ध्रुपद गायन शैली क्या है?
गायन शैली में ध्रुपद का स्थान मुख्य है। ध्रुव शब्द का अर्थ है अचला। इसके 18 अंगों का भरत ने वर्णन किया है। ध्रुव एक काव्य, स्वर तथा छन्द से बद्ध रचना थी जिसके सुनिश्चित अंग थे तथा उस गीत में यति, वर्ण, अलंकार, ग्रह आदि का संबंध अखण्ड रूप से नुनियोजित था। बृहद्देशी में इसे चोक्षा तथा सारंग देव ने इसे शुद्ध गीति कहा। ऐसा माना जाता है कि ध्रुव गीतों में समय के अनुसार परिवर्तन हुए तथा ध्रुपदों का विकास हुआ। मध्यकाल में ध्रुपद को उच्चश्रेणी का गायन माना जाता था। ध्रुपद के चार अंग होते थे उदाग्रह, ध्रुव आभोग, अंतरा पं0 भावभÍ के अनुसार कुछ ध्रुपद के केवल दो ही अंग होते थे इन्हें चार भागों को आज स्थाई अंतरा संचारी आभोग कहा जाने लगा। आधुनिक काल के ध्रुपदों में साधारणतया दो ही अंग देखने को मिलते हैं स्थाई तथा अंतरा कुछ ध्रुपदों में चार अंग भी पाये जाते हैं।
यह गायकी पुरुष प्रधान गायकी मानी जाती है। इस गायकी में स्वर, शब्द, ताल का स्वरूप शुद्ध रखा जाता है। ध्रुपद में सर्वप्रथम आलाप किया जाता है।
आलाप गायन के बाद स्थाई, अंतरा, संचारी आभोग गाये जाते हैं। इसके साथ-साथ लयकारी का काम होता है। ध्रुपद के गीतों को विभिन्न प्रकार की लयकारियों में गाया जाता है। यह लयकारिया सरल से लेकर अत्यन्त कठिन तक होती है। अलग-अलग मात्राओं से, विभिन्न प्रकार से सम पर आना ध्रुपद में देखने को मिलता है।
ध्रुपद गीत विशेष रूप से तीव्र, सूलताल, आडाचार ताल, रूद्रताल आदि में होते हैं। ध्रुपद के साथ पखावज या मृदंग की संगत की जाती है। ये तालें जिस खुले रूप से बजाई जाती है उसे थपिया बाज कहा जाता है।
ध्रुपद की बानियाँ
- खंडार वाणी
- नौहार वाणी
- गोबरहार वाणी
- डागुर वाणी
इन वाणियों का सम्बन्ध गीति से जोड़ा गया है जिसके पाँच प्रकार माने गये हैं- शुद्धा, भिन्न, बेसरा, गौडी, साधारणी, इसका अर्थ यह है कि किसी बानी में लालित्य प्रधान है तो किसी में कंपन।
खण्डार बानी- इस बानी का सम्बन्ध राजा समोखन सिंह से माना जाता है। इन्हें समोखन सिंह को नौबत खाँ के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि तानसेन की कन्या से विवाह के पश्चात इनका नाम बदल गया था उनके निवास स्थान खंडार के नाम पर ही इस बानी का नाम खंडार बानी पड़ा।
डागुर बानी- इस वाणी का संबंध ब्रज चंद से जोड़ा जाता है।
नौहार बानी- इस वाणी को श्रीचन्द की बानी कहा जाता है।
धमार गायन शैली
ध्रुवपद तथा धमार में अंतर यह है कि ध्रुवपद गायकी का प्रदर्शन विभिन्न प्रकार की लयकारियाँ जैसे- आS कुआS बिआS आदि द्वारा किया जाता है, वही धमार में बोल बाँट का प्रदर्शन होता है जबकि ध्रुपद में अन्य तालों का प्रयोग होता है।