मनोविज्ञान के क्षेत्र में सिगमंड फ्रायड के नाम से प्राय: सभी लोग परिचित है। सिगमंड फ्रायड ने व्यक्तित्व के जिस सिद्धांत का प्रतिपादन किया, उसे व्यक्तित्व का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत कहा जाता है। सिगमंड फ्रायड का यह सिद्धांत उनके लगभग 40 साल के वैदानिक अनुभवों पर आधारित है। सिगमंड फ्रायड का सिद्धांत इसी उपागम पर आधारित है।
फ्रायड का व्यक्तित्व का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत
- चेतन अवचेतन की अवधारणा
- इद, अहम् और अति अहम् का विचार
किसी भी सिद्धांत को ठीक प्रकार से जानने के लिये यह आवश्यक है कि उसकी मूल मान्यतायें बचा है? फ्रायड की भी मानवीय स्वभाव के बारे में कुछ व्
पूर्वकल्पनायें हैं, जिनको जानने से उनके व्यक्तित्व सिद्धांत को समझने में काफी मदद मिल सकती है। ये पूर्व कल्पनायें नियमानुसार हैं-
- मनुष्य के व्यवहार का निर्धारण बाहय कारकों द्वारा होता है।
- ऐसा व्यवहार अपरिवर्तनशील, अविवेकपूर्ण, सनस्थितिष्क तथा जानने योग्य होता है।
- इस सिद्धांत में मानवप्रवृत्ति की निराशावादी एवं निश्चयवादी छवि को प्रधानता दी गई है।
- फ्रायड के अनुसार मानव स्वभाव आत्मनिष्ठ की पूर्व कल्पना द्वारा की कम प्रष्तावित होता है।
- पूर्णत: शरीरगठनी तथा प्रलक्षता कैसी पूर्व कल्पनाओं से मानव प्रकृति थोड़ी-थोड़ी प्रभावित होती है।
हम सिगमंड फ्रायड के व्यक्तित्व सिद्धांत का अध्ययन निम्नांकित बिन्दुओं के अन्तर्गत कर सकते हैं-
- व्यक्तित्व की संरचना
- व्यक्तित्व की गतिकी
- व्यक्तित्व का विकास
1. व्यक्तित्व की संरचना
1. आकारात्मक मॉडल- आप सोच रहे होंगे कि मन के आकारात्मक मॉडल से क्या आशय है?
फ्रायड के अनुसार आकारात्मक मॉडल गव्यात्मक शक्तियों में हाने वाले संबंधों का एक कार्यस्थल होता है? इसके तीन तरह हैं-
- यह व्यक्तित्व का जैविक तत्व है। इसमें व्यक्ति की जन्मजात प्रवृत्तियां होती हैं।
- उपाहं आनन्द सिद्धांत के आधार पर कार्य करता है। इनका आशय यह है कि इसमें केवल ऐसी प्रसवृत्तियां होती हैं जिनका मुख्य उद्देश्य सुख
प्राप्त करना होता है। अत: इन प्रवृत्तियों का उचित अनुचित विवेक- अविवेक इत्यादि से कोई भी संबंध नहीं होता है।
- उपाहं की प्रवृत्तियां का गुण, असंगठित आक्रामकता युक्त तथा नियम-कानून इत्यादि को नहीं मानने वाली होती हैं।
- उपाहं पूरी तरह से अचेतन होता है। इसलिये वास्तविकता या यथार्थ से इसका कोई संबंध नहीं होता है?
