रोम की स्थापना, नामकरण
(virgil) ने भी इससे मिलती-जुलती कहानी अपनी कविता इनीउहद (Aeneid) में बताई है कि ट्रोजन का नायक जब ट्राय
(Troy) से विध्वंश होने के बाद अपने पिता को अपनी पीठ पर उठा कर ले गया तथा उसके बाद वह कई स्थानों पर गया
और विजयें भी प्राप्त की। इसने इटली में एक कॉलोनी की स्थापना की जहां पर रोमुल्स तथा रेमस पैदा हुए। इनके ही नाम
पर रोम का नामकरण हुआ।
रोमन साम्राज्य के अवशेष
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रोम प्रायद्वीप भूमध्यसागर में एक बूट के आकार का दिखाई देता है जिसकी नोक सिसली के द्वीप में प्रतीत होती है। इस बूटनुमा
क्षेत्र के ऊपर अल्पस् पर्वत है, जो (Po) पो नामक नदी का पानी यहां के उतरी क्षेत्रों के कृषकों को सिचांई के लिए देता है
तथा (Apennines) एपैनीन्ज पर्वत श्रृंखला समस्त इटली में फैली है। इन पर्वतों के कारण यह युनान के नगर राज्यों से पृथक
होता है। इटली के पूर्वी क्षेत्र की जमीन उपजाऊ नही थी और ना ही अच्छी बन्दरगाहें थी। इस कारण यहां कम जनसंख्या
थी। पश्चिमी क्षेत्र में बन्दरगाहों एवम् लंबी-2 नदियों के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना आसान था इसलिए यहां
जनसंख्या अधिक थी। रोम ने इसी समुद्र और नदियों के सहारे व्यापार और अनेक विजयों में उपलब्धियां हासिल की। रोम
इटली के पश्चिम के उपजाऊ प्रदेश में स्थित है तथा यहां पर स्थित सात पहाड़ों से प्राचीन रोमन निवासी अपने शत्रुओं को
दूर से देखकर सुरक्षा का प्रबंध कर सकते थे। रोम समुद्र 25 किलोमीटर दूर था, इस कारण भी समुद्र के रास्ते इस पर इतनी
आसानी से आक्रमण नही हो सकता था टाइबर नदी इन्हें भोजन तथा यातायात में सहायक थी तथा इस के मुख पर रोमनों
में (Ostia) ओस्टिया नामक बन्दरगाह स्थापित की।
रोमन संस्कृति का विकास
जिन Latin (लातिनी) लोगों ने रोम की स्थापना की वे कृषक और पशुपालक थे। प्रारंभ में ये कबीलाई लोग आपस में तथा
अपने पडोसियों से लड़ते रहते थे। उनके इसी जीवन के लिए संघर्ष के प्राचीन काल से ही यहां के लोगों में कर्त्तव्य और
अनुशासन तथा देशभक्ति की भावना उजागर हो गई। साथ ही दूसरे लोगों के सम्पर्क से रोमन संस्कृति का विकास हुआ।
रोमनों ने फ्यूनिशिया तथा यूनान की उत्कर्ष सभ्यताओं से बहुत से नए विचार ग्रहण किए तथा सिसली और इटली में
अपनी बस्तियां स्थापित की। यूनानियो से इन्होंने किले बंद शहर बनाने सीखे, अंगूर और अंजीर की कृषि का ज्ञान प्राप्त किया।
एशिया माइनर से इटली आने वाले (Etruscans) इट्रुस्केन लोगों ने भी रोमनों पर अपना प्रभाव छोड़ा।
इन्होने टाइबर नदी को पार कर रोम पर अपना अधिपत्य जमा लिया तथा अगले 100 वर्षो तक इन्हीं विजेताओं से रोम के
लोगों ने बहुत कुछ सीखा। । Alphabat वर्णमाला सीखी, इनके कला के नमूनों की नकल की तथा अपने देवों के अलावा उनके
देवताओं की पूजा भी शुरू की। इन हमलावारों से इन्होंने वास्तुकला में मेहराब बनाना सीखा इसके अलावा दलदली भूमि को
कृषि योग्य बनाना भी इन्हीं से सीखा। छठी शताब्दी ई0पू0 में इन विदेशियों की शक्ति सर्वोच्य पर थी, जब इन्होंने कार्थेज
से समझौता किया ओर कोरसिका से ऐनानज को बाहर खेदड़ दिया। 535 ई0पू0 में (Alalia) एललिए पर भी इन्होंने विजय
प्राप्त की।
इन विदेशियों ने यद्यपि रेाम में काफी विकास किया लेकिन रोमन इन्हें पंसद नही करते थे इसलिए इन्होंने संगठित होकर इनके
विरूद्ध विद्रोह कर दिया। विद्रोह के कारण एट्रस्केनों यह क्षेत्र छोड़ कर भाग गए। इनके जाने के बाद रोम में गणराज्य की
स्थापना की गई।
लिया। 509 से 133 ई0पू0 के बीच रोम ने बहुत से युद्ध करके अपने राज्य का विस्तार किया। 390 ई0पू0 में gauls – गाल्ज
ने रोम पर आक्रमण किया और यहां अधिकार कर लिया। रोमनों ने इन विजेताओं को भारी हर्जाना दे कर शांति खरीदनी
पडी। इस हार के बाद रोमनों ने अपने शहरों की किलेबन्दी कर दी और अपनी सेना को संगठित किया। सेना को बढिया
