कपि करि हृदयँ विचार तुलसीदास नूतन गुंजन
kapi kari hriday vichar meaning in hindi
जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच |
मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच ||
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ के सुंदरकांड से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाह रहे हैं कि जब रावण ने सीता का हरण करके अपने साथ ले गया तो सीता के मन में भय समा गया | वह चिंतित हो उठी कि एक महीना गुजर जाने के पश्चात् नीच राक्षस रावण मुझे मार डालेगा |
(2)- त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी | मातु बिपति संगिनि तैं मोरी ||
तजौं देह करु बेगि उपाई | दुसह बिरहु अब नहिं सहि जाई ||
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ के सुंदरकांड से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाह रहे हैं कि जब सीता से विरह अथवा दुःख असहनीय होने लगा तो उसने त्रिजटा से हाथ जोड़कर बोली — हे माता ! तू मेरी विपत्ति की संगिनी है | शीघ्र ही कोई ऐसा उपाय कर, जिससे मैं अपना शरीर त्याग सकूँ |
(3)- आनि काठ रचु चिता बनाई | मातु अनल पुनि देहि लगाई ||
सत्य करहि मम प्रीति सयानी | सुनै को श्रवन सूल सम बानी ||
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ के सुंदरकांड से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाह रहे हैं कि सीता त्रिजटा से विनती पूर्वक बोलती हैं — हे माता ! काठ से चिता बनाकर सजा दे | फिर उसमें अग्नि जला दे | हे सयानी ! तू मेरी प्रीति को सच कर दे | राक्षस रावण की शूल के समान दुःख देने वाली वाणी अब सुनी नहीं जाती |
(4)- सुनत बचन पद गहि समुझाएसि | प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि ||
निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी | अस कहि सो निज भवन सिधारी ||
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ के सुंदरकांड से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाह रहे हैं कि जब त्रिजटा से सीता ने स्वयं को अग्नि के हवाले करने की विनती करने लगी तो त्रिजटा ने सीता का चरण पकड़कर उन्हें समझाया और प्रभु का प्रताप, बल और सुयश के बारे में बताया | त्रिजटा ने सीता से कहा कि हे सुकुमारी ! सुनो, रात्रि के समय आग नहीं मिलेगी | और इतना कहकर त्रिजटा अपने घर की ओर चली गई |
(5)- कह सीता बिधि भा प्रतिकूला | मिलिहि न पावक मिटिहि न सूला ||
देखिअत प्रगट गगन अंगारा | अवनि न आवत एकउ तारा ||
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ के सुंदरकांड से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाह रहे हैं कि जब त्रिजटा अपने घर की ओर चली गई, तब सीता मन ही मन कहने लगीं कि क्या करूँ अब तो विधाता ही विपरीत हो गया | अब न अग्नि मिलेगी और न ही पीड़ा मिट सकती है | आकाश में अंगारे रूपी तारे दिखाई दे रहे हैं, परन्तु पृथ्वी पर एक भी तारा नहीं आता |
(6)- पावकमय ससि स्रवत न आगी | मानहुँ मोहि जानि हतभागी ||
सुनहि बिनय मम बिटप असोका | सत्य नाम करु हरु मम सोका ||
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ के सुंदरकांड से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाह रहे हैं कि सीता कहती हैं – आकाश में चंद्रमा अग्निमय है, परन्तु लगता है वह भी मुझे हतभागिनी मानकर मुझपर आग नहीं बरसाता | तत्पश्चात्, सीता अशोक वृक्ष से विनती करती हैं कि हे अशोक वृक्ष ! मेरी विनती सुनकर मेरा शोक हर ले और अपना नाम सत्य कर |
(7)- नूतन किसलय अनल समाना | देहि अगिनि जनि करहि निदाना ||
देखि परम बिरहाकुल सीता | सो छन कपिहि कलप सम बीता ||
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ के सुंदरकांड से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाह रहे हैं कि सीता अशोक वृक्ष को संबोधित करते हुए कहती हैं कि तेरे नूतन अथवा नए-नए कोमल पत्ते अग्नि के समान हैं | अग्नि देकर विरह रोग का अंत करके मुझे मुक्ति दे दे | परम विरह से व्याकुल सीता को देखकर वह क्षण हनुमान जी पर कल्प के समान बीता |