- एक छोटे बच्चे में उपाहं की प्रवृत्तियां होती हैं।
2. अहं-
- अहं व्यक्तित्व के संरचनात्मक मॉडल का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है।
- यह वास्तविकता सिद्धांत के आधार पर कार्य करता है अर्थात् इसका संबंध वातावरण की वास्तविकता के साथ होता है।
- जन्म के कुछ समय बाद जब नैतिक एवं सामाजिक नियमों के कारण व्यक्ति की सभी इच्छाओं की पूर्ति नहीं हो पाती है, तो उनमें निराशावादी प्रवृत्ति उत्पन्न होती है और उसका परिचय वास्तविकता से होता है।
- परिणाम स्वरूप उसमें अहं का विकास होता है। अहं को व्यक्तित्व का निर्णय लेने वाला पहलू माना गया है।
- अहं आंशिक रूप से चेतन आंशिक रूप से अवचेतन या अर्द्धचेतन तथा आंशिक रूप से अचेतन होता है। इसलिये अहं द्वारा मन के तीनों स्तरों पर ही निर्णय लिया जाता है।
3. पराहं-
- अहं के बाद गत्यात्मक मॉडल का तीसरा महत्वपूर्ण पहलू है पराहं।
- सच्चा जैसे-जैसे अपने जीवन के विकासक्रम में आगे बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे उसका दायरा बढ़ने लगता है। उसका अपने माता-पिता से तादात्म्य, जुड़ाव स्थापित होता है। परिणाम स्वरूप वह जानना शुरू करता है कि क्या गलत है और क्या सही? क्या उचित है? क्या अनुचित/इस प्रकार उसमें पराहं विकसित होता है।
- अहं के समान पराहं भी आंशिक रूप से चेतन अर्द्धचेतन एवं अचेतन अर्थात् तीनों होता है।
- पराहं आदर्शवादी सिद्धांत द्वारा नियंत्रित होता है अर्थात् यह नैतिकता पर आधारित होता है।
- इस प्रकार आपने जाना कि फ्रायड के अनुसार व्यक्तित्व की संरचना क्या है अर्थात् व्यक्तित्व किन-किन हाटकों से मिलकर बना है। अब चर्चा करते हैं, व्यक्तित्व की गति के विषय में।
2. व्यक्तित्व की गतिकी
फ्रायड ने व्यक्तित्व के कुछ गत्यात्मक पहलू बताये हैं, जो निम्न हैं-
(ii). यौन मूलप्रवृत्ति (थैनाटोस)- इस प्रवृत्ति के कारण हिंसात्मक एवं आक्रामक व्यवहार करता है। उसकी प्रवृत्ति विध्वंसात्मक कार्यों की ओर होती है।
फ्रायड ने चिन्ता के निम्न तीन प्रकार बतलाये हैं-
इस प्रकार की चिन्ता इसलिये उत्पन्न होती है, क्योंकि अहं कुछ हद तक बाहृय वातावरण पर निर्भर होता है।
उदाहरण- भूकंप, आँधी-तूफान, शेर इत्यादि से डर उत्पन्न होकर चिन्तित होना वास्तविक चिन्ता के उदाहरण है।
उदाहरण-
जैसे व्यक्ति का यह सोचकर चिंताग्रस्त हो जाना कि क्या अहं, उपाहं की यौन इच्छाओं, आक्रामक एवं हिंसात्मक इच्छाओं को नियंत्रित करने में सक्षम हो पायेगा
एक सीमा तक इन रक्षात्मक प्रक्रमों का प्रयोग करना ठीक है, किन्तु इनके लगातार तथा अधिक प्रयोग के कारण व्यक्ति के मन में अनेक प्रकार के मनोरोग जन्म लेने लगते हैं।
3. व्यक्तित्व का विकास
1. मुखावस्था-
- मनोलैंगिक विकास की यह प्रथमावस्था है। यह व्यक्ति के जन्म से लेकर लगभग 1 साल की आयु तक होती है।
- फ्रायड के अनुसार इस चरण में व्यक्ति का व्यामुकता क्षेत्र मुँह होता है अर्थात- मुँह के माध्यम से वह कामुक क्रियायें करता है। जैसे- चूसना, निगलना, जबड़े या दाँत निकल आने पर दबाना, काटना इत्यादि।
2. गुदावस्था-
- व्यक्तित्व विकास की यह दूसरी अवस्था 2 से 3 साल की उम्र के बीच होती है।
- इस अवस्था में व्यक्ति का कामुकता क्षेत्र गुदा होता है। फ्रायड के करने का अर्थ यह है कि इस उम्र में बच्चा मुल-मूत्र त्यागकर कामुक क्रियाओं का आनंद उठाता है।
3. लिंग प्रधानावस्था-
- यह व्यक्तित्व विकास की तीसरी अवस्था है, 4 से 5 साल की उम्र के बीच की अवस्था है।
- इसमें कामुकता का क्षेत्र जननेन्द्रिय होते हैं।
4. अव्यवक्तावस्था-
- यह अवस्था 6 से 7 साल की उम्र से आरंभ होकर 12 वर्ष की आयु तक बनी रहती है।
- इस अवस्था में कोई नया कामुकता क्षेत्र उत्पन्न नहीं होता है।
