कविता शिक्षण की विधियाँ, कविता-शिक्षण की कौन-सी विधि अपनायी जाए ?

कविता को हिन्दी साहित्य का ही एक अंग माना जाता है । हिन्दी साहित्य में जितना महत्व गद्य शिक्षण को दिया जाता है उतना ही महत्व कविता शिक्षण को भी दिया जाता है। कविता मानव की भावनाओं को प्रस्तुत करने का सर्वोत्तम माध्यम है जो बात व्यक्ति गद्य के माध्यम से नहीं कह सकता, वह कविता के माध्यम से कह सकता है ।

कविता से तात्पर्य व परिभाषा

साहित्य का प्रमुख अंग गद्य तथा पद्य माना जाता है। पद्य के माध्यम से कवि अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति सहज में करता है । पद्य के अंतर्गत भावना, कल्पना तथा बुद्धि तीनों पक्षों का समावेश होता है । पद्य में भाव-तत्व प्रधान होता है । कल्पना तत्व के संबंध में कहा जाता है कि, ‘‘जहाँ न पहुंच रवि वहाँ पहुँचे कवि’’ । मनुष्य की वाणी जो शब्द-विधान करती है वही कविता है ।

श्री शम्भूनाथ के अनुसार – ‘‘मैं कविता को हृदय की बात हृदय तक पहुंचाने का माध्यम तथा साधन समझता हूँ ।’’

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार – ‘‘जब मनुष्य प्रकृति के विविध रूपों और व्यापारों से ऊँचा उठकर अपने योग-क्षेम, हानि-लाभ, सुख-दुख आदि को भूलकर अपनी पृथक सत्ता से छूटकर केवल अनुभूति मात्र रह जाता है, तब हम उसे मुक्त हृदय की इस मुक्ति साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है, उसे कविता कहते हैं ।’’

कविता शिक्षण की विशेषताएँ

कविता शिक्षण की विशेषताओं का यहाँ उल्लेख किया गया है । हिन्दी शिक्षक को अपने शिक्षण में इनका ध्यान रखना चाहिए –

1. अनुभूति प्रधानता:- पद्य अनुभूति में हृदय से उमड़कर कवि की लेखनी से लिखी जाती है। कवि के रचनाबद्ध भाव को ही पद्य कहते हैं । पद्य रागात्मक संबंध की रक्षा तथा निर्वाह है। हमारा हृदय काव्य के समय इस भौतिक संसार से ऊपर उठकर कार्य के अलौकिक आलोक में विचरण करता है । इसमें कल्पना तथा अनुभूति की प्रधानता होती है ।

2. सत्यम् षिवम सुन्दरम् की भावना:- ‘‘सत्यम् षिवम सुन्दरम्’’ कविता के मुख्य उद्देश्य है किन्तु कवि के सत्य विधान के सत्य के समान सत्य नहीं होता अपितु उसमें कल्पना का भी मिश्रण होता है, जो कविता में मुग्धकारी तथा सुन्दर बनता है ।

3. भाषा:- कविता की भाषा सरल, सरस, मधुर तथा गाने योग्य होनी चाहिए ।

4. संगीतात्मक:- संगीत काव्य की हृदय-गति होती है । लय, ताल तथा स्वरों के आरोह-अवरोह के कारण ही कविता के भाव उभरकर आते हैं ।

5. रसानुभूति:- रस तथा काव्य परस्पर आधारित है । एक के बिना दूसरा पक्ष कमजोर हो जाता है । इसी कारण इसको काव्य की आत्मा कहा गया है ।

6. स्थायित्व:- कविता में अमूल्य तत्व होता है । उत्कृष्ट काव्य-कृति सदैव स्थायी होती है।

7. छात्रों की रागात्मक शक्तियों का उदातीकरण, ज्ञात्विक भावों का उद्बोधन एवं उदात्र भावों का संवर्द्धन ।

