साखियाँ एवं सबद – कबीर

साखियाँ एवं सबद कबीर 

साखियाँ एवं सबद प्रश्न उत्तर साखियाँ एवं सबद Questions Saakhiyan Shabad  साखियाँ एवं सबद  कबीर Hindi CLASS 9 Kshitij  साखियाँ एवं सबद extra questions साखियाँ एवं सबद extra questions साखियाँ एवं सबद कक्षा 9 साखियाँ एवं सबद सवाल  साखियाँ का अर्थ Saakhiyan Avam Shabad साखियाँ एवं सबद Class 9 Complete Poem Explanation  मानसरोवर से कवि का क्या आशय है class 9 hindi kabir ki sakhiyan Saakhiyan Avam Shabad  साखियाँ एवं सबद Class 9 Hindi Kshitij Explanation sakhiya avam shabad extra question answers कबीर की साखियाँ एवं सबद explanation class 9 class 9 hindi kabir ki sakhiyan explanation Kabeer Sakhiyan Avam Shabad  Class 9  Explanation  Hindi Kshitij CBSE NCERT class 9 hindi chapter kabir ki sakhiyan class 9 hindi chapter 9 question answer kabir chapter class 9 vakh class 9 mansarovar se kavi ka kya aashay hai

साखियाँ एवं सबद भावार्थ 

(1)-  मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं | 
मुकताफल मुकता चुगैं, अब उड़ि अनत न जाहिं | 

भावार्थ – उक्त पंक्तियाँ कवि कबीर की ‘साखियाँ’ से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि जिस प्रकार हंस मानसरोवर के भरे हुए जल में क्रीड़ा करते हुए मोती चुगते हैं तथा उसे छोड़कर कहीं जाना पसंद नहीं करते | ठीक उसी प्रकार मनुष्य भी जीवन के मायाजाल अर्थात् धोखे के जाल में ऐसा फंस गया है कि उसमें सत्य को पहचानने की शक्ति ही न रही | 
(2)- प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ | 
प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ | 

भावार्थ – उक्त पंक्तियाँ कवि कबीर की ‘साखियाँ’ से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि प्रेमी रूपी ईश्वर को ढूंढ़ना बहुत कठिन है | कवि ईश्वर को हर जगह तलाशते हैं, परन्तु सफलता हाथ नहीं लगी | कवि का मानना है कि जब प्रेमी रूपी ईश्वर हमें मिल जाएगा, तब कष्ट रूपी सारा विष, सुख रूपी अमृत में बदल जाएगा | 
(3)- हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि | 
स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि | 

भावार्थ  – उक्त पंक्तियाँ कवि कबीर की ‘साखियाँ’ से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि साधना रूपी एक आसन बिछाकर मनुष्य को सदा अपने ज्ञान को हाथी के समान बड़ा और विशालकाय बनाने का प्रयत्न करना चाहिए अर्थात् ज्ञान अर्जन पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए | 
कवि संसार की तुलना कुत्तों से करते हुए कहते हैं कि ये तुम पर भौंकते ही रहेंगे अर्थात् तुम्हारी निंदा करते ही रहेंगे | अत: इन पर ध्यान देना मूर्खता है | वे एकदिन स्वयं चुप हो जाएँगे | 
(4)- पखापखी के कारनै, सब जग रहा भुलान | 
निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान | 

भावार्थ – उक्त पंक्तियाँ कवि कबीर की ‘साखियाँ’ से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि सही मानो में सच्चा मनुष्य या संत वही है, जो बिना किसी भेदभाव के अर्थात् निष्पक्ष रूप से ईश्वर की भक्ति-भजन में लीन है | वरना, लोग ईश्वर को भूलाकर पक्ष-विपक्ष की भूमिका निभाते हुए आपस में लड़ रहे हैं | ईर्ष्या की भावना चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई है | 
(5)- हिन्दू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाई | 
कहै कबीर सो जीवता, दुहुँ के निकटि न जाइ | 

