मैं क्यों लिखता हूँ

मैं क्यों लिखता हूँ

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मैं क्यों लिखता हूँ कहानी का सारांश main kyu likhta hu summary

प्रस्तुत पाठ “मैं क्यों लिखता हूँ ?” अज्ञेय जी के द्वारा लिखित है | अकसर प्रत्येक रचनाकार की आत्मानुभूति ही उसे लेखन कार्य के लिए प्रेरित करती है | कभी-कभी बाहरी दबाव भी कई बार रचनाकार को लिखने के लिए बाध्य करते हैं | लेखक का मत है कि वह बाहरी दबावों से कम प्रभावित होता है | उसे तो उसकी भीतरी विवशता ही लिखने के लिए प्रेरित करती है |
लेखक के अनुसार, लेखक इसलिए लिखते हैं क्योंकि वह अपने विचारों की उलझनों से मुक्ति पाना चाहते हैं | उनके अनुसार लेखक दो प्रकार के होते हैं , एक जो अपनी अनुभूतियों के आधार पर लिखते हैं और दूसरा वे लेखक जो आर्थिक अवस्था के कारण दबाव और बंदिश में पड़कर लिखते हैं | 
मैं क्यों लिखता हूँ
मैं क्यों लिखता हूँ
लेखक का मानना है कि प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा आत्मानुभूति गहरी चीज है | प्रस्तुत पाठ में लेखक ने अपने लिखने के कारणों के साथ-साथ एक लेखक की प्रेरणात्मक स्रोतों पर भी प्रकाश डाले हैं | लेखक के अनुसार लिखे बिना लिखने के कारणों को नहीं जाना जा सकता है | वह अपनी आंतरिक व्याकुलता से मुक्ति पाने तथा तटस्थ होकर उसे देखने और पहचानने के लिए लिखता है | एक लेखक या रचनाकार को अनुभव सामने घटित घटना को देखकर होता है, किंतु अनुभूति संवेदना और कल्पना के द्वारा उस सत्य को भी ग्रहण कर लेती है, जो रचनाकार के सामने घटित नहीं हुआ | फिर वह सत्य आत्मा के सामने ज्वलंत प्रकाश में आ जाता है और रचनाकार उसका वर्णन करता है |  
लेखक अज्ञेय जी बताते हैं कि उसके द्वारा लिखी ‘हिरोशिमा’ नामक कविता भी ऐसी ही है | एक बार जब वह जापान गए, तो वहाँ हिरोशिमा में उसने देखा कि एक पत्थर बुरी तरह झुलसा हुआ है और उस पर एक व्यक्ति की लंबी उजली छाया है | विज्ञान का विद्यार्थी होने के कारण उन्हें रेडियोधर्मी प्रभावों की जानकारी थी | उसे देखकर उन्होंने अनुमान लगाया कि जब हिरोशिमा पर अणु-बम गिराया गया होगा, तो उस समय वह व्यक्ति इस पत्थर के पास खड़ा होगा | अणु बम के प्रभाव से वह भाप बनकर उड़ गया, किंतु उसकी छाया उस पत्थर पर ही रह गई | 
लेखक को उस झुलसे हुए पत्थर ने झकझोर कर रख दिया | वे हिरोशिमा पर गिराए गए अणु बम की भयानकता की कल्पना करके बहुत दुखी हुए | उस समय उन्हें ऐसा लगा, मानो वह उस दु:खद घटना के समय वहाँ मौजूद रहे हों | इस त्रासदी से उनके भीतर जो व्याकुलता पैदा हुई, उसी का परिणाम उनके द्वारा हिरोशिमा पर लिखी कविता थी | लेखक कहते हैं कि यह कविता ‘हिरोशिमा’ , जैसी भी हो, वह उनकी अनुभूति से पैदा हुई थी|यही उनके लिए महत्वपूर्ण था…|| 