8. काव्य सौन्दर्य तत्वों का बोध:-

क. नाद-सौन्दर्य का बोध जैसे:-

  1. वर्णों, शब्दों या पदों की आवृत्ति (अनुप्रास, यमक आदि)
  2. मध्यवर्ती तुकांत पद, छन्द की गति, यति, मात्रा आदि ।
  3. स्वरों का आरोह-अवरोह कोमल तथा कठोर वर्ण, ओज, प्रसाद, माधुर्य गुण ।
  4. भावानुरूप वर्ण-विन्यास, मधुर, द्वित्व, संयुक्त आदि ।

ख. भाव-सौन्दर्य, प्रेम, करूणा, क्रोध, उत्साह आदि विविध भावों की अनुभूति ।

ग. विचार-सौन्दर्य, कविता में वर्णित नैतिक गुणों, धार्मिक विचारों, मानवीय मूल्यों एवं आदर्षों को समझना । कबीर, तुलसी, रहीम, वृन्द आदि कवियों के नीतिपरक दोहों में विचार-सौन्दर्य की ही प्रधानता है ।

घ. शब्द – योजना के आधार पर दृष्य-चित्रों की कल्पना ।

ड़. प्रस्तुत एवं अप्रस्तुत की व्याख्या, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का ज्ञान और उनके चमत्कार एवं सौन्दर्य की सराहना ।

9. समालोचन संबंधी विविध अंगो का सामान्य ज्ञान

  1. विविध काव्यात्मक शैलियों का परिचय ।
  2. भाव एवं विचार-सौन्दर्य संबंधी गुण-दोष विवेचन और उनकी सम्यक् अभिव्यक्ति ।
  3. वस्तु चरित्र चित्रण वर्णन या संवाद, भाषा एवं शैली-शब्द चयन, छन्द विधान, भाव-प्रवाह आदि ।
  4. कवि की जीवनवृत्त उनकी रचनाएँ उसके काव्य के विषय और साहित्यिक विचार आदि का परिचय ।
  5. वाक्यों की तुलनात्मक विवेचना ।
  6. स्वतंत्र साहित्यिक विचार, दृष्टिकोण एवं शैली का निर्माण ।

कविता का पाठ्यक्रम में स्थान

‘‘काव्य’’ अनुभूति का विषय है । प्रश्न उठता है कि अनुभूति को सजग कैसे किया जाए ? रस की उत्पत्ति के विषय में भट्ट लालट्ट, श्री शंकुक, भट्टनायक तथा अभिनव गुप्त आचार्यों ने अपने विभिन्न मत प्रचलित किये । अभिनव गुप्त के अभिव्यक्तिवाद के अनुसार भाव तथा रस संस्कार रूप में श्रोता के हृदय में विद्यमान रहते हैं । काव्य में लिखे हुए विभाव, अनुभाव और संचारीभाव इन्हीं सोई हुई भावनाओं को जगा देते हैं और निश्चय ही श्रोता के हृदय में पूर्ण आनन्द हिलोरें लेने लगता है । भाव व्यक्तिगत होते हुए भी काव्यानन्द व्यापक और विषाल रूप धारण कर लेता है ।

बाल्यकाल के आरंभ में छोटे-छोटे संगीत में, कविता में बच्चों को अपरिमित आनन्द प्राप्त होता है, किन्तु धीरे-धीरे उन्हें कविता से अरूचि होने लगती है । इसका मूल कारण कविताओं का अर्थ से बोझिल बना देना है।

कविता-शिक्षण की कौन-सी विधि अपनायी जाए ?

यह एक विवादस्पद प्रश्न है कि कविता-शिक्षण के लिए कौन-सी विधि का प्रयोग किया जाए जिससे छात्रों को कविता शिक्षण कराने में आसानी हो । इस बात का निर्णय शिक्षण की क्षमता एवं योग्यता के आधार पर किया जा सकता है । एक सफल शिक्षण कक्षा के अनुकूल किसी भी उचित प्रणाली को अपना सकता है । वह ऐसी प्रणाली को अपनाता है जो कि कविता के प्रमुख उद्देश्यों में बाधक के रूप में नहीं बल्कि साधक के रूप में कार्य करे । इस प्रकार यदि एक शिक्षक चाहे तो वह कविता- शिक्षण की विधि को कक्षा की अनुकूलतम स्थिति के अनुसार अपना सकता है । कविता का अध्ययन यदि छात्र स्वयं स्वतंत्रतापूर्वक करते हैं तो इससे उनको अधिक लाभ प्राप्त होता है। जबकि इसके विपरीत यदि उनको कविता शिक्षण बांधकर कराया जाएगा तो निश्चित ही वह उस शिक्षण से अपेक्षाकृत लाभ की प्राप्ति करने में असमर्थ होगें । कविता में जिन भिन्न-भिन्न शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाना चाहिए उनका वर्णन निम्नलिखित प्रकार से किया जा रहा है:-

