परिवार नियोजन का साधारण अर्थ है कि ‘‘एक दम्पति यह योजना बनाएं कि जन्म नियन्त्रण करके कितने बच्चों को पैदा करना है।’’ उस हेतु उसे परिवार नियोजन को प्रयोग में लाना है।
परिवार नियोजन के उपाय
परिवार नियोजन के प्राकृतिक उपाय
नैसर्गिक परिवार नियोजन इस पर आधारित है कि संर्सग के समय व्यवधान डालना जो माह में प्रजनन का समय कहलाता हैं बहुधा अधिकांश महिलाओं में डिम्ब ग्रन्थि अगले मासिक धर्म के 14 दिन पूर्व निकलता है यद्यपि अनिषेचित डिम्ब 12 घंटे तक जीवित रहता है।
1. कलेण्डर उपाय – महिलाओं के लिए उपयोगी है जिसका मासिक चक्र नियमित हो। यह निर्धारण करने के लिए इन दिनों संसर्ग करने से परहेज किया जाए। एक महिला मासिक चक्र में 18 दिन तक निम्न एवं 11 दिन अधिकतम अपने पूर्व मासिक धर्म के 12 मासिक चक्र उदाहरणार्थ यदि पिछला मासिक चक्र 26 से 29 दिवसों का है तो उसे पुरुष संसर्ग दिवसों 8 (26-8) लेकर दिवस 18 (29-11) प्रत्येक चक्र से बचना चाहिए। यदि चक्र की अवधि अधिक परिवर्तन शील है तो महिला को पुरुष संसर्ग में लम्बी अवधि तक परहेज करें।
3. म्यूकस विधि – महिला अपने गर्भकाल के दौरान योनिद्वार से चिपचिपा उत्सर्जन के आधार पर निर्धारित कर सकती है। यदि सम्भव हो तो दिन में कई बार मासिक चक्र के निवृत्त के कुछ दिन बाद तक एवं उसके कुछ समय बाद यह धुंधला गाढ़ा उत्सर्ज अधिक स्राव निकलता है। इसके उपरान्त हल्का पतला चिपचिपाहट युक्त साफ और पानी के सामान पतला स्राव निकलने लगे। जब शारीरिक तापमान बढ़े तब महिला को पुरूष संसर्ग से बचना चाहिये। प्रथम दिवस से कम से कम 72 घण्टे का प्रतिबन्ध आवश्यक है। इस समय शारीरिक तापमान बदल जायेगा और स्राव भी बदल जायेगा। परिवार नियोजन की विधियों में यह सबसे विश्वसनीय है। इसके सम्पूर्ण प्रयोग से गर्भाधान में 2 प्रतिशत प्रतिवर्ष की कमी आती है।
परिवार नियोजन के कृत्रिम उपाय
अधिकांश दम्पत्ति बच्चों के होते हुये भी यह ध्यान रखते हैं कि वह कितने बच्चे रखें। परिवार नियोजन की बहुत सारी विधियां हैं। प्राकृतिक परिवार नियोजन की विधि जो जिसमें महिलाओं को यह सुनिश्चित करना पड़ता है कि चक्र के समय महिला किन दिनों में गर्भित हो सकती हैं इस तरह परिवार नियोजन में बहुत से अप्राकृतिक विधि है जो है :
2. हार्मोन पद्धति – गर्भ निरोधक हार्मोन मुख से लिए जा सकते है न कि योनियों प्रवेशित करके त्वचा के ऊपर, तथा त्वचा के नीचे प्रयोग करके एवं सूची वेध के माध्यम से मांस पेशियों के अन्तर्गत लगाकर। हार्मोन का प्रयोग गर्भ को रोकने हेतु इस्ट्रोज एवं प्रोजेस्टान (ड्रम में प्रोजेस्टान को मिलता-जुलता) हार्मोन विधि गर्भ ठहरने का रोकने एवं मुख्यत: डिम्ब ग्रथियों द्वारा डिम्ब के उत्सर्जन का कार्य रोक दिया जाता है, जिसके फलस्वरूप सर्विक्स गर्भ ग्रीवा से निकलने वाला तरल पदार्थ इतना गाढ़ा हो जाता है कि उसमें शुक्राणु प्रवेश करने में सक्षम नहीं हो पाते। हार्मोन विधि में डिम्ब का हार्मोंस द्वारा नष्ट करने से रोकना है। सभी हर्मोन विधियों के अन्तर्गत एक ही प्रकार के तरीके है।
