खुशियों के लिए वक़्त बहुत थोडा होता है


खुशियों के लिए वक़्त बहुत थोडा होता है 

आज हुआ यूँ कि मुझे अपने कॉलेज की फीस जमा करनी थी जब मैं अपनी फीस जमा करने गयी तब मैंने फीस जमा करने वाले कर्मचारी को कहा कि मुझे फीस जमा करने के लिए कोई notification नहीं मिला तो उसने मुझसे कहा ऐसा नहीं हो सकता कॉल सबको गयी है.  मैंने कहा पर मेरे पास नहीं आई कॉल फिर मुझे लगा शायद MTNL के नेटवर्क में कोई इशू होगा इसलिए हो सकता है कॉल न आ पायी  हो पर साथ में मेरा एक दोस्त था उसने कहा पर मेरे पास भी तो नहीं आई कॉल और 3 4 लड़कियों ने भी कहा था उनके पास कॉल नहीं आई कर्मचारी।
 मैं और मेरा दोस्त काफी फ्रैंक थें तो कर्मचारी ने कहा ठीक है मैं अंदर ऑफिस में देखता हूँ प्रॉब्लम क्या है वह

तृष्णा सागर
तृष्णा सागर

गया और उसने वहां एक महिला कर्मचारी से कहा और साथ ही उसने एक लिस्ट चेक की और बताया कि हाँ आपके पास कॉल नहीं गयी कोई नहीं कल परसों तक आजाएगी और हँसते हुए हमने कहा कि अब तो काम होगया कॉल का क्या फायदा और मैं और मेरा दोस्त बाहर आगये फिर कुछ देर बाद एक महिला की आवाज आती है सुमन पटेल कहाँ है मैं गयी अब हुआ ये कि मेरे अंदर घुसते ही साहिबा मुझपर बरस पड़ीं कि आप ये बताओ (बहुत ही ऊँची आवाज में जो की वहां से तीसरे चौथे कमरे में भी आवाज साफ़ साफ़ सुनाई दी) कि आपको डाक्यूमेंट्स के लिए कॉल नहीं गया था मैंने कहा हाँ गयी थी (यह कॉल लगभग 4 महीने पहले मेरे पास आई थी) चिल्लाते हुए ही बोली फिर तुम कैसे कह रही हो कि आपको कॉल नहीं जा रही है मैंने कहा हाँ कॉल गयी थी तो इसपर चिल्लायीं इसका मतलब आपको  notification  मिल रहे हैं और भी ना जाने क्या क्या चिल्लायीं वे साहिबा मुझे तो उनकी तेज गूंजती हुई आवाज के आगे उनकी बात समझ ही नहीं आई कि वे क्या क्या बोली और मुझे बोलने का मौका ही नहीं दे रही थी मैंने उससे कहा कि देखिये मैंने कॉल वाली बात फीस की नोटिफिकेशन के लिए कही मैनें बाहर सर से कहा कि मुझे फी के लिए कोई सूचना नहीं मिली मेरे बोलने के साथ वो साहिबा भी ना जाने तेज तेज क्या कहे जा रही थी मुझे तो अब याद भी नहीं बस कुछ ऐसा ही कही जा रही थीं कि तुम ऐसा कैसे कह रही हो कि कॉल नहीं गयी मुझे उसकी बातों पर हंसी भी आ रही थी और गुस्सा भी ऐसा इसलिए क्योंकि वो अपनी बातों के आगे मेरी सुन ही नहीं रही थी असल में उस नासमझ को ये समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं कह क्या रहीं हूँ | मैनें अपने गुस्से को शांत कर हँसते हुए कहा कि ma’am  मैं आपसे कोई शिकायत नहीं कर रही बस आपसे यह कह रही हूँ कि मुझे नोतिफ़िकतिओन नहीं मिला। 

मुझे क्लास के whatsapp group से फीस का पता चला और ये जानकारी मिली की लास्ट डेट 5/01/18 है उसके बाद लेट फीस लगेगी तो फिर भड़क कर साहिबा बोली कि 5 नहीं 10 है तब मेरे दोस्त ने कहा कि हाँ मैंने कॉल किया तब आपने कहा कि 10 तक तारीख बाढा दी जा सकती है इसके बाद ये तड़कती भड़कती साहिबा शांत हुई | ना जाने इस चिल्ला के बात करने में उनको क्या मिला वो चिल्ला कर अपनी गलती को ढक रहीं थी या अपने को मुझसे ऊपर दिखाना चाह रहीं थी या फिर कहीं और का सारा frustration मुझपे निकल गया था |

जो भी हो उसके साथ बहस करके मैं अपने अच्छे खासे मूड की ऐसी तैसी मारना नहीं चाहती थी इसलिए समझदारी से ( मेरे हिसाब से ☺) मैनें इस मामले को हँसते हुए टाल दिया ये जरूरी तो नहीं की हर वक़्त सिस्टम सिस्टम की रट लगा कर हर बात पर लड़ा जाये कई बार अपने सुकून और दुसरे की ख़ुशी के लिए भी सोच लेना शायद अच्छा होता है | मानती हूँ जिस तरह वो मुझ पर चिल्ला रही थी उस बात को मैनें हंसी में कैसे टाल दिया इस बात पर मेरे मित्र हालांकि खुद मुझे भी हैरानी हो रही थी | ऐसा नहीं था कि मैं किसी से डरती हूँ या तेज आवाज में बात नहीं कर सकती, गांधीवादी हूँ या मैं बड़ी कूल टाइप लड़की हूँ मुझे गुस्सा आता ही नहीं , जनाब कभी आजमाना नहीं क्योंकि मुझे गुस्सा बहुत आता है पर साथ ही यह भी जानने लगी हूँ कि अपनी ऊर्जा को कहाँ कैसे और किस वक़्त इस्तमाल करना है | और क्या मिलता उससे झगड़कर 1 2 3 घंटे ख़राब मूड न जी न हमें तो साहिबा की 10 मिनट की तेज आवाज बर्दास्त थी 2 घंटे के लिए ख़राब मूड नहीं क्यों कोई अपना वक़्त खराब करे जब उसे पता है की खुशियों के लिए वक़्त बहुत थोडा होता है….
                                      – तृष्णा सागर


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