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प्रश्न-1 लेखक के अनुसार प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा अनुभूति उनके लेखन में कहीं अधिक मदद करती है, क्यों ?
उत्तर- एक लेखक या रचनाकार को अनुभव सामने घटित घटना को देखकर होता है, किंतु अनुभूति संवेदना और कल्पना के द्वारा उस सत्य को भी ग्रहण कर लेती है, जो रचनाकार के सामने घटित नहीं हुआ | फिर वह सत्य आत्मा के सामने ज्वलंत प्रकाश में आ जाता है और रचनाकार उसका वर्णन करता है |
लेखक का मानना है कि जब भीतर की अनुभूति बुद्धि से बढ़कर संवेदना का रूप ले लेती है, तब वह लेखक को लिखने पर विवश करती है | इसीप्रकार प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा अनुभूति उनके लेखन में कहीं अधिक मदद करती है | 
प्रश्न-2 लेखक ने अपने आपको हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता कब और किस तरह महसूस किया ?
उत्तर-  अपनी जापान यात्रा के दौरान लेखक ने एक पत्थर में मानव की उजली छाया देखी | वे विज्ञान के विद्यार्थी थे इस कारण समझ गए की विस्फोट के समय पत्थर के पास कोई व्यक्ति खड़ा होगा |  विस्फोट से विसर्जित रेडियोधर्मी पदार्थ ने उस व्यक्ति को भाप बना दिया और पत्थर को झुलसा दिया होगा | इस प्रत्यक्ष व परोक्ष अनुभूति ने लेखक के हृदय को झकझोर दिया | उस समय उन्हें ऐसा लगा, मानो वे उस दु:खद घटना के समय वहाँ मौजूद रहे हों | इस प्रकार लेखक हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता बन गए | 
प्रश्न-3 हिरोशिमा पर लिखी कविता लेखक के अंत: व बाह्य दोनों दबाव का परिणाम है यह आप कैसे कह सकते हैं ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के लेखक को एक बार जापान जाकर हिरोशिमा देखने का मौका मिला | उन्होंने वहाँ वह अस्पताल भी देखा, जहाँ रेडियम-पदार्थ से आहत लोग वर्षों से कष्ट पा रहे थे | उन्हें देखकर लेखक को सहानुभूति हुई | परन्तु ये घटनाएँ लिखने के लिए लेखक को प्रेरित नहीं कीं | जब उन्होंने जले पत्थर पर किसी व्यक्ति की उजली छाया को देखा तो उन्हें उनके दर्द की अनुभूति हुई, जिसने लेखक को लिखने के लिए प्रेरित किया | यह लेखक का आंतरिक दवाब था | चूँकि लेखक विज्ञान के छात्र थे तो वह हिरोशिमा की त्रासदी बेहतर और भावात्मक ढंग से बता सकते थे | इसलिए कुछ अलग लिखने की चाह लेखक के बाह्य दबाव की ओर इशारा करता है | 
प्रश्न-4 एक संवेदनशील युवा नागरिक की हैसियत से विज्ञान का दुरुपयोग रोकने में आपकी क्या भूमिका है ? 
उत्तर- एक संवेदनशील युवा नागरिक की हैसियत से विज्ञान का दुरूपयोग निम्नलिखित प्रकार से रोका जा सकता है — 
कृषकों को जैविक खेती के बारे में जागरूक करके और उन्हें जहरीले रसायनों के प्रयोग के दुष्परिणामों से अवगत कराके | 
बिजली के अनावश्यक प्रयोग को रोक कर ऊर्जा  का बचत किया जा सकता है, जिससे पर्यावरण को अत्यधिक नुकसान ना पहुँचे | 
सोशल मीडिया का सदुपयोग करते हुए समाज में   विज्ञान द्वारा उत्पन्न बुराइयाँ जैसे — भ्रूणहत्या,  गैर-कानूनी अंग प्रत्यारोपण आदि को रोका जा   सकता है | 
आज बहुतायत देश परमाणु सम्पन्न हो चुका है |अत्याधुनिक हथियारों और मिसाइलों से भरा-पूरा है | अगर परमाणु सम्पन्न देश छोटी-छोटी बातों   पर एक-दूसरे पर बमबारी करने लगे तो मानव   सभ्यता ऐसे ही चौपट हो जाएगा | आज ऐसी   घटनाओं से बचने की जरूरत है | 
प्रश्न-5 मैं क्यों लिखता हूँ ? के आधार पर बताइए कि — 
(क)-  लेखक को कौन-सी बातें लिखने के लिए प्रेरित करती हैं ?
उत्तर- लेखक अपनी आंतरिक व्याकुलता से मुक्ति पाने तथा तटस्थ होकर उसे देखने और पहचानने के लिए लिखता है | अत: लेखक की आंतरिक विवशता उसे लिखने के लिए प्रेरित करती है |
(ख)-  किसी रचनाकार के प्रेरणा स्रोत किसी दूसरे को कुछ भी रचने के लिए किस तरह उत्साहित कर सकते हैं ?
उत्तर- किसी रचनाकार के प्रेरणा स्रोत दूसरे को कुछ भी रचने के लिए विभिन्न तरीकों से उत्साहित कर सकते हैं | जैसे वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण से प्रेरणा लेकर अन्य लेखकों ने इसके बारे में लिखा है |अन्य लेखकों की अपनी सामाजिक स्थिति और पात्रों का अलग वर्गीकरण हो सकता है | महाभारत भी ऐसे उदाहरणों में शामिल है | 

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