भारतीय संविधान का निर्माण कब और कैसे हुआ। Making of indian constitution in hindi

भारत का संविधान एक संविधान सभा द्वारा निर्मित किया गया है। इस सभा का
गठन 1946 में हुआ। भारतीय संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया था, लेकिन इसके निर्माण की प्रक्रिया बहुत लंबी थी।

भारतीय संविधान के स्रोत (Sources of Indian Constitution)

भारतीय संविधान निर्माताओं का उद्देश्य कोई अभूत पूर्व एवं मौलिक संविधान बनाना नहीं था बल्कि एक ऐसा संविधान बनाना था जो विशिष्ट, संश्लिष्ट एवं नवजात राजनीतिक व्यवस्था में उपयोगी एवं व्यावहारिक हो। इसी कारण भारतीय संविधान निर्माताओं ने न केवल अपने देश की संवैधानिक परंपराओं को अपना बल्कि विभिन्न लोकतांत्रिक देशों के सफल एवं लाभकारी अनुभवों का लाभ उठाया।
संविधान निर्माताओं ने विशेषकर ग्रेट ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, आयरलैण्ड तथा आस्ट्रेलिया की शासन प्रणालियों का अध्ययन किया। हमारे देश के समस्त संसदीय प्रावधान ब्रिटिश संविधान से ही लिए गए हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि भारत का ब्रिटेन से दीर्घकालीन संबंध होने के कारण ब्रिटिश शासन पद्धति की संस्थाओं की ही हमारे देश में नींव पड़ी और विकास हुआ।

भारतीय संविधान का निर्माण (Making of indian constitution)

संविधान सभा का गठन कैबिनेट मिशन योजना के अंतर्गत हुआ था। जुलाई 1946 में
इसका निर्वाचन किया गया इसके सदस्यों में से 208 सदस्य भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
के और 73 मुस्लिम लीग के थे। संविधान सभा को नवंबर 1946 में देश के लिए संविधान
निर्माण का दायित्व सौंपा गया। इस सभा में सिवाय महात्मा गांधी तथा मोहम्मद अली
जिन्ना के देश के लगभग सभी शीर्षस्थ नेता सम्मिलित थे जैसे- पं. जवाहरलाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना आजाद, खान अब्दुल गफ्फार खान, पंगेविंद बल्लभ पंत, डॉ राधाकृष्णन, डॉ पुरुषशत् राम दास टंडन, आचार्य जे.वी. कृपलानी, के.टी. शाह, हृदयनाथ कुंजरू, सर एच.एस. गौर, कन्हैयालाल माणिक लाल मुंशी, श्री कृष्ण सिंह, अलादी कृष्ण स्वामी अय्यर, डॉ जयकर, ख्वाजा नजीमुद्दीन, लियाकत अली खान, सर जगरोल्लाह खान सुहरावर्दी, सर फिरोज खातून और डॉ सच्चिदानंद सिन्हा
आदि। परंतु इसी दौरान देश का विभाजन हो गया और संविधान सभा में सम्मिलित वे
नेता जो मुस्लिम लीग के सदस्य थे, पाकिस्तान चले गए। संविधान सभा के शेष
सदस्यों ने संविधान के निर्माण के कार्य को पूरा किया। 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में के बाद संविधान निर्माण का कार्य पूरा हुआ।

संविधान सभा की कुल संख्या 389 निश्चित की गई थी। इनमें से 93 सदस्यों
देशी रियासतों एवं 4 चीफ कमिश्नरों के प्रांतों और 292 सदस्य ब्रिटिश प्रांतों के होने चाहिए। संविधान सभा में 10 लाख व्यक्तियों पर एक सदस्य के निर्वाचन की व्यवस्था
थी। प्रांतों को दी गईं सीटें उनकी विभिन्न जातियों में जनसंख्या के आधार पर बंटनी
थी। देशी रियासतों को प्रतिनिधित्व जनसंख्या के आधार पर दिया गया था। उनके
प्रतिनिधियों के बारे में निर्णय करने का अधिकार संविधान सभा के निर्वाचित प्रतिनिधियांे
की समझौता समिति एवं देशी रियासतों के शासकों द्वारा नियुक्त समिति को था, जो
परस्पर विचार-विमर्श कर निर्णय करेंगे। कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार संविधान
सभा के लिए चुनाव जुलाई 1946 में संपन्न हुए। ब्रिटिश प्रांतों के इन चुनावों में 208
कांग्रेस, 73 मुस्लिम लीग एवं 15 स्थान स्वतंत्र एवं अन्य दलों को मिले।