भावार्थ –  उक्त पंक्तियाँ कवि कबीर की ‘साखियाँ’ से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि हिन्दू राम नाम का जाप करते हैं और मुसलमान खुदा का नाम लेते हैं अर्थात् ये दोनों एक-दूसरे से भेदभाव रखते हैं | जबकि कवि के अनुसार, वास्तव में जीवित वही व्यक्ति है, जो इन दोनों तरह के व्यक्तियों से खुद को पृथक रखे | 
(6)- काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम | 
मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम | 

भावार्थ – उक्त पंक्तियाँ कवि कबीर की ‘साखियाँ’ से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि तुम चाहे काबा जाओ या फिर काशी जाओ | तुम राम की उपासना करो या फिर रहीम की | ईश्वर तो एक ही है | जिस तरह मोटे आटे को महीन पीसने से मैदा बन जाता है, पर दोनों एक ही वस्तु है | ठीक उसी प्रकार ईश्वर को चाहे जिस किसी भी रूप में मानो, वह तो एक ही है | 
(7)- ऊँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊँच न होइ | 
सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोई | 

भावार्थ – उक्त पंक्तियाँ कवि कबीर की ‘साखियाँ’ से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि सिर्फ ऊँचे कुल में जन्म लेने से कुछ नहीं होता | मनुष्य अपने कुल से नहीं, बल्कि अपने कर्मों की वजह से जाना जाता है | यदि मनुष्य का कर्म बुरा है, तो वह बुरा ही कहलाएगा | जिस प्रकार सोने के कलश में यदि शराब पड़ा हो, तो वह निंदा के योग्य ही है | 
व्याख्या – सबद
(1)- मोकों कहाँ ढूँढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में | 
ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में |
ना तो कौने क्रिया-कर्म में, नहीं योग बैराग में |
खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पल भर की तलास में |
कहैं कबीर सुनो भई साधो, सब स्वाँसों की स्वाँस में || 

व्याख्या – उक्त पंक्तियाँ कवि कबीर के ‘सबद’ से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि हम ईश्वर की तलाश में भटकते रहते हैं | कभी मंदिर में, कभी मस्जिद में, कभी काबा में, तो कभी कैलाश में उसे ढूँढ़ते रहते हैं | जबकि कवि के अनुसार, ईश्वर तो हमारी साँसों में विद्यमान् है | यदि सच्ची आस्था से उसे ढूँढ़ोगे तो पल भर की तलाश में ईश्वर को पा सकते हो | क्योंकि ईश्वर कण-कण में व्याप्त है | 
(2)- संतौं भाई आई ग्याँन की आँधी रे | 
कबीर
कबीर 
भ्रम की टाटी सबै उड़ाँनी, माया रहै न बाँधी || 
हिति चित्त की द्वै थूँनी गिराँनी, मोह बलिण्डा तूटा | 
त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा || 
जोग जुगति करि संतौं बाँधी, निरचू चुवै न पाँणी | 
कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी || 
आँधी पीछै जो जल बूठा , प्रेम हरि जन भींनाँ | 
कहै कबीर भाँन के प्रगटे, उदित भया तम खीनाँ ||

व्याख्या – उक्त पंक्तियाँ कवि कबीर के ‘सबद’ से उद्धृत हैं | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि ज्ञान बिल्कुल आँधी की तरह है | जिस प्रकार तेज आँधी के चलने से कच्चे छप्पर के घरों को अत्यधिक नुकसान पहुँचता है, जिस बाँस और मोटी लकड़ी पर छप्पर टिका होता है, वह भी टूट जाता है | तब उस छप्पर की दुर्बलता का भेद खुल जाता है | ठीक उसी प्रकार, घर यदि मजबूत और पक्का हो तो उसे कोई भी आंधी प्रभावित नहीं कर सकती है | जब व्यक्ति ज्ञान प्राप्ति कर लेता है, तब उसके मन के सारे भ्रम मिट जाते हैं | ज्ञान की शक्ति के आगे मोह-माया का बंधन क्षणभंगुर हो जाता है | व्यक्ति स्वार्थ रहित जीवन जीने लगता है | जैसे आंधी के बाद वर्षा से सारे सामान धुल जाते हैं, वैसे ही ज्ञान प्राप्ति के बाद मन निर्मल हो जाता है | मनुष्य ईश्वर भक्ति में लीन हो जाता है | 

