर ढूंढने से मिल जाएगा।
सुनील नाम का एक तीस – बत्तीस वर्ष का युवक जो लेखिका को पहचानता था, जिसे लेखिका ने अपने लिए काम ढूंढने को बोल दिया था, एक दिन वो लेखिका के पास आया और बोला काम मिला? लेखिका ने जवाब दिया, नहीं, अभी तक नहीं मिला है। फिर सुनील ने उसे एक साहब के घर ले गया ताकि वो खुद ही उनसे काम की बात करले। साहब ने कहा – यहां जो काम करती है, उसे मैं आठ सौ रूपये देता हूं। तुम्हारे पैसों के बारे में मैं तुम्हारा काम देखकर बताऊंगा। लेखिका सुबह छह से सात बजे तक आने का समय साहब को बताती है।
अगले दिन जब लेखिका काम करने साहब के घर जाती है तो दूर से ही पैंतीस से चालीस वर्ष की एक विधवा को उसी घर में काम के लिए जाती देखती हैं। साहब बाहर पेड़ों में पानी दे रहे थे। लेखिका को देखती हुए ही वे अंदर गए और उस औरत से साफ साफ बात करके उसे कम से निकाल दिया। वह औरत भी बंगाली थी। बाहर आने के बाद वो औरत लेखिका को गालियां देने लगी। लेखिका उस औरत से कहती हैं कि मुझे नहीं मालूम था कि यहां कोई काम करता है वरना मै नहीं आती। साहब लेखिका को अंदर बुलाकर उनके काम में बारे में उन्हें समझा देते हैं। उनका काम देखकर सभी आश्चर्य करते। बातों बातों में जब साहब को पता चला कि लेखिका अपने बच्चों को पढ़ाना तो चाहती है पर पढ़ा नहीं पा रही, तो साहब ने लेखिका को अपने बच्चों को लेकर आने को कहा ताकि वहां नजदीक में स्तिथ स्कूल में उनका नाम लिखवा सके। 
बेबी हालदार
बेबी हालदार
लेखिका का इतने में ही गुजारा होने वाला नहीं था। घर का किराया, बच्चों को पालना – पोस्ना इतना आसान नहीं था। इसलिए वो और काम करना चाहती थी, तो उन्होंने साहब को बोल रखा था कि किसी के घर काम करने वाली की जरूरत हो तो बता दें | लेखिका कहती हैं कि साहब कभी बर्तन पोछते नजर आते तो कभी जाले साफ करते। जब वे उनसे पूछती की आपको क्या जरूरत है ये करने की तो वो बात को हमेशा टाल देते। सायद साहब उन्हें देखकर ये सोचा करते थे कि इस बेचारी को किस बात की सजा मिल रही है। अपने बच्चों के साथ अकेले रहने के लिए क्यूं बाध्य होना पड़ा।
आगे लेखिका, साहब को अपनी दिनचर्या बताती हैं, कि कैसे वे घर जाकर अपना काम करती हैं और कितना व्यस्त रहती हैं। साहब उनके परेशानी को समझते हुए उसकी सहायता करने की इच्छा जाहिर करते हैं और कहते हैं कि तुम मुझे अपना बाप, भाई, मां, बंधु सब कुछ मान सकती हो। कोई भी बात मुझे निसंकोच बता सकती हो। एक रोज साहब(तातुश), लेखिका से उनके पढ़ाई – लिखाई के बारे में पूछने लगे तो वे जवाब देती हैं कि छठी – सातवीं तक पढ़ी हैं। साहब उन्हें अपने पुस्तक को पढ़ने की आज्ञा दे देते हैं। धीरे धीरे पुस्तक पढ़ने में लेखिका माहिर हो जाती हैं। एक रोज तातुश उन्हें एक पैन और कॉपी देकर उनसे ख़ाली समय में उसमे उसके जीवन की पुरानी बातें याद करके लिखने को कहते हैं।धीरे धीरे रोज वो उसमे लिखने लग जाती हैं।
चूंकि लेखिका अकेली अपने बच्चों के साथ रहती थी तो लोग उसके साथ अक्सर छेड़छाड़ किया करते थे। पर तातुश के घर इतना प्यार मिलता था कि वो सारी परेशानियां भूल जाती थीं। एक दिन लेखिका जब घर में बैठी थी तभी मकान मालिक का बड़ा बेटा आकर उसके घर के दरवाजे पर बैठ गया और ऐसी बातें करने लगा कि उसको शर्म आने लगी। ना ही वो अब बाहर जा पा रही थी ना ही उसे जाने को कह पा रही थी। अब वो इस घर को भी छोड़ने का सोचने लगी। पर अचानक एक दिन घर तोड़कर सारा सामान फेक दिया गया, जिससे वो सोचने लगी कि अब अचानक से अपने बच्चों को लेकर कहां जाऊं। उसके मदद के लिए अब कोई ना था। और अचानक से उसे नया घर मिलना संभव भी ना था। 
