रेत पर ओस/विचार मंथन

मनोज सिंह

यह दुबई की मेरी पहली यात्रा थी। विश्व में आज यह एक चर्चित स्थान है। इसके बारे में काफी कुछ सुन रखा था। यूं तो हिंदुस्तान में आम से लेकर खास लोगों के बीच यह विशेष रूप से चर्चा के केंद्र में अमूमन होता है। मगर, शायद बॉलीवुड फिल्मों के कारण ही सही, लेकिन कई बार आपराधिक पृष्ठभूमि के खलनायकों, यहां तक कि काल्पनिक डॉन के संदर्भ में भी यदाकदा इसका नाम प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में लिया जाता रहा है। परंतु वहां पहुंचकर मुझे इसी बात ने सबसे अधिक हैरान किया था। आश्चर्यचकित तो मैं कई अन्य बातों से भी हुआ था। सर्वप्रथम अपराध की बात करें तो यहां यह न्यूनतम है। कम से कम आमजन को सामान्य दैनिक जीवन में किसी भी किस्म का क्राइम दिखाई-सुनाई नहीं देता। फिर ऐसे अनुशासनप्रिय स्थान को अपराध जगत के तथाकथित लोगों से जोड़कर क्यूं दिखाया जाता रहा है? अब मेरे लिये यह एक पहेली है। बहरहाल, परदे के पीछे छिपकर अगर कोई खेल चलता भी हो तो, उससे एक सामान्य नागरिक को कोई मतलब नहीं होता। कम से कम तब तक तो बिल्कुल भी नहीं जब तक वो उससे सीधे-सीधे प्रभावित न हो। एक आम आदमी को उन बातों से कोई विशेष सरोकार नहीं होता जो उससे सीधे न जुड़ी हों। सड़कें, पार्क, बाजार, दुकानें, सिनेमा स्थल, रेलवे स्टेशन व बस अड्डा आदि-आदि, अगर उसकी मूलभूत जरूरतों के लिए समुचित और सुरक्षित हैं तो उसके लिए यह आवश्यकता से अधिक है। बहरहाल, यह मेरे लिये कल्पना करना भी मुश्किल था कि सड़कों पर वाहन का इतना अनुशासन हो सकता है!! यही नहीं सड़क किनारे पैदल मार्ग पर, बस व मेट्रो में, पार्क व मॉल्स के भीतर कहीं भी देख लें, हर एक चीज व्यवस्थित थी। एयरपोर्ट से लेकर शहर के व्यस्तम चौराहे तक, गैरकानूनी या गैरजिम्मेदाराना हरकत करता हुआ स्थानीय नागरिक ही नहीं विदेशी प्रवासी भी ढूंढ़े नहीं मिला था। ऊपर से कहीं भी पुलिस नजर नहीं आई थी। यह सोचने के लिए मजबूर करने वाला अनुभव था। और शायद इसी कारण से यह जिज्ञासा के साथ-साथ मन में कई सवाल भी पैदा कर रहा था। हमारे देश में चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात होने के बावजूद अपराध क्यूं होते हैं? कहा जाता है कि वहां कानून सख्त है। तो क्या हमारे यहां आवश्यकतानुसार कानून नहीं है? नहीं, ऐसा नहीं है। असल में सवाल उसके क्रियान्वयन को लेकर उठता है। सच भी है, कानून को अमल में लाने के लिए राजनीतिक व सामाजिक प्रतिबद्धता व दृढ़ता के साथ-साथ अवाम का व्यक्तिगत चरित्र भी आवश्यक है।