अस्त्र-शस्त्र मुहैया करवाए गए जिसमें लंबी तलवारें, भाले प्रमुख थे। सेना की प्रत्येक लीजनज में 3000 सैनिक थे। इन्हें
छोटी-छोटी टुकडियों में बांटा गया था ताकि आपातकाल में शीघ्रता से इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जा सके।
ये सैनिक इक्कठें तथा अलग-अलग यूनिटों में भी युद्ध करते थे।
भी वर्चस्व स्थापित कर लिया था। इसी समय उन्हें (Campania) कैम्पानिया में रह रहे सैम्नाइटों से संघर्ष करना पडा। 340-
290 ई0पू0 के बीच रोमनों को उनसे तीन युद्ध करने पडे और रोम ने विजयी होकर समस्त इटली क्षेत्र को अपने अधीन कर
लिया तथा विदेशियों के विरूद्ध इटलियाई संघर्ष का नेता होने के कारण रोम सारे देश की एक छत्रा ताकत बन गया था।
उसने सारे इटली का रामनीकरण की प्रक्रिया शुरू कर दी। इसके लिए उसने इटली के विभिन्न राज्यों मं आपसी फूट डलवा
कर अपना प्रभुत्व कर लिया लेकिन उनके अंदरूनी मामलें में हस्तक्षेप नही किया। जिस राज्य ने रोम के प्रति द्वेष नही रखा
उनसे अच्छा व्यवहार किया तथा धीरे-धीरे सभी राज्य रोम के प्रति वफादार हो गए।
रोमन सभ्यता की राजनैतिक व्यवस्था
रोमवासियों को अपने पुराने अत्याचारी शासकों से नफरत थी इसलिए उन्होंने राजतंत्र के स्थान पर गणतंत्र सरकार की
स्थापना की तथा सभी प्रकार की सावधानी रखी गई ताकि राज्य सत्ता एक व्यक्ति के हाथों में केन्द्रित न हो सके। यद्यपि
सता अभी भी (Patricians) पेट्रिशियन (यानि कुलीन वर्ग) के ही हाथों में केन्द्रित थी। लेकिन सभी नागरिकों को वोट से अपना
नेता चुनने का अधिकार था। ये चुने हुए नेता लोगों का प्रतिनिधित्व करते थे, तथा उनके नाम पर राज्य करते थे। रोम में 500
वर्षो तक गणतंत्र कायम रहा, इस बीच रोम विश्व शक्ति बन गया।
प्रांरभिक सरकार :-
प्रांरभिक गणतंत्र काल में (Patricians) कुलीन वर्ग के लोग सेनेट के द्वारा सरकार को चलाते थे। सेनेट के 300 पेट्रिशियन सदस्य
थे जो उम्र भर इसके सदस्य रहते थे। ये गणतंत्र की आन्तरिक तथा विदेशी नीतियों का निर्धारण करते थे। प्रतिवर्ष सीनेट
दो काउंसिलों (Consuls) का चुनाव करती थी। इसके दोनों सदस्य पेट्रिशियन वर्ग के ही होते थे। ये Counsul राज्य के सह
शासक थे। इनका चुनाव एक वर्ष के लिए किया जाता था। ये कभी भी अधिक शक्तिशाली नही हो सकते थे। अपने एक वर्ष
के कार्यकाल में ये राज्य के प्राशसनिक कार्य संभालते थे और युद्धों के दौरान सेना का नेतृत्व भी करते थे। दोनों Consuls
को बराबर की शक्तियां एवम् अधिकार प्राप्त थे। दोनों Consuls एक-दूसरे के किसी भी काम को (Veto) वीटो भी कर सकते
थे। यदि दोनो में इस तरह का कोई मतभेद हो जाता तो मामला सीनेट को सौंपा जाता था तथा कभी-कभी (Pro-Consuls)
भी इनकी सहायता के लिए नियुक्त किए जाते थे। आपातकाल के दौरान इन Consuls के स्थान पर सीनेट (Dictator)
(डिक्टेटर) की नियुक्ति भी कर सकती थी। इसे असीम शक्तियाँ प्राप्त थी। आपातकाल समाप्त होने पर यह 6 महीन की
अवधि तक अपने पद पर रह सकता था। प्रत्येक Consul अपना कार्यकाल समाप्त होने पर सीनेट का सदस्य बन जाता था।
असैम्बली :-
सीनेट के अतिरिक्त एक प्रसिद्ध असैम्बली भी थी जिसमें प्लेबियन (आम लोग) चुनते थे। असैम्बली Consuls की नियुक्ति को
स्वीकृति देती थी। परन्तु प्रारम्भिक रोमन गणतंत्र में असैम्बली को अधिक अधिकार प्राप्त नही थे और नला ही यह सीनेट के
किसी फैसले को चुनौती दे सकती थी।
सरकार में परिवर्तन :-
परन्तु 509 ई0पू0 से 133 ई0पू0 तक रोम की सरकार को साम्राज्य विस्तार के कारण बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना
पड़ा। सर्वप्रथम तो एक बडे गणतंत्र का कार्य चलाने के लिए अधिक संख्या में अधिकारियों की आवश्यकता थी। दूसरे, Plebians
(आम लोग) जिन्हें प्रारंभिक गणतंत्र में कोई अधिकार प्राप्त नही थे और ना ही वे किसी उच्च सरकारी पद प्राप्त कर सकते
थे। इस काल में उन्होने रोम की सुरक्षा की अह्म भूमिका निभानी शुरू कर दी और बाद में उन्हें सेना में भी भर्ती किया जाने