 

सविधान सभा के सदस्यों ने अपने चुनाव के पश्चात भारत की आंतरिक सरकार
का चुनाव किया, जिसे कि नये संविधान के लाग ू होने के समय तक भारत का शासन
संचालित करने का कार्य सौंपा गया था। नवीन संविधान के लाग ू होने के पश्चात तथा
सन् 1952 में आम चुनावों के संपन्न होने से पूर्व इस संविधान सभा ने ही संसद के रूप
में कार्य किया।

पहला सत्र – संविधान का पहला सत्र 9 दिसम्बर 1946 ई. को डाॅ. सच्चिदानन्द
की अध्यक्षता में प्रारभ्ं ा हुआ। उनमें केवल 209 सदस्य ही उपस्थित हुए थे। 11 दिसम्बर
1946 ई. को इस सभा का स्थायी अध्यक्ष डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद को चुना गया। 

संविधान सभा में उद्देश्य प्रस्ताव

पं. जवाहरलाल नेहरू ने 13 दिसम्बर 1946 को भारत के भावी संविधान के लिए
संविधान सभा में उद्देश्यों का एक प्रस्ताव या संकल्प प्रस्तुत किया यह संकल्प इस
प्रकार है-

1. ‘‘संविधान सभा अपना पक्का और सत्यनिष्ठ इरादा भारत को एक स्वतंत्र प्रभुत्व
संपन्न गणराज्य घोषित करने का करती है और उसके भावी प्रशासन के लिए
एक संविधान तैयार करना चाहती है।’’

2. जिसमें वे क्षेत्र जो कि आजकल ब्रिटिश भारत में है, वे क्षत्रे जो कि देशी रियासतों
में हें और वे क्षेत्र जो कि भारत के बाहर हैं और अपनी स्वतंत्र इच्छा से भारत
संघ में शामिल होना चाहते हैं, उन सबका एक स्वतंत्र प्रभुत्वसंपन्न संघ होगा,
जिसे भारत कहा जाएगा।’’

3. ‘‘जिसमें कुछ क्षेत्र चाहे अपनी वर्तमान सीमाओं के साथ अथवा जैसा कि
संविधान सभा निर्धारित करे और उसके पश्चात संविधान के कानून के अनुसार
स्वायत्त इकाइयां े का दर्जा रखेंगे। उसमें अवशिष्ट शक्तियां इकाइयां े के पास
होंगी और वे सरकार की सब शक्तियों और कार्यों का प्रयोग करेंगी जो कि संघ
को नहीं दी जाती हैं या संविधान की व्याख्या के द्वारा संघ को नही  आती हैं।’’

4. जिसमें प्रभुत्वसंपन्न स्वतंत्र भारत, उसके संवैधानिक भागों और इकाइयों की
सरकारों की शक्तियों जनता के ग्रहण की जाएगी।

5. ‘‘जिसमें भारत के सब लोगों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्राप्त
होगा और जिसमें कानून के सामने सबको समानता प्राप्त होगी, जिसमें सबका
दर्जा समान होगा और जिसमें अवसर की समानता होगी। जिसमें विचारों,
अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म, व्यवसाय और कार्य की सार्वजनिक नैतिकता और
कानून के अंतर्गत स्वतंत्रता होगी।’’

6. ‘‘जिसमें काफी संरक्षण अल्पसंख्यक वर्गों,ं पिछड़ी हुई जातियां,े क्षेत्रों तथा
कबाइली क्षेत्रों के लिए रखे जाएंगे।’’

7. ‘‘जिसमें गणराज्य की अखंडता को सुरक्षित रखा जाएगा और उसके भूमि, समुद्र
तथा वायु सीमा के न्याय तथा सभ्य राष्ट्रों के कानून के अनुसार प्रभुत्वसंपन्न
अधिकार सुरक्षित रखे जाएंगे। ’’