कपि करि हृदयँ विचार |
(8) कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारि तब ||
जनु असोक अंगार दीन्ह हरषि उठि कर गहेउ ||
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ के सुंदरकांड से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाह रहे हैं कि हनुमान जी ने हृदय में विचार कर सीता के सामने अँगूठी डाल दी | सीता को लगा कि अशोक वृक्ष ने अंगारा दे दिया | इसलिए सीता ने हर्षित भाव से उसे उठकर हाथ में ले लिया |
(9)- तब देखी मुद्रिका मनोहर | राम नाम अंकित अति सुंदर ||
चकित चितव मुदरी पहिचानी | हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी ||
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ के सुंदरकांड से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाह रहे हैं कि जब सीता ने सुंदर और मनोहर अँगूठी देखी, जिसमें राम-नाम अंकित था तो उस अँगूठी को पहचानकर सीता आश्चर्यच से भर गई | सीता उस अँगूठी को देखने लगी और उसका हृदय हर्ष तथा विषाद से अकुला उठा |
(10)- जीति को सकइ अजय रघुराई | माया तें असि रचि नहिं जाई ||
सीता मन बिचार कर नाना | मधुर बचन बोलेउ हनुमाना ||
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ के सुंदरकांड से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाह रहे हैं कि सीता अपने मन में सोचने लगीं कि श्री रघुनाथजी तो अजय हैं, उन्हें भला कौन जीत सकता है ? और माया से ऐसी अँगूठी बनाई नहीं जा सकती | सीता के मन में अनेक प्रकार के विचार चले रहे थे, तभी तत्क्षण हनुमान जी मधुर वचन बोले |
(11)- रामचंद्र गुन बरनैं लागा | सुनतहिं सीता कर दु:ख भागा ||
लागीं सुनैं श्रवन मन लाई | आदिहु तें सब कथा सुनाई ||
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ के सुंदरकांड से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाह रहे हैं कि जब हनुमान अपने मधुर वचनों से श्री रामचंद्र के गुणों का वर्णन करने लगे, तो सीता पूरे एकाग्रचित्त होकर उन्हें सुनने लगीं, जिसे सुनते ही सीता का दुःख भाग गया | हनुमान ने सीता को आदि से लेकर वर्तमान तक की सारी कथा कह सुना दी |
(12)- श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई | कही सो प्रगट होति किन भाई ||
तब हनुमंत निकट चलि गयऊ | फिरि बैठीं मन बिसमय भयऊ ||
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ के सुंदरकांड से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाह रहे हैं कि जब हनुमान ने सीता को अपने मधुर वाणी से कथा सुनाई तो सीता बोलीं कि जिसने कानों के लिए अमृत रूपी सुंदर कथा कही है, वह प्रकट क्यों नहीं होता है भाई ? सीता की इच्छा का पालन करते हुए हनुमान उनके निकट चले गए | हनुमान को देखकर सीता आश्चर्य में पड़ गई और अपना मुँह फेरकर बैठ गई |
(13)- राम दूत मैं मातु जानकी | सत्य सपथ करुनानिधान की ||
यह मुद्रिका मातु मैं आनी | दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी ||
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ के सुंदरकांड से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाह रहे हैं कि हनुमान ने अपना परिचय सीता से साझा करते हुए कहा कि हे माता जानकी ! मैं श्री राम का दूत हूँ और करुणानिधान की सच्ची शपथ करता हूँ | माते ! यह अँगूठी मैं लेकर आया हूँ | प्रभु श्री राम ने मुझे आपके लिए यह अँगूठी निशानी के रूप में दी है |
(14)- नर बानरहि संग कहु कैसें। कही कथा भइ संगति जैसे |
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ के सुंदरकांड से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाह रहे हैं कि सीता ने हनुमान से पूछा कि नर और वानर का संग कैसे हुआ बताओ मुझे ?