लगा। इस प्रकार उन्होने भी सरकार में अपनी अधिक भागीदारी के लिए अधिकार मांगने शुरू किए। इन चुनौतियों के कारण
रोमन सरकार में धीरे-धीरे परिवर्तन करने शुरू किए। यद्यपि सीनेट की अपनी शक्ति और प्रतिष्ठा कायम रही लेकिन असैम्बली
के स्थान पर एक असैम्बली ऑफ सेन्चुरी तथा असैम्बली ऑफ VªkbCt (Assembly of Centuries and Assembly of Tribes)
का गठन हुआ। इनका गठन होनक के बाद प्लेबियन वर्ग के लोगों को भी राजनैतिक अधिकार प्राप्त होने लगे।
Assembly of Centuries :-
इस असैम्ब्ली में सारी रोमन सेना शामिल होती थी। साम्राज्य विस्तार के कारण बढ़ी हुई जरूरतों को पूरा करने के लिए सेना
में प्लेबियन (आम लोगों) को भी भर्ती किया जाने लगा। इस प्रकार अब सेना में पेट्रिशियन (कुलीन वर्ग) के अतिरिक्त प्लेबियन
(आम वर्ग) लोग भी शामिल होने लगे। यह असैम्बली कानून बनाती थी। तथा Consuls का चुनाव भी करती थी, जिन्हें पहले
सीनेट चुनती थी। इसके अतिरिक्त यह अन्य अधिकारियों जैसे Praetors या जजों का भी चुनाव करती थी जो कानूनी मामलों
का निपटारा करते थे। इसके अतिरिक्त censor को भी नियुक्त करती थी जिसका मुख्य कार्य टैक्स निर्धारण तथा वोट के
लिए जनगणना करना होता था। इसके अलावा censor, moral code को भी लागू करता था। ये सभी अधिकारी पेट्रीशियन
वर्ग के थे और इनका पद काल एक वर्ष के लिए होता था। बाद में ये सीनेट के सदस्य बन जाते थे।
Assembly of Tribes :-
प्लेबियन वर्ग के लोग इस असैम्बली के सदस्य होते थे। ये 10 Tribunes की नियुक्ति करते थे जो आम लोगों के हितों का
ध्यान रखते थे। प्रारंभ में इन Tribunes की सरकार में कोई भूमिका नहीं थी। परन्तु जब प्लेबियन वर्ग के लोगों ने अपने
अधिकार मांगने के लिए रोम के लिए युद्ध में भाग ना लेने की धमकी दी तो सीनेट ने इनकी कुछ मांगों पर विचार किया। इनमें
इन Tribunes की law code (कानून संग्रह) की मांग थी जिसे स्वीकार किया गया। इसके लिए सीनेट ने रोम के कानूनों को
लिखने के लिए एक आयोग की स्थापना की। इस प्रकार 451 ई0पू0 में 12 पत्थर की तख्तियों (Tablets) पर रोम की
विधि संहिता लिखी गई जिसे Law of Twelve Tablets कहा जाता है। परन्तु इस विधि संहिता में भी पेट्रिशियन और प्लेबियन
वर्ग के बीच काफी दूरी रखी गई। इसके अनुसार प्लेबियन ना तो Consuls हो सकते थे और ना ही सीनेट के सदस्य बन सकते
थे और पेट्रिशयनों से शादी नहीं कर सकते थे। लेकिन इन सबके बावजूद सभी कानूनों, तथा उनकी अवहेलना पर सजा इत्यादि
के प्रावधान लिखकर सभी नागरिकों को अनुचित व्यवहार से इन्होंने सुरक्षा प्रदान की। लेकिन प्लेबियन वर्ग का संघर्ष अभी
समाप्त नहीं हुआ था। वे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे।
परिणामस्वरूप सर्वप्रथम पेट्रिशियन और प्लेबियन के बीच विवाह निषेध हटा दिए गए तथा कर्ज के बदले कर्जदार को दी जाने
वाली सजा का प्रावधान ढीला कर दिया गया। Tribunes को उन सभी कानूनों को निषेध करने (veto) का अधिकार मिल गया
जो आम लोगों के यानि प्लेबियन के विरूद्ध थे। इसके अतिरिक्त Assembly of Tribes को कानून बनाने का अधिकार मिल
गया जिसे सीनेट से मंजूरी लेनी पड़ती थी लेकिन बाद में वह स्वतंत्र होकर कानून बनाने लगी। 367 ई0पू0 में दो Consules
में से एक प्लेबिनयन वर्ग से लेना आवश्यक हो गया। प्लेबियनों के संघर्ष के परिणास्वरूप उन्हें काफी राजनैतिक अधिकार
प्राप्त हुए तथा उच्च सरकारी पद प्राप्त किए एवम् उन्हें सीनेट की सदस्यता का भी अधिकार प्राप्त हो गया। लेकिन इतना
होने के बाद भी सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त नही हो सके। केवल Tribunes ही आम लोगों के लिए आवाज
उठाते थे।
रोम का सामाजिक जीवन
प्रारंभिक गणराज्य में रोम का समाज 2 वर्गो में बंटा हुआ था। प्रथम कुलीन वर्ग (Patricians) तथा दूसरा आम लोग (Plebians)
थे।
कुलीन वर्ग :-
इस वर्ग के सदस्यों की संख्या अपेक्षाकृत कम थी। परन्तु सीनेट और सरकार पर इसी वर्ग का नियंत्रण था। इस वर्ग में अल्पतंत्र,