3. खाने वाली गर्भ निरोधक – खाने वाली गर्भ निरोधक को सामान्यत: जन्म नियन्त्रण वाली गोली के नाम से जाना जाता है। जिसमें केवल हार्मोन या प्रोजेस्टिन एवं इस्ट्रोजिन या केवल प्रोजेस्टिन होता है। कम्बाइण्ड हार्मोन व गोलिया विशेष रूप से दिन में एक गोली 3 सप्ताह तक (21 दिन) लेनी है। शेष सप्ताह में नहीं लेनी है। मासिक चक्र प्रारम्भ हो जायेगा। इसके उपरांत ये गोलियाँ अप्रभावकारी होंगी। गोलियां एक सप्ताह तक लेनी है और एक गोली 12 सप्ताह तक लेनी है परन्तु एक सप्ताह तक नहीं। इस प्रकार वर्ष में चार बार ही मासिक काल होगा। अन्य उत्पादों में एक गोली प्रतिदिन लेनी है।
(क) लाभ – इसके प्रयोग से मुख्य लाभ तो यह है कि यह एक विश्वसनीय गर्भ निरोधक है। यदि खाने वाली गोलियो का प्रयोग नियन्त्रित ढंग से ही किया जाये, जिससे महिलाओं में िस्स्ट (मा0) गर्भधान की एवं स्तन की, डिम्ब ग्रंन्थि की गाँठ फैलोसियन ट्यूब में संक्रमण और जो महिलाएं गर्भ निरोधक गोली का प्रयोग करती है उनको यह बीमारी होने का भी खतरा हो सकता है।
गर्भ निरोधक गोली के प्रयोग से कई तरह के कैन्सर होने का खतरा हो सकता है। खाने वालीे गर्भ निरोधक गोलियों के लम्बे समय तक उपयोग के कारण गर्भाधान पर विपरीत असर डालता है यद्यपि उस समय डिम्ब उत्सर्जन न करेगीं। डाक्टरों की राय है कि महिलाओं को 2 सप्ताह तक प्रसवों प्रतीक्षा कर लेनी चाहिये।
(ख) हानियां – इसमें कुछ विपरीत परिणाम हो सकते है जैसे- अचानक रक्त स्राव जो सामान्य ही है प्रयोग के कुछ प्रथम माहों में होता, परन्तु जैसे ही शरीर हार्मोन्स को जिस तरह स्वीकार कर लेता है।
असामान्य रक्त स्राव होने समय डाक्टर उसे रोक देने हेतु सलाह दे सकते है यह प्रतिदिन लेने की सलाह दे सकते है। किसी रूकावट के दिमागी रक्त स्राव का प्रकरण स्वयं बंद हो जायगा कुछ इस्ट्रोजिन गोलियों में देखे गये हैं। जिसमें मिचली आना, कपडों पर धब्बों के साथ ही स्राव का रूकना एवं रक्तचाप में वृद्धि के लक्षण के साथ ही स्तनों में गर्माहट एवं अर्धकपारी दर्द एवं अन्य इस्ट्रोजिन की खुराक से सम्बन्धित है। जैसे शरीर का वजन बढ़ना, स्नायु विकृत कुछ महिलाएं जो गर्भ निरोधक खाने वाली गोलियों का प्रयोग करती हैं उसे 5 पौण्ड तक स्राव के रूकने के कारण बढ़ जाता है। इनके बहुत साइड इफेक्ट है। कुछ औरतों में खाने वाली गर्भ निरोधक उपकरणों के प्रयोग से गहरे धब्बे चेहरे पर दिखाई पड़ते हैं।
गर्भ निरोधक गोलियों के उपयोग की वृद्धि के अनुसार कुछ खराबियां भी परिलक्षित होने लगेगीं। जो महिलाएं संयुक्त रूप से गर्भ निरोधक गोलियों का उपयोग कर रही है कम मात्रा में ली गई दवाओं से हार्ट अटैक अथवा हार्ट स्ट्रोक का खतरा कम हो सकता है। 5 वर्ष से अधिक खाने वाली गर्भ निरोधक गोलियों का उपयोग गर्भाशय ग्रीवा को कैन्सर के बढ़ जाने की सम्भावना बनी रहती है। वह महिलायें जो गर्भ निरोधक (खाने वाली) गोली का प्रयोग एक वर्ष से अधिक समय तक करें, उनको चाहिए कि वह प्रत्येक वर्ष अपनी जाँच करा लें। इस टेस्ट से गर्भाशय में कैन्सर से उत्पन्न होने वाले खतरे की संभावना का पता लगा सकेंगी। 35 से 65 वर्ष की महिलाओं में स्तन कैन्सर की भी सम्भावना रहती है यह भी अधिक नहीं बढ़ पायेगा। वह महिला जिसकी आयु 35 वर्ष से बड़ी है उसमें हार्ट अटैक बीमारी का खतरा अधिक रहता हैं। ऐसी महिलाएं खाने वाली गर्भ निरोधक गोलियों का प्रयोग न करें।