क. प्रस्तावना:- सर्वप्रथम छात्र को जो कविता पढ़ाई जा रही है उसका सम्पूर्ण ज्ञान होना चाहिए जिससे वह विषय वस्तु से अवगत हो सके । विषय से संबंधित आगामी उद्देष्यों की प्राप्ति करने को ही प्रस्तावना का नाम दिया जाता है । इस उद्देष्य छात्रों को समक्ष विषय को प्रस्तुत कर उन्ळें उस विषय के संबंध में जानकारी देना होता है । इससे छात्रों में विषय के प्रति जागरूकता उत्पन्न होती है ।

ख. प्रस्तुतीकरण:- जिस समय छात्रों को पाठ्यक्रम और विषय वस्तु से अवगत कराया दिया जाता है उस समय षिक्षक को इस स्थिति का लाभ उठाकर नवीन पाठ का प्रस्तुतीकरण छात्रों के समक्ष कर देना चाहिए ताकि छात्र नवीन पाठ की ओर अपना सम्पूर्ण ध्यान केन्द्रित कर सके । पाठ के मूल विषयों के संबंध में शिक्षक को

इस समय छात्रों को जानकारी देना चाहिए । शिक्षक इस समय छात्रों के साथ यदि वाचन प्रक्रिया को अपनाता है तो इससे विशेषतः लाभ प्राप्त होता है ।

ग. बोध परीक्षा:- शिक्षक छात्रों से बोध परीक्षा के माध्यम से छात्रों में कितनी मात्रा में कविता को ग्रहण किया गया है, इसका अध्ययन किया जा सकता है । बोध-परीक्षा से वह छात्रों के ज्ञानास्तर को भी जांचने में सक्षम होता है । कई बार ऐसा होता है कि शिक्षक किसी विषय-वस्तु को आगे पढ़ाता जाता है और छात्र के द्वारा पिछला सब कुछ भूला जा चुका होता है । इसलिए छात्रों के बोध परीक्षा करना बहुत आवश्यक होता है ।

घ. काठिन्य निवारण:- कविता में कुछ स्थल शब्द ऐसे भी आते हैं जिनमें छात्रों को विषय वस्तु से संबंधित कठिनाईयों का अनुभव होता है । इस समय शिक्षक का यह कर्तव्य होता है कि वह छात्रों की इन कठिनाइयों को कम करें तथा उन्हें कविता के पाठन में आई हुई सभी प्रकार की कठिनाईयों से छुटकारा दिलाएँ ।

ड़. सस्वर पाठ:- सस्वर पाठ कविता अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है । कविता को यदि छात्रों और शिक्षकों के द्वारा सस्वर रूप से किया जाता है तो निश्चय ही वह दोनों कविता में विद्यमान रस एवं भावों को समझने लगते । इस समय उनकी बुद्धि एवं उनका मन दोनों कविता पर केन्द्रित होता है इसलिए कविता अध्ययन के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि सस्वर अध्ययन को अपनाया जाए ।

च. भाव-विश्लेषण:- कविता का निर्माण किसी भाव विशेष को ध्यान में रखकर ही किया जाता है । यदि कविता में वह भाव नष्ट हो जाते हैं तो कविता का स्वरूप भी गद्य की तरह हो जाता है । इसलिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि षिक्षक समय-समय पर छात्रों को कविता में वर्णित भावों को समझाता रहे । इससे कविता में विद्यमान सभी भावों को छात्रों के समक्ष रखा जा सकता है और छात्रों के द्वारा भी कविता में रूचि ली जाने लगती है ।

