हंसों की सभा
हंसों की सभा है ये, आप क्यों आपस में बातें करने लगे।
पूछे तो वो बातें करें , जिसे सुने और सराहै सब,
आप के मुख से फूल झरने लगे।
बैठिए सभा में एसे ,कि उस केनवास में रंग आप आप आप आपसे भरने लगे।
श्रद्धा और आदर की ऐसी खेती कीजिए, कि शत्रु भी देखे वाह-वाह करने लगे।
लेश भर बात जो कलेश का कारन बने , भला ऐसी बातें आप क्यों करने लगे।
बैरी को भी आप एहसान से ही मारिए,
घाव उसका भी बातों से ही भरने लगे ।।
ज्ञान की इस हाट में आप , एकल ही ज्ञानी नहीं, ज्ञान का भी ओर छोर आप नहीं जानते।
तर्क क्या है और क्या है , कुतर्क , भेद आप इस का भी नहीं पहचानते।
बातें के इशारों की तो, है बहुत बात दूर, उठना भी, बैठना भी , आप नहीं जानते।
सही बात को भी काट -काट कर बे -बात करें, झगड़े का मूल भी आप नहीं भानते।
जो है सयाने उनकी भी सुन लीजिए,
जो है जानकार , उनको भी नहीं मानते।।