खिलौना आया है

खिलौना आया है

दूर किसी जादू नगरी से एक खिलौना आया है .
नंदन वन से नन्हा – नन्हा यह मृग छौना  आया है ,

घर आंगन से हौले हौले ठुमक ठुमक कर चलता है .
डगमग डगमग पैरों पर वह रह रह कर कभी मचलता है .
वृन्दावन की कुञ्ज गली से श्याम सलोना आया है .
दूर किसी जादू नगरी से एक खिलौना आया है .
एक खिलौना है वह माँ का एक खिलौना भाई का .
एक खिलौना है वह प्रियजन ,परिजन गाँव गंवाई का ,
कभी रेंगता है घुटनों पर कभी उचलता है .
छोटे छोटे हाथों में वह में ,लेकर छड़ी टहलता है ,
बना हुआ है वह मनमोहन ,गोकुल के लोग लुगाई का .
एक खिलौना है वह माँ का एक खिलौना भाई का .
हँस देता तो फूल बरसते ,रो देता तो मोती झरता .
आँख मिचौनी हवा खेलती ,दुनिया लट्टू होती है .
कठपुतली सा रंग बिरंगा नाच नचाता रहता है .
चिड़िया सा वह चहक चहक कर तुतली बोली कहता है .
शोभा देख अपूर्व न किसकी ,छाती ठंडी होती है ?
हँस देता तो फूल बरसते ,रो देता तो मोती झरता .



– श्री आरसी प्रसाद सिंह 

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