जब लेखिका ने सारी बात तातुश को बताई तो उन्होंने उसे तुरंत सारा समान ले कर घर आने को कहा फिर उसे ऊपर एक कमरा मिल गया जिसमें उसने अपना सारा सामान जमा दिया। तातुश उसे अपनी बेटी की तरह माना करते। कभी वो बीमार पड़ती तो उन्हें बहुत फिक्र हो जाती वे खुद दावा ला देते और समय समय पर वे खुद उन्हें दवाई दिया करते। आगे लेखिका बताती हैं कि दो माह से अधिक हो गया था और उन्हें उसके बड़े बेटे के बारे में कोई खबर नहीं मिल पा रही थी। वो ये तक नहीं जानती थी कि उसका बड़ा बेटा कहां रहता है। तातुश के बड़े प्रयत्नों के बाद जब उसका पता चला तो वो अपने बड़े बेटे से एक दिन मिलने गई। उसके बाद तातुश ये चाहते थे कि वो उसके लिए काम इधर ही ढूंढे, ताकि वो आगे की पढ़ाई भी कर सके या फिर नया काम सीख सके। फिर कुछ समय पश्चात ऐसा ही घर तातुश ने ढूंढ़ कर उसे काम पर लगा दिया था। 
वैसे लेखिका जल्दी किसी से घुलती मिलती नहीं थी पर एक दिन पार्क में घूमते हुए उसकी मुलाकात सुनीति नाम की बीस बाईस वर्ष की लड़की से हुई, वो भी बंगाली थी। वो उससे घुलने लगी थी। पर बहुत ही जल्द सुनीति चली गई जिससे लेखिका का मन भी पार्क में नहीं लगने लगा। तत्पश्चात वो वहां जाना छोड़ दी और वही समय अपने लिखने- पढ़ने में देने लगी। अब तक जितना वह लिख चुकी थी तातुश ने फोटोकॉपी कराकर उसे अपने दोस्त के पास कोलकाता भेज दिया था। एक दिन तातुश लेखिका के लिए लिखी गई अपने दोस्त की चिट्ठी को ले कर आए और उसे पड़कर सुनाने लगे। उसमे उनकी लेखनी को लेकर खूब प्रशंशा की गई थी और उसे किसी पत्रिका में छापने की बात कही थी। तातुश के वो मित्र अक्सर पत्र के माध्यम से लेखिका का हौसला बढ़ाया करते और उनकी लेखनी की सराहना करते।
लेखिका बताती हैं कि एक दिन जब उनके बाबा घर आए,उनसे बातों बातों  में पता चला कि उनकी मां की मृत्यु हो गई है।बताते हुए उसके बाबा की आंखों में आंसू आ गए थे। बाबा घर जाते वक़्त बिल्कुल निश्चिंत होकर गए क्योंकि वे जान चुके थे कि इस घर जैसी इज्जत उसे और कहीं नहीं मिल सकती। इसके बाद वे अक्सर लेखिका को फोन कर उनसे उनका हालचाल पूछा करते और उनकी लेखनी के बारे में भी जानना चाहते। लेखिका आगे बताती हैं कि वो पहले यह सोचा करती थीं कि अपनी सहेलियों से दूर वे नहीं रह पायेंगी, पर एक वक़्त ऐसा आता है कि वो अपने बच्चों की पढ़ाई – लिखाई  तथा काम में इतना मगन हो जाती हैं कि उन्हें आभाष होता है कि वो कितनी गलत थीं। वो सहेलियों से बिछड़ने का दुख भूल ही चुकी थी और चाहने लगी थी कि उनमें से कोई उनसे मिलने ना आए। लेखिका को लोगों को खाना बना कर खिलाना जितना पसंद था उतना ही उपन्यास, कहानी, कविता, और अखबार पढ़ना भी पसंद था।
एक दिन पड़ोस का लड़का हाथ में एक पैकेट लिए दरवाजे पर खड़ा था। उसे लेकर वह चाई बनाने चली गई। चाई बनाते -बनाते जब वह पैकेट खोलती है तो देखती हैं कि पैकेट में एक पत्रिका है। जब वह उसे देखने लगी तो देखती हैं कि उसमें एक जगह उनका नाम लिखा है। आश्चर्य से वह उसे देखने लगी। उसमे लिखा था आलो – आंधारि,  बेबी हालदार! ख़ुशी से उसका मन हिलोरें मारने लगा। वह उसे बच्चों को दिखाने लगी । उसकी बेटी ने उसका नाम उसमे पढ़ा और कहा- मां इस किताब में तो तुम्हारा नाम लिखा है! और वे हसने लगे। उनका हस्ता चेहरा देखकर लेखिका का मन खुसी से भर आया और उन्हें गले से लगा ली। फिर अचानक ही जैसे उसे कुछ याद आया हो! वो उनसे हटी, और भाग कर तातुश के पास आई और उनके पैर छू कर प्रणाम किया। उन्होंने उसके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया…|| 