उपरोक्त संदर्भ में कुछ एक बुद्धिजीवी, यह भी कह सकते हैं कि वो एक अति छोटा शहर/राज्य है। मगर फिर प्रश्न उठता है कि हमारे यहां भी तो छोटी-छोटी कई इकाईयां हैं। और उनके प्रमुख बहुत हद तक पूरी तरह स्वतंत्रत और अधिकार-संपन्न भी हैं। फिर वो अपने क्षेत्र को दुबई की तरह विकसित क्यों नहीं कर पाते? क्या वे सक्षम नहीं? ऐसा भी नहीं है। यहां प्रशासन में बाहरी हस्तक्षेप, राजनीति का नकारात्मक पक्ष अर्थात प्रजातंत्र का अवांछनीय चेहरा, सत्ता का दुरुपयोग और विशाल जनसंख्या (भीड़) का प्रवाह, हमारी असफलता व अस्त-व्यस्तता के कुछ एक प्रमुख कारण बताये जा सकते हैं। यह कुछ हद तक तो सही हो सकता है मगर शत-प्रतिशत नहीं। जहां भी नेतृत्व की दृढ़ इच्छाशक्ति रही है वहां हमने कई बार, कई राज्यों और शहरों में अच्छा कार्य किया है। वो दीगर बात है कि आपस में टांग खींचने की पुरानी आदत के कारण हम उसमें भी लंबे समय के लिए सफल नहीं रह पाते। 
दुबई हवाई अड्डा, जो दुनिया के व्यस्तम एयरपोर्ट में से एक है, पर उतरते ही विश्व के आधुनिकतम व विकसित राज्य में आने का अहसास होने लगता है। चारों ओर सब कुछ व्यवस्थित नजर आता है। एयरपोर्ट से बाहर निकलने पर छह से सात लेन की एक तरफा चौड़ी व सीधी सड़कें और उस पर सौ से अधिक स्पीड पर यंत्रवत्‌ भागती गाड़ियां आकर्षित करती हैं। एक आम भारतीय होने के कारण, अधिक हैरानी तब होती है जब रास्ते में कहीं झटके नहीं लगते। सड़क पर गड्डे न होने के कारण दचके नहीं लगते। कहीं से कहीं भी, किसी भी समय, आप टैक्सी में बैठकर अकेले भी सुरक्षित आ-जा सकते हैं। फिर चाहे वो एक वृद्ध दंपति हो या युवा महिला या फिर बच्चे! क्या हम अपने महानगरों में इसकी कल्पना कर सकते हैं? दुनिया की सबसे ऊंची इमारत बुर्ज खलिफा, एकमात्र सात सितारा होटल-बुर्ज अल अरब और दुनिया के विशालतम मॉल्स में से एक दुबई मॉल्स यहीं पर है। और भी बहुत कुछ है दुबई के पास। भव्य, विशाल, आकर्षक, ऊंची बड़ी-बड़ी इमारतें और उसमें विद्यमान दुनिया की हर एक व्यवस्था। फिर चाहे व्यवसाय, मनोरंजन, विज्ञापन, स्वास्थ्य, आईटी, शिक्षा, खेल इत्यादि अर्थात समाज का कोई भी क्षेत्र हो। आने वाले प्रवासियों में रईसों के रहने के लिए अनगिनत सितारा होटल उपलब्ध हैं तो आमजन के लिए भी ठहरने के स्थान की कमी नहीं। सबके लिए एक समान सुरक्षा। यहां दुबई माल के अतिरिक्त मॉल्स ऑफ एमिरात, शफी मॉल्स, डेरा सिटी सेंटर जैसे कई आधुनिक मॉल्स की श्रृंखला है। यह यकीनन रईसों व शेखों की पहली पसंद होगी। यहां दुनिया की बेहतरीन उच्च स्तरीय ब्रांडेड उपभोक्ता के सामानों की भव्य व आकर्षक दुकानें हैं। इतनी कि आंखें चुंधिया सकती हैं। यह परिलोक से कम नजर नहीं आता। शायद तभी विश्व के तमाम, विशेषकर एशियाई मूल के लोकप्रिय लोगों के लिए आने-जाने-घूमने-खरीदारी करने की यह पहली पसंद बनती जा रही है। मगर ऐसा भी नहीं कि आमजन यहां आ ही नहीं सकता। सामान्य स्तर के कम खर्चीले होटलों व रेस्तराओं की भी कमी नहीं। हां, यह दीगर बात है कि आम आदमी की जेब की क्षमता के अनुरूप खरीदने लायक कम होता है। बहरहाल, एक आम खरीदार व स्थानीय सामान्य नागरिकों के जीवन-उपयोगी आवश्यक चीजों के लिए लुलू व ड्रैगन मॉल्स की तरह के कई अन्य सिटी सेंटर व मार्केट सेंटर भी उपलब्ध हैं। 
