मिजोरम का इतिहास

मिजो शब्द का अर्थ है पहाड़ी आदमी या पहाड़ का रहने वाला। यहॉं के निवासी मुख्यत: मंगोलाइड नस्ल के हैं। 1891 में यह क्षेत्र ब्रिटिश शासन के अधीन आया तो इसके उत्तर का लुसाई पर्वतीय क्षेत्र असम के और दक्षिणी भाग बंगाल के अधीन रहा। 1898 में इन दोनों जिलों को मिलाकर एक जिला बना दिया गया और इसका नाम लुसाई हिल्स जिला कर दिया गया और इस जिले का प्रशासन असम के मुख्य आयुक्त को सौंप दिया गया। स्वतंत्रता के पश्चात् यह प्रदेश शुरू में असम में शामिल था। 1952 में जब असम में पाँच स्वायत्त जिला परिषदों का गठन किया गया लुसाई हिल्स जिला उसमें से एक था।

1972 की इन्दिरा गॉंधी सरकार से कुछ मिजो नेताओं ने मुलाकात कर स्वतंत्र राज्य की मांग रखी क्योंकि ये असम के प्रभुत्व से अप्रसन्न थे। वार्ता के बाद केन्द्र ने इन्हें पूर्ण राज्य का दर्जा न देकर 21 जनवरी 1972 पूर्वोत्तर क्षेत्र पुर्नगठन अधिनियम के अन्तर्गत केन्द्रशासित प्रदेश बना दिया।

60 बाद में 30 जून
1986 को मिजो नेशनल फ्रंट और राजीव गॉंधी सरकार के मध्य मिजो शांति
समझौता सम्पन्न हुआ। इस समझौते के परिणाम स्वरूप 20 फरवरी 1987 को
यह भारत का 23वॉं राज्य बन गया।

मिजोरम एक पर्वतीय प्रदेश है जो 210
58’ उत्तरी से 240
30’ उत्तरी
अक्षांश एवं 920
22’ पूर्वी से लेकर 930
32’ पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। यह
पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थित सामरिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण राज्य है। इसके पूर्व और
दक्षिण में म्यांमार, पश्चिम में बांग्लादेश, उत्तर-पश्चिम में त्रिपुरा, उत्तर में असम
और उत्तर-पूर्व में मणिपुर है। मिजोरम में पहाड़ उत्तर से दक्षिण की ओर फैले
हुए हैं। पूर्व में पहाड़ अधिक ऊंचे हैं और उत्तर तथा दक्षिण में नीचे होते चले
गये हैं यहां पहाड़ों की औसत ऊँचाई लगभग 900 मीटर है। सबसे ऊँची चोटी
नीला पर्वत (फौंगफई) है जिसकी ऊँचाई 2,210 मीटर है। मिजोरम प्राकृतिक
रूप से एक रमणीय स्थल है। यहां चारों ओर मनोहारी दृश्य और आकर्षक फूल
पौधे तथा जीव जन्तु दिखाई देते हैं। यहां औसत वर्षा 254 सेमी. होती है।

यहाँ के कबीलों में लुसाई, पवई, पैथ, राल्ते, मारा, लाखे आदि आते हैं।
19वीं शताब्दी में जब यहॉं ब्रिटिश आधिपत्य फैला उसी समय ईसाई मिशनरियों
ने भी अपना प्रभाव फैलाया और इस प्रभाव के परिणाम स्वरूप आज मिजोरम
एक ईसाई बहुल राज्य है। मिशनरी गतिविधियों के परिणाम स्वरूप यहॉं शिक्षा
का व्यापक प्रचार प्रसार हुआ मिजोरम साक्षरता के मामले में पूर्वोत्तर के अन्य
राज्यों से आगे है – 

मिजोरम के 60 प्रतिशत लोग खेती करते हैं। कृषि की मुख्य प्रणाली झूम
खेती है। हाल ही में कृषि विभाग ने पहाड़ी ढलानों पर बाड़ लगाकर एक नई
कंटूर खेती प्रणाली शुरू की है। यह राज्य अपनी रेशेवाली अदरक के लिए
विख्यात है। यहॉं मुख्य खाद्यान्न फसलों में धान, मक्का आदि आते हैं।
व्यापारिक फसलों में सरसो, तिल, गन्ना, कपास, आलू आदि का भी उत्पादन
किया जाता है।

राज्य में बागवानी के लिए अनुमानत: 4 लाख 40 हजार हेक्टेयर क्षेत्र
उपलब्ध है लेकिन सिर्फ 25,000 हेक्टेयर भूमि में बागवानी की जा रही है।
बागवानी की मुख्य फसलें हैं संतरा, नींबू, कागजी नींबू, सादे फल, हटकोड़ा
जमीर, अनन्नास और पपीता। सैरंग में अदरक निर्जलीकरण सयंत्र की स्थापना
और फलों का रस गाढ़ा करने के संयत्र की स्थापना से लोग अदरक और अन्य
फलों की खेती में अधिक रूचि दिखाने लगे हैं।

राज्य के मुख्य उत्पादों में इमारती लकड़ी, बांस, एगोर आदि शामिल हैं।
इसका कारण यह है कि मिजोरम के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 91.27 प्रतिशत क्षेत्र
में वन है। वन और पर्यावरण मंत्रालय द्वारा प्रकाशित वन राज्य रिपोर्ट 2007 के
अनुसार मिजोरम में 134 वर्ग किमी अधिक घने जंगल, 6,251 मध्यम घने जंगल
और 12,855 वर्ग किमी खुले जंगल हैं। प्रतिशत के मामले में मिजोरम में सबसे
अधिक क्षेत्र में जंगल पाये जाते हैं।

सम्पूर्ण मिजोरम अधिसूचित पिछड़ा क्षेत्र है और इसे उद्योग विहीन क्षेत्र के
तहत वर्गीकृत किया गया है। राज्य में औद्योगिक विकास के लिए 1989 में
मिजोरम सरकार ने औद्योगिक नीति बनाई। नीति सम्बन्धी प्रस्ताव में प्राथमिकता
वाले उद्योगों की पहचान की गई। ये हैं कृषि और वन आधारित उद्योग। इसके
बाद हथकरघा, हस्तशिल्प तथा भू-विज्ञान और खनन जैसे दो पूर्ण इकाइयों के
साथ-साथ आइजोल में रेशम कीट पालन का काम भी हो रहा है।

सैरंग में अदरक निर्जलीकरण संयत्र, अदरक तेल और ओलेरेंजिन संयंत्र
तथा बैरेट में फल संरक्षण कारखाना और खावजाल में मक्का प्रसंस्करण इकाई
(मक्का मिलिंग प्लांट) तथा चिंगचिप में फलों का रस बनाने वाली इकाई को
वाणिज्यिक उद्देश्य से चलाने के लिए मिजोरम खाद्य तथा सम्बद्ध औद्योगिक
निगम में हस्तांतरित कर दिया गया है।

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