6. यौगिक खाने वाले गर्भ निरोधक – दो गोलिया योगिक खाने वाले गर्भ निरोधक के प्रयोग में है। यह दो गोलियां 72 घन्टे के असुरक्षित गर्भ निरोधक की स्थिति में प्रयोग में लायी जाती इसके 12 घण्टे उपरान्त दो गोलिया ली जाती है। अन्तिम प्रकरण कम प्रभावशाली होता है अपेक्षाकृत अन्य दोनों के अधिक से अधिक 50 प्रतिशत महिलाएं को मित्तली एवं 20 प्रतिशत में यह दवायें’’ मितली एवं वमन को रोकने हेतु ली जा सकती है।
बहुत से निरोध इकट्ठा करने हेतु रिव बनाते है। वीर्य स्खलन के बाद जब लिंग बाहर निकाल लिया जाता है तब भी निरोध उस पर चढ़ा रहता है इस प्रकार शुक्राणु महिला के योनी मार्ग से प्रवेश नहीं कर पाते यदि स्खलित वीर्य बाहर निकल जायेगा तो वह यौन मार्ग से प्रवेश कर गर्भाशय में पहँुच कर गर्भाधन कर सकता हैंं। प्रत्येक संभोग के समय नया निरोध प्रयोग करना चाहिए निरोध जिसकी विश्वसनीयता अनिश्चित कर लो तो उसका प्रयोग करें।
9. डायाफ्रामा – यह गुम्बद की तरह एक रबर की टोपी है जो परिवर्तन होने वाली रफ होती है। जो योनि में प्रवेश कराकर गर्भाशय पुरूष पर फिट कर दी जाती है इस प्रकार डायाफ्राम शुक्राणुओं को गर्भाशय में प्रवेश करने से रोकते है। ड्रायाफ्रामा भिन्न-भिन्न नाम के होते हैं जिसे कि स्वास्थ्य रक्षा की दृष्टि से चिकित्सक से परामर्श लेकर ही लगाना चाहिये।जो महिलाओं को इसके प्रयोग के लिए प्रशिक्षित करता है। यदि एक महिला का वजन 10 पौण्ड से अपेक्षाकृत कम या ज्यादा प्राप्त करती है और समय एक साल से अधिक हो जाती है या महिला के गर्भपात या बच्चा पैदा हो जाता है। तो उसे पुन: लगवाने की जाँच कराकर किया जाए।
डायाफ्राम बिना किसी असुविधा के न तो प्रयोग करने वाली महिला को या उसके पति को उसके होने का एहसास कराता है। गर्भनिरोध क्रीम या जेली (which kills sperm) लगाकर ड्रायाफ्राम को प्रवेश किया जाए तो अधिक असर कारक होता है। सहवास के समय लगा ड्रायाफ्राम 8 घंटे के उपरांत निकल लेना चाहिये परन्तु इसके निकालने की अवधि 24 घंटे से अधिक न हो यदि ड्रायाफ्राम लगे रहने के समय सहवास की परिस्थिति पूर्ति है तो ड्रायाफ्राम में पुन: जेलीक्रीम लगाना आवश्यक है जिससे शुक्राणु मर सकें। महिला को यह जाँच करते रहना चाहिए कि कहीं डायाफ्राम फट तो नहीं गया है डायाफ्राम के प्रयोग के बाद भी 6 प्रतिशत और पूरा प्रयोग करने पर 16 प्रतिशत विशेष प्रकार के स्थितियों में मर्मित हो जाती है।
- शुक्राणु को निश्चित अवस्था में मार कर।
- शुक्राणुओं को डिम्व से मिलने से रोकना।
- निश्चित डिम्व के गर्भाशय में स्थापित होने से रोकना।
इन संरचना की समय गर्भाशय साधारणत: परिजीवियों से संक्रमित हो जाता है, परन्तु यह संक्रमण कभी भी परिमाण दे पाता है। आई.यू.डी. का तार अधिक परिजीवियाँ का प्रवेश नहीं होने देते। एक आई.यू.डी. गर्भाशय के संक्रमण का डर केवल प्रथम माह में जब इसका प्रयोग होता है, की सम्भावना रहती है।