अमीर कृषक तथा उच्च वर्ग के लोग शामिल थे। इसी वर्ग से जुड़े लोग सीनेट के सदस्य तथा ब्वदेनसे बन सकते थे। प्रारंभ
में रोम की सेना भी इसी वर्ग के सदस्य थे। परन्तु 390 ई0पू0 में Gauls ने जब रोम पर आक्रमण किया तब सीनेट ने रोम की
सुरक्षा के लिए सभी नागरिकों को सेना और सुरक्षा का कार्य सौंपा। Patricians बिना वेतन के सैनिक गतिविधियों में हिस्सा
लेते थे।
आम वर्ग :-
इस वर्ग में समाज के आम लोग जैसे: कृषक, व्यापारी, कारीगर और शिल्पी इत्यादि शामिल थे इन्हें प्लेबियन कहा जाता था।
इन्हें कोई भी सरकारी पद प्राप्त नही था और ना ही ये सीनेट के सदस्य बन सकते थे। यद्यपि ये जमीन के मालिक हो सकते
थे। प्रारंभ में इन्हें कोई राजनैतिक अधिकार प्राप्त नही था लेकिन बाद में इन्होंने संघर्ष करके कुछ अधिकार प्राप्त किए।
दास :-
रोमन समाज में सबसे निम्न स्थान दासों का था। दास अधिकतर युद्ध बंदी होते थे। लेकिन कर्ज अदा ना कर पाने के कारण
भी बहुत से Plebians दास बना लिए गए थे। ये पेट्रिशयनों के खेतों में काम करते थे और उसके घरों में नौकरों की जगह
कार्य करते थे। इन्हें ना तो रोम की नागरिकता प्राप्त थी एवम् ना कोई अधिकार इसलिए इनकी स्थिति काफी दयनीय थी।
रोम का आर्थिक जीवन
प्रांरभिक रोमन गणराज्य में आर्थिक विभिन्नता अधिक नही थी। पेट्रिशियन वर्ग के लोग भी सामान्यत: कृषि कर्म ही करते थे।
यद्यपि उनके फार्म काफी बड़े-बड़े थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण लूसियस क्युन्करियस सिनसिनाटस (Lucius Quinctius
Cincinnatus) के उदाहरण से मिलता है। जो प्रांरभिक गणराज्य का ख्याति प्राप्त नायक था। रोमवासी उसे कर्म, कठिन
परिश्रम, सादगी और निश्चल गणराज्य सेवा का प्रतीक मानते थे। 458 ई0पू0 में जब दुश्मनों ने रोमन के Consul तथा उसकी
सेना को घेर लिया। तब 5 रोमन सैनिक छुप कर भागे और रोम वासियों को इसकी सूचना दी। इस पर सीनेट ने आपातकालीन
मीटिंग की और 6 महीने के लिए एक डिक्टेटर नियुक्त किया। एक दूत जब सीनेट में डिक्टेटर की नियुक्ति का संदेश लेकर
सिनसिनकास में पास गया तो वह रोमन सेना की मदद के लिए तुरंत पहुंचा और युद्ध में विजयी रहा और पुन: रोम पहुंचा।
केवल 16 दिन तक डिक्टेटर के पद पर रहने के बाद उसने वह पद छोड़ दिया।
रोम की आर्थिकता का मुख्य आधार कृषि था। इस काल में बड़े-बड़े जमीदार पेट्रिशयन वर्ग के थे, जिनकी समाज में काफी
प्रतिष्ठा थी। कृषकों के अतिरिक्त बुनकर, लुहार, बढई और मोची इत्यादि कुशलता से अपना कार्य करते थे और उसमें निपुण
भी थे।
इस काल में व्यापार अधिक उन्नत नही था तथा व्यापार विनिमय प्रणाली (वस्तुओं का आदान-प्रदान) पर आधारित था। इसके
साथ ही मुद्रा प्रणाली भी अस्तित्व में आई।
रोम साम्राज्य का धर्म
प्रारंभ में रोमन बहुदेववादी थे। वे अपने अनेक देवी-देवताओं की पूजा व्यक्तिगत रूप से तथा सामाजिक समारोह के दौरान
करते थे। प्रत्येक घर में एक मन्दिर होता था और इनका देवता इनके घर और खेतों का रक्षक होता था। प्रत्येक घर में चूल्हें
की देवी वेस्ता की पूजा की जाती थी। प्रत्येक सार्वजनिक या धार्मिक समारोह किसी देव या देवी को अर्पित होता था। जैसे
किसी भी समारोह की शुरूआत उनके जनुस (Janus) देवता से होती थी, इसकी पूजा वे प्रत्येक महीने और साल के प्रारंभ
में करते थे। यही से साल के प्रथम महीने का नाम जनवरी पड़ा। इसके अतिरिक्त वे जूपिटर (रोम का रक्षक), जीनों (स्त्रियों
का रक्षक), मिनर्वा (ज्ञान की देवी), मार्स (युद्ध का देव), लारेस (अपने पूर्वजों की आत्मा का देवता)। इत्यादि की पूजा करते
थे। इनके अतिरिक्त रोमवासी यूनानी, इस्ट्रस्कनों इत्यादि के देवों की भी पूजा करते थे।
रोम का शांति काल
27 ई0पू0 तथा 180 ई0 के बीच के काल में एक स्थाई स्थिर सरकार के कारण रोम में शांति का काल था, तो रोमन साम्राज्य
का विस्तार भी हुआ। इसके अतिरिक्त समृद्धि के साथ-साथ रोम विश्व शक्ति बन गया। रोमनवासी रोम को ही सभ्य मानते
