आवरण
आवरण कितने गाढ़े ,कितने गहरे
कई कई परतों के पीछे छिपे चेहरे
नकाब ही नकाब बिखरे हुए
दुहरे अस्तित्व हर तरफ छितरे हुए
कहीं हँसी दुख की रेखायें छिपाए है
तो कभी अट्टहास करुण क्रन्दन दबाए है
विनय की आड़ लिये धूर्तता
क्षमा का आभास देती भीरुता
तनूजा उप्रेती |
कुछ पर्दे वक़्त की हवा ने उड़ा दिये
और न देखने लायक चेहरे दिखा दिये
आडम्बर को नकेल कस पाने का हुनर
मुश्किल बहुत है मगर
कुछ चेहरों में फिर भी
बेधड़क नग्न रहने का साहस है
बिना कोई ओट ढूँढे
सच कहने का साहस है
उन्हें आवरण जँचा नहीं
या कि लगाना नहीं आया
जो भी हो उन्हें खुद को
छिपाना नहीं आया
उनमें साहस की हर लकीर सच्ची है
और अच्छाई सचमुच में अच्छी है
उन्हें पढ़ पाना एक दम सहज है
क्योंकि वहाँ अंकित हर भाव सजग है
पर भीड़ से छिटककर अकेले चलना बड़ा जटिल है
अतः आँखें मूँद भीड़चाल चलना सुहाता है
आवरण ,मुख़ौटे, नकाब रक्षाकवच की मानिन्द
चेहरे पर ओड़े हुए हमें छिपना भाता है
आवरण कितने गाढ़े,कितने गहरे
कई कई परतों के पीछे छिपे चेहरे.
यह रचना तनूजा उप्रेती जी द्वारा लिखी गयी है . आपकी प्रकाशित पुस्तक – कहानी संग्रह ” अधूरा सच ” वर्ष 2014 में प्रकाशित है .आप वर्तमान में केंद्रीय उत्पाद सेवाकर एवं सीमा शुल्क आयुक्तालय , देहरादून में निरीक्षक के पद पर कार्यरत हैं. विभागीय पत्रिका “मयराष्ट्र भारती “एवं पाक्षिक समाचार पत्र “उत्तराखंड प्रगतिशील रिपोर्टर ” में नियमित रूप से कहानियाँ तथा कवितायें प्रकाशित हो चुकी हैं .