8. वह प्राचीन भूमि अपना अधिकारपूर्ण तथा सम्मानजनक स्थान संसार में प्राप्त कर
लें और सारी मानव जाति तथा विश्व शांति के लिए अपना ऐच्छिक तथा पूर्ण
योगदान दें।’’

संविधान सभा में 22 जनवरी 1947 को भारी बहुमत से यह संकल्प स्वीकार कर
लिया। इस महत्वकांक्षी उद्देश्य प्रस्ताव के संबंध में पं. नेहरू ने कहा था, ‘‘इस प्रस्ताव
में हमारी वे आकांक्षाएं व्यक्त की गई हैं, जिनके लिए हमने इतने कठोर संघर्ष किए हैं।
संविधान सभा इन्हीं उद्देश्यों के आधार पर हमारे संविधान का निर्माण करेंगी।’’ 

देश की कुछ पिछड़ी हुई तथा आदिम जातियों, अल्पसंख्यकों के हेतु उचित रूप
से संरक्षण प्रदान करने की व्यवस्था की गई।

द्वितीय सत्र – संविधान सभा का द्वितीय सत्र 20 जनवरी से लके र 25 जनवरी
1947 ई. तक चला। इस सत्र में संविधान सभा ने अपनी एक विशिष्ट समिति संघीय
शक्ति से संबंधित- समिति तथा मंत्रिमण्डल मिशन योजना के एक स्टियरिंग समिति,
एक कार्यक्रम समिति तथा एक अल्पसंख्यक वर्गांंे के लिए मंत्रणा समिति गठित की। 

तृतीय सत्र – संविधान सभा का तृतीय सत्र 22 अप्रैल से लेकर 22 मई, 1947
तक चलता रहा। इस समय तक संविधान सभा कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं कर सकी
थी। इससे संविधान सभा के बहुसंख्यक सदस्यों का े यह अभास हो गया कि मुस्लिम
लीग के सदस्य किसी भी दशा में संविधान सभा में सम्मलित नहीं होंगे। तदुपरान्त
संविधान सभा ने सुचारू रूप से संविधान निर्माण करने का कार्य प्रारंभ किया। 
संघीय
शक्ति समिति की रिपार्टे 28 अप्रैल, 1947 ई. को जवाहरलाल नेहरू के द्वारा संविधान
सभा में प्रस्तुत की गई। दूसरे ही दिन 29 अप्रैल 1947 ई. को सरदार पटेल के द्वारा
सभा में मूलाधिकार एवं अल्पसंख्यक वर्ग की मंत्रणा समिति की अंतिम रिपार्टे भी प्रस्तुत
कर दी गई। तत्पश्चात संविधान सभा ने नागरिक मूलाधिकारों विषय में विस्तृत रूप से
विचार करना प्रारंभ कर दिया। सभा ने 2 मई, 1947 ई. को कुछ समय के लिए अपना
कार्य स्थगित करने का निश्चय किया।

इसी दौरान संघीय संविधान पर विचार करना प्रारंभ किया गया। अंत में वित्तीय
संबंधों की एक विशेषज्ञ समिति तथा एक मुख्यायुक्त समिति भी गठित की गई। 

चतुर्थ सत्र – संविधान सभा के आगामी एवं चतुर्थ सत्र का प्रारंभ 14 जुलाई,
1947 ई. को प्रारंभ हुआ। संघ संविधान समिति तथा प्रांतीय संविधान समिति ने
अपनी-अपनी रिपोर्ट संविधान सभा के सामने पेश की। तत्पश्चात संविधान सभा के
सामने मूल अधिकार आदिम जाति तथा अन्य क्षेत्रों के संबंध में भी रिपोर्ट प्रस्तुत की
गई। इसके बाद सर्वाेच्च न्यायालय की तदर्थ समिति ने भी इसके सामने अपनी रिपार्टे
रखी। तत्पश्चात सभा ने प्रांतीय संविधानों से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांतों के विषय में विचार करना प्रारंभ किया। 22 जुलाई, 1947 ई. को संविधान सभा ने भारत के राष्ट्रीय
ध्वज को अंगीकृत किया।

