हां मैं सुंदर हूं

 हां ,मैं सुंदर हूं

मैं मैं हूं
मैं सुंदर हूं
जैसे तुम
वैसी मैं हूं
हां ,मैं सुंदर हूं
उसकी सुंदरतम रचना हूं
सुंदर रचनाकार है
मैं भी सुंदर हूं

हां मैं सुंदर हूं

क्या हुआ जो गोल मटोल हूं
क्या हुआ जो श्वेता नहीं हूं
क्या हुआ जो छोटी हूं
क्या हुआ जो लंबे केश धारी नहीं हूं
क्या हुआ जो मुलायम नहीं है
मैं जैसी हूं
मैं हूं
जैसे तुम
वैसे ही मैं हूं
हां ,मैं सुंदर हूं

मेरे अंदर भी परमात्मा का वास है
भावना है ,इंसानियत का आभास है
चीज नहीं हूं, हाड मास हूं
हां मैं भी इंसान हूं
मैं मैं हूं
जैसे तुम
वैसे ही मैं हूं
हां ,मैं सुंदर हूं

दर्द मुझे भी होता है
हंसी मुझे भी आती है
इस दुनिया में हर चीज मुझे भी भाती है
बंधनों में मुझे नहीं है बंधना
जैसी भी हूं मैं
खूब खुलकर है हंसना
हां मैं भी हकदार हूं
मैं मैं हूं
जैसे तुम
वैसे ही मैं हूं
हां ,मैं सुंदर हूं

क्या हुआ जो अस्त व्यस्त हूं
क्या हुआ जो सलीका नहीं आया
क्या हुआ जो तरीका नहीं आया
क्या हुआ जो तुम जैसा जीना नहीं आया
मैं भी इंसान हूं
मैं मैं हूं
जैसे तुम
वैसी ही मैं हूं
हां, मैं सुंदर हूं

भीतर मेरे भी एक मन है
उसमें सोच की अनबन है
क्यों जन्मते ही, नियमों की बौछार है
मैं भी इंसान हूं
मैं मैं हूं
जैसे तुम
वैसी ही मैं हूं
हां, मैं सुंदर हूं

क्या हुआ जो प्रतियोगिता का हिस्सा नहीं हूं
क्या हुआ जो उपयोगिता का पता नहीं
क्या हुआ जो सुंदरता का पैमाना क्या ,जाना नहीं
यह सब क्यों समाज की दरकार है
मैं मैं हूं
जैसे तुम
वैसे ही मैं हूं
हां ,मैं सुंदर हूं

वस्तु उपयोगिता के समाज में
बनी क्यों वस्तु हूं
मैं उपभोग की नहीं
प्यार की
साथ की
स्पर्श की
ममता की
अपना वर्चसव ढूंढ़ती
एक रचना हूं

मै मैं हूं
जैसे तुम
वैसी  ही मैं हूं
हां, मैं सुंदर हूं

हां , मैं सुंदर हूं



– सोनिया अग्रवाल 
प्राध्यापिका अंग्रेजी
राजकीय पाठशाला सिरसमा
कुरूक्षेत्र

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