aalo andhari class 11 question answer आलो आंधारि के प्रश्न उत्तर

प्रश्न-1 पाठ के किन अंशों से समाज की यह सच्चाई उजागर होती है कि पुरुष के बिना स्त्री का कोई अस्तित्व नहीं है।क्या वर्तमान समय में स्त्रियों की इस सामाजिक स्थिति में कोई परिवर्तन आया है? तर्क सहित उत्तर दीजिए | 

उत्तर-  पाठ के इस अंश से यह सच्चाई उजागर होती है कि पुरुष के बिना स्त्री का अस्तित्व ही नहीं है। लेखिका बेबी हालदार अपने बच्चों के साथ एक किराए के घर में अकेली रहती थी। उसे अकेला रहता देख सभी उससे सवाल पूछते रहते! तुम यहां अकेली क्यों रहती हो? तुम्हारा स्वामी कहां रहता है? तुम्हारा स्वामी क्यों नहीं आता? क्या तुम यहां अकेली रह पाओगी ?
अगर किसी दिन लेखिका को घर पहुंचने में देर होती तो मकान मालकिन पूछने चली आती कि इतने देर कहां थी? इतने देर तक क्यों बाहर रहती हो? 
वर्तमान समय में स्त्रियों की सामाजिक स्थिति में बहुत ज्यादा परिवर्तन आया है। पुरुष के बिना ही स्त्रियां हर क्षेत्र में  सफलता प्राप्त कर रही हैं और अपना और अपने परिवार का नाम ऊंचा कर रही हैं। समाज में अब स्त्रियां अपना अलग सम्मान प्राप्त कर रही हैं। समाज अब उन्हें खुले दिल से स्वीकार भी का रहा है और वही सम्मान दे रहा है जो लड़कों को मिलता है।
प्रश्न-2  अपने परिवार से तातुश के घर तक तक के सफर में बेबी के सामने रिश्तों की कौनसी सच्चाई उजागर होती है?

उत्तर- अपने परिवार से तातुश के घर तक के सफर में बेबी को सच्चे रिश्तों का बोध हो गया। अपने पति से तंग आकर बेबी अपने तीन बच्चों के साथ अकेली रहती थी। वो लोगों के सवालों का जवाब दे दे कर थक चुकी थी। किसी ने भी उसकी मदद नहीं की यहां तक कि उसके सगे भाईयों ने भी। आस पड़ोस की गन्दी नजर उस पर रहती थी। सभी उसके साथ छेड़छाड़ किया करते थे। जबसे बेबी तातुश के घर नौकरी करने लगी, उसकी जिंदगी ही बदल गई। उसे  तातुश अपनी बेटी जैसा मानते थे। कभी किसी चीज की कोई कमी नहीं होने देते। उन्होंने बेबी की पढ़ाई लिखाई का भी ध्यान दिया, जिसके कारण वे लेखिका बन पायीं।

प्रश्न-3  इस पाठ से घरों में काम करने वालों के जीवन की जटिलताओं का पता चलता है। घरेलू नौकरों को और किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस पर विचार कीजिए।