थे। उनका यह भी विचार था कि रोम अमर है या सदा ही रहेगा।
इस काल में विशेषकर अगस्तस ने रोम का न केवल विस्तार किया बल्कि रोम शहर को बहुत सुंदर बनाया। इस काल में इसकी
जनसंख्या दस लाख तक पंहुच गई थी, न केवल रोम के प्रांतों से बल्कि बाहर के देशों से लोग यहाँ व्यापार, शिक्षा, मनोरंजन
के लिए आते थे तथा उनके साथ ही उनके विचारो का भी यहां आगमन हुआ। यूनानी सभ्यता और संस्कृति से स्वंय रोम की
संस्कृति का भी विकास हुआ। रोम इस काल का अकेला ऐसा शहर था, जहां पक्की मिट्टी की पाइयों से शहर में आजकल
जैसी पानी की व्यवस्था की गई थी। रोम की विभिन्न प्रांतों और अन्य शहरों से जोड़ा गया, यहीं से एक कहावत बनी कि
(All the roads lead to Rome) सभी सड़के रोम को जाती है।
इस काल में दूर प्रदेशों से व्यापारिक संबंध स्थापित किए गए। विभिन्न प्रदेशों के व्यापारी यहां की मण्डियों में अपना सामान
बेचने लगे। व्यापार के विस्तार के कारण रोमवासियों का जीवन स्तर काफी ऊंचा हो गया था। लेकिन रोम में एक ओर जहां
लोग समृद्धशाली जीवन व्यतीत कर रहे थे वहीं दूसरी ओर निम्न वर्ग की दशा दयनीय थी। रोम में बेरोजगार भी बड़ी संख्या
में थे जिनकी संख्या लाखों में थी।
सामाजिक स्थिति
रोम में हुई समृद्धि का असर सभी नागरिको पर नहीं पड़ा इसलिए धन/समृद्धि के आधार पर रोम में वर्ग विभाजित समाज
बन गया। जैसे गणतंत्र काल मे रोम में अल्पतंत्रा (Aristocracy) का प्रभुत्व था लेकिन बाद में व्यापारिक उन्नति के कारण एक
नए प्रभावशाली व्यापारी वर्ग का उदय हुआ। शासकों ने इन्हीं अमीर व्यापारी वर्ग के लोगों को उच्च पदों पर नियुक्त किया।
दूसरी ओर निम्न वर्ग में गरीब नागरिक, दुकानदार और बाजारों में कार्य करके जीवन जी रहे थे। इस काल में बहुत से बेरोजगार
थे, जो सरकार पर आश्रित थे। इसी प्रकार की व्यवस्था रोम के प्रांतों में भी लागू थी। शहरों से बाहर अधिकतर छोटे कृषक
थे, जो दूसरों की जमीन पर खेती करते थे। बड़े-2 जमींदारों ने अपनी Estates स्थापित कर ली थी जिन्हें (Latifundia) कहा
जाता था जिन पर अधिकतर दास खेती करते थे। ये अपने मालिक की सम्पति माने जाते थे। कुछ पढ़े लिखे दास अमीरों के
बच्चों को शिक्षा देने का भी कार्य करते थे। यद्यपि युद्धों के कारण इस काल में दासों की संख्या में कमी हुई लेकिन दासता
उसी प्रकार चलती रही। दास-प्रथा के कारण छोटे कारीगर और व्यापारियों को नुकसान हुआ क्योंकि अब इनके स्थान पर
दासों से काम लिया जाने लगा। इस काल में लोगों ने विलासिता पूर्ण जीवन व्यतीत करना शुरू किया तथा मेहनत का कार्य
ेवल दासों के जिम्मे ही रह गया।
रोम शान्ति (Pax Romania) के काल की समृद्धि के कारण कुछ समय के लिए कठिनाईयाँ दूर हो गई। जबकि युद्धों के कारण
तथा लूट और हर्जाने से मिलने वाला पैसा बन्द हो गया तो सरकार को कर बढ़ाने पड़े। राज्य का खर्च कम करने के लिए
शासकों ने सैनिकों की संख्या में कटोती कर दी जिससे सुरक्षा पर प्रतिकूल असर पड़ा और रोमन सुरक्षा प्रणाली कमजोर होने
लगी। इस काल में व्यापार में हुई वृद्धि का राम पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा क्योंकि रोम में अधिकतर आयात की जाने वाली
वस्तुएं विलासिता पूर्ण थी। जिस कारण रोम का बहुत सा धन बाहर देशों में जा रहा था। इस व्यवस्था से दुखी होकर एक
रोमन लेखक ने रोम से बाहर जाने वाले धन पर रोष व्यक्त किया था। इस काल में होने वाले व्यापार का सन्तुलन रोम के
पक्ष में नहीें था क्योंकि बहुत सा सोना था सोने के सिक्के भारत तथा अन्य दूसरे देशों में जा रहा था। इस कारण रोम में सोने
के सिक्कों की कमी हो गर्इं। इसकी पूर्ति के लिए नए सिक्कों की ढलाई की गई जिसमें सोने में मिलावट की गई। इसे व्यापारी
सोने के सिक्कों के बराबर नहीं मानते थे। इस प्रकार एक वस्तु के लिए पहले की अपेक्षा अब ज्यादा सिक्के देने पड़े जिससे
मुद्रा स्फीति बढ़ गई तथा यह रोम के लिए भारी समस्या बन गई।
