किरपाले काकू की जेल यात्रा

किरपाले काकू की जेल यात्रा

   
सपने मे भी किसी ने नही सोचा था कि किरपाले काकू को एक दिन जेल जाना पड़ेगा, किंतु ऐसा हो गया। …और अब किरपाले काकू जेल मे हैं। जिस दिन से वह जेल गए, उस दिन से उनके गांव सोहरबा मे अजीब सा तनाव बना हुआ है। 
   बुधई यह किस्सा बताते हुए कह रहे थे कि किरपाले काकू ने जो किया, वह ठीक ही किया। जगतदेव की तरह कायरता तो नही दिखाई। उन्होंने परिस्थियों से पलायन करने की बजाय, संघर्ष का रास्ता अपनाया, भले ही वह कानून की नजर मे गलत हो। जगतदेव ने तो जीवन से हार मानकर गले मे फांसी का फंदा लगाकर अपनी जीवन लीला ही समाप्त कर ली। यह भी नहीं सोचा कि उनके बाद मासूम बच्चों का क्या होगा? पत्नी का क्या होगा? बेचारी मेहरारू अब कलप रही है कि वह दो बच्चों का लालन-पालन कैसे करेगी?
 सोहरबा के बुधईराम, जिन्हे सब लोग बुधई के नाम से ही जानते हैं। वह किरपाले काकू के नजदीकी व्यक्तियों मे हैं। उन्होंने बताया कि किरपाले काकू के दो भाई भी हैं, जो सरकारी नौकर हैं। पिता की मृत्यु के बाद भाइयों के बीच जब बंटवारा हुआ तो किरपाले काकू के हिस्से मे पांच एकड़ जमीन आई, जिनमे से एक एकड़ बंजर-बगार थी। चार एकड़ मे ही वह खेती कर पाते थे। उसी से उनकी जीवनचर्या चलती थी। 
  किरपाले काकू हों, चाहे जगतदेव या फिर चाहे बुधई, यह सब किसान हैं। इन्हें आप भारतीय किसान के प्रतिनिधि भी कह सकते हैं। शताब्दियों पूर्व जिस तरह किसान फटेहाल थे, ठीक उसी तरह किरपाले काकू और उनके समकालीन किसान भाई तंगहाल हैं। समस्याओं से जूझ रहे हैं। आत्महत्या कर रहे हैं, कुछ ऐसा ही तो बुधई कह रहे थे। 
   
जेल यात्रा

किरपाले काकू का पूरा जीवन, उनकी घर-गृहस्थी, सब कुछ कृषि और प्रकृति पर ही निर्भर है। खेती-किसानी ही उनके लिए प्रार्थना है, उनकी शक्ति और भक्ति है। कृषि ही किरपाले काकू की निद्रा तथा जागरण है। खेती का दुश्मन काकू का दुश्मन है। यँू समझिए कि समस्त किसान का दुश्मन है।