छ. आदर्श पाठ:- आदर्श पाठ अध्ययन करने का कार्य भी शिक्षक का ही होता है । उसे छात्रों के समक्ष पुनः आदर्श पाठ करना चाहिए । शिक्षक यदि लय को बनाए रख सकता है तो यह उसके लिए और भी लाभदायक सिद्ध होगा ।

ज. पुनरावृत्ति:- पुनरावृत्ति का अध्ययन में बहुत अधिक महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। किसी भी पाठ को पूर्ण रूप से दोहराना उसे स्थाई रूप से याद रखने में आसानी देता है । इस हेतु शिक्षक को चाहिए कि वह छात्रों को कविता का पुनः अध्ययन करने को प्रेरित करे ताकि वह कविता को भली-भाँति जान सके । इससे कविता में विद्यमान भावों एवं सौन्दर्य को छात्रों के समक्ष भली-भाँति रखा जा सकता है । अतः कविता में पुनरावृत्ति का अपना ही विशेष लाभ होता है । इससे पाठ को स्थाई रूप से याद रखने में आसानी होती है ।

झ. मूल्यांकन:- काव्य-शिक्षण के उद्देश्यों की प्राप्ति हुई है अन्यथा नहीं हुई है, इसकी जाँच करने के लिए मूल्यांकन किया जाता है । अभ्यासों प्रश्नों, कथनों तथा अन्य माध्यमों से मूल्यांकन किया जा सकता है । यदि छात्र किसी विषय-वस्तु से भंली-भाँति परिचित नहीं होते हैं तो उनका उस विषय में अपने को जागरूक रख पाना अत्यन्त कठिन होता है इसलिए यह अति आवश्यक है कि छात्रों के द्वारा किए गए शिक्षण का समय-समय पर उनसे प्रश्न पूछकर या अन्य तरीकों से मूल्यांकन किया जाना चाहिए ।

ञ. ग्रह-कार्य:- जब उपरोक्त सभी कुछ हो जाता है तो उसके पश्चात छात्रों को जाँचने के लिए अध्यापक के द्वाा ग्रह कार्य दिया जाता है । बालक ने क्या ग्रहण किया कितना ग्रहण किया तथा उसके द्वारा ग्रहण किया गया षिक्ष्ज्ञा क्या वह व्यावहारिक रूप में भी प्रस्तुत कर सकता है आदि सभी महत्वपूर्ण बातों के अध्ययन के लिए ग्रह-कार्य की ओर बल दिया जाता है। ग्रह-कार्य से छात्रों द्वारा किया गया अध्ययन स्थाई रूप ग्रहण कर लेता है ।

अतः उपरोक्त सभी बिन्दुओं से यह स्पष्ट होता है कि कविता-शिक्षण के अपने महत्वपूर्ण उद्देश्य होते हैं, जिनको पाने के लिए कविता-शिक्षण किया जाता है । कविता-शिक्षण विधियों में उपरोक्त सभी बिन्दुओं का समावेश होना परमावष्यक है तभी कविता- शिक्षण को संयुक्त रूप से किया गया शिक्षण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है । फिर भी जिस समय छात्रों के द्वारा कविता-पठन किया जा रहा हो उस समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखा जाना नितान्त आवश्यक है:-

क. कविता का पाठ करने के लिए व्याकरण का विश्लेषण कम-से-कम होना चाहिए ।

ख. शिक्षक को चाहिए कि वह छात्रों को चित्रों या अन्य दृश्य-श्रव्य सामग्री के माध्यम से जानकारी प्रदान न करके उनकी कल्पना को उत्तेजित करना चाहिए । जितनी अधिक विकसित छात्रों की कल्पना भावना होती है उतना ही वह कविता में विद्यमान रस की अनुभूति करते है। अतः शिक्षक को चाहिए कि वह छात्रों रसमग्न करने के लिए उनकी कल्पना भावना को विकसित करने की ओर ध्यान दें ।

ग. प्रश्नोत्तर विधि का यथासंभव कम प्रयोग किया जाना चाहिए और यदि किया भी जाए तो काव्यगत भाषा-सौन्दर्य तथा भाव-सौन्दर्य का परिचय एवं रसमग्न कराने में वह सहायक सिद्ध होना चाहिए ।