उपरोक्त सारी विशेषताओं व सुविधाओं की उपलब्धता के कारण ही यह स्थान विश्वपटल पर पर्यटन के लिए जाना जाता है। यह खरीदारों के लिए स्वर्ग कहा जाता है। यकीनन यह ठीक भी है। शुद्ध सोने से बने आभूषणों का व्यापार प्राचीन काल से यहां का प्रमुख आकर्षण रहा है। टैक्सों में छूट के कारण कई तरह के उपभोक्ता सामान की कीमतें कम होती हैं। इसी कारण से आधुनिकतम इलेक्ट्रॉनिक सामान को खरीदने वालों की भीड़ मची होती है। भिन्न-भिन्न देशों का हर तरह का भोजन, यहां मूल स्वाद के साथ उपलब्ध है। लेबनानी, फ्रेंच, इटालियन से लेकर चाइनीज और दक्षिण भारतीय व्यंजन तो यहां आम है, साथ ही पाकिस्तान का 'कराची दरबार' रेस्टोरेंट स्वाद व दाम के कारण सहज रूप में ही प्रवासियों को आकर्षित करता है। दुबई में हरेक सभ्यता व संस्कृति के रंग देखने को मिल जाते हैं। दूर-दूर तक फैले रेगिस्तान में बसे शहर के बीच पसरी हरियाली देखकर आश्चर्य होता है। यहां मानव मात्र अपने अस्तित्व को लेकर जूझता नजर नहीं आता बल्कि प्रकृति के विपरीत परिस्थितियों को चुनौती देता प्रतीत होता है। उसकी ऊंची इमारतें खुले आसमान के सामने अट्टहास लगाती नजर आती हैं। इतनी गर्मी के बावजूद बर्फ के खेलों की इंडोर व्यवस्था, वो भी विश्वस्तरीय पूर्णतः प्रोफेशनल ढंग से, हैरानी को बढ़ाने का काम करती है। यहां के म्यूजियम को देखने पर कई बार ऐसा लगता है कि स्थानीय प्राचीन परंपरा, सभ्यता संस्कृति को सचमुच में एक बार फिर जीवित रूप से खड़ा कर दिया गया है। 'डेजर्ट सफारी' में रेगिस्तान की मुश्किलों से प्रवासियों का सीधे-सीधे सामना होता है। यह हरेक प्रवासी को एक विशिष्ट अनुभव देता है। दुबई माल स्थित एक्वेरियम में तैरती मछलियां की विशिष्ट प्रजाति देख आंखें स्थिर हो जाती हैं। बाहर निकलकर बगल में स्थित बुर्ज खलिफा की चोटी को देखने के चक्कर में आंखें परेशान हो जाती हैं चूंकि वो बादलों के पार होता है। समुद्र किनारे बसायी गई साफ-सुथरी बस्ती को देख वहीं बस जाने का मन करता है। मगर यह आम लोगों के लिए नहीं। ऐसे में सपनों की नगरी को आंखों में बसाकर वापस आना और मुश्किल हो जाता है।


यह लेख मनोज सिंह द्वारा लिखा गया है.मनोजसिंह ,कवि ,कहानीकार ,उपन्यासकार एवं स्तंभकार के रूप में प्रसिद्ध है .आपकी'चंद्रिकोत्त्सव ,बंधन ,कशमकश और 'व्यक्तित्व का प्रभाव' आदि पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है.

 

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