साखियाँ एवं सबद पाठ का सारांश

साखियाँ एवं सबद पाठ में कवि ‘कबीर’ की ‘साखियाँ एंव सबद’ दोनों को संकलित किया गया है | कवि कबीर का मानना है कि ज्ञान की सहायता से मनुष्य अपनी दुर्बलताओं से मुक्ति पाता है | प्रस्तुत पाठ में कबीर, जहाँ अपनी साखियों के माध्यम से एक संत की विशेषता, प्रेम का महत्व, ज्ञान की शक्ति, आडम्बरयुक्त समाज का विरोध आदि भावों को उल्लेखित किए हैं | वहीं अपने पहले सबद के माध्यम से ये संकेत दे रहे हैं कि मनुष्य के भीतर ही ईश्वर का वास है, तो दूसरे सबद के माध्यम से ज्ञान के महत्व पर प्रकाश डाल रहे हैं | कबीर की यह रचना जनमानस की सादा-सरल भाषा में लिपिबद्ध है, जो हमेशा से कबीर की रचनाओं की खास विशेषता रही है | 

साखियाँ एवं सबद प्रश्न उत्तर

प्रश्न-1  ‘मानसरोवर’ से कवि का क्या अाशय है ? 

उत्तर-  ‘मानसरोवर’ से कवि का अाशय मन रूपी सरोवर से है, जिसमें अनगिनत भावनाएँ विद्यमान् हैं | जिस प्रकार पवित्र मानसरोवर ईश्वरीय आस्था का प्रतीक है, ठीक उसी प्रकार हमारा मन भी विभिन्न भावनाओं से भरा हुआ है | मनुष्य का मन सांसारिक मोह-माया में फंस गया है, जिस कारण उसे सत्य दिखाई नहीं देता | 
प्रश्न-2  कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है ? 

उत्तर- कवि का मानना है कि जब प्रेमी रूपी ईश्वर हमें मिल जाएगा, तब कष्ट रूपी सारा विष, सुख रूपी अमृत में बदल जाएगा | यही सच्चे प्रेमी की कसौटी है | 
प्रश्न-3 तीसरे दोहे में कवि ने किस प्रकार के ज्ञान को महत्त्व दिया है ?

उत्तर-  तीसरे दोहे में कवि का कहना है कि साधना रूपी एक आसन बिछाकर मनुष्य को सदा अपने ज्ञान को हाथी के समान बड़ा और विशालकाय बनाने का प्रयत्न करना चाहिए अर्थात् ज्ञान अर्जन पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए | कवि संसार की तुलना कुत्तों से करते हुए कहते हैं कि ये तुम पर भौंकते ही रहेंगे अर्थात् तुम्हारी निंदा करते ही रहेंगे | अत: इन पर ध्यान देना मूर्खता है | वे एकदिन स्वयं चुप हो जाएँगे | 
प्रश्न-4 इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता है ?
उत्तर- सही मानो में सच्चा मनुष्य या संत वही है, जो बिना किसी भेदभाव के अर्थात् निष्पक्ष रूप से ईश्वर की भक्ति-भजन में लीन है | 
——————————————————————————————————————
प्रश्नोत्तर (सबद)
प्रश्न-1 मनुष्य ईश्वर को कहाँ-कहाँ ढूँढ़ता फिरता है ? 

उत्तर- मनुष्य ईश्वर की तलाश में भटकता रहता है | कभी मंदिर में, कभी मस्जिद में, कभी काबा में, तो कभी कैलाश में उसे ढूँढ़ता फिरता है | 
प्रश्न-2 कबीर ने ईश्वर प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है ? 

