कुछ न कहो

कुछ न कहो

सब निरपेक्षी
साक्षी बन
कर रहें तैयारी
भविष्य के
भ्रूण हत्याओं की
और मीडिया भोंपू बन
टी आर पी के लिए

कुछ न कहो

उछाल रहा है चड्डी
खुद की एवं संस्कारों की।
एक बाप को
खुद नंगा कर रही है
एक बेटी
प्रेम जैसे पवित्र रिश्ते को
अमर्यादित भाव से
बाज़ारू बना कर
समाज के तानेबाने को
जाति बिरादरी की आड़ में
कर रहें हैं छिन्न भिन्न
एक शेर क्यों नहीं करता
किसी लोमड़ी से शादी
या कोई गाय क्यों नहीं
भागती किसी घोड़े के साथ।
कोई जिराफ किसी हथनी को
क्यों नहीं बनाता जीवन संगनि।
कोई चींटी किसी मक्खी के
प्यार में क्यों नहीं होती पागल।
क्योंकि जानवरों के भी संस्कार होते हैं।
वो भी अपनी देह धर्म और जाति की
सीमाओं का करते हैं पालन।
लेकिन वो तो नहीं करते किसी
दूसरी जाति का अनादर
न ही करते हैं कोई अनाधिकार चेष्टा।
काश हम जानवरों से कुछ सीखते
लेकिन हम तो इंसान हैं।
साथ में हमारे  मुँह में
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।
इस लिए कुछ मत कहो
बनकर साक्षी
मूक निरपेक्ष।

-सुशील शर्मा

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