साम्राज्य विभाजन
अपनी प्रशासनिक नीतियों को लागू करने के बाद डायक्लेशियन ने महसूस किया कि अलग-अलग प्रान्तों की सुरक्षा की
जिम्मेदारी एक व्यक्ति द्वारा पूरी नहीं की जा सकती है। इसीलिए इसने साम्राज्य को दो भागों में बांट दिया जिसमें एक में
सम्राट शासन करने लगे दूसरे में (Maximianus) मैक्सिमायनस। इसने इन दोनों की सहायता दो युवक करेंगे जिन्हें सीजर
कहा गया। जब राजा को 20 वर्ष बाद त्याग पत्र देगा तो ये युवक उनके उत्तराधिकारी के रूप में राज्य करेंगे। को 305 ई0
में डायक्लेशियन को बीमारी के कारण सत्ता छोड़नी पड़ी जिस कारण राज्य में दोबारा गृह युद्ध छिड़ गया। 312 को इस
युद्ध में विजयी को Constantine शासक बना। उसने पूर्वी और पश्चिमी दोनों भागों को अपने नियंत्रण में कर लिया तथा
(Byzantium) को अपनी राजधानी बनाया। इस कारण रोम शहर का महत्व कम हो गया।
रोमन साम्राज्य का पतन
370 ई0 के पश्चात रोम के पतन की शुरूआत हो गई और इस काल में अनेक विदेशी आक्रमणकारियों ने रोम पर आक्रमण
करने शुरू कर दिए। सर्वप्रथम Goths (गोथों) ने 378 ई0 में रोमनों को एडरियनपोल में हरा कर सम्राट Valus को मार दिया।
लेकिन रोम के पूर्वी क्षेत्र को सम्राट थियोडोस्थिस ने आक्रमणकारियों से बचा लिया। लेकिन 395 ई0में इसकी मृत्यु के पश्चात
इसका अल्पव्यस्क पुत्र इसका सम्राट बना। 410 ई0 में गोत नेता Alaric ने रोम पर आक्रमण कर इसे तहस-नहस कर दिया।
451 ई0 में हुणों ने एट्टिला के नेतृत्व में रोम पर आक्रमण कर दिया। प्रारम्भ में तो रोमनो ने इन्हें फ्रांस में Chalonoas में रोक
दिया। परन्तु अगले ही वर्ष हूणों ने समस्त इटली पर अधिकार कर उसे तहस-नहस कर दिया
रोम पर आक्रमण करने वाले टंदकंसे वंडाल आखरी आक्रमणकारी थे, इन्होने रोम पर आक्रमण करके लूटपाट की और प्रदेशों
को तहस-नहस कर दिया। 430 ई0 में इन्होने कार्थेज तक को नष्ट कर दिया। उनके इन्ही कारनामों के कारण ही अंग्रेजी
शब्द Vandalism का नामकरण हुआ। पश्चिमी रोम के आखरी शासक Romulous Angustulus को Odovacar ने हरा कर रोम
साम्राज का अंत कर दिया।
दास-प्रथा :
रोमन साम्राज्य की सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक संस्था दास-प्रथा थी, जिसने इस साम्राज्य को बनाने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका
निभाई तथा रोम साम्राज्य के पतन में भी इसका काफी योगदान रहा। रोम में अनेक युद्धबंदियों को दास कार्यो में लगाया गया।
सम्राट ऑगस्त के शासन काल में शांति व्यवस्था के कारण दासों की संख्या में कमी आई क्योंकि शांति के कारण कम युद्ध
हुए और कम संख्या में दास रोम आए, न ही इस काल में दास क्रय-विक्रय द्वारा रोम लाए गए।
रोमन साम्राज्य मे दास प्रथा का काफी महत्व रहा। रोम के अतिरिक्त अन्य सभ्यताओं और संस्कृतियों में भी यह प्रथा प्रचलित
थी। यूनानी दार्शनिकों एवम् लोगों ने प्रत्येक संभव विषय के बारे में प्रश्न उठाए है लेकिन दास प्रथा नजरअंदाज किया गया।
अरस्तु ने भी इस प्रथा का विरोध नही किया, उसके अनुसार दास को अपने मालिक की आज्ञा माननी चाहिए यही उसके हित
में है। यहां तक कि दासों ने स्वयं भी जो विद्रोह किए वे इस प्रथा के विरोध में नहीं बल्कि स्वयं की आजादी मात्रा के लिए।
रोम के प्रसिद्ध कानूनविदों के अनुसार प्राकृतिक कानून के तहत सभी स्वतंत्र पैदा हुए है लेकिन इसके साथ इस बात का भी
समर्थन किया कि दासता राष्ट्र के कानून के हित में है। रोमन दार्शनिकों ने भी दासों की स्थिति के लिए स्वयं उन्हें जिम्मेदार
ठहराया। ईसाइयत के अनुसार भी दास राज्य धर्म था, उसने भी इसे समाप्त करने की कोशिश नही की। बल्कि स्वयं चर्च
ने अपने लिए अनेक दास रखे। साम्राज्य के क्षय होने के साथ-साथ दासता में भी कमी आने लगी क्योंकि आर्थिक कारणों
से बहुत से स्वतंत्र नागरिक भी दास बनने पर मजबूर हो गए।
इस काल में दास माता से पैदा हुआ शिशु भी दासता अपनाने के लिए विवश था। इनके अलावा युद्धों में हारे सैनिक, अपहृर्त