तत्पश्चात्, हनुमान ने वह पूरी कथा सीता को सुनाई जिस प्रकार हनुमान और श्री राम का मिलन हुआ था |
(15)- कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास
जाना मन क्रम बचन यह कृपासिंधु कर दास |
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ के सुंदरकांड से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाह रहे हैं कि जब हनुमान के प्रेमसंगत वचन सीता सुनी तो उसके मन में विश्वास भाव जाग गया | सीता जान गई कि हनुमान मन, वचन और कर्म से कृपासिंधु श्री राम का दास है |
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प्रस्तुत पाठ या प्रसंग कपि करि हृदयँ विचार , तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ के सुंदरकांड से उद्धृत है | हनुमान सीता की खोज में अशोक वाटिका पहुँचे | वहाँ उन्होंने शोक विह्वल सीता जी को देखा | एक घने पेड़ पर बैठकर श्री राम द्वारा दी मुद्रिका सीता जी के सम्मुख गिराई और राम का वृतांत गाने लगे | तत्पश्चात्, उचित अवसर देखकर वे सीता जी के सामने प्रकट हुए…||
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प्रश्न-1 त्रिजटा कौन थी ?
उत्तर- जब रावण ने सीता का हरण किया तो उसके रहने का प्रबंध अशोक वाटिका में किया था | वहीं उसकी देख-रेख के लिए त्रिजटा नाम की एक राक्षसी को रखा गया था |
प्रश्न-2 सीता जी किस बात से चिंतित थीं ?
उत्तर- रावण के द्वारा विवाह के लिए प्रतिदिन आकर धमकाना, एक वर्ष पूरा होने में केवल एक माह का समय शेष रहना, प्रभु श्री राम का कोई सूचना न मिल पाना, इतना समय बीतने पर भी प्रभु श्री राम उसे राक्षसों से छुड़ाने के लिए नहीं आए थे, दूर-दूर तक कोई उम्मीद दिखाई न देना इत्यादि बातों से सीता जी चिंतित थीं |
प्रश्न-3 आकाश में चाँद और तारों को देखकर सीता जी ने क्या सोचा ?
उत्तर- आकाश में चाँद और तारों को देखकर सीता जी ने सोचा कि कोई तारा टूटकर धरती पर क्यूँ नहीं आ जाता, जिससे मुझे अग्नि की प्राप्ति हो सके | चंद्रमा भी आग के समान लग रहा है, लेकिन वह भी मुझे मुक्ति दिलाने में कोई सहायता नहीं कर रहा है |
प्रश्न-4 सीता जी ने त्रिजटा से क्या निवेदन किया ?
उत्तर- जब सीता से विरह अथवा दुःख असहनीय होने लगा तो सीता जी ने त्रिजटा से हाथ जोड़कर निवेदन किया — हे माता ! तू मेरी विपत्ति की संगिनी है | शीघ्र ही कोई ऐसा उपाय कर, जिससे मैं अपना शरीर त्याग सकूँ | हे माता ! काठ से चिता बनाकर सजा दे | फिर उसमें अग्नि जला दे | हे सयानी ! तू मेरी प्रीति को सच कर दे | राक्षस रावण की शूल के समान दुःख देने वाली वाणी अब सुनी नहीं जाती |
प्रश्न-5 हनुमान जी ने अँगूठी कब, कहाँ और क्यूँ गिराई ?