उत्तर- प्रस्तुत पाठ से घरों में काम करने वालों के जीवन की अनेक जटिलताओं का पता चलता है कि किस प्रकार किस दिनभर मेहनत करने के बाद भी वे कम मजदूरी पाते हैं। सबका पेट भरने वाले को ही खुद खाली पेट सोना पड़ता है। उन्हें खुद के घर के बच्चों के पालन – पोषण और उनके पढ़ाई – लिखाई की चिंता हमेशा बनी रहती। कई घरों में नौकरों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है। बिना रुके, बिना थके उन्हें काम करते रहना पड़ता है। बीमार होने पर भी उनसे उसी हालत में काम कराया जाता है। वे कठिन मेहनत करने के बाद भी कई समस्याओं का सामना करते रहते हैं जिस पर कोई ध्यान नहीं देते।
प्रश्न-4 आलो आंधारी रचना बेबी की व्यक्तिगत समस्याओं के साथ साथ कई सामाजिक मुद्दों को समेटे है। किन्हीं दो मुख्य समस्याओं पर अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर –  मुख्य समस्या निम्नलिखित हैं – 
• आर्थिक तंगी – लेखिका बेबी हालदार घरों में काम करके अपना और अपने तीन बच्चों का पालन पोषण करती थी। उसकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि वो एक अच्छा सा कमरा तक ले कर नहीं रह सकती थी। वह ऐसे घर में रहने को मजबूत थी जहां उसे शौच करने बाहर जाना पड़ता। और यह समस्या खासकर स्त्रियों के लिए बहुत बड़ी समस्या बनी हुई है। 
• समाज में स्त्री की दशा – लेखिका बेबी हालदार अपने तीन बच्चों के साथ किराए के मकान में अकेली रहती थी। पति के साथ ना रहने के कारण उसे कई तरह के अवहेलनाओं का सामना करना पड़ता और आसपास के लोग उसके साथ छेड़छाड़ किया करते। चूंकि एक अकेली स्त्री को लेकर लोगों के विचार अच्छे नहीं हुआ करते हैं। सभी उस पर गंदी नजर रखा करते थे। कोई उसकी मदद को आगे नहीं आता।
प्रश्न-5 तुम दूसरी आशापूर्णा देवी बन सकती हो – जेठू का यह कथन रचना संसार के किस सत्य को उद्घाटित करता है?

उत्तर- आशापूर्णा देवी ने जीवन में अभावों के बावजूद लेखन के क्षेत्र में सफलता प्राप्त की। जेठू लेखिका के समक्ष आशापूर्णा देवी का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं और उसे कठिनाइयों के बावजूद भी सफ़लता हासिल करने के लिए प्रेरित करते हैं। वह इस सत्य को उजागर करते हैं कि अभावों तथा कठिनाइयों के होते हुए भी हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकते हैं। अगर कोई अच्छा लेखन कर रहा हो तो उसे प्रोत्साहित करके उसे उचाईयों तक पहुंचाया जा सकता है। जेठू चाहते थे कि लेखिका अपनी जीवनगाथा लिखती रहें जब तक वह पूरा ना हों जाए और लेखिका जब तक सफलता हासिल न कर ले।
प्रश्न-6 बेबी के जिंदगी में तातुश का परिवार ना आया होता तो उसका जीवन कैसा होता? कल्पना करें और लिखें।

उत्तर- अगर बेबी के जिंदगी में तातुश का परिवार ना आया होता तो उसका जीवन अभी भी पहले की तरह कठिनाइयों और अभावों में कट रहा होता। उसके पास ना रहने को अच्छा घर होता ना ही अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए अच्छी स्कूल। उसे ना ही लिखने की प्रेरणा मिल पाती और ना ही वो एक अच्छी लेखिका बन पाती। उसका जीवन समस्याओं से आज भी घिरा होता। उसकी मदद के लिए पहले की तरह कोई ना होता। उसकी जिंदगी दुख के साथ कट रही होती।


आलो आँधारि पाठ का शब्दार्थ

• आलो-आँधारि –    अंधेरे का उजाला
• दादा  –               बड़े भाई
• वयस –               उम्र, आयु 
• दरकार –             जरूरत, आवश्यकता 
• दीदिमा –             नानी 
• जेठू –                 पिता के बड़े भाई
• अभिधान –          शब्दकोश 
• दादा –                बड़ा भाई | 

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