घ. कविता को पढ़ाते समय शिक्षक को चाहिए कि वह आवश्यकतानुसार श्यामपट्ट का प्रयोग करे इससे कविता में आने वाले कठिन शब्दों को वह श्यामपट्ट के माध्यम से छात्रों के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है ।

ड़ कविता का उच्चारण सदा कक्षा में या तो शिक्षक के द्वारा किया जाना चाहिए और यदि शिक्षक किसी कारणवश नहीं कर सकता है तो इसका उच्चारण मधुरवाणी सुस्पष्ट नहीं है और उनकी वाणी बेसुरी है तो उसके कविता का उच्चारण करने की ओर प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए । इससे छात्रों को कविता में रूचि लेने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जा सकेगा। मधुर उच्चारण की ओर सभी छात्र संयुक्त रूप से आकर्षित होते हैं ।

अतः उपरोक्त सभी बिन्दुओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि जहाँ तक हो सके कविता के उद्देश्यों की पूर्ति को विशेष ध्यान में रखना चाहिए । यह सब कुछ शिक्षक के ऊपर निर्भर होता है यदि शिक्षक चाहे तो वह कविता के लिए कक्षा में विशेष प्रकार का वातावरण तैयार कर सकता है जिससे सभी छात्र कविता शिक्षण में भाग ले सके ।

कविता शिक्षण की विधियाँ

वर्तमान में सभी विद्यालयों में कविता-शिक्षण कराया जा रहा है । इसका स्वरूप अत्यन्त व्यापक है । छात्रों को कविताओं के माध्यम से आज सभी प्रकार की शिक्षा हो या फिर नैतिकता की भावना की शिक्षा हो । छात्रों को इन सभी से अवगत कराया जा रहा है । कविता-शिक्षण यदि इतना अधिक महत्वपूर्ण है तो इसको पढ़ाए जाने में विभिन्न विधियों को भी अपनाया जाना चाहिए इसके लिए निम्नलिखित विधियों को अपनाया जाता है:-

  1. समीक्षा-प्रणाली
  2. तुलना प्रणाली
  3. व्यास प्रणाली
  4. खण्डान्वय-प्रणाली
  5. व्याख्या-प्रणाली
  6. अर्थ-बोध-प्रणाली
  7. गीत तथा अभिनव प्रणाली

इस सभी प्रणालियों के माध्यम से कविता-शिक्षण को पूर्ण किया जाता है । इनका विस्तृत वर्णन निम्नलिखित प्रकार से किया जा रहा है:-

क) समीक्षा प्रणाली – शिक्षक प्रश्नोत्तर के माध्यम से कवि की समीक्षा करता है । उसके पश्चात शिक्षक छात्रों को उस कवि के द्वारा रचित कविताओं की समीक्षा करने की ओर बल देता है । वह छात्रों को अन्य शिक्षक सामग्री की सहायता लेकर उस कवि तथा उसके द्वारा रचित कविताओं का अध्ययन करने की ओर बल देता है ।

ख) तुलनात्मक प्रणाली:- तुलनात्मक प्रणाली में भिन्न-भाषा कवि की तुलना सम भाषा कविता की तुलना तथा भाव-तुलना आदि सभी के द्वारा असाम्य एवं साम्य दोनों स्थितियों का वर्णन किया जाता है । दो समान एवं असमान कवियों के द्वारा रचित विभिन्न प्रकार की कविताओं की आपस में तुलना करके षिक्षक छात्रों को कविता का अध्ययन कर सकता है । यह अध्ययन छात्रों के लिए विषेष रूप से लाभदायक सिद्ध होता है ।