उत्तर-  कवि कबीर ने ईश्वर प्राप्ति के लिए उन सभी प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है, जहाँ-जहाँ मनुष्य ईश्वर को ढूँढ़ता फिरता है | कवि के अनुसार, मंदिर, मस्जिद, काबा, कैलाश आदि धार्मिक स्थलों पर मनुष्य ईश्वर को तलाश करता है, जो सिर्फ आडम्बर है | 
प्रश्न-3 कबीर ने ईश्वर को ‘सब स्वाँसों की स्वाँस में’ क्यों कहा है ? 

उत्तर-  कबीर ने ईश्वर को ‘सब स्वाँसों की स्वाँस में’ इसलिए कहा है कि ईश्वर हमारी साँसों में विद्यमान् है अर्थात् ईश्वर का वास हमारी आत्मा में होता है | 
प्रश्न-4 कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से क्यों की ?

उत्तर-  कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से इसलिए की है, क्योंकि आँधी सामान्य हवा की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होती है और कवि कबीर का मानना है कि ज्ञान की सहायता से मनुष्य अपनी दुर्बलताओं से मुक्ति पाता है | आँधी की तरह ज्ञान में भी बहुत शाक्ति होती है, जिसके कारण मनुष्य अपने जीवन से अज्ञानता रूपी अंधकार को मिटाने में सफल हो पाता है | 
प्रश्न-5 ज्ञान की आँधी का भक्त के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ? 

उत्तर- जब ज्ञान की आँधी मनुष्य के आचरण में समाहित हो जाती है, तब मनुष्य के जीवन से अज्ञानता रूपी अंधकार स्वत: ही खत्म हो जाता है | वह सांसारिक मोह-माया के बंधनों से मुक्ति पा लेता है और मन ईश्वर भक्ति में लीन हो जाता है | अर्थात् मनुष्य सत्य मार्ग पर अग्रसर हो जाता है | 
भाषा-अध्ययन 
प्रश्न-1 निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए — 
पखापखी, अनत, जोग, जुगति, बैराग, निरपख 

उत्तर – शब्दों के तत्सम रूप – 
 पखापखी –      पक्ष-विपक्ष,  
 अनत –           अन्यत्र, 
 जोग –            योग, संयोग 
 जुगति –          युक्ति,
 बैराग –           वैराग्य, विरक्ति 
 निरपख –        निष्पक्ष, निरपेक्ष | 

साखियाँ एवं सबद पाठ का शब्दार्थ 

साखियाँ
• सुभर –               अच्छी तरह से भरा हुआ, लबालब 
• केलि –               क्रीड़ा, खेल 
• मुकताफल –        मोती
• दुलीचा –            आसन, कालीन 
• स्वान –               कुत्ता
• झक मारना –       समय नष्ट करना
• पखापखी –         पक्ष-विपक्ष
• कारनै –              कारण, वजह 
• सुजान –             चतुर, मनुष्य, सज्जन 
• निकटि –            निकट, नजदीक, करीब 
• काबा –              मुस्लिम समुदाय का पवित्र तीर्थस्थल
• मोट –                मोटा आटा
• जनमिया –          जन्म लेना 
• सुरा –                शराब, मदिरा 
सबद 
• टाटी –                बाँस का बना हुआ पर्दानुमा पट्टी 
• थूँनी –                स्तम्भ, खम्भा, टेक 
• बलिंडा –             मजबूत मोटी-लम्बी लकड़ी
• छाँनि –               छप्पर
• भाँडा फूटा –        भेद खुला, राज खुलना 
• निरचू –              थोड़ा भी, जरा सा 
• चुवै –                 चूता है ( पानी आदि का) 
• बूठा –                बरसा, बरसात के पानी का गिरना 
• खीनाँ –              क्षीण हुआ, बिखरना || 

You May Also Like