काल तुझ से होड़ है / शमशेर बहादुर सिंह

शमशेर बहादुर सिंह

काल,
तुझसे होड़ है मेरी: अपराजित तू-
तुझमें अपराजित मैं वास करूं.
इसीलिए तेरे हृदय में समा रहा हूं
सीधा तीर-सा, जो रुका हुआ लगता हो-
कि जैसा ध्रुव नक्षत्र भी न लगे,
एक एकनिष्ठ, स्थिर, कालोपरि
भाव, भावोपरि
सुख, आनंदोपरि
सत्य, सत्यासत्योपरि
मैं- तेरे भी, ओ ” काल ‘ऊपर!
सौंदर्य यही तो है, जो तू नहीं है, ओ काल!

जो मैं हूं-
मैं कि जिसमें सब कुछ है …

क्रांतियां, कम्यून,
कम्यूनिस्ट समाज के
नाना कला विज्ञान और दर्शन के
जीवंत वैभव से समन्वित
व्यक्ति मैं.

मैं, जो वह हरेक हूं
जो, तुझसे, ओ काल, परे है

शमशेर बहादुर सिंह (1911- 1993) हिन्दी के सर्वाधिक प्रयोगशील कवि है.
शमशेर बहादुर सिंह, प्रगतिशील और प्रयोगशील कवि है. बौद्विक स्तर पर वे मार्क्स के द्वंदात्मक भौतिकवाद से प्रभावित है तथा अनुभवों में वे रूमानी एवं व्यक्तिवादी जान पड़ते है. उनकी काव्यदृष्टि सुदीर्घ एवं बहुआयामी है, किंतु उनमे एक तरह का अंतद्वंद विद्धमान है, इसीलिए उनका काव्य जगत बहुत ही अमुखर और शांत है. विजयदेव नारायण शाही ने शमशेर की काव्य -कला का विश्लेषण करते हुए लिखा है -.. “तात्विक दृष्टि से शमशेर की काव्यनुभूति सौन्दर्य की ही अनुभूति है शमशेर की प्रवृति सदा की वस्तुपरकता को उसके शुद्ध और मार्मिक रूप में ग्रहण करने में रही है वे वस्तुपरकता का आत्म-परकता में और आत्म-परकता का वस्तुपरकता में अविष्कार करने वाले कवि है. जिनकी काव्यानुभूति बिम्ब की नही बिम्बलोक की है. “
रचना कर्म: –
काव्य: – कुछ कवितायें, इतने पास अपने, उदिता, चुका भी हूँ नही मै.
डायरी – शमशेर की डायरी

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