ग) व्यास प्रणाली:- उच्च श्रेणी की भावना प्रधान कविताओं के पढ़ाने के लिए व्यास प्रणाली का उपयोग किया जाता है, जिन कविताओं में भावना की अभिव्यक्ति बहुत उच्च श्रेणी में की जाती है उनके भावों को स्पष्ट करने के लिए व्यास प्रणाली का उपयोग किया जाना विशेष लाभदायक सिद्ध होता है । पद को भाषा एवं भाव दोनों की दृष्टि से ही परखा जाना इस प्रणाली की मुख्य विशेषता है । भाव के स्पष्टीकरण के लिए अनेक उदाहरणों, दृष्टांतों एवं अन्य सहायक कथाओं का सहारा लिया जाता है ताकि छात्रों को कविता में वर्णित भावों से भंली-भाॅंति परिचित कराया जा सके । इससे बालकों को विषय में रूचि उत्पन्न करने, उनके उत्साह को बढ़ाने तथा उनके मनोभावों को उजागर करने की ओर बल दिया जाता है । इस प्रणाली को विश्वविद्यालयों एवं माध्यमिक स्तर के छात्रों के लिए उपयोग में लाया जाता है । भावात्मक प्रधान कविताओं का स्पष्टीकरण करने के लिए व्यास प्रणाली का उपयोग किया जाता है ।

घ) खण्डान्वय प्रणाली:- इसको प्रश्नोत्तर प्रणाली भी कहते हैं । यह प्रणाली उन पदों के पढ़ाने के काम आती है, जिनमें विषेषण की भरमार हो, भावों की भीड़ हो, घटनाओं की घटा और एक-एक बात का अर्थ स्पष्ट किए बिना स्पष्टता न आती हो । इस प्रणाली का प्रयोग केवल वर्णनात्मक तथा ऐतिहासिक पद्यों के पढ़ाने में ही किया जाता है ।

ड़) व्याख्या प्रणाली:- व्याख्या प्रणाली में शिक्षक के द्वारा कविता के एक-एक पद को बेकार उसकी व्याख्या करके छात्रों के समक्ष रखा जाता है । इससे छात्र उस कविता से भंली-भाॅंति अवगत होने में सफल होते हैं । इस प्रकार की विधि प्रायः सभी कविताओं के अध्ययन करने के लिए लाभदायक सिद्ध होती है । इसमें छात्र अपने अध्यापक के माध्यम से सभी प्रकार के कठिन शब्दों की व्याख्या को भंली प्रकार से समझने में सक्षम होते है। शिक्षक समय-समय पर छात्रों को कविता शिक्षण में आने वाली विभिन्न समस्याओं से अवगत कराता रहता है । इस प्रणाली का प्रयोग वैसे तो सभी कक्षास्तर के लिए उपयुक्त होता है, परन्तु यदि इसका उपयोग उच्च एवं माध्यमिक स्तर के छात्रों के लिए किया जाए तो इससे विशेषतः लाभ की प्राप्ति होती है ।

च) अर्थ बोध प्रणाली:- शिक्षक के द्वारा इस प्रणाली के अंतर्गत कविता के संबंध में स्वयं ही अर्थ बताया जाता है । वह कविता में उपयोग होने वाले छंदों एवं दोहों का अर्थ-बोध कराता रहता है ताकि छात्रों को कविता को समझने में किसी प्रकार की कोई कठिनाई अनुभव न हो ।

छ) गीत तथा अभिनव प्रणाली:- गीत तथा अभिनव प्रणाली का उपयोग प्रारंभिक कक्षाओं के लिए किया जाना अधिक उपयुक्त होता है । इस स्तर के बालकों को गीतों के माध्यम से तथा अन्य अभिनय कराकर उन्हें कविता-शिक्षण कराया जा सकता है । यह देखा जाता है कि छोटे स्तर के बालकों का मानसिक स्तर भी उन्नत नहीं होता । अतः यदि उन्हें कविताओं का ज्ञान ताल बनाकर नहीं दिया जाए तो इससे उनके मस्तिष्क पर अन्य किसी भी तकनीक से प्रभाव नहीं डाला जा सकता ।

संदर्भ –

1. बी.एल. शर्मा- हिन्दी शिक्षण – आर. लाल बुक डिपो- 2009
2. डाॅ. शमशकल पाण्डेय- हिन्दी शिक्षण- अग्रवाल पब्लिकेशन- 2012
3. डाॅ. एस.के. त्यागी – हिन्दी भाषा शिक्षण- अग्रवाल पब्लिकेशन आगरा-2-2009

You May Also Like