उत्तर- रावण के असहनीय प्रताड़ना से जब सीता बहुत व्याकुल थीं तो अशोक वृक्ष की लाल पत्तियों को अंगारा मानकर अग्नि माँगने लगी | वे कहने लगी कि मुझे अग्नि देकर मेरा कष्ट दूर करो | रावण के द्वारा रखी गई सभी राक्षसियों के चले जाने के बाद तब अशोक वृक्ष पर बैठे हनुमान जी ने उचित समय देखकर राम नाम से अंकित उस सुंदर मुद्रिका को नीचे गिरा दिया |
प्रश्न-6 अँगूठी देखकर सीता जी के मन में क्या-क्या विचार उठे ?
उत्तर- जब सीता ने सुंदर और मनोहर अँगूठी देखी, जिसमें राम-नाम अंकित था तो उस अँगूठी को पहचानकर सीता आश्चर्यच से भर गई | सीता उस अँगूठी को देखने लगी और उसका हृदय हर्ष तथा विषाद से अकुला उठा |
प्रश्न-7 सही उत्तर पर √ लगाइए —
(क)- सीता जी द्वारा आग माँगने पर त्रिजटा ने क्या उत्तर दिया ?
उत्तर- रात को आग नहीं मिलती |
उत्तर- रामचंद्र जी का गुणगान करने से |
(ग)- ‘नूतन किसलय’ सीता जी को कैसे दिखाई रहे हैं ?
उत्तर- अनल की तरह |
भाषा से
प्रश्न-8 निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए –
उ. निम्नलिखित उत्तर है –
• पावक — आग, अग्नि
• हृदय — दिल, मन
• माता — माँ, जननी
• शशि — चाँद, चंद्रमा
• विषाद — कष्ट, दुःख
प्रश्न-9 समान तुक वाले शब्द लिखिए —
• जोरी — मोरी
• पहिचानी — अकुलानी
• समाना — निदाना
• मनोहर — धरोहर
• बनाई — लगाई
• कैसे — जैसे
• सोच — कोच
• गयऊ — भयऊ
प्रश्न-10 इत प्रत्यय लगाकर शब्द बनाइए –
• कथन — कथित
• आनंद — आनंदित
• रच — रचित
• अर्पण — अर्पित
• चिंता — चिंतित
• पठन — पठित
• वर्णन — वर्णित
• प्रफुल्ल — प्रफुल्लित
प्रश्न-11 निम्नलिखित वाक्यों में से क्रियाविशेषण छाँटिए –
• वह ध्यानपूर्वक पुस्तक पढ़ रहा है | (ध्यानपूर्वक)
• वह कल अवश्य आएगा | (अवश्य)
• बाहर मत जाओ | (मत)
• सोहन दिनभर लिखता ही रहा | (दिनभर)
• कल लगातार बारिश होती रही | (लगातार)
• कछुआ धीरे-धीरे चलता रहा | (धीरे-धीरे)
• राधा रोज़ संगीत सीखते है | (रोज़)
• थोड़ा आराम कर लो | (थोड़ा)
कपि करि हृदयँ विचार तुलसीदास पाठ से संबंधित शब्दार्थ
• सकल – सभी जगह, सारी
• मोहि – मुझे
• जोरी – जोड़कर
• तजौं – तजूँ, त्याग दूँ
• बेगि – बहुत जल्दी, अति शीघ्र
• दुसह – जो कठिनाई से सहन हो
• बिरहु – विरह, वियोग
• काठ – लकड़ी
• प्रतिकूला – विरुद्ध
• सूला – शूल, काँटे
• पावकमय – आग से भरा
• हतभागी – भाग्यहीन
• मम – मेरा
• बिटप असोका – अशोक वृक्ष
• कपिहि – वानर
• नूतन – नया
• मुद्रिका – अँगूठी
• बरनैं – वर्णन करना
• सुनतहिं – सुनते ही
• आदिहु – आरंभ से
• बिसमय – आश्चर्य
• सहिदानी – निशानी
• बानरहिं – बंदर |