नागरिक तथा स्वतंत्र नागरिक भी दास बनाए जा सकते थे। तृतीय शताब्दी के मध्य में रोम के दूसरे देशों से हुए अनेक युद्धों
के कारण बहुत से युद्ध बंदी दास बनाए गए। 167 ई.पू0 के एक अभियान में रोम में 1,50,000 (डेढ लाख) युद्ध बंदियों को
ऐपिरस (Epirus) में दास बनाया। क्रय-विक्रय द्वारा भी दासों को रोम लाया गया। इस काल में दासों की सबसे बड़ी मंडी
डलोस (Delos) थी, यहाँ पर कई बार तो मात्रा एक दिन में 20,000 (बीस हजार) दासों तक का क्रय-विक्रय (व्यापार) होता
था। सिसिरों के समय रोम में दास काफी सस्ते थे और इस काल में साम्राज्य की आर्थिकता इन्हीं पर निर्भर थी। नीरो के
शासनकाल में सीनेट के एक सदस्य के घर 400 दास कार्यरत थे और इतने ही दास उसके खेतों में कार्य करते थे। अगस्तस
ने एक सूचना जारी कर दासों की अधिकतम संख्या 100 निर्धारित कर दी थी इसलिए उसके काल में प्रति स्वतन्त्रा नागरिक
की तुलना में तीन दास थे।
रोमन साम्राज्य में दूसरे देशों के भी अनेक दास थे। इनमें उतर के सेल्ट तथा जर्मन तथा पूर्व के एशियन थे। इसके अतिरिक्त
रोमन साम्राज्य के विभिन्न प्रांतों के भी दास थे। इन्हें ना केवल कठिन कार्यो में लगाया जाता था। बल्कि इन्हें बेड़ियों से भी
बाँधा जाता था ताकि वे भाग ना सके। इसी कारण बहुत से दास कम उम्र में ही लंगडे़ हो जाते थे। इस काल में कई मालिकों
ने अपने दासों को टे्रंनिग देकर सक्रेटरी, अंकाउटेंट तथा डाक्टर तक बना लिया था। इसी प्रकार के एक शिक्षित दास ने Atticus
के छापेखाने में सिसरों के कार्यो की नकल की तथा Arretium (ऐरेटियम) के सुन्दर मृदभांडों का निमार्ण दासों द्वारा किया जाता
था। ये मृदभांड विदेशों में निर्यात किए जाते थे। इसके अलावा बहुत से दास स्वर्णकार के रूप में गहने बनाते थे। लैम्प, पाइप
तथा कांच से निर्मित अनेक वस्तुएँ बनाते थे। इन्हीं में से अधिकतर दास तो अपने मालिकों को पैसे देकर अपनी स्वतंत्रता भी
खरीद लेते थे।
रोमन कानून के अनुसार दास मालिक की सम्पति थे। वेरो (Varro) ने दासों को कृषि उपकरणों के समक्ष रखा था उसके अनुसार
ये उपकरण (articulate) बोलने वाले, (Inarticulali) ना बोलने वाले तथा (Mute) थे। दास को खरीदा, बेचा तथा किराए पर
दिया जा सकता है। उसकी सम्पति तथा कमाई पर मालिक का हक था। दास माता की सन्तान भी मालिक की ही सम्पति
होती थी। दास को मालिक की इच्छानुसार कपड़ा, खाना तथा सजा दी जाती थी।
अपराधिक मामलों में दास को स्वतंत्र नागरिक की अपेक्षा कठोर दण्ड का प्रावधान था। यदि वह किसी अपराध का गवाह है
तो उसे प्रमाण देने होते थे। यदि दास राज्य के विरूद्ध, विद्रोह करने वाले के विरूद्ध कार्य करता तो राज्य उसे स्वतंत्र कर
देता था। मालिक भी दासों को स्वतंत्र कर सकते थे। दास को वस्त्र और भोजन उपलब्ध करवाना मालिक का कर्तव्य था।
सेटो (Ceto) ने उन्हें उतनी गेहूॅ देने को कहा जितनी एक सैनिक को दी जाती थी। इसके अतिरिक्त उस थोड़ी शराब, तेल,
मछली, नमक देने के अलावा वर्ष में एक बार पैंट, कमीज, जूते तथ कम्बल भी दिए जाते थे। हांलाकि मालिक दास को मृत्युदंड
भी दे सकता था, परन्तु कोई भी मालिक अपनी सम्पति स्वयं बरबाद नही करता था। वेरो (Vero) का कहना है कि मालिक
को दास को मारने की बजाय उपर्युक्त गालियों से ही काम चलाना चाहिए। कई मालिक दासों को वेतन भी देते थे। यदि कोई
मालिक बिना उतराधिकारी के मर जाए या वह अपनी वसीयत में दास को स्वतंत्र करने की बात लिखे तो दास स्वतत्रा हो सकता
था। मालिक अपनी मर्जी से खुश होकर भी दास को स्वतंत्रता दे देता था। इसके अलावा यदि दास अपने मालिक की जान
बचाए या कोई दासी अपने मालिक से पुत्र को जन्म दे तो मालिक उसे स्वतंत्र कर सकता था।
सामान्यत: वही दास स्वतंत्र होते थे जो मालिक के घर या नजदीक कार्य करते थे। खेतों में कार्य करने वाले दास अधिकतर
बेड़ियों मे ही जकड़े रहते थे। इन फार्मो के मालिक दासों से अपेक्षाकृत अधिक कार्य करवाते थे। रोम मे प्रथम शताब्दी मे यह
