अंकेक्षण का क्या अर्थ है? इसकी विशेषताएँ

What is meant by audit in hindi?

What is meant by audit in hindi?

अंकेक्षण (audit) किसी व्यापारिक संस्था की हिसाब-किताब की पुस्तकों की बुद्धिमत्तापूर्ण, निष्पक्ष एवं विवेचनात्मक जाँच है। यह जाँच संस्था में उपलब्ध प्रमाणकों, प्रपत्रों, सूचनाओं तथा स्पष्टीकरणों की सहायता से की जाती है। इस जाँच का प्रमुख उद्देश्य यह रहता है कि अंकेक्षक यह प्रतिवेदन दे सके कि-

  1. एक निश्चित विवरण अवधि के लिए बनाए गए लाभ-हानि खाते संस्था के लाभ-हानि खाते की सही स्थिति प्रकट करते हैं या नहीं।
  2. स्थिति विवरण उस संस्था की आर्थिक स्थिति का सच्चा और उचित रूप प्रस्तुत करता है या नहीं, तथा
  3. सभी बही-खाते नियमानुकूल तैयार किए गए हैं या नहीं तथा वे पूर्ण हैं या नहीं। अंकेक्षण का अर्थ भलीभाँति समझने के लिए यह आवश्यक है कि अंकेक्षण, पुस्तपालन और लेखाकर्म का अंतर स्पष्ट रूप से समझ सके।

अंकेक्षण का अर्थ (Meaning of audit)

अंकेक्षण का अंग्रेजी विकल्पी शब्द (Auditing)है। इस शब्द की व्युत्पत्ति लैटीन भाषा के (Audire) शब्द से हुआ है जिसका अर्थ होता है सुनना (to hear) प्राचीन काल में लेखापाल उस हिसाब-किताब को एक न्यायिक अधिकारी के सामने पढ़ते थे। यह अधिकारी हिसाब-किताब को सुनकर अपना फैसला सुनाता था। प्राचीन काल की इस क्रिया को ही अंकेक्षण का उद्गम माना जाता है।

सन, 1494 में सर्वप्रथम इटली के ख्यातनाम गणितज्ञ ल्युका पेसिओली ने अपना ग्रंथ प्रकाशित किया जिसमें पुस्त.पालन की दोहरी लेखा प्रणाली को जन्म दिया। इस प्रकार हिसाब-किताब रखने की एक ऐसी सुव्यवस्थित एवं पूर्ण प्रणाली विकसित हुई जिसके द्वारा सभी प्रकार के व्यापारिक वित्तीय लेन-देनों को लेखा पुस्तकों में सही तरीके से लिखा जाना संभव हो गया।

अंकेक्षण की परिभाषा (Definition of audit)

1. एल.आर. डिक्सी के अनुसार- “अंकेक्षण हिसाब-किताब के लेखों की जाँच है, जो यह पत्ता लगाने हेतु की जाँच है कि क्या लेखे उन व्यवहारों को, जिनके संबंध में वे किए गए हैं, ठीक-ठीक एवं पूर्णतया प्रकट करते हैं। कभी-कभी यह भी मालूम करना आवश्यक होता है कि सौदे उचित अधिकारियों की सहमति से किए गए हैं, या नहीं।’’

2. जोसेफ लंकास्टर के अनुसार- ‘‘जांच प्रमाणन व सत्यापन करने के तरीकों को जिनसे अंकेक्षक स्थिति विवरण की सत्यता को प्रमाणित करता है, अंकेक्षण कहते हैं। अंकेक्षण में लेखा खातों तथा उन प्रपत्रों व प्रमाणकों की जांच-पड़ताल की जाती है जिनसे खाते बनाए गए हों, जिससे अंकेक्षक स्थिति विवरण पर अपनी रिपोर्ट उन व्यक्तियों को

दे सके, जिनके द्वारा उसकी नियुक्ति हुई हो।’’

3. रोनाल्ड ए. आइरिश के अनुसार- “अंकेक्षण का आधुनिक अभिप्राय प्रमाणकों तथा अन्य वित्तीय एवं वैधानिक