  पिछले कुछ वर्षों से काकू की जुबान पर एक कहावत बैठी हुई है, जिसे वह जब-तब दुहराते रहते हैं-‘दिन भर माँगै तौ दिया भर, रात भर माँगै तौ दिया भर..। जाने क्यों किस्मत भी रूठी हुई है-किरपाले काकू से। ठीक से खेती भी नहीं होती..!
    किरपाले काकू को फुरसत के क्षणों में अक्सर सजीवना की याद आती है। सजीवना…गांव का व्यापारी। कुछ ही वर्षों की बात है, सजीवना सिर पर बांस की टोकरी रखकर गुड़-चना, गट्टा, नून-तेल बेचता हुआ गांव-गांव फेरी लगाता था। अब नगर का बहुत बड़ा सेठ हो गया है, लेकिन किरपाले काकू जस के तस रह गए। बल्कि अब तो दिनोदिन तंगहाली बढ़ती ही जा रही है। सुख-चैन तो जैसे उनके लिए चंद्रलोक की बातें हों। 
  यह सब बताते हुए बुधई थोड़ा भावुक होकर रुके, फिर गहरी साँस भरकर पुन: किरपाले काकू की कहानी बताने लगे। कुछ माह पहले किरपाले काकू अपने खलिहान मे किराये के थ्रेशर से गेहूँ की गहाई कर रहे थे। उसी दरम्यान बिजली विभाग का उडऩदस्ता पहुंच गया। फिर क्या था, कटिया फँसाने के जुर्म मे किरपाले काकू पर मुकद्दमा हो गया और वह जेल चले गए। बीस हजार रुपये जुर्माना भरकर बाहर आए, लेकिन मन खिन्न हो गया। 
  किरपाले काकू ने थे्रशर मालिक से थ्रेशर को डीजल वाली मशीन से चलाने के लिए कहा था, परंतु थे्रशर मालिक ने अपनी बात ऊपर रख दी कि ‘कुछ नहीं होगा, कोई नही आएगा. और थ्रेशर को बिजली से चलाने के लिए कटिया फँसा लिया। वह तो ले-देकर बरी हो गया किंतु फँस गए .
किरपाले काकू और जेल भी हो आए। उस वर्ष की पूरी खेती कोर्ट-कचहरी के चक्कर मे स्वाहा हो गई। किरपाले काकू खेती की कमाई से महज  खाद-बीज के कर्ज का ब्याज ही चुका पाते थे, किंतु इस बार ऐसा भी नही हो सका और सोसायटी का कर्जा दो गुना हो गया। सरकार और बैंक के नुमाइंदे सूदखोरी के नए-नए तरीके ढूढ़ रहे थे और किरपाले काकू का पूरा परिवार एक-एक रुपये के लिए मोहताज होने लगा। सचमुच बैंक का कर्ज जिसने एक बार ले लिया, वह उससे मुक्त ही नही हो पाता। सुरसा के मुँह की तरह कर्ज बढ़ता ही जाता है। आजादी के बाद से बैंकों में साहूकारी प्रथा पल रही है। अब उनके नाखून भी किरपाले काकू के कर्ज की तरह बढऩे लगे हैं। 
जगतदेव भी इसी चक्रव्यूह मे फँस गए थे और फिर बैंक के खूनी पंजों का शिकार हो गए। दरअसल, जगतदेव ने मजदूरों की समस्या को देखते हुए खेती करने के लिए बैंक से लोन लेकर ट्रैक्टर ले लिया था। पहले तो उन्हे सब्जबाग दिखाया गया कि आसान किश्तों मे ट्रैक्टर दिया जा रहा है। जब उन्होंने ट्रैक्टर ले लिया तो पूरा मामला ही उलट गया। फिर शुरू हुई किश्तों की वसूली। एक दिन भी लेट हो जाए तो हजारों रुपये ब्याज चढ़ जाती। ब्याज चुकाते-चुकाते जगतदेव थक गए। लाखों रुपये जमा करने के बाद भी मूल कर्जा जस का तस बना रहा। 
एक दिन सुबह-सुबह जगतदेव खेत की मेड़ पर मौजूद आम के पेड़ की एक शाखा मे फांसी के फंदे से लटकते हुए पाए गए। पूरे गांव मे कोहराम मच गया था। अभी इस सद्मे से गांव के लोग उबरे भी नही थे कि किरपाले काकू को बिजली चोरी के जुर्म मे जेल की यात्रा करनी पड़ गई। आखिर हो क्या गया सोहरबा गांव को? किसकी नजर लग गई? अभी तक तो ऐसा नहीं हुआ था? अब जाने क्या-क्या देखने को मिले? …जितने मुँह उतनी बातें सुनने को मिल रही थीं। हर कोई सशंकित था और अजीब सा तनाव महसूस कर रहा था। 