कानून बना कि अकारण यदि कोई मालिक दास को मार दे तो वह अपराध है, यदि किसी दास को भूखा रखा जाता है तो
वह सम्राट से शरण ले सकता था तथा उसका यह अधिकार है कि वह दूसरे मालिक को बेच दिया जाए। परन्तु वास्तव में
दास वध करने वाले मालिक को सजा नहीं होती थी। केवल मानवता ही दासों से अच्छे व्यवहार का कारण नही थी, परन्तु
जैसे एन्टोनिनस पीयुस (Antoninus Pius) ने कहा है कि यह स्वयं मालिक के हित में है ताकि दास विद्रोह ना करे।
प्रदेश में दास हमेशा विद्रोह करने के लिए तैयार रहते थे। Posidonius (पोसीडोनुस) नामक दार्शनिक ने लिखा है कि सिसली
में 134.32 ई0पू0 में जो दास विद्रोह हुआ, उसका मुख्य कारण उनसे दुव्र्यवहार था। इसके अतिरिक्त रोम मे अनेक दास विद्रोह
हुए जिनमें प्रमुख था प्रथम शताब्दी का विद्रोह। इस विद्रोह में 70,000 दासो ने Spartacus (स्पार्टाकस) के नेतृत्व में विद्रोह
किया तथा इस विद्रोह को दबाने के लिए रोमन सेना को पूरा एक वर्ष लगा।
Principate (प्रिंसीपेट) काल में दासों से पहले काल की अपेक्षा सद्व्यवहार किया जाता था। दासों द्वारा किए गए अनेक विद्रोहों
के कारण ही एक रोमन कहावत है कि सभी दास दुश्मन हैं। दास अपने मालिक की हत्या करने के लिए हमेशा तत्पर रहते
थे। अगस्तस के काम मे बनाए गए एक कानून के अनुसार यदि मालिक की हत्या हो गई तो उसके घर में रहने वाले सभी
दासों को मृत्युदण्ड दिया जाता था। एक बार एक दास लड़की की मालकिन की हत्या हुई तो वह इतनी भयभीत थी कि शोर
नहीें मचा सकी इस पर Hardirian (हडरियन) ने आज्ञा दी कि उसे मृत्युदण्ड दिया जाए। क्योंकि उसने मालकिन की रक्षा के
लिए शोर नहीं मचाया।
रोम में दास स्वयं को स्वतंत्र भी करा सकते थे। वास्तव में दासता रोम साम्राज्य का अभिन्न अंग थी। लेकिन दासों के
अधिकार काफी सीमित थे। दास को सैनिक गतिविधियों में हिस्सा लेने का अधिकार नही था न ही वह राज्य या नगरपरिषद्
के कार्य करने के लिए स्वंत्रात था। बाद के काल में अनेक दास आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो कर अमीर बन गए थे। दास राज्य
और राजनैतिक गतिविधियों में हिस्सा ना ले पाने के कारण व्यापारिक गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे। इससे बहुत से स्वतंत्र
हुए दास अमीर बन गए। कुछ दास तो शिक्षा ग्रहण करके काफी तरक्की कर गए तथा अपने बच्चों को भी अच्छी शिक्षा प्रदान
करने में सक्षम बने। इस काल मे रोम का प्रसिद्ध कवि (Horace) होंरेस इसी तरीके से स्वतंत्र हुए एक दास का पुत्र था। बाद
में नीरों के काल में तो यहाँ तक आक्षेप लगाया जाने लगा कि अधिकतर सेनेटरों की रगों में दासों का खून बह रहा है, लगभग
एक शताब्दी बाद ऐसे ही एक दास माक्र्स हेल्वियस पैट्रिऋनैक्स (Marcus Helivivs Pertinax) ने सैनिक और प्रशासनिक योग्यता
के कारण 193 ई. में स्वयं को रोम का सम्राट घोषित कर दिया था।
कुछ दास एवम् स्वतंत्रता प्राप्त दास शासकों के काफी करीब भी थे और अच्छा जीवन व्यतीत करते थे। Tiberias (ताइबेरियस)
के काल मे एक दास जो कि Gaul (गॉल) में कर वसूली के बाद रोम वापिस आया तो अपने साथ 16 दास और लाया था।
इनमें से दो दास उसकी तश्तरी उठाने वाले थे। ये रोम के दासों की सुदृढ़ आर्थिक स्थिति को दर्शाता है। कुछ स्वतंत्र हुए
दास काफी धनाढ़य थे, तथा रोम में वास्तविक राज्य कर रहे थें इनमें Felix नामक दास मुख्य था जो पहले एक प्रांत का
गवर्नर भी रह चुका था।
हांलाकि रोमन साम्राज्य के निर्माण में दासों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इसके बावजूद रोमन साम्राज्य के तकनीकी
विकास में ये बाघा सिद्ध हुए। दासता के कारण रोमवासी आलसी हो गए और प्रत्येक कार्य के लिए वे उन्हीं पर निर्भर हो
गए। इसलिए कोई नया अविष्कार नहीे हो पाया जिस कारण रोम वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्र में पिछड़ गया जो बाद मे रोम
साम्राज्य के पतन का एक मुख्य कारण भी बना।