प्रवृत्ति के आधार पर चार भागो में विभक्त किया हैं –
- आदिकाल अथवा वीरगाथा काल (संवत् 1050-1375 ई. तक)
- पूर्व मध्य काल या भक्ति काल (संवत् 1375-1700 ई. तक)
- उत्तर मध्यकाल या रीतिकाल (संवत् 1700-1900 ई. तक)
- आधुनिक काल अथवा गद्यकाल (संवत् 1900 ई. से अब तक)
- अपभ्रंश साहित्य
- डिंगल साहित्य
- पिंगल साहित्य
- लोक भाषा काव्य
- आदिकालीन अन्य साहित्य
- निर्गुण भक्ति धारा
- सगुण भक्ति धारा
- रीतिबद्ध काव्य
- रीतिमुक्त काव्य
- रीतिसिद्ध काव्य
- भारतेन्दु काल (सन् 1850-1900)
- द्विवेदी युग (सन् 1900-1920)
- छायावाद (सन् 1920-1935)
- उत्तर छायावाद
हिंदी साहित्य का काल विभाजन
- कर्ता के आधार पर –प्रसाद युग, भारतेंदु युग, द्विवेदी युग।
- प्रवृत्ति के आधार पर-भक्तिकाल, संतकाव्य, सूफीकाव्य, रीतिकाल, छायावाद, प्रगतिवाद।
- विकासवादिता के आधार पर-आदिकाल, आधुनिक काल, मध्यकाल।
- सामाजिक तथा सांस्कृतिक घटनाओं के आधार पर-राष्ट्रीय धारा, स्वातंत्रयोनर काल, स्वच्छंदतावाद,
आदि।
इस संबंध में उल्लेखनीय हैं-
- काल विभाजन साहित्यिक प्रवृत्तियों की समानता के आधार पर होना चाहिए।
- कालों का नामकरण यथासंभव मूल चेतना प्रमाान प्रवृत्ति को आधार बनाकर करना चाहिए।
- युगों ;कालों का सीमांकन मूल प्रवृत्तियों के आरंभ और समापन के अनुसार होना चाहिए।
- काल की मूल प्रवृत्ति का निर्माण प्रमुख ग्रन्थों के आधार पर करना चाहिए।
1. गार्सा-द-तासी, शिवसिंह सेंगर का काल विभाजन
2. ग्रियर्सन का काल विभाजन
विभक्त किया है। प्रत्येक अध्याय एक काल खंड को व्यक्त करता है। इन्होंने लेखकों एवं कवियों का
कालक्रमानुसार वर्गीकरण किया है।
इस काल विभाजन में वैज्ञानिकता का अभाव है तथा अध्यायों की संख्या अधिक होने से उसे काल
विभाजन मानना उपयुक्त नहीं है।
3. मिश्र बंधुओं का काल विभाजन
- पूर्वारंभिक काल (700 – 1343 वि.)
- उनरारंभिक काल (1344 – 1444 वि-)
2. माध्यमिक काल –
- पूर्व माध्यमिक काल (1445 – 1560 वि.)
- प्रौढ़ मामयमिक काल (1561 – 1680 वि.)
3. अलंकृत काल –
- पूर्वालंकृत काल (1681 – 1790 वि.)
- उनरालंकृत काल (1791 – 1889 वि.)
4. परिवर्तन काल –
- (1890 – 1925 वि.)
5. वर्तमान काल –
- (1926 वि. से अब तक)
4. मिश्र बंधुओं के काल विभाजन की त्रुटियां–
- काल खंडों के नामकरण में एक जैसी पण्ति नहीं अपनाई गई। आरंभिक, माध्यमिक, वर्तमान काल
विकासवादिता के आधार पर हैं तो अलंछत काल आंतरिक प्रवृत्ति के आधार पर। - इस काल विभाजन का कोई सुस्पष्ट आधार नहीं है।
- हिंदी साहित्य के इतिहास का प्रारंभ 700 वि. (64 ई.) से मानकर हिंदी के अंतर्गत अपभ्रंश की रचनाओं
को समेट लिया गया है। हिंदी साहित्य का प्रारंभ 1000 ई. के आसपास हुआ था। - परिवर्तन काल असंगत है तथा कालों की संख्या भी अधिक है।
इन्हीं न्यूनताओं को मयान में रखकर आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने उक्त काल विभाजन पर व्यंग्य करते हुए लिखा
है-’’सारे रचना काल को केवल आदि, मध्य, पूर्व, उनर, इत्यादि खंडों में आँख मूंदकर बाट देना-यह
भी न देखना कि किस खंड के भीतर क्या आता है और क्या नहीं-किसी वृन संग्रह को इतिहास नहीं
बना सकता।’’
5. आचार्य रामचंद्र शुक्ल का काल विभाजन
(1929 ई.) में काल विभाजन किया-
- वीरगाथा काल (संवत् 1050-1375 वि.)
- भक्तिकाल (संवत् 1375-1700 वि.)
- रीति काल (संवत् 1700-1900 वि.)
- गद्य काल (संवत् 1900-1984 वि.)
वस्तुत: शुक्लजी ने अपने हिंदी साहित्य के इतिहास में दोहरा नामकरण करते हुए उसका प्रारूप निम्न प्रकार से
दिया है-
- आदिकाल (वीरगाथा काल) (1050-1375 वि.)
- पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल) (1375-1700 वि.)
- उनर मध्यकाल (रीति काल) (1700-1900 वि.)
- आधुनिक काल (गद्य काल) (1900-1984 वि.)
स्पष्ट है कि लोग जिसे आदिकाल कहते हैं शुक्लजी उस काल में ‘वीरता’ की प्रवृनि को प्रधान मानकर उसका
नाम वीरगाथा काल रखना चाहते हैं। इसी प्रकार पूर्व मध्यकाल को भक्तिकाल, उनर मध्यकाल को रीति काल
तथा आधुनिक काल को वे गद्यकाल कहे जाने के पक्ष में है। उनके अनुसार वीरगाथाकाल में वीरता की,
भक्तिकाल में भक्ति की, रीतिकाल में रीति तत्व निरूपण की और आमाुनिक काल में गद्य की प्रधानता है, इसलिए प्रधान प्रवृत्ति के आधार पर ही इन कालखंडों का नामकरण करना उचित है।
शुक्ल जी काल विभाजन पद्धति के दो आधार हैं-
- प्रधान प्रवृत्ति,
- ग्रंथों की प्रसिद्धि।
की प्रचुरता के आधार पर प्रधान प्रवृत्ति का निर्धारण कर लिया गया। प्रधान प्रवृत्ति के लिए लोक प्रसिद्ध ग्रंथो को ही आधार बनाया गया है।
शुक्लजी के काल विभाजन में सर्वािमाक आपनि विद्वानों को वीरगाथाकाल नाम पर है। इस काल की अधिकांश
सामग्री आधार हीन एवं अप्रामाणिक है।
आलोचकों ने इस नाम को अनुचित बताकर इसे आदिकाल कहना ही उपयुक्त माना है।
एक प्रवृत्ति को प्रमाानता देकर शेष को गौण मान लेने का दृष्टिकोण भी कुछ लोगों के मत से एकांगी है जो
इतिहास की अमाूरी एवं एक पक्षीय व्याख्या करता है जिसे वैज्ञानिक नहीं कह सकते।
पिफर भी यह कहना उचित है कि शुक्लजी की काल विभाजन पण्ति का आधार तर्वफ संगत एवं पुष्ट है। उनका
काल विभाजन सरल एवं सुस्पष्ट है। अधिकतर परवर्ती इतिहासकारों ने उसी का आधार ग्रहण किया है।
6. डॉ. राम कुमार वर्मा का काल विभाजन
आलोचनात्मक इतिहास’ (1938 ई.) में इस प्रकार काल विभाजन किया-
- संधिकाल (750 वि. – 1000 वि.)
- चारणकाल (1000 वि. – 1375 वि.)
- भक्तिकाल (1375 वि. – 1700 वि.)
- रीतिकाल (1700 वि. – 1900 वि.)
- आधुनिक काल (1900 वि. – अब तक)
संधिकाल में उन्होंने अपभृंश की रचनाए समाविष्ट की हैं। चारणकाल और शुक्लजी के वीरगाथाकाल में कोई
मौलिक अंतर नहीं है। वीरगाथाओं के रचयिता चारण कहलाते थे। शुक्लजी ने नामकरण रचना की प्रवृत्ति के
आधार पर किया जबकि डॉ. वर्मा ने रचनाकार के आधार पर किया।
7. डॉ. गणपति चंद्र गुप्त का काल विभाजन
(1965 ई.) में निम्न काल विभाजन किया-
- प्रारंभिक काल – (1184-1350 ई.)
- मध्यकाल – 1. पूर्व मध्यकाल (1350-1500 ई.) 2. उनर मध्यकाल (1500-1857)
- आधुनिक काल – (1857-1965 ई.)
टास्क मिश्रबंधुओं के काल विभाजन की त्राुटियों से क्या तात्पर्य है? समझाइए।
डॉ. गणपति चंद्र गुप्त का यह भी मत है कि हिंदी के प्रारंभिक काल एवं मध्यकाल में तीन प्रकार का काव्य
मिलता है-(i) धर्माश्रित काव्य, (ii) राज्याश्रित काव्य, (iii) लोकाश्रित काव्य।
विभिन्न काल खंडों के नामकरण
1. आदिकाल –
- वीरगाथाकाल – आचार्य रामचंद्र शुक्ल
- आदिकाल – हजारी प्रसाद द्विवेदी
- चारणकाल – डॉ. रामवुफमार वर्मा
- बीज वपन काल – महावीर प्रसाद द्विवेदी
- सिद्द सामंत युग – राहुल सांछत्यायन
- आरंभिक काल – मिश्र बंधु
- प्रारंभिक काल – डॉ. गणपति चंद्र गुप्त
2. पूर्व मध्यकाल-भक्तिकाल।
सर्वािमाक प्रचलित हैं, वे इस प्रकार हैं-
- आदिकाल (1000 ई. से 1350 ई.)
- भक्तिकाल (1350 ई. से 1650 ई.)
- रीति काल (1650 ई. से 1850 ई.)
- आमाुनिक काल (1850 ई. से अब तक)
उक्त नाम ही अब सर्वस्वीछत हैं। इतिहास ग्रंथों में इन्हीं का प्रयोग होता है।