कबीर की साखियाँ Kabir Ki Sakhiyan

कबीर की साखियाँ


कबीर की साखियाँ class eight hindi vasant kabir ki sakhiyan Kabir Ki Sakhiyaan Class 8 Summary, Explanation, Question Answers

Kabir Ki Sakhiyan Explanation  कविता  व्याख्या


जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

व्याख्या – कबीरदास जी प्रस्तुत दोहे में कहते हैं कि साधु की जाति हमें नहीं पूछना चाहिए। उसकी जाति पूछ कर या जानकार कोई लाभ नहीं होगा। साधु से केवल ज्ञान ग्रहण करना चाहिए। उसके दिए गए ज्ञान ही मानवता के लिए लाभप्रद होते हैं। जिस प्रकार तलवार की धार महत्वपूर्ण होती है। तलवार खरीदते समय म्यान का रंगरूप देखने की आवश्कता नहीं होती है ,उसकी धार और मजबूती महत्वपूर्ण होती है ,उसी प्रकार साधु का ज्ञान महतवपूर्ण है न की उसकी जाति। 
आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक।
कह कबीर नहिं उलटिए,वही एक की एक।
व्याख्या – कबीरदास जी प्रस्तुत पंक्तियों में कहते हैं कि हमें बुराई का जबाब बुराई के रूप में नहीं देना चाहिए। यदि हमें कोई गाली देता है तो उसके उत्तर में गाली नहीं देनी चाहिए। यदि वह व्यक्ति हमारी बुराई कर रहा है ,तो हमें उसका उत्तर नहीं देना चाहिए। प्रति उत्तर में मामला बढ़ता है। बुराई का उत्तर बुराई से नहीं दिया जा सकता है। भलमनसाहत ही किसी अपशब्द का उत्तर है।  
माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि।
मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै,  यह तौ सुमिरन नाहिं।

व्याख्या – कबीरदास ने प्रस्तुत दोहे में धार्मिक आडंबरों पर करार प्रहार किया है। उनका मानना है कि धर्म के पाखंडों में माला फेरना या ईश्वर का जाप महत्वपूर्ण नहीं है। माला अपनी उँगलियाँ में फेरते रहते हैं ,जीभ द्वारा नाम स्मरण करते रहते हैं।लेकिन हमारा मन ईश्वर के प्रति समर्पित न होकर दशों दिशाओं में भटकता रहता है। ईश्वर में यदि मन नहीं लगा है ,तो सारा आडम्बर व्यर्थ है। ईश्वर की प्राप्ति सहजता से होती है ,आडम्बरों से नहीं।  
कबीर घास न नींदिए, जो पाऊँ तलि होइ।
उड़ि पड़ै जब आँखि मैं, खरी दुहेली होइ।
व्याख्या – कबीरदास जी प्रस्तुत दोहे में कमजोर व्यक्तियों को न सताने की बात कह रहे हैं। घास को हमलोग अपने पैरों से रौंदते रहते हैं ,उसे तुच्छ और बेकार समझते है। जब यही घास का तिनका आँखों में गिर जाता है ,तो हमें कष्ट हो जाता है। इस प्रकार हमें समाज के कमजोर व्यक्तियों को कष्ट नहीं देना चाहिए। उन्हें भी यथोचित सम्मान देना चाहिए,अन्यथा वे हमारा हाल घास के तिनकों की तरह आँखों में पड़कर कर देंगे।  
जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।
व्याख्या – कबीरदास जी प्रस्तुत दोहे में कहते हैं कि इस संसार में कोई किसी का बैरी नहीं है। यह मनुष्य का अहंकार ही है ,जो उसे किसी का शत्रु बनाता है। मनुष्य को चाहिए कि वह मन को शीतल व शांत बनाये रखें ,जिससे वह अपने अहंकार को खत्म कर सके। अहंकार विहीन मनुष्य के सब मित्र बन जाते हैं ,उसका कोई शत्रु नहीं रहता है। अतः अपना अहंकार त्यागकर सभी के साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार करना चाहिए।  

Kabir Ki Sakhiyan Summary कबीर की साखियाँ पाठ का सांराश / मूल भाव 

कबीरदास ने साखियों के माध्यम से सहज ,सरल और आडम्बर विहीन जीवन का सन्देश दिया है। इन बातों को
कबीरदास
कबीरदास

अपने जीवन में उतारकर मनुष्य जीवन में सफल हो सकते है। समाज में गुणी लोगों का महत्व होता है। हमें साधु की जाति न पूछकर उसके ज्ञान के बारे में पूछना चाहिए। जिस प्रकार हम तलवार खरीदते समय उसके म्यान पर केन्द्रित न रहकर तलवार की धार देखते हैं। मनुष्य को अपशब्दों का जबाब ,अपशब्दों से नहीं देना चाहिए। भगवान की भक्ति में हमें अपनी उँगलियों में माला फेरते हैं ,जीभ में जप करते हैं ,लेकिन हमारा मन दशों दिशाओं में भ्रमण करता रहता है। यह ईश्वर भक्ति नहीं है। हमें कमजोर लोगों को साधारण और तुच्छ नहीं समझना चाहिए। जैसे घास को हम पैरों तले रौंदते जाते है। इस संसार में कोई किसी का शत्रु नहीं है ,यह हमारा अंहकार ही है ,जो हमें किसी का शत्रु बनाता है। अपने मन को शांत और विनम्र रखकर अहंकारविहीन जीवन जीना चाहिए ,जिससे हमारा कोई शत्रु न हो।

Kabir Ki Saakhiyaan Questions Answers  प्रश्न अभ्यास पाठ से 

प्र.१. ‘तलवार का महत्त्व होता है म्यान का नहीं’- उक्त उदाहरण से कबीर क्या कहना चाहते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उ. कबीरदास जी के अनुसार तलवार का महत्व होता है ,न की उसके म्यान का। इसी प्रकार  समाज में साधु की जाति महत्वपूर्ण नहीं होती है। उसके गुण और ज्ञान से समाज लाभान्वित होता है। जो महत्वपूर्ण है ,उसी के विषय में जानकारी प्राप्त करनी चाहिए ,न की बेकार चीज़ों के बारे में।  
प्र.२. पाठ की तीसरी साखी-जिसकी एक पंक्ति है ‘मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं’ के द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं?
उ. कबीर दास ने इन पंक्तियों के माध्यम से मनुष्य को अपने आडम्बर का जीवन छोड़ने की सलाह दी है। हम भगवान की पूजा में माला फेरते रहते हैं ,मुंह में नाम स्मरण करते रहते हैं ,लेकिन हमारा मन प्रभु की भक्ति में लीं न होकर दशों दिशाओं में भटकता रहता है। हम प्रभु भक्ति पर केन्द्रित न होकर व्यर्थ में ही उलझे रहते हैं।
  
प्र.३. कबीर घास की निंदा करने से क्यों मना करते हैं। पढ़े हुए दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उ. कबीरदास घास की निंदा करने से मना  करते हैंक्योंकि हम घास को बहुत तुच्छ और साधारण समझते हैं। समाज में भी हम कमजोर ,गरीब लोगों के साथ असमानता का व्यवहार करते हैं। घास समझकर हम जिसे तुच्छ समझते हैं। वही घास का तिनका हमारी आँखों में गिर जाता है, तो हम तड़प जाते हैं। अतः सभी का सम्मान करना चाहिए।  
प्र.४. मनुष्य के व्यवहार में ही दूसरों को विरोधी बना लेनेवाले दोष होते हैं। यह भावार्थ किस दोहे से व्यक्त होता है?
उ. उक्त दोहा निम्न है –  
जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।

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