पाँचवां सत्र – 14 जुलाई, 1947 ई. से संविधान सभा का पाँचवां अधिवेशन प्रारंभ हुआ। इसके साथ ही संविधान सभा ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 ई. की शर्तों
के अधीन स्वयं एक पूर्ण प्रमुख संपन्न निकाय का स्वरूप रख लिया। अस्तु, अब यह
सभा कैबिनेट मिशन द्वारा नियत की हुई सीमाओं के अंतर्गत समिति न रहकर
देशवासियों की आवश्यकतानुसार संविधान निर्मित कर सकने को स्वतंत्र हो गई। लार्ड
माउटंबेटन को भारत का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया तथा जवाहरलाल नेहरू
को उनके साथ स्वतंत्र भरत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में कार्य करने का उत्तरदायित्व
सौंपा गया। संविधान सभा ने संविधान बनाने के अतिरिक्त देश के लिए सामान्य कानूनों
का निर्माण करने का उत्तरदायित्व भी संभाल लिया।

29 अगस्त, 1947 ई. को 7 सदस्या ंे की एक प्रारूप समिति का गठन किया गया।
इसके अध्यक्ष डाॅ. भीमराव अंबेडकर तथा अन्य प्रमुख सदस्य- श्री के.एम. मुंशी, टी.टीकृष्ण्
ााकुमारी, गोपाल स्वामी आयंगर तथा अलादी कृष्णा स्वामी अय्यर आदि थे। इस
प्रारूप समिति ने श्री बी.एन. राव द्वारा प्रस्तुत प्रारूप के आधार पर कार्य करना प्रारंभ
किया था। एस.एन. मुखर्जी ने इस प्रारूप को अंतिम रूप प्रदान किया। 
जनवरी 1948 में भारत के वर्तमान संविधान का प्रारूप प्रकाशित किया गया।
संविधान के प्रारूप पर विचार करने के लिय 8 मास का समय निश्चित हुआ। इस पर
संविधान सभा ने 4 नवबंर, 1948 के सामान्य वाद-विवाद प्रारंभ कर दिया। यह
वाद-विवाद 9 नवंबर, 1948 तक चला। 19 नवंबर, 1948 ई. से 17 अक्टूबर, 1949 ई के
दौरान संविधान के प्रारूप पर सभा ने भली प्रकार विचार किया। 
संविधान के प्रारूप
का तृतीय पाठन 14 नवंबर से लेकर 26 नवंबर, 1949 ई. तक चलता रहा। तत्पश्चात
इसे अंगीकृत करके उसके स्थायी अध्यक्ष डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद के हस्ताक्षरों के लिए
प्रस्तुत किया गया। 26 जनवरी, 1950 से संविधान लागू कर दिया गया।

भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं (Features of the Indian Constitution)

भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं है –
भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं

  1. निर्मित एवं लिखित संविधान – भारतीय संविधान का निर्माण एक विशेष समय और निश्चित योजना के अनुसार संविधान सभा द्वारा किया गया था अत: यह निर्मित संविधान है इसमें सरकार के सगंठन के लिए सिद्धातं , व्यवस्थापिका कार्यपालिका, न्यायपालिका आदि के गठन एवं कार्य नागरिकों के अधिकार एवं कत्र्तव्य आदि के विषय में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है। 
  2. विस्तृत एवं व्यापक संविधान – भारतीय संविधान विश्व के सभी संविधानों से व्यापक है इसमें 395 अनुच्छेद एवं 22 भागों में विभक्त है जबकि अमेरिका के संशोधित संविधान में केवल 21 अनुच्छेद, चीन में 106 अनुच्छेद है। 
  3. सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य – इसका अभिप्राय यह है कि भारत अपने आंतरिक एवं बाह्य नीतियों के निर्धारण में पूर्णरूप से स्वतंत्र है एवं राज्य की सर्वोच्च शक्ति जनता में निहित है। हमारे देश का प्रमुख राष्ट्रपति वंशानुगत न होकर एक निश्चित अवधि के लिए निर्वाचित होता है। 
  4. कठोर एवं लचीलेपन का साम्मिश्रण – हमारे संविधान में संशोधन की तीन विधियां दी गई है। इसके कुछ अनुच्छेद संसद के विशेष बहुमत द्वारा परिवर्तित किये जा सकते है, जो लचीलापन का उदाहरण है एवं कुछ अनुच्छेद को आधे से अधिक राज्यों के विशेष बहुमत के साथ ही संसद में उपस्थित दोनो सदनों के दो तिहाई बहुमत के द्वारा ही संशोधन परिवर्तन संभव ही जो संविधान की कठोरता का उदाहरण है। 
  5. संघात्मक होते हुए भी एकात्मक – भारत का संविधान संघात्मक होते हुए एकात्मकता के गुण लिए हुए हैं यथा लिखित संविधान, केन्द्र एंव राज्यों के मध्य शक्ति विभाजन, संविधान की सर्वोच्चता जहां संघात्मक के लक्षण हैं वहीं दूसरी ओर इकहरी नागरिकता एक सी न्याय व्यवस्था एकात्मकता के लक्षण है। 
  6. इकहरी नागरिकता – संधात्मक शासन प्रणाली में नागरिकों को दोहरी नागरीकता प्राप्त होती है जैसा कि अमेरिका में है, जबकि भारत में केवल इकहरी नागरिकता है इसका अभिप्राय यह है कि प्रत्येक व्यक्ति भारत का नागरिक है चाहे वह किसी भी स्थान पर निवास करता हो या किसी भी स्थान पर उसका जन्म हुआ हो। 
  7. सार्वभौम वयस्क मताधिकार – भारतीय संविधान के द्वारा 18 वर्ष से ऊपर प्रत्येक नागरिक को जाति, धर्म, लिंग, प्रजाति या संपत्ति के आधार पर बिन किसी भेदभाव के निर्वाचन में मत देने का अधिकार प्रदान किया है। 
  8. स्वतंत्र न्यायपालिका – भारतीय न्यायपालिका स्वतंत्र है। न्यायाधीशों की नियुक्ति उनकी योग्यता के आधार पर होती है एवं उन्हें आसानी से नहीं हटाया जा सकता है। 
  9. मौलिक अधिकारों की व्यवस्था – मौलिक अधिकार भारतीय संविधान की एक महत्वपूर्ण विशेषता है संविधान में छ: मौलिक अधिकार दिये गये है। 
  10. मौलिक कर्त्तव्यों की व्यवस्था – भारतीय संविधान के 42वें संशोधन के द्वारा नागरिकों के 10 मौलिक कर्त्तव्य जोड़ दिये गये है। 
  11. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत- नीति निर्देशक सिद्धांत हमारे संविधान में आयरलैण्ड के संविधान से लिए गए हैं। लोगों को सामाजिक और आर्थिक न्याय दिलाने के उद्देश्य से राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों को संविधान में शामिल किया गया है। 
  12. एकीकृत न्याय व्यवस्था – भारतीय संविधान की एक महत्वपूर्ण विशेषता एकीकृत न्याय व्यवस्था है। जिस के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय सर्वोपरि अदालत है इसके आधीन उच्च न्यायालय है। इस प्रकार भारतीय न्यायपालिका एक पिरामिड की तरह है। 
  13. आपात काल की व्यवस्था – संकट काल (आपातकाल) का सामना करने के लिए संविधान में कुछ आपातकालीन प्रावधानों की व्यवस्था की गई है। आपातकालीन घोषणा निम्नलिखित तीन परिस्थितियों में की जा सकती है। युद्ध या बाह्य आक्रमण अथवा आंतरिक अशांति उत्पन्न होने पर (अनुच्छेद 352) राज्यों में संवैधानिक व्यवस्था असफल होने पर (अनुच्छेद 356) वित्तीय संकट उत्पन्न होने पर (अनुच्छेद 360) 
  14. लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना – भारतीय संविधान में एक लोकल्याणकारी राज्य की स्थापना का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। जिसमें समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय मिलेगा सभी को बिना भेदभाव के समान अवसर प्राप्त होंगे। 
  15. अस्पृश्यता का अन्त – भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 के अनुसार अस्पृश्यता का अंत किया गया है और उसका किसी भी रूप आचरण निबंद्ध किया जाता है। 

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