- लैंगिक इच्छायें सुषुप्त हो जाती है और इनकी अभिव्यक्ति अनेक प्रकार की अलैंगिक क्रियाओं के माध्यम से होती है। उदाहरण के तौर पर हम पढ़ाई, चित्रकारी, संगीत नृत्य, खेल इत्यादि को ले सकते हैं।
5. जननेन्द्रियावस्था-
- मनोलैंगिक विकास के इस चरण में किशोरावस्था एवं प्रौढ़ावस्था या वयस्यावास्था दोनों को ही शामिल किया गया है।
- यह 13 वर्ष की उम्र से प्रारंभ होती है और निरन्तर चलती ही रहती है।
- फ्रायड के अनुसार इस अवस्था में व्यक्ति के शरीर में अनेक प्रकार के परिवर्तन होते हैं। जैसे की हार्मोन्स में परिवर्तन होना और इनके अनुसार शरीर में भी किशोरावस्था के अनेक लक्षण दिखायी देने लगते है।
- फ्रायड के अनुसार इस अवस्था के प्रारंभिक वषो्र में अर्थात् किशोरावस्था में व्यक्ति में अपने ही लिंग के व्यक्तियों के साथ सम्पर्क बनाये रखने की प्रवृत्ति अधिक होती है। जैसे लड़कियों में लड़कियों के साथ रहने की तथा लड़कों में लड़कों के साथ रहने की प्रवृत्ति अधिक रहती है।
- किन्तु जब व्यक्ति किशोरावस्था से वयस्कावस्था में प्रवेश करता है तो उसमें ‘‘विषमलिंग कामुकता’’ की प्रवृत्ति विकसित होने लगती है अर्थात-
वह अपने से विपरीत लिंग के व्यक्तियों के साथ उठता-बैठता है, बातचीत करता है, अपना समय व्यतीत करता है।
- इस अवस्था में व्यक्ति का व्यक्तित्व हर दृष्टि से परिपक्व होता है। जैसे- कि सामाजिक, शारीरिक, मानसिक दृष्टि से।
- इसी अवस्था में व्यक्ति विवाह जो कि समाज द्वारा मान्य एवं अनुमोदित प्रथा है। उसको अपनाकर एक सन्तोषजनक जीवन की ओर अपने कदम बढ़ाता है।
उपर्युक्त विवेचन से आप मनोलैंगिक विकास की सभी अवस्थाओं को समझ गये होंगे। फ्रायड का मानना है कि प्रत्येक अवस्था में व्यक्ति की लैंगिक ऊर्जा का क्रमश: विकास होता है, जिसके कारण विकास की अंतिम अवस्था में वह सक्रिय होकर उपयोगी एवं सन्तोषजनक जीवनयापन करता है।
फ्रायड का व्यक्तित्व का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत के गुण
- विस्तृत एवं चुनौतीपूर्ण सिद्धांत-
फ्रायड ने काफी व्यापक ढंग से व्यक्तित्व का अध्ययन किया है। उन्होंने प्राय: व्यक्तित्व के प्रत्येक पहलू को समझाने की भरपूर कोशिश की है।
- बोधगम्य भाषा- फ्रायड ने व्यक्तित्व के विकास को बहुत ही आसान भाषा में समझाने की कोशिश की है।
फ्रायड का मानना है कि एक स्वस्थ व्यक्तित्व में जीवन एवं मृत्यु मूलप्रवृत्तियों में एक प्रकार का समन्वय एवं सामंजस्य पाया जाता है तथा इससे अर्थात् जीवन मूल प्रवृत्ति थेनाटोस अर्थात् मृत्युमूलप्रवृत्ति की तुलना में अधिक सक्रिय एवं प्रधान होती है।
फ्रायड का व्यक्तित्व का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत के दोष
- वैज्ञानिक विधि का अभाव –
आलोचकों का मत है कि फ्रायड ने अपने शोध कार्यो को सुव्यवस्थत एवं क्रमबद्ध ढंग से प्रस्तुत नहीं किया है जो किसी भी सिद्धांत की वैज्ञानिकता के लिये अत्यधिक आवश्यक है। - लैंगिक उर्जा पर आवश्यकता से अधिक बल देना – फ्रायड के सिद्धांत की सबसे कड़ी आलोचना इस आधार पर की जाती है कि उन्होंने अपने पूरे सिद्धांत में एकमात्र लैंगिक उर्जा को ही आधारभूत इकाई माना है और आवश्यकता से अधिक इसके महत्व को स्वीकार किया है।
- मनोरोगियों की अनुभूतियों पर आधारित –
फ्रायड का सिद्धांत एक तो उनके अपने व्यक्तिगत अनुभवों और इसके उन मनोरोगियों के अनुभवों पर आधारित है, जो उनके यहाँ उपचार के लिये आते थे। आलोचकों का कहना है कि किस सिद्धांत की नींव ही मनोरोगियों की अनुभूतियों पर टिकी है। उसे सामान्य व्यक्तियों पर कैसे लागू किया जा सकता है।
इस प्रकार उपर्युक्त विवेचन से आप जान गये हैं कि फ्रायड के सिद्धांत का क्या महत्व है और उसमें क्या-क्या कमियाँ है। उनके कमियाँ होने के बावजूद भी व्यक्तित्व मनोविज्ञान के क्षेत्र में फ्रायड के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है।