बहरहाल किरपाले काकू के बच्चे बड़े हो रहे थे। उसी अनुपात मे महँगाई और उनके खर्च भी बढ़ रहे थे। आमदनी वही जस की तस- ‘दिन भर माँगै तौ दिया भर, रात भर माँगै तौ दिया भर..। गाढ़े दिनों मे भाइयों ने भी किनारा कर लिया। ससुराल वालों की मदद से किरपाले काकू जैसे-तैसे जेल से बाहर आए थे और आते ही पछीत वाला खेत सजीवना के हाथों गिरवी कर दिया। इसके बाद एक बार फिर खेती करने की तैयारी मे जुट गए थे। 
इन दिनों किरपाले काकू की तबियत कुछ ठीक नही रहती। फिर भी वह प्रतिदिन सुबह-सुबह खाद-बीज के चक्कर मे सोसायटी जाते हैं और शाम के वक्त मुँह लटकाए लौट आते हैं। यह सब काकू की पत्नी श्यामा देख-समझ रही थी। एक दिन जब उससे रहा न गया तो उसने पूछ ही लिया-‘तबियत ठीक नही है क्या?
काकू कुछ नही बोले। श्यामा को एक नजर देख आसमान की तरफ देखने लगे। 
श्यामा ने फिर ढिंठाई की ‘खाद-बीज का क्या हुआ? अभी नहीं मिला क्या? 
‘क्या कहूं, बोरे तो बहुत आते-जाते हैं पर जाने कहां?… हमे तो सिर्फ तारीख ही मिलती है।किरपाले काकू ने भारी मन से इतना ही जवाब दिया और फिर उठकर गौशाला की तरफ चल दिए।
आषाढ़ के दिन बीत चुके थे, लेकिन अभी तक खेती लायक पानी नही वर्षा था। हर तरफ हाय-तौबा होने लगी। कुएँ, बावली, नदी तालाब, पोखरें सब सूखे हुए थे। किरपाले काकू भी अपनी बिटिया रानी की शादी की चिंता मे तिल-तिल कर सूखे जा रहे थे। आधे सावन एक दिन किरपाले काकू गाय और बछड़े को बांधने के लिए पुराने जर्जर खूँटों की जगह नए खूँटे गाडऩे के लिए दर खोद रहे थे। उमस भरी गर्मी उनकी बेचैनी बढ़ाने मे सहायक हो रही थी। गाय के लिए खूँटे गाड़े जा रहे थे। अभी बछड़े के लिए भी खूँटा गाडऩा शेष था कि तभी अचानक बादल घिरने लगे। बादलों को देख काकू का मन मयूर अंदर ही अंदर नाच उठा। वह जल्दी-जल्दी खूँटे का दर खोदने लगे। मिनटों मे ही अंधेरा छा गया। बिजली चमकने लगी। बादल गरजने लगे। बड़ी-बड़ी, मोटी-मोटी, ठंडी-ठंडी बूँदें गिरने लगीं। ऐसा किरपाले काकू ने महसूस किया। अब उनके हाथों की गति और बढ़ गई। कुछ ही पलों मे झमाझम बारिश होने लगी। जल्दी-जल्दी खूँटा गाड़कर काकू ओरिया की छाँव के नीचे भागे। उनके कपड़े गीले हो चुके थे। सिर के उलझे बालों से पानी चूने लगा। गले से गमछा निकालकर उन्होने मुँह पोछा और मुरैठा बाँध लिया। मिट्टी की सोंधी-सोंधी महँक किरपाले काकू को आत्मविभोर करने लगी थी। 
  काकू ने एक पल के लिए आँख बंदकर मन ही मन भगवान को धन्यवाद किया और प्रार्थना किए – ‘खूब बरसा भगमान…, एतना बरसा कि धरती के साथ सगले किसान अघाय जांय…। दूसरे ही पल उन्होंने महसूस किया कि उनकी ही तरह सभी किसानों की आँखों मे हजारों सपने नाचने लगे थे। मसलन बिटिया रानी की शादी, बेटों की पढ़ाई, कर्ज का भुगतान…
 आत्म विभोर काकू सहसा मुखर होकर गा उठे- ‘बरसा भगमान पकै धरिया, खाय किसान मरै बनिया (व्यापारी)… तभी अंदर से श्यामा काकी और बच्चे भी आ गए। उन्होने भी सुर मे सुर मिलाया। काकू को लगा कि पूरी दुनिया के किसान उनके सुर मे सुर मिला रहे हैं। बच्चे हुलसते-कुलकते हुए बारिश मे भींगने के लिए घर से बाहर दौड़ लगा दिए। अभी वह ठीक से भीगे भी नही थे कि बारिश बंद हो गई। 
 किरपाले काकू का विहँसा चेहरा अचानक चिंतित हो उठा। ओरिया से बाहर निकलकर आसमान की तरफ ताकने लगे। बादल तितर-बितर होकर दूर जाने लगे थे। उन्होंने हथेली फैलाई तो वर्षा की एक बूँद आकर उसमे गिर गई। काकू ने मुट्ठी बंद कर ली और तेज कदमों के साथ ओसारी तक पहुँचे। वहां रखी कुदाल उठाई और खेत की तरफ दौड़े। गिरते-परते खेत पहुंचे। जगह-जगह कुदाल से खोदाई किए और निराश होकर मेड़ पर बैठ गए। वजह वर्षा का पानी जमीन के अंदर तक नमी नहीं पैदा कर सका था। 
    किरपालू काकू सिर पर हाथ रखे थके-हारे से यूँ ही बैठे रहे। पीछे-पीछे दौड़ी आईं श्यामा काकी भी सांत्वना देती हुई उनके करीब बैठ गईं। किरपाले काकू के भीतर हाहाकार मचा हुआ था, क्योंकि बादलों के रहमोकरम पर ही किसान जीता और मरता है। काकू की साँसे लोहार की धौंकनी की तरह चल रही थीं। अचानक वह छाती पीटकर चीत्कार उठे-‘हे भगमान..! तू भी बाज़ार और सत्ता के षडयंत्र मे शामिल हो गया..?
     भारी मन से काकू पत्नी श्यामा के साथ घर लौट आए। खटिया मे बैठकर सिरहाने रखे रेडियो को चालू कर दिया। उसमे समाचार आ रहा था- ‘बिहार मे आई बाढ़ से किसानों की फसलें नष्ट हो गईं। जान-मान को भी बहुत नुकसान पहुंचा है। वहीं विंध्य अंचल का रीवा जिला सूखे की चपेट मे है…।   
 समाचार चल रहा था और किरपाले काकू अपना माथा पीट रहे थे- कितना त्रासद है किसान बनना, कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा। किसान अपने खेत की प्याज एक-दो रुपये प्रति किलोग्राम नहीं बेच पाता, जबकि उसी प्याज को व्यापारी चालीस से अस्सी रुपये प्रति किलोग्राम तक बिक्री कर मजे उड़ता है। 
   काकू वर्षा की कमी से खरीफ की फसल नही ले सके। बढ़ते कर्ज के दबाव मे काकू ने अपना दिल पत्थर का करके गिरवी खेत बेच दिया। फिर भी आशा की डोर बांधे हुए थे। कभी न कभी उनके दिन फिरेंगे। प्रकृति की अद्भुत लीला है। कुआर मे दो-तीन दिनों तक झमाझम बारिश हुई। फिर क्या था, सभी किसानों के साथ किरपाले काकू ने भी रबी फसल की बोनी कर दी। 
  …और फिर समय आने पर एक दिन किरपाले काकू फसल की कटाई-गहाई कर खलिहान मे ‘रासि (उपज) नाप रहे थे। तभी सोसायटी के अधिकारी दल-बल के साथ जीप भर आ धमके।  उनके पीछे सजीवना भी ढिठाई से खड़ा रहा। किरपाले काकू ताड़ गए कि सोसायटी एवं सजीवना का कर्ज चुकाना अभी शेष था। अधिकारियों ने काकू का गल्ला वसूली के तौर पर जबरन कब्जिया लिया और जीप मे भरने लगे। 
  यह खबर जब श्यामा काकी तक पहुंची, तब वह तवा की रोटी तवे पर घरी की रोटी घरी पर छोड़ रोते-विलखते बच्चों के साथ खलिहान मे आ गिरीं। अधिकारियों के आगे आरजू-मिन्नत करने लगीं कि अनाज के बिना बच्चे भूखे मर जाएंगे। फिर भी सरकार के नुमाइंदों को दया नही आई। वे अनाज के बोरे जीप मे लादते रहे और पूरा गांव आकर तमाशबीन खड़ा रहा। 
  बुधई ने यह पूरी राम कहानी बताते हुए कहा कि इस घटना से सुन्न पड़ गए किरपाले काकू की धमनियों मे सहसा लहू उबाल लेने लगा। आँसुओं से डबडबाई आँखें लाल सुर्ख हो गईं। उनकी मुट्ठियाँ बांस की लाठी पर कस गईं। और फिर, काकू ने आव देखा न ताव, सरकार के नुमाइंदों पर तड़ातड़ लाठी बरसाना शुरू कर दिया-‘ले कर वसूली…और ले…ले…
   अब क्या था, वसूली के लिए आए अधिकारी-कर्मचारी भाग खड़े हुए। सजीवना भी जान हथेली पर लेकर भागा। हालांकि तब तक हरेक के शरीर पर काकू की लाठी के निशान बन चुके थे। पूरा गांव प्रसन्न था, लेकिन शाम के वक्त अँधेरा घिरते ही पुलिस का दल डंडा-बंदूकों के साथ चार गाडिय़ों मे आ पहुंचा। ओसारी पर बैठे किरपाले काकू का चेचुरा पकड़कर एक ने घसीट लिया और पुलिस वाहन मे ले जाकर किसी गठरी की तरह फेक दिया और कहा-‘चल अब थाने मे तेरी गुंडई उतारूंगा… 
  तब से किरपाले काकू जेल मे हैं। …और उनका बेटा कर्ज चुकाने के लिए पढ़ाई-लिखाई के साथ ही गाँव-घर छोड़कर शहर चला गया। इधर चार साल से उसकी कोई खबर नही मिली है। 
     
-ओमप्रकाश मिश्र
ग्राम-पोस्ट बांस, टोला अमवा
थाना गढ़, जिला-रीवा (म.प्र.)
मोबाइल नंबर -9229991900

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