प्रलेखों की वैज्ञानिक क्रमबद्ध जांच से है, संस्था की आर्थिक तथा लाभर्जनविषयक स्थिति के संबंध में क्रमशः स्थिति विवरण तथा लाभ-हानि खाते का सत्यापन किया जा सके तथा उन पर आवश्यक प्रकाश डाला जा सके।“

4. ए. डब्ल्यू. हैनसन के अनुसार – “अंकेक्षण लेखा खातांे के उस पूर्ण निरीक्षण को कहते हैं जिससे उन खातों

पर विश्वास किया जा सके तथा जो उससे तथ्य निकाला गया हो, उस पर भी

विश्वास किया जा सके।“

5. टेलर एवं पैरी के अनुसार –  “अंकेक्षण अंकांे के विवरण की एक जाँच.पड़ताल है, जिसके अंतर्गत प्रमाणकों का निरीक्षण भी सम्मिलित होता है, ताकि वह अंकेक्षक को इस योग्य बना सके कि वह इन विवरणों की सहायता से उनकी सत्यता पर रिपोर्ट दे सके।“

6.  एम.एल. शाण्डिल्य के अनुसार – “अंकेक्षण का आशय किसी व्यावसायिक संस्था की हिसाब की पुस्तकों के निरीक्षण, इनकी तुलना, जाँच, पुनर्निरीक्षण, प्रमाणन, गहन निरीक्षण, परीक्षण और सत्यापन से है? ताकि उस संस्था की आर्थिक स्थिति का पता लगाया जा सके।”

7. आर. बी. बोस के अनुसार “एक व्यावसायिक संस्था को हिसाब-किताब की पुस्तकों की सत्यता तथा उनका सही रूप उन व्यक्तियों द्वारा प्रमाणित करना ही अंकेक्षण कहलाता है, जो इस कार्य के लिए योग्य हैं और जिनका इन लेखों के तैयार करने से कोई प्रयोजन नहीं है।” –

भारत में अंकेक्षण का इतिहास (History of Auditing in India)

अंकेक्षण की क्रांति सर्वप्रथम 1844 में हुई, जबकि इंग्लैंड के कंपनी अधिनियमों के प्रावधानों के अनुसार कंपनियों को Balance Sheet बनाने और उसका अंकेक्षण कराने के लिए वैधानिक मान्यता प्राप्त हुई। भारत में अंकेक्षण का प्रारंभ 1 अप्रैल 1914 में कंपनी अधिनियम 1913 लागू किया गया। इस अधिनियम के अनुसार हर कंपनी को अंकेक्षण पात्र धारक अंकेक्षक से करवाना अनिवार्य किया गया। भारत सरकार ने अंकेक्षण के लिए सनदी लेखापाल अधिनियम 1949 पारित कर उसे 1 जुलाई 1949 से लागू किया।

इस कानून का संचालन करने का दायित्व सनदी लेखापाल संस्थान को दिया गया जिसका मुख्यालय दिल्ली में स्थित है। इस संस्थान के संचालन हेतु 24 सदस्यों की समिति गठित करने का प्रावधान है। इस समिति के सभी सदस्य FCA (Fellows of the Institute of Chartered Accountant) होना अनिवार्य है। जिन सनदी लेखापालों ने पाँच वर्ष सहायक सनदी लेखापाल (Associate of theInstitute of Chartered Accountant) का कार्य किया है तथा निर्धारित शुल्क भुगतान संस्थान को किया है, ऐसे सदस्य को ही फेलो कहा जाता है। अंकेक्षण के महत्व से यह साफ होता है कि वर्तमान में अंकेक्षण विलासिता न होकर एक आवश्यकता बन गया है।

अंकेक्षण का महत्व (Importance of audit)

अंकेक्षण का महत्व बढ़ता ही जा रहा है। चाहे वह संस्था व्यावसायिक हो या अलाभकारी। देश में कई अधिनियमों के प्रावधानों के तहत संस्थाओं को अंकेक्षण कराना अनिवार्य है। अंकेक्षण कार्य में लेखा-पुस्तकों की जाँच होती है जिससे लेखा-पुस्तकों की शुद्धता, सत्यता का परीक्षण किया जाता है तथा अशुद्धियों एवं कपट का पता लगाया जाता है। साथ ही, उनकी रोकथाम की जा सकती है। अंकेक्षण से कर्मचारियों पर नैतिक प्रभाव होता है। साथ ही, कर निर्धारण अधिकारियों की संतुष्टि करने एवं आर्थिक नीति तय करने में अंकेक्षण सहायक होता है। अंकेक्षण के विभिन्न प्रकार हैं, जिसे अंकेक्षण कार्य विस्तार को देखकर अपनाया जाता है।

अंकेक्षण की विशेषताएँ (Features of Audit)

  1. व्यावसायिक लेखा-पुस्तकों का गहराई से परीक्षण करना।
  2. व्यावसायिक लेखा पुस्तकों की समीक्षा करना।
  3. व्यावसायिक लेखा पुस्तकों की प्रलेखीय सबूतों, प्रमाणकों के आधार पर जाँच करना।
  4. अंतिम लेखे एवं लेखांकन विधि की समीक्षा करना।
  5. लेखा पुस्तकों में लेखा प्रविष्टि की अचुकता का गहराई से परीक्षण करना।
  6. अंकेक्षक की अंकेक्षण संतुष्टि होने के पश्चात अंकेक्षण का प्रतिवेदन तैयार करना।
  7. अंकेक्षक प्रतिवेदन संस्था को सौंपना।

अंकेक्षण के तत्व (Elements of audit)

  1. संस्थाओं के सभी अभिलेखों का सूक्ष्म एवं गहन परीक्षण करता है।
  2. अंकेक्षण निष्पक्ष ढंग से वित्तीय विवरण की सत्य एवं उचित स्थिति का प्रदर्शन करता है।
  3. नियोक्ता के लेखा पुस्तकों या अभिलेखों का प्रमाणन तथा सत्यापन किया जाता है।
  4. अंकेक्षण करने के पश्चात अंशधारकों को प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाता है।

अंकेक्षण के कार्य (Audit work)

  1. व्यवसाय की व्यवस्था और कार्य विधियों की समीक्षा करना।
  2. लेखा पुस्तकों में अभिलिखित लेन-देनों की शुद्धता निर्धारित करने हेतु प्रलेखीय साक्ष्यों की जाँच करना।
  3. लेखांकन एवं आंतरिक नियंत्रण की समीक्षा करना।
  4. संपत्तियों एवं देयताओं का मूल्यांकन एवं उनके अस्तित्व की जाँच करना।
  5. लेखा पुस्तकों एवं विवरणों की गणितीय शुद्धता का गहन परीक्षण करना।
  6. अंकेक्षक प्रतिवेदन सत्य एवं उचित स्थितियों का प्रदर्शन करता है अथवा नहीं, इसकी जाँच करना।
  7. अंकेक्षक प्रतिवेदन संस्था को सौंपना।

अंकेक्षण के प्रकार (Types of audit)

  1. वैधानिक अंकेक्षण
  2. ऐच्छिक अंकेक्षण
  3. सरकारी अंकेक्षण
  4. व्यवहारिक अंकेक्षण
  5. पूर्ण अंकेक्षण
  6. आंशिक अंकेक्षण
  7. चालू अंकेक्षण
  8. सामयिक/वार्षिक अंकेक्षण
  9. मध्य/अन्तरिम अंकेक्षण
  10. रोकड़ अंकेक्षण
  11. प्रमाप अंकेक्षण
  12. आंतरिक अंकेक्षण
  13. गहन अंकेक्षण
  14. परिचालनात्मक अंकेक्षण
  15. खतौनी एवं साक्ष अंकेक्षण
  16. निष्पादन अंकेक्षण
  17. आकस्मिक अंकेक्षण
  18. सामाजिक अंकेक्षण
  19. कर अंकेक्षण
  20. विशेष अंकेक्षण
  21.  